हैदराबाद में गैंगरेप और हत्या की भयानक वारदात के बाद, अभिनेत्री से सांसद बनी जया बच्चन ने सुझाव दिया कि ऐसे अपराध करने वाले आरोपीयों को “जनता के बीच ले जाकर भीड़ द्वारा सज़ा” दी जानी चाहिए। इस मामले को लेकर देश भर में जताये गए आक्रोश के बीच भीड़ तंत्र द्वारा न्याय दिए जाने की कुछ तस्वीरें साझा करते हुए दावा किया जा रहा कि कैसे भीड़ द्वारा किया गया न्याय ही महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोक सकता है।

वायरल तस्वीरें

सोशल मीडिया में व्यापक रूप से वायरल तस्वीर, जिसमें एक आदमी को अर्धनग्न अवस्था में एक खंभे से बांधा हुआ है और भीड़ उसे जिंदा जलाने का प्रयास कर रही है। इसके साथ दावा है कि 2015 में सैयद फ़रीद खान, जिसके ऊपर एक नागा लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप था। उसे 10,000 लोगों की भीड़ ने जेल से बाहर घसीट कर निकाला, पीटा और जिंदा जला दिया। यह भी दावा किया गया है कि इस घटना के बाद से नागालैंड में कोई बलात्कार नहीं हुए है। साझा किया गया दावा इस प्रकार है कि- “यह तस्वीर सैयद फरीद खान की है जिसने 2015 में एक नागा लड़की से बलात्कार किया था और उसे दीमापुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया था. बाद में तक़रीबन दस हज़ार की भीड़ ने उसे जेल से निकाल कर सड़कों पर नंगा घुमाया, मरम्मत, जलाया और फिर उसे चौराहे पे टांग दिया.* *रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए तब से नागालैंड में आजतक बलात्कार की एक भी घटना नहीं हुई”। ऑल्ट न्यूज़ के आधिकारिक एंड्रॉयड ऐप पर इस दावे की जांच करने का अनुरोध किया गया था।

फेसबुक उपयोगकर्ता जितेंद्र तिवारी ने भी यही तस्वीर इस संदेश के साथ पोस्ट की- “💡मोमबत्ती,मशाल जलाना छोड़ो, अब सीधे 😷बलात्कारी को 🤺जिन्दा 🔥जलाओ”। हिंसा और भीड़ के न्याय के लिए आह्वान करने वाले इस पोस्ट को करीब 1,500 से अधिक शेयर मिले हैं।

उपयोगकर्ता दीपक चौहान ने एक अलग तस्वीर इसी दावे के साथ साझा की कि सैयद फरीद खान को नागालैंड में एक लड़की के साथ बलात्कार करने पर सार्वजनिक रूप से ‘मौत के घाट’ उतार दिया गया था। इस पोस्ट को अब तक करीब-करीब 5,300 शेयर प्राप्त हुए हैं।

तथ्य-जांच

इस लेख में, हम निम्नलिखित दावों की जांच करेंगे:

  1. 2015 में नागालैंड में बलात्कार के आरोपी की भीड़ द्वारा की गई हत्या की तस्वीर।
  2. उसी दावे के साथ साझा की गई एक और तस्वीर
  3. यह दावा कि भीड़ द्वारा उस हत्या के बाद नागालैंड में बलात्कार की कोई भी घटना नहीं हुई है।

पहली तस्वीर: इक्वाडोर 

गूगल रिवर्स इमेज सर्च का उपयोग करके ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि पहली तस्वीर, जिसमें व्यक्ति के पैरों में आग लगा दी गई हैं, वह नागालैंड की नहीं है। तस्वीर में मार्को क्विसपे जैकॉम नामक एक व्यक्ति है, जिस पर लूटपाट का आरोप लगाया गया था और जिसे इक्वाडोर में पेलिलो ग्रांड के ग्रामीणों ने जिंदा जलाने का प्रयास किया था। इक्वाडोर के समाचार पत्र El Universo की 11 अक्टूबर, 2006 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, क्विसपे के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर, दो अन्य स्थानीय लोगों के साथ बस्ती के पादरी फैबरिसियो डेविला उसे बचाने के लिए आए थे। उन्होंने बोरी और कचरे से आग को बुझाया था। बाद में आरोपी को पुलिस के हवाले कर दिया गया था, जिसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया और वहा पता चला कि उन्हें ‘सेकंड डिग्री बर्न्स’ से पीड़ित बताया।

