NIA अदालत ने 2 अगस्त को केरल की दो कैथोलिक नन, वंदना फ्रांसिस और प्रीति मैरी और छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी के आरोप में गिरफ़्तार सुखमन मंडावी नामक एक आदिवासी व्यक्ति को जमानत दे दी.

असीसी सिस्टर्स ऑफ़ मैरी इमैक्युलेट (ASMI) की सदस्य नन और छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले के निवासी मंडावी पर 19 से 22 साल की 3 आदिवासी महिलाओं का धर्म परिवर्तन और तस्करी करने का आरोप लगाया गया था. उन्हें 25 जुलाई को गिरफ़्तार किया गया था. उनके खिलाफ दर्ज FIR में उल्लिखित आरोपों में छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत गैरकानूनी धार्मिक रूपांतरण और भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 143 के तहत मानव तस्करी शामिल है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सुखमन और तीन महिलाएं – उनकी बहन सुखमती मंडावी, ललिता उसेंडी और कमलेश्वरी प्रधान – 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां वो उन दोनों ननों से मिलें. जब एक प्लेटफ़ॉर्म टिकट परीक्षक उनसे टिकट मांग रहा था, तो नन वहां पहुंचीं और टिकट परीक्षक को बताया कि उनके पास टिकट हैं. लगभग इसी वक्त, विश्व हिंदू परिषद (VHP) की युवा शाखा, बजरंग दल के सदस्य कथित तौर पर टिकट चेकर का फ़ोन आने के बाद बड़ी संख्या में उस जगह पर पहुंचे. आखिरकार, नन, वो व्यक्ति और तीन महिलाओं को रेलवे पुलिस ने हिरासत में ले लिया और कथित तौर पर बजरंग दल कार्यकर्ताओं के आग्रह पर एक प्राथमिकी दर्ज की. बाद में तीनों महिलाओं को सरकार द्वारा संचालित आश्रय में ले जाया गया, जबकि सिस्टर्स फ्रांसिस और मैरी और सुखमन मंडावी को गिरफ़्तार कर लिया गया. 30 जुलाई को तीनों की जमानत याचिका खारिज करते हुए एक सत्र अदालत ने मामले की सुनवाई बिलासपुर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अदालत में ट्रांसफ़र कर दी थी.

ये गौरतलब है कि प्रारंभिक FIR (नीचे अटैच कॉपी) में धार्मिक रूपांतरण के आरोप शामिल नहीं थे और सिर्फ धारा 143 का ज़िक्र किया गया था. ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि तीन आदिवासी महिलाओं के परिवारों सहित कई सोर्स ने पुष्टि की है कि वे ईसाई थे, इसलिए धर्म रूपांतरण का कोई सवाल ही नहीं था.

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गिरफ़्तारी के बाद आक्रोश

दो मलयाली ननों की गिरफ़्तारी से केरल के राजनीतिक और धार्मिक नेताओं में आक्रोश फैल गया. यहां तक कि उनके परिवारों ने पुलिस कार्रवाई के आधार पर सवाल उठाया. तीनों आदिवासी महिलाओं के परिवार वालों ने न सिर्फ उनके ईसाई होने की पुष्टि की, बल्कि ननों पर लगे सभी आरोपों को भी खारिज़ कर दिया.

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने घटना की निंदा की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेटर लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की. वहीं, कांग्रेस सांसदों ने ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों की बढ़ती घटनाओं पर लोकसभा में चर्चा की मांग की. 30 जुलाई को कांग्रेस नेता और सांसद केसी वेणुगोपाल ने लोकसभा में शून्यकाल के दौरान कहा कि “केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए और दो ननों की रिहाई सुनिश्चित करनी चाहिए.” इसके अलावा, पार्टी की वरिष्ठ नेता बृंदा करात के नेतृत्व में CPI (M) के एक प्रतिनिधिमंडल ने 30 जुलाई को जेल में ननों से मुलाकात की.

जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता विष्णु देव साई ने ननों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का समर्थन किया. केरल भाजपा प्रमुख राजीव चंद्रशेखर ने 29 जुलाई को कहा कि नन “तस्करी या धर्मांतरण गतिविधियों में शामिल नहीं थीं.” चन्द्रशेखर ने कहा कि भाजपा केरल के महासचिव अनूप एंटनी स्वयं छत्तीसगढ़ गए थे और भाजपा हरसंभव मदद कर रही है.

संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: केरल पुजारी

ऑल्ट न्यूज़ ने केरल में सिरो-मालाबार चर्च के प्रीस्ट (पुजारी) और प्रवक्ता फ़ादर टॉम ओलिकरॉट से कॉन्टेक्ट किया. उन्होंने बताया कि सिस्टर वंदना फ्रांसिस और सिस्टर प्रीति मैरी दोनों एक ही मंडली का हिस्सा हैं.

फ़ादर ओलिककारॉट ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “उन्होंने अपना जीवन कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिए समर्पित कर दिया है. वो धर्मार्थ और परोपकारी कार्यों में लगे हुए हैं. वे राष्ट्र के निर्माण में मदद कर रहे थे.” उन्होंने आगे कहा, “लड़कियां एक व्यक्ति के साथ यात्रा कर रही थीं जो उन्हीं लड़कियों में से एक का बड़ा भाई है. सिस्टर फ्रांसिस और मैरी ने उन्हें (तीन महिलाओं को) आगरा के एक संगठन में काम करने के लिए नियुक्त किया था और वो वहीं जा रही थीं. उनके (तीनों महिलाओं के) कुछ पड़ोसी पहले से ही वहां काम कर रहे थे, और इस तरह वो ननों के कॉन्टेक्ट में आई थीं.”

ओलिक्करॉट ने भी ऑल्ट न्यूज़ से पुष्टि की कि तीनों महिलाएं ईसाई समुदाय से थीं. उसने पूछा, “परिवार पीढ़ियों से ईसाई रहे हैं. धर्म परिवर्तन का सवाल कैसे हो सकता है?”

उन्होंने कहा, “बजरंग दल के सदस्य स्टेशन पर पहुंचे, उन्हें परेशान किया और उनसे डिटेल्स मांगने लगे. वो कुछ भी पूछने वाले कौन होते हैं? उन्हें (ननों को) यात्रा करने का अधिकार है, है ना? ये मानवाधिकारों का पूर्ण उल्लंघन है और अल्पसंख्यक और संवैधानिक अधिकारों का नग्न उल्लंघन है.”

‘कानूनी प्रक्रिया में जानबूझकर देरी’

ननों को सशर्त जमानत पर रिहा किए जाने से एक दिन पहले ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए सिस्टर वंदना फ्रांसिस के छोटे भाई जिमसन मैथ्यू ने कहा, “हम कानूनी रूप से आगे बढ़ेंगे. हमें न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा है. लेकिन वो पूरी प्रक्रिया में देरी करने के लिए कानूनी खामियों का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन हमने कुछ भी ग़लत नहीं किया है, और हमें विश्वास है कि न्याय की जीत होगी.”

इस कानूनी कार्यवाही के लिए मैथ्यू छत्तीसगढ़ में थे जब उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ से बात की. उन्होंने कहा, “हम अपनी बहन से मिले थे. जेलर ने सहयोग किया था.”

अपनी बहन के खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में बोलते हुए उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “मानव तस्करी के आरोप निराधार हैं. ननों के साथ जो तीन लोग (तीन युवतियां और सुखमन मंडावी) थे, वो काम के लिए जा रहे थे. उनके माता-पिता को उनकी इस नौकरी करने पर कोई आपत्ति नहीं थी. उनके पास यात्रा करने और काम करने के लिए पुलिस की मंजूरी भी थी (क्योंकि शायद महिलाएं एक आदिवासी समुदाय से थीं). ये मंजूरी के कागजात बहनों के पास थे जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया था… उनमें से किसी ने भी कुछ भी ग़लत नहीं किया; उनकी एकमात्र ग़लती प्लेटफॉर्म टिकट का नहीं होना था.”

