जून महीने की शुरुआत में, एक्सपोज़ करने की शैली में शूट किया गया, एक महिला का पांच मिनट लंबा इंटरव्यू वायरल हो गया. देखने से महिला कोई ज़िम्मेदार पदाधिकारी प्रतीत होती है और एक डेस्क के पीछे बैठी हैं. वो कहती है, “ये लोग आतंकवादी हैं और हम उनको वीआईपी ट्रीटमेंट दे रहे हैं… हम अपना संसाधन उनपर बर्बाद कर रहे हैं, उनके लिए अपने डॉक्टर्स को बीमार कर रहे हैं…हम उनके लिए प्रतिदिन 100 टेस्ट किट यूज कर रहे हैं, अगर वो नहीं होते तो हमें इन किट्स की ज़रूरत ही नहीं पड़ती… इन लोगों को मारपीट कर अलग जेल में डाल देना चाहिए… क्या योगी जी एक ऑर्डर पास नहीं कर सकते कि देश का संसाधन इन लोगों पर खर्च न किया जाए… हम इन 20 करोड़ लोगों के लिए देश के 100 करोड़ रुपये बर्बाद कर रहे हैं.” भारत में मुस्लिमों की आबादी लगभग 20 करोड़ है.

इस वीडियो में ‘News इंडिया 1’ का लोगो लगा एक माइक देखा जा सकता है. इंटरव्यू लेने वाले लोग कैमरे के पीछे से अपने न्यूज़ बुलेटिन के लिए आधिकारिक बयान लेने की कोशिश कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर चल रहे दावों के अनुसार, जिस महिला का इंटरव्यू लिया जा रहा है, वो कानपुर के जीवीएसएम मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल आरती लालचंदानी है.

इस दावे का फ़ैक्ट-चेक करने के लिए ऑल्ट न्यूज़ के व्हॉट्सऐप नंबर (+917600011160) और ऑफ़िशियल एंड्रॉयड ऐप पर कई रिक्वेस्ट्‌स आईं.

फ़ैक्टचेक

सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे सही हैं. वीडियो में दिख रही महिला, कानपुर के जीवीएसएम मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल, आरती लालचंदानी ही हैं. 1 जून को, द हिंदू और द इंडियन एक्सप्रेस समेत कई मीडिया संस्थानों ने वायरल वीडियो के संबंध में रिपोर्ट्स छापी हैं.

द हिंदू के अनुसार, “ लालचंदानी ने पहले कहा कि वीडियो के साथ ‘छेड़छाड़’ हुई है और उन्होंने किसी समुदाय का नाम नहीं लिया है या मुस्लिमों को निशाना बनाने की बात नहीं की है. लेकिन इसी दौरान उन्होंने ये मान लिया कि उनका बयान कानपुर में कोविड-19 संकट के शुरुआती दिनों के संदर्भ में था.

उन्होंने दोनों अख़बारों को कहा कि जिस स्थानीय पत्रकार ने ये वीडियो लीक किया है, उसने पहले ब्लैकमेल किया और उनसे प्रशासनिक फ़ायदा उठाने की कोशिश की थी. हालांकि, ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए, लालचंदानी ने कहा कि उन्हें इस क्लिप के बारे में सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद ही पता चला. ये साफ़ नहीं है कि जब इस वीडियो क्लिप के बारे में उन्हें कोई जानकारी ही नहीं थी, उसके आधार पर कथित तौर पर उनको ब्लैकमेल कैसे किया गया. इसके अलावा, वो इस संबंध में कोई सबूत देने में भी नाकाम रहीं.

द हिंदू के लिए रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार उमर राशिद ने ट्वीट किया कि लालचंदानी ने उनके संस्थान को बताया था कि उन्होंने ये बयान गुस्से में दिया था.

व्हॉट्सऐप पर भेजे गए अपने स्टेटमेंट में लालचंदानी लिखती हैं, “ये मीडिया को दिए गए बयान नहीं हैं बल्कि दुर्भावनापूर्ण तरीके से किया गया स्टिंग वीडियो है. ये मेरी दिल की भावनाओं से मेल नहीं खाता है.” उन्होंने आगे लिखा, “गुस्से में एक मां भी अपने बच्चों को भाड़ में जाने के लिए कह देती है. और अगले ही पल उनको गले से लगा लेती है. मेरा काम मेरे कहे से ज़्यादा असरदार है और ऐसा ही चलता रहेगा. मैं आप सबों की सेवा करती रहूंगी और आप किसी भी ज़रूरतमंद को मेरे पास भेज सकते हैं, मैं चौबीसों घंटे आपके लिए काम करती हूं.”

ये ध्यान देने वाली बात है कि लालचंदानी ने अपने नस्लभेदी बयानों के लिए माफ़ी नहीं मांगी.

इसलिए, वीडियो के साथ सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे सच हैं. कानपुर के जीवीएसएम मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल आरती लालचंदानी ने तबलीग़ी जमात के सदस्यों और मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया. उन्होंने कहा कि देश को इन लोगों के इलाज पर पैसे और संसाधन खर्च करने की बजाय जेल में बंद करना चाहिए.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.