समाचार संगठन के अनुसार – “यह (चोरी )की बात उस बस्ती की रखवाली कर रहे वहां के निवासियों के एक समूह को पता चली थी, जिन्होंने उसे चाबियों, स्क्रू ड्राइवर,रस्सियों, रेज़र और अन्य वस्तुओं से भरे एक थैले को लेजाते हुए रंगे हाथो पकड़ा था। क्षेत्र के निवासियों के अनुसार, वह कथित तौर पर डकैती के लिए इनका इस्तेमाल करता था। बंदी ने कहा कि यह पहली बार था जब उसने चोरी करने की कोशिश की थी क्योंकि वह अकेला था और वह अपनी मां की सहायता करना चाहता था। रेडियो तकनीशियन के रूप में काम करने से उसे पर्याप्त पैसे नहीं मिलते थे।” (गूगल अनुवाद)

हमें यही तस्वीर एसोसिएटेड प्रेस  में मिली, जिसके कैप्शन के मुताबिक – “मंगलवार, 10 अक्टूबर, 2006, क्विटो से कोई 75 मील दक्षिण में, पेलिलो ग्रांड, इक्वाडोर में मारियो क्विसपे चीख रहा था, जब कथित तौर पर चोरी करते हुए पकड़े जाने के बाद ग्रामीणों ने उसके पैर जला दिए।” (अनुवाद)

दूसरी तस्वीर: नागालैंड

दीपक चौहान द्वारा साझा की गई तस्वीर को गूगल रिवर्स इमेज सर्च करने पर पता चला कि इसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड की एक वास्तविक घटना को दर्शाया गया है। द इंडियन एक्सप्रेस  की एक प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, 35 वर्षीय व्यापारी, सैयद शरीफ उद्दीन खान पर, 24 फरवरी, 2015 को एक स्थानीय महिला कॉलेज की 20 वर्षीया छात्रा के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा था। गुस्सैल भीड़ द्वारा 5 मार्च 2015 को उसे दीमापुर सेंट्रल जेल से बाहर घसीट कर मार दिया गया। पुलिस के बयान के मुताबिक, भीड़ ने जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर काबू कर लिया और उस आदमी को बंधक बनाकर घसीटते हुए सात किलोमीटर तक मारते-पीटते ले गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस शख्स को अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिया माना जा रहा था। हालांकि बाद में, इस संगठन द्वारा प्रकाशित की गई एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, खान एक सैनिक परिवार से थे। उनके दो भाई सेना में सेवारत थे जबकि एक की ड्यूटी पर ही शहीद हो गए थे।

गेट्टी इमेजीस  पर एक स्वतंत्र फोटो जर्नलिस्ट कैसी माओ द्वारा ली गई तस्वीर के कैप्शन में यह कहा गया है – “गुरुवार, 05 मार्च, 2015 को भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य नागालैंड के दीमापुर में भीड़ द्वारा इस व्यक्ति को जेल से बाहर घसीटने हुए लाया गया और हाईवे पर मारने के दौरान प्रदर्शनकारियों ने मोबाइल से उसकी तस्वीर खींची। प्रदर्शनकारियों ने जेल पर धावा बोल दिया और आरोपी को घसीट कर ले गए और नेशनल हाइवे पर उसे मार डाला। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस द्वारा हवा में गोलियां चलाई गई और आंसू गैसे के गोले भी दागे गए, जिसके परिणामस्वरूप बीसीयों प्रदर्शनकारी घायल हुए और एक छात्र की जान चली गई।” (अनुवाद)

हालांकि, मार्च 2015 में भीड़ द्वारा खान की हत्या के कुछ दिनों बाद नागालैंड सरकार द्वारा दी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी ने पुलिस से कहा था कि उसने महिला के “सहमति से दो बार सेक्स” किया था। 12 मार्च को, द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया, “जब नागालैंड के पुलिस महानिरीक्षक (रेंज), वबांग ज़मीर से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि जांचकर्ताओं को सरकारी रिपोर्ट के बारे में जानकारी नहीं थी और वे उस मामले को बलात्कार के रूप में ही जांच कर रहे थे।” (अनुवाद)