मैथ्यू ने दोहराया कि महिलाओं को एक कॉन्वेंट में काम करने के लिए आगरा ले जाया जा रहा था. उन्होंने कहा, “तीनों लोग वयस्क हैं. चूंकि वो आदिवासी बैकग्राउंड से थे, इसलिए बहनों ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से संभालने का फैसला किया. उन सभी के पास आगरा की यात्रा के लिए टिकट थे.”

आदिवासी महिलाओं को जबरन आगरा ले जाया जा रहा था: बजरंग दल

हालांकि, ऑल्ट न्यूज़ ने जब बजरंग दल के एक सदस्य से बात की तो उसका घटनाक्रम अलग था. घटना के वक्त छत्तीसगढ़ के दुर्ग के बजरंग दल कार्यकर्ता सौरभ देवांगन रेलवे स्टेशन पर मौजूद थे.

सौरभ देवांगन ने दावा किया, “महिलाएं साफ तौर पर परेशान दिख रही थीं और उन्होंने नारायणपुर से आगरा तक यात्रा नहीं करने की इच्छा व्यक्त की.. उन्होंने कहा, ‘चलो चलें,’ लेकिन पादरी (सुखमन मंडावी का ज़िक्र करते हुए) उन्हें अपने और ननों के साथ यात्रा करने के लिए मजबूर कर रहे थे.” उन्होंने आगे आरोप लगाया कि तीनों अच्छी तरह से शिक्षित नहीं थे, उन्होंने नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त किया था और उन्हें नौकरी देने के बहाने ले जाया जा रहा था. हालांकि, उनके मुताबिक, महिलाओं को ये साफ पता नहीं था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. उन्होंने ये भी दावा किया कि तीनों महिलाओं में से सभी के पास आधार कार्ड के दो सेट थे.

सौरभ देवांगन ने हमारे साथ 1 मिनट 17 सेकेंड का एक वीडियो शेयर किया जिसमें सुखमती की एक टिप्पणी थी. वो कहती है कि वो अपना घर छोड़कर आगरा तक यात्रा नहीं करना चाहती थी, लेकिन उसके भाई (सुखमन मंडावी) ने जोर देकर कहा कि ट्रेन टिकट पहले ही बुक हो गए हैं और उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता.

हमने 38 मिनट से ज़्यादा लंबा पूरा वीडियो देखा और इसमें ऊपर उल्लिखित महिला का बयान भी शामिल है. इसे 25 जुलाई को चैनल VLC न्यूज़ ने यूट्यूब पर पोस्ट किया था. ये वीडियो संक्षेप में सौरभ देवांगन के दावों का खंडन करता है. महिला का नाम सुखमती है जो अपने नाम से अपनी पहचान बताती है. वो इस वीडियो में एक रिपोर्टर को बताती है कि वो ननों द्वारा संचालित स्थान पर रसोइया के रूप में काम करने के लिए आगरा जा रहे थे. वो ये भी कहती हैं कि उन्हें काम के बारे में पहले ही बता दिया गया था और पूछा गया था कि क्या वो जाना चाहते हैं. वो और अन्य महिलाएं कार्यस्थल पर जाकर जांच करने के लिए सहमत हुई थीं. सुखमती कहती हैं कि ट्रेन के टिकट खरीदे गए और उनके ज़िले की कई महिलाएं भी उसी नौकरी के लिए सहमत हुईं थी. इसके बाद इंटरव्यू लेने वाले ने कमलेश्वरी से ऐसे ही सवाल पूछे. ऐसा ये जानने की कोशिश में शायद किया गया ताकि कथित साजिश के आरोप का पता लगाया जा सके. हालांकि, वो ये भी कहती है कि उसके माता-पिता उसकी यात्रा योजनाओं के बारे में जानते थे.

