जम्मू कश्मीर के पहलगाम में स्थित बैसरन घाटी में अप्रैल 2025 की 22 तारीख को आतंकियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी. इस आतंकी हमले ने देश को चौंका कर रख दिया क्यूंकि कथित रूप से लोगों से उनका धर्म पूछकर उन्हें मारा गया. इस हमले का ज़िम्मा लश्कर-ए-तैयबा (LET) के एक शैडो ग्रुप, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने लिया है. ऐसे में 24 अप्रैल को सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई. इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे थे. इस मीटिंग में गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कथित रूप से बताया कि बैसरन घाटी आम तौर पर जून महीने में पर्यटकों के लिए खोली जाती है. लेकिन इस साल ये जगह 20 अप्रैल को ‘बिना अधिकारियों को जानकारी’ दिए खोल दी गई.
भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने बैसरन घाटी को लेकर यही दावा किया कि इसे 20 अप्रैल को सुरक्षाबलों को कोई जानकारी दिए बगैर खोल दिया गया. अमित मालवीय ने लिखा, “सर्वदलीय बैठक में खुफिया अधिकारियों ने जानकारी दी कि ये इलाका आम तौर पर पर्यटकों और अमरनाथ यात्रियों के लिए जून में खोला जाता है.” (आर्काइव लिंक)
उन्होंने इस घटनाक्रम को लेकर 3 सवाल उठाए:
1) सुरक्षाबल को इन्फॉर्म किये बगैर किसने इस इलाके को पर्यटकों के खोला?
2) सुरक्षा तंत्र को इस फैसले की जानकारी क्यों नहीं दी गई?
3) आतंकवादियों को इस सुरक्षा चूक के बारे में कैसे पता चला, जबकि भारत की अपनी सुरक्षा एजेंसियां अनजान रहीं?
प्रफुल गर्ग के इंस्टाग्राम पर 2 लाख 50 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स हैं. उन्होंने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें यही दोहराया जो अमित मालवीय ने लिखा है. इस पोस्ट को 3 मिलियन से ज़्यादा व्यूज़ मिले. (पोस्ट का आर्काइव वर्ज़न)
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इन दावों की तह तक जाने के लिए हमने सबसे पहले ये जानने की कोशिश की कि आखिर ये बैसरन घाटी कहां स्थित है और इसके आस-पास का इलाका कैसा है. और क्या इसे खोला या बंद किया जा सकता है. आगे, आर्टिकल में ऑल्ट न्यूज़ आपको बताएगा कि बैसरन घाटी के जून महीने से पहले 20 अप्रैल को खोले जाने के दावे का सच क्या है?
बैसरन घाटी और इसके आसपास का इलाका
जम्मू कश्मीर में लिद्दर नदी के किनारे बसा पहलगाम हमेशा से ही पर्यटकों में मशहूर रहा है. और इसी शहर से तकरीबन 6 से 7 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है बैसरन घाटी. इस घाटी में स्थित घास का मैदान और इसके आसपास बिखरा हुआ देवदार का घना जंगल स्विट्जरलैंड जैसा है. इसी कारण से इसे “मिनी स्विट्जरलैंड” कहा जाता है.
गूगल अर्थ पर जब ऑल्ट न्यूज़ ने बैसरन घाटी और इसके आसपास के इलाके को देखा तो पाया कि घाटी में ऊंचाई पर स्थित घास का मैदान चारों तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है. खबर के मुताबिक, इसी जंगल से आतंकी आए थे और मैदान में मौजूद पर्यटकों पर हमला किया था.
गूगल मैप पर मौजूद कई फ़ोटोज़ और वीडियोज़ में ये घास का मैदान और इस तक पहुंचने का कठिन रास्ता दिखता है.
इस घाटी का एक ड्रोन फुटेज हमने देखा. इसमें साफ दिख रहा है कि घाटी में घास के मैदान के चारों तरफ घना जंगल फैला है. यहां ये अंदेशा लगाया जा सकता है इन जंगलों में छिपना और फिर हमला कर वापस जंगल भाग जाना आतंकवादियों के लिए मुश्किल नहीं रहा होगा.
रिडर्स ध्यान दें कि बैसरन घाटी का नज़ारा जितना खूबसूरत है उतना ही कठित है यहां तक पहुंचने का रास्ता. हमने आपको पहले ही बताया कि पहलगाम से बैसरन घाटी का रास्ता 6 से 7 किलोमीटर का है. और यहां गाड़ियों से नहीं जाया जा सकता. पैदल और घोड़े या टट्टू की सवारी कर बैसरन घाटी पहुंचा जा सकता है. रास्तों को दिखानेवाले कई वीडियोज