ऑल्ट न्यूज़ ऐसी किसी भी रिपोर्ट का पता नहीं लगा पाया है, जिसमें इस मामले का कोई निष्कर्ष दिया गया हो। द टेलीग्राफ ने 12 मार्च, 2015 को नागालैंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री टी. आर. जेलियांग के हवाले से बताया कि इस घटना की जांच पूरी नहीं हुई थी, इसलिए यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि बलात्कार हुआ था या नहीं। सरकार की रिपोर्ट में “बलात्कार नहीं हुआ” कहे जाने के बारे में मीडिया की रिपोर्टों को झूठा बताते हुए उन्होंने कहा कि यह बात अदालत तय करेगी। सितंबर 2015 में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से बलात्कार आरोपी की हत्या की जांच करने को कहा। तय समय सीमा में जांच पूरी नहीं करने पर सीबीआई ने अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करनेके लिए समय मांगने हेतु आवेदन किया था। 21 जून, 2016 को उच्च न्यायालय ने इसके लिए और छह महीने मंज़ूर किए।

22 जून को द टेलीग्राफ के एक लेख में कहा गया है कि, “उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार, सीबीआई ने पिछले साल 10 दिसंबर को नागालैंड पुलिस से मामले के रिकॉर्ड इक्क्ठा करने के बाद लिंचिंग के सिलसिले में चार और मामले दर्ज किए और अपनी जांच शुरू की। सीबीआई अधिकारियों ने अपराध के दृश्यों का निरीक्षण किया, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य एकत्र किए, 40 से अधिक गवाहों और 29 आरोपियों से पूछताछ की। ” (अनुवाद)

गलत दावा : “नागालैंड में भीड़ द्वारा की गई हत्या के बाद बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई”

वायरल संदेश में यह भी दावा किया गया है कि 2015 में सैयद शरीफ उद्दीन खान की भीड़ द्वारा हत्या करने के बाद राज्य में एक भी बलात्कार की घटना नहीं हुई थी, यह गलत है।उदाहरण के तौर पर, मई 2018 की NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, नागालैंड के मोन जिले में म्यांमार की सीमा के पास दूरदराज के एक गांव में एक गैर-आदिवासी सेल्समैन द्वारा 12 वर्षीया आदिवासी लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने की घटना सामने आयी थी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2015, 2016 और 2017 में नागालैंड में बलात्कार की घटनाओं की संख्या क्रमशः 35, 26 और 10 थी।

निष्कर्ष के रूप में, इक्वाडोर में चोरी के आरोप में पकड़े गए व्यक्ति को भीड़ द्वारा ज़िंदा जलाये जाने के प्रयास की असंबंधित तस्वीर, नागालैंड में बलात्कार के आरोपी को भीड़ द्वारा सज़ा दिए जाने के रूप में साझा हुई। वहीं दूसरी तस्वीर इसी घटना से संबंधित है, मगर यह दावा कि वह आदमी बलात्कारी था, इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है। इसके अलावा, यह भी गलत है कि 2015 में भीड़ द्वारा हत्या के बाद से राज्य में बलात्कार की कोई घटना सामने नहीं आई है।

यह उल्लेखनीय है कि भीड़ द्वारा न्याय करने की बात, हैदराबाद बलात्कार मामले के बाद से बहस का मुद्दा बनी है, जबसे सांसद ने दोषियों को जनता के सामने खड़ा करने और भीड़ द्वारा सज़ा देने की बात कहीं हैं। कानून व अदालत की सीमा से बाहर जाकर सार्वजनिक रूप से सज़ा का प्रयास वास्तव में 30 नवंबर को किया गया था, जब स्थानीय लोगों ने शादनगर पुलिस स्टेशन में प्रवेश करने से रोकने पर पुलिसकर्मियों पर चप्पल फेंकी, जहां हैदराबाद में बलात्कार मामले के आरोपी पकड़े गए आरोपियों को रखा गया था। कानून बनाने वाले सांसदों व विधायकों द्वारा कानून हाथ में लेने के लिए नागरिकों को उकसाना और सोशल मीडिया दावों में यह प्रचारित करना कि भीड़ द्वारा किया गया न्याय जघन्य अपराधों को रोकता है, जनता के दिमाग में एक भयानक चलन स्थापित कर सकता है।

 

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About the Author

Jignesh is a writer and researcher at Alt News. He has a knack for visual investigation with a major interest in fact-checking videos and images. He has completed his Masters in Journalism from Gujarat University.