इस वीडियो को पोस्ट करने के कुछ घंटों बाद, VLC न्यूज़ ने इसे ‘प्राइवेट (निजी)’ बना दिया, यानी दर्शकों के लिए पहुंच से बाहर कर दिया. जब हमने चैनल के एक प्रतिनिधि से कॉन्टेक्ट किया तो उन्होंने कहा कि मामला तूल पकड़ने के बाद चैनल को ऐसा करने के लिए “दिशानिर्देश प्राप्त” हुए थे.

महिलाओं और मीडियाकर्मियों और ज्योति शर्मा नाम की बजरंग दल नेता के बीच हुई बातचीत के कुछ हिस्से अभी भी इंटरनेट पर मौजूद हैं.

‘बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने थप्पड़ मारे, धक्का-मुक्की की, ग़लत बयान देने के लिए मजबूर किया’

एक वीडियो में पुलिसकर्मी उस कमरे में मौजूद दिखते हैं जहां नन, उस व्यक्ति और ‘पीड़ितों’ के साथ बैठी हैं. हालांकि, पूछताछ शुरू में बजरंग दल की नेता ज्योति शर्मा ने की. वो महिलाओं और ननों द्वारा ले जाए गए डाक्यूमेंट्स की जांच करती और उनसे बहस करती दिखती है. ज्योति शर्मा को महिलाओं से पूछते हुए सुना जा सकता है: “आप इतनी छोटी नहीं हैं कि आप इन लोगों के साथ जाने के लिए सहमत हो जाएं. समझ में आता है नहीं आता है? ये लोग कहां ले के जाते हैं मालूम है ना? पेपर पढ़ती होगी ना? व्हाट्सऐप तो चलाती होगी? नहीं चलाते?..” बजरंग दल के एक स्थानीय नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ज्योति शर्मा उनके संगठन से नहीं थी. वो दुर्गा वाहिनी मातृशक्ति की कार्यकर्ता है.

ये रेलवे पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में होता है जो कार्यभार संभालने से पहले ज्योति शर्मा द्वारा उनके सामान की तलाशी पूरी करने का इंतजार करते दिखाई देते हैं.

VLC न्यूज़ ने 25 जुलाई को यूट्यूब पर एक शॉर्ट पोस्ट किया. यहां, सुखमती को ये कहते हुए सुना जा सकता है कि वे ननों द्वारा संचालित जगह पर रसोइया के रूप में काम करने के लिए आगरा जा रही थी. वो कहती हैं कि उसे काम के बारे में पहले ही बता दिया गया था और पूछा गया था कि क्या वो जाना चाहती हैं. वो और अन्य महिलाएं कार्यस्थल पर जाकर जांच करने के लिए सहमत हुईं थी. सुखमती ने ये भी बताया कि उनके ज़िले की कई महिलाएं भी इसी नौकरी के लिए सहमत हुई थीं.

हमें CG ख़बर नामक चैनल का एक और वीडियो मिला जिसमें तीन महिलाओं के बयान शामिल थे. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि उन्हें ग़लत बयान देने के लिए मजबूर किया गया था जिसके बाद उन्होंने जवाबी FIR दर्ज की थी.

