बीते कुछ दिनों से चुनाव आयोग की कार्यशैली सुर्खियों में है. एक तरफ बिहार में मतदाता पुनरीक्षण अभियान को लेकर विपक्ष का कड़ा रूख, वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी का 7 अगस्त को किया गया प्रेस कॉन्फ्रेंस जिसमें उन्होंने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा के वोटर लिस्ट में कई खामियों को उजागर कर चुनाव आयोग पर वोट चोरी करने और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए धोखाधड़ी जैसे गंभीर आरोप लगाए.
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान में हुई अनेक प्रकार की गड़बड़ियां व चुनाव आयोग द्वारा पारदर्शिता को कम करने के प्रयास पर रिपोर्ट्स और राहुल गांधी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में उजागर किये गए बातों पर चुनाव आयोग और उनसे संबंधित आधिकारिक प्रतिक्रियाओं में एक पैटर्न देखा गया. कई मौकों पर चुनाव आयोग ने ‘फ़ैक्ट-चेक’ के रूप में अधूरा और भ्रामक जवाब दिया है. चुनाव आयोग के इन तथाकथित ‘फ़ैक्ट-चेक’ में अक्सर वास्तविक तथ्यों का अभाव होता है जिससे लोगों में भ्रम और अविश्वास पैदा होता है.
ऑल्ट न्यूज़ ने 5 ऐसे उदाहरण रखे हैं जहां चुनाव आयोग ने अपने बयानों को फ़ैक्ट-चेक के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया है:
पहला मामला
न्यूज़ आउटलेट स्क्रॉल ने रिपोर्ट किया कि चुनाव आयोग द्वारा बिहार में हुए विशेष गहन पुनरीक्षण की डिजिटल ड्राफ़्ट मतदाता सूची को उसके स्कैन कॉपी के साथ बदल दिया जो त्रुटियों को खोजना कठिन बनाती है. क्यूंकि पीडीएफ की स्कैन की गई कॉपी सर्च फ़ंक्शन को सपोर्ट नहीं करती है, जो पहले के वर्जन में उपलब्ध थी.
इसपर जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने कथित फ़ैक्ट-चेक किया जिसमें उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल में कोई बदलाव नहीं हुआ है. संबंधित चुनावी पंजीकरण अधिकारी द्वारा दावों और आपत्तियों के निपटान के बाद इसमें बदलाव किए जाएंगे.
#Factcheck – There is no change in the draft electoral roll published since 1 August 2025 . Changes will be made after disposal of claims and Objections by the concerned EROs. The draft electoral roll is available on the https://t.co/g9XgnfpkNi website. @ECISVEEP https://t.co/vLxc6LphZi
— Chief Electoral Officer, Bihar (@CEOBihar) August 10, 2025
इस बयान में चुनाव आयोग ने उस बात का ‘फ़ैक्ट-चेक’ किया जो दावा ही नहीं किया गया था. न्यूज़ आउटलेट स्क्रॉल की रिपोर्ट में कहीं भी यह दावा नहीं किया है कि बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण के ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल डेटा में कोई बदलाव हुआ है, बल्कि रिपोर्ट में यह तथ्य प्रस्तुत किया गया था कि मूल पीडीएफ को उन पीडीएफ की स्कैन कॉपी के साथ बदल दिया गया है. और पीडीएफ की स्कैन कॉपी में सर्च फ़ंक्शन काम नहीं करता है. चुनाव आयोग की ये कथित फ़ैक्ट-चेक भ्रामक है जो लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से प्रेरित मालूम पड़ता है.
चुनाव आयोग के इस ट्वीट पर कम्यूनिटी नोट भी प्राप्त हुईं, जो आम जनता की प्रतिक्रिया और फ़ैक्ट-चेक का एक रूप है जिसमें लोग ट्वीट में किये गए दावों का संदर्भ जोड़ते हैं और श्रोत के साथ दावों की जांच करते हैं.
दूसरा मामला
बिहार में जून-जुलाई में चल रहे विशेष गहन परीक्षण के दौरान पत्रकार अजीत अंजुम ने अपनी एक वीडियो रिपोर्ट में दर्शाया कि BLO खुद वोटर्स के फ़र्ज़ी हस्ताक्षर कर रहे थे. कई विपक्षी नताओं ने भी अजीत अंजुम का वीडियो शेयर किया. इसपर चुनाव आयोग की ओर से पटना प्रशासन ने कथित फ़ैक्ट-चेक में दावा किया कि अजीत अंजुम के वीडियो में BLOs ने ‘मौत’ या ‘शिफ्ट’ लिखकर अपने स्वयं के हस्ताक्षर से मृतक/शिफ्ट हो चुके मतदाताओं को सत्यापित कर रहे थे.
❌The claims made in the video mentioned in this post are false
✅ You may refer to the link provided below for more detailshttps://t.co/5uJtlaN2GG https://t.co/x6ez0nMiX1
— Election Commission of India (@ECISVEEP) July 17, 2025
ऑल्ट न्यूज ने जांच में पाया कि BLOs स्वयं का हस्ताक्षर नहीं, बल्कि मतदाताओं के नाम का फ़र्ज़ी हस्ताक्षर कर रहे थे. इस तथ्य के सामने आने के बाद प्रशासन ने बाद में दावा किया कि उन फॉर्मस् में BLOs मृत व्यक्तियों को चिन्हित कर हस्ताक्षर के जगह मृत व्यक्तियों के नाम लिख रहे थे. यहां भी प्रशासन ने शब्दों से खेलने की कोशिश की, क्योंकि किसी व्यक्ति के फ़ॉर्म में हस्ताक्षर के जगह उसका नाम लिखा जाना हस्ताक्षर ही माना जाता है, लेकिन प्रशासन ने जानबूझकर ‘नाम लिखने’ जैसे शब्द का प्रयोग किया.
साथ ही प्रशासन के कथित ‘फ़ैक्ट-चेक’ ने एक कानूनी सवाल भी उठाया कि किसी दस्तावेज में व्यक्ति के हस्ताक्षर की जगह अगर कोई अन्य व्यक्ति उसका नाम लिख दे तो ये भारतीय कानून के तहत जालसाजी माना जा सकता है.
प्रशासन ने पहले कहा कि दस्तावेज में ‘डेथ/शिफ्टेड’ लिखकर BLO का हस्ताक्षर था. जबकि दूसरे बयान के मुताबिक, उन्होंने मतदाताओं के हस्ताक्षर की जगह BLO द्वारा मृतक के हस्ताक्षर को उचित ठहराने की कोशिश की, जो एक असंगतता का संकेत है.
इसके अलावा, प्रशासन ने पत्रकार अजीत अंजुम के वीडियो के कथित फ़ैक्ट-चेक में ये भी दावा किया कि वीडियो में दिख रहे सभी BLO मृतक/शिफ्ट हो चुके मतदाताओं की सूची तैयार कर रहे थे. हालांकि, ऑल्ट न्यूज ने पुष्टि की कि उनमें से एक व्यक्ति जीवित है और स्थानांतरित भी नहीं है.
बिहार का समूचा मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान व्यापक और जटिल था, जिसमें बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा घर-घर जाकर मतदाताओं के विवरण का सत्यापन और मृत, डुप्लिकेट और स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाना आदि शामिल था. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कई अनियमितताएं उभरकर सामने आईं. मात्र एक महीने में पूरी हुई इस प्रक्रिया में सभी स्तरों पर अधिकारियों और कर्मचारियों पर दबाव और प्रशिक्षण का अभाव देखा गया और इसके परिणामस्वरूप उन पर जाली हस्ताक्षर, मृत मतदाताओं के फ़ॉर्म भरकर अपलोड करने, बीएलओ द्वारा क्षेत्रों का ठीक से दौरा नहीं करने, मतदाताओं की बिना जानकारी के उनका प्रपत्र भरकर अपलोड करने आदि जैसे गंभीर आरोप लगे. 1 अगस्त को चुनाव आयोग द्वारा SIR ड्राफ्ट रोल जारी करने के बाद, लोगों की चिंताएं और भी ज़्यादा उभरकर सामने आईं. क्योंकि इसमें एक मतदाता के नाम कई बार मौजूद होने, मृत मतदाता का नाम मौजूद होने, जीवित व्यक्ति का नाम हटाने जैसी कई प्रकार कई गड़बड़ियाँ प्रत्यक्ष रूप से पाई गईं. इसके अलावा, कई रिपोर्ट्स में पारदर्शिता की कमी और उसे और भी ज़्यादा सीमित करने के प्रयासों को उजागर किया गया है.
तीसरा मामला
7 अगस्त 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कुछ दस्तावेज प्रस्तुत किये. उन्होंने दावा किया कि वोटर आदित्य श्रीवास्तव (EPIC संख्या FPP6437040) और विशाल सिंह (EPIC संख्या INB2722288) का नाम कई राज्यों (कर्नाटक, महाराष्ट्र, और उत्तर प्रदेश) के मतदाता सूचियों में मौजूद था. उन्होंने चुनावी रोल में डुप्लिकेट पंजीकरण और धोखाधड़ी का दावा करते हुए चुनाव आयोग की वेबसाइट से 16 मार्च 2025 को लिए गए स्क्रीनशॉट्स प्रस्तुत किए.