दुर्ग रेलवे स्टेशन मामला: पीड़ित युवतियों ने बजरंग दल और ज्योति शर्मा के खिलाफ दर्ज कराई शिकायत

दुर्ग रेलवे स्टेशन मामला: पीड़ित युवतियों ने बजरंग दल और ज्योति शर्मा के खिलाफ दर्ज कराई शिकायत

#छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन में 25 जुलाई को हुई कथित #धर्मांतरण और मानव तस्करी की घटना अब नया मोड़ ले रही है। पीड़ित युवतियों ने #नारायणपुर एसपी कार्यालय पहुंचकर ज्योति शर्मा और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है। उनका कहना है कि उनके साथ मारपीट, जातिगत गाली-गलौज और गलत बयान दर्ज कराने का प्रयास हुआ। इस मामले में #NIA कोर्ट से मिली जमानत के बाद अब पीड़ित न्याय की मांग कर रहे हैं।

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Posted by CG KHABAR on Sunday 3 August 2025

इस रिपोर्ट में ललिता उसेंडी कहती हैं, “ज्योति शर्मा ने हमारे साथ जो किया वो ग़लत था. उनके साथ लगभग 50 या शायद 100 या 150 लोग थे जो हमें घसीटकर पुलिस स्टेशन ले गए. हम डर गए थे. उन्होंने हमसे कहा कि हमारा रेप होगा और हमें पुरुषों के साथ सोना होगा. हमारे माता-पिता को हमारी यात्रा के बारे में पता था, लेकिन फिर भी ज्योति शर्मा ने हमें बहुत परेशान किया जो लोग उसके साथ थे वो हमारी कमर को छू रहे थे और हमें पुलिस स्टेशन में खींच रहे थे. हमने उनसे हमारा वीडियो रिकॉर्ड न करने के लिए भी कहा. और उसने कहा कि वो अपनी बेटियों की रक्षा कर रही थी, उसने मुझे कई बार थप्पड़ भी मारे, लेकिन उन्होंने उस हिस्से को रिकॉर्ड नहीं किया.” वो ये बयान देते हुए रो पड़ी.

सुखमती, जिन्होंने कथित तौर पर कहा था कि उन्हें नहीं पता कि वो कहां जा रही हैं, इस वीडियो में वो कहती हैं, “मुझे खुशी है कि ननों और भाई को जमानत मिल गई, वो निर्दोष हैं.” रोते हुए वो आगे कहती हैं, “उस दिन जब हम दुर्ग स्टेशन पर थे, बजरंग दल के सदस्य आए और हम पर शारीरिक हमला करना शुरू कर दिया.” उन्होंने दोहराया कि पुलिस स्टेशन के अंदर ले जाने पर उन्हें ग़लत तरीके से छुआ गया.

तीसरी महिला कमलेश्वरी ने भी यही बात दोहराई. उनका ये भी दावा है कि ज्योति शर्मा ने कथित तौर पर उन्हें “नीची जाति” और “हमारी जूती के समान” कहा. तीसरी महिला ने कहा, “वे तीनों, नन और वो आदमी, निर्दोष थे.”

इंडिया टुडे ने 30 जुलाई को रिपोर्ट दी कि महिलाओं के परिवार ये कहने के लिए आगे आए थे कि उन्होंने अपनी बेटियों को स्वेच्छा से भेजा था और जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप से इनकार किया था. इंडिया टुडे ने महिलाओं में से एक की बड़ी बहन के हवाले से कहा, “हमारे माता-पिता अब ज़िंदा नहीं हैं. मैंने अपनी बहन को ननों के साथ भेजा ताकि वो आगरा में नर्सिंग की नौकरी कर सके. मैंने पहले उनके साथ लखनऊ में काम किया था. ये अवसर उसे आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगा.” इसके अलावा, रिपोर्ट में ज़िक्र किया गया है कि एक रिश्तेदार ने पुष्टि की है कि परिवार ने पांच साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था जैसा कि पीले सलवार सूट वाली महिला ने ज़िक्र किया था, और ननों और मंडावी की गिरफ़्तारी को “अन्यायपूर्ण और चालाकीपूर्ण” बताया.

रिपोर्ट में नारायणपुर एसपी रॉबिन्सन गुरिया का भी हवाला दिया गया जिन्होंने बताया की कि सभी तीन परिवारों ने 26 जुलाई को स्थानीय पुलिस को लिखित घोषणा सौंपी थी. इसमें कहा गया था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपनी बेटियों को रोजगार के लिए ननों के साथ भेजा था. हालांकि, इन बयानों के बावजूद, सरकारी रेलवे पुलिस (GRP) के एक अधिकारी ने न्यूज़ आउटलेट को बताया कि जांच जारी है और “पर्याप्त सबूत” अभी भी जमा किए जा रहे हैं.

ईसाइयों के खिलाफ हमलों में बढ़ोतरी

छत्तीसगढ़ की घटना, (जहां सभी उपलब्ध सबूत बताते हैं कि ननों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई पूरी तरह से बेमतलब थी) देश भर में हिंदुत्व संगठनों और भाजपा नेताओं द्वारा ईसाइयों पर हमलों की कई घटनाएं सामने आती है. महाराष्ट्र के भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर ने जून में हिंसक सतर्कता को उकसाने और कानून की अवहेलना करने के स्पष्ट मामले में “जबरन धर्मांतरण” में शामिल ईसाई पुजारियों और मिशनरियों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों के लिए 3 लाख रुपये से 11 लाख रुपये तक के इनाम की घोषणा की.

मई 2025 में पब्लिश कारवां की एक वीडियो रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में ईसाई समुदाय को हुए उत्पीड़न और जबरन धर्म परिवर्तन के निराधार आरोपों को उजागर किया गया है.

इसके अलावा, बजरंग दल नेता ज्योति शर्मा (जिन्हें पुलिस के सामने ननों से पूछताछ करते देखा जा सकता था) को पहले भी ईसाई समुदाय के व्यक्तियों को परेशान करते हुए पाया गया था. वो इसे ‘घर वापसी’ ऑपरेशन कहती हैं जहां ‘भ्रमित’ व्यक्तियों (जो हिंदू धर्म से अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए हैं) को हिंदू धर्म में वापस लाया जाता है.

गाज़ियाबाद की हालिया घटना के वायरल वीडियो में बजरंग दल के एक नेता (जिन्होंने नॉन-वेज आइटम ले जा रहे एक ब्लिंकिट डिलीवरी पर्सन को रोका था) को ये कहते हुए सुना जा सकता है कि “ईसाई मुसलमानों से भी बदतर हैं”, जब उन्हें पता चला कि ऑर्डर एक ईसाई द्वारा दिया गया था. दिसंबर 2024 में क्रिसमस मनाने के लिए स्कूलों को उसी हिंदुत्व संगठन के गुस्से का सामना करना पड़ा. ऑल्ट न्यूज़ ने ये भी डॉक्यूमेंट किया कि क्रिसमस के आसपास ईसाइयों के खिलाफ दुश्मनी कैसे चरम पर थी.

यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम द्वारा संकलित 2014 और 2024 के बीच ईसाइयों के खिलाफ हमलों के आंकड़ों का हवाला देते हुए, फ़ादर टॉम ओलिकारोट ने कहा, “जब आप 2014 से अब तक के आंकड़ों को देखते हैं, तो भारत में 4,316 घटनाएं हुई हैं जहां ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया. ये बहुत दयनीय है कि अल्पसंख्यकों को इतनी गंभीर हिंसा का सामना करना पड़ रहा है. सरकार और राजनीतिक दलों को इस पर ध्यान देना होगा और ईसाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी.”

अपडेट: 4 अगस्त की देर रात, इस स्टोरी के पब्लिश होने के बाद, इस स्टोरी में उल्लिखित VLC न्यूज़ यूट्यूब चैनल द्वारा 38 मिनट 35 सेकेंड की वीडियो रिपोर्ट फिर से सार्वजनिक कर दी गई. रिडर्स हाल में ये वीडियो देख स्कते हैं.

(शारजेस मोहम्मद के इनपुट्स के साथ)

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