इसपर प्रतिक्रिया देते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने 7 अगस्त, 2025 को एक सार्वजनिक बयान में गांधी के दावों से इनकार करते हुए कहा कि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह के डिटेल्स सर्च करने पर उन्हें ये नाम उत्तर प्रदेश के लखनऊ पूर्व या वाराणसी कैंट निर्वाचन क्षेत्रों में नहीं, बल्कि केवल कर्नाटक सूची में मिला.
— CEO UP (@ceoup) August 7, 2025
ऑल्ट न्यूज ने राहुल गांधी के आरोपों और उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के बयान को सत्यापित करने के लिए लखनऊ पूर्व और वाराणसी कैंट के प्रासंगिक ड्राफ्ट रोल -2025 (29 अक्तूबर 2024 को प्रकाशित) और फाइनल रोल -2025 (7 जनवरी 2025 को प्रकाशित) को चुनाव आयोग की वेबबसाइट से डाउनलोड कर दोनों की जाँच की.
उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी के दावे के विपरीत, ऑल्ट न्यूज ने आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह दोनों का नाम 2025 के लिए यूपी वोटर रोल में सूचीबद्ध पाया, जिसमें उनके EPIC संख्या राहुल गांधी द्वारा साझा किये गए स्क्रीनशॉट से मेल खाता है.
इसके अलावा, चुनाव आयोग के बयान में कई अन्य विसंगतियाँ भी पाई गईं. उदाहरण के लिए चुनाव आयोग ने अपने बयान में दावा किया कि आदित्य श्रीवास्तव पुत्र एसपी श्रीवास्तव (EPIC संख्या FPP6437040) का नाम बेंगलुरु शहरी के विधान सभा 174 महादेवपुरा के बूथ संख्या 458 की मतदाता सूची में क्रमांक संख्या 1265 पर मौजूद है. जबकि असल में वहाँ आदित्य श्रीवास्तव के रिश्तेदार का नाम एसपी श्रीवास्तव नहीं, बल्कि ऋतिका श्रीवास्तव है.
इतना ही नहीं, चुनाव आयोग ने बयान में यह भी दावा किया था कि आदित्य श्रीवास्तव पुत्र एसपी श्रीवास्तव का नाम उत्तर प्रदेश के लखनऊ पूर्व विधान सभा की मतदाता सूची में नहीं है. ऑल्ट न्यूज़ ने जांच में पाया कि फाइनल रोल -2025 में, आदित्य श्रीवास्तव पुत्र एसपी श्रीवास्तव का नाम लखनऊ पूर्व विधान सभा की मतदाता सूची में मौजूद है, उनका समूचा विवरण (पिता का नाम, पोलिंग बूथ, सीरियल नंबर, आयु) राहुल गांधी द्वारा साझा किये गए स्क्रीनशॉट से मेल खाता है, लेकिन अब उनका EPIC संख्या बदल गया है.
आरोपों को खारिज करने की जल्दबाजी में तथ्यों की जांच में कोताही, चुनाव आयोग के संचालन की पारदर्शिता और उनके बयानों की सत्यता पर संदेह पैदा करता है.
चौथा मामला
विपक्षी पार्टी के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 7 अगस्त को ही मतदाता सूची में अनियमितताओं को दिखाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग पर वोट चोरी और धोखाधड़ी जैसे गंभीर आरोप लगाए. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का पूरा वीडियो राहुल गांधी ने ट्विटर पर पोस्ट किया.
राहुल गांधी के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए चुनाव आयोग ने कथित फ़ैक्ट-चेक किया जिसमें उन्होंने लिखा कि यदि श्री राहुल गांधी मानते हैं कि वे जो कह रहे हैं वह सत्य है, तो उन्हें मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 20(3)(बी) के अनुसार घोषणा/शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करके आज शाम तक कर्नाटक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को प्रस्तुत करना चाहिए ताकि आवश्यक कार्रवाई शुरू की जा सके. यदि श्री राहुल गांधी को अपनी बातों पर विश्वास नहीं है, तो उन्हें बेतुके निष्कर्ष निकालना और भारत के नागरिकों को गुमराह करना बंद कर देना चाहिए.
❌The statements made are Misleading #ECIFactCheck
✅Read the details in the image attached 👇 https://t.co/746fmzkCvl pic.twitter.com/gvhEXXto8I
— Election Commission of India (@ECISVEEP) August 7, 2025
ये मामला हास्यास्पद है, क्योंकि चुनाव आयोग के इस बयान मे न तो कोई फ़ैक्ट है और ना ही कोई फ़ैक्ट-चेक. बयान को साझा करते हुए फ़ैक्ट-चेक जैसे प्रभावी शब्द का इस्तेमाल सनसनी पैदा करता है और स्वतंत्र संस्था मे लोगों के विश्वास को कम करता है.
पाँचवा मामला
10 अगस्त को कांग्रेस पार्टी ने एक ट्वीट में लिखा कि राहुल गांधी ने हाल ही में ‘वोट चोरी’ की कार्यप्रणाली और हथकंडों का पर्दाफ़ाश किया है और इसमें चुनाव आयोग की मिलीभगत पाई गई है. एक लिस्ट शेयर करते हुए कांग्रेस पार्टी ने कहा कि इस सूची में 30,000 से ज़्यादा अवैध पते हैं—ज़्यादातर “मकान नंबर 0”, “00”, “000”, “-” और “#” हैं. बाकी 9000 अवैध पतों में से ज़्यादातर सिर्फ़ इलाकों के नाम हैं.
कांग्रेस पार्टी के इस ट्वीट का जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने एक कथित फ़ैक्ट-चेक किया. जिसमें उन्होंने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि राहुल गांधी क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया से बचने की कोशिश कर रहे हैं और नागरिकों को यथासंभव गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर उन्हें वाकई उनके द्वारा शेयर की जा रही सूची पर विश्वास है, तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन करने और बिना और इंतज़ार किए कर्नाटक के सीईओ को जवाब देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. इसलिए, राहुल गांधी के पास दो विकल्प हैं:
a) अगर राहुल गांधी अपने विश्लेषण पर विश्वास करते हैं और मानते हैं कि चुनाव कर्मचारियों पर उनके आरोप सही हैं, तो उन्हें मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 20(3)(ख) के अनुसार विशिष्ट मतदाताओं के खिलाफ दावे और आपत्तियाँ प्रस्तुत करने और घोषणा/शपथपत्र पर हस्ताक्षर करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
b) अगर राहुल गांधी घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं करते हैं, तो इसका मतलब होगा कि उन्हें अपने विश्लेषण और निष्कर्षों पर विश्वास नहीं है और वे बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं. ऐसे में, उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए.
❌ The statements made are False and Misleading #ECIFactCheck
✅ Please read details in the image attached 👇 https://t.co/Jyj5mzAMiK pic.twitter.com/ZR6MRvKFNj
— Election Commission of India (@ECISVEEP) August 10, 2025
इस कथित फ़ैक्ट-चेक में भी अगर आप ध्यान दें तो कोई फ़ैक्ट नहीं है. चुनाव आयोग फिर से अपने बयान के साथ फ़ैक्ट-चेक जैसे भारी-भरकम शब्द का इस्तेमाल कर इसे सनसनी बनाने का प्रयास किया.
फ़ैक्ट-चेकिंग एक गहन प्रक्रिया है जिसमें सार्वजनिक रूप से किए गए दावों का वेरीफिकेशन शामिल होता है. इसके लिए ठोस सबूतों के आधार पर स्पष्ट दावे का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है, जो पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत रूचि से प्रभावित न हो. एक उचित फ़ैक्ट-चेक में विशिष्ट दावों की जांच के लिए सत्यापन योग्य तथ्य और आँकड़े प्रदान किये जाते हैं और निष्कर्षों को पारदर्शी रूप से प्रस्तुत किया जाता है. लेकिन चुनाव आयोग की हालिया गतिविधियाँ इन सिद्धांतों से विपरीत मालूम पड़ती हैं.
राय, बयानों और अधूरी जानकारी को फ़ैक्ट-चेक के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत करके, चुनाव आयोग न केवल अपनी विश्वसनीयता को कम करता है, बल्कि स्वायत्त संवैधानिक संस्थानों में जनता के विश्वास को भी कम करता है. एक सटीक फ़ैक्ट-चेक के लिए अधिक कठोर और पारदर्शी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें प्रत्येक फ़ैक्ट-चेक को सत्यापन योग्य साक्ष्यों के साथ विशिष्ट आरोपों का सीधा जवाब देना शामिल है जो पूर्वाग्रह, व्यक्तिगत रूचि और संस्थातमक रूचि से प्रभावित ना होकर निष्पक्षता सुनिश्चित करता हो. फ़ैक्ट-चेक के संबंध में चुनाव आयोग की वर्तमान कार्यप्रणाली अपर्याप्त है जो फ़ैक्ट-चेकिंग के मूलभूत सिद्धांतों का पालन नहीं करती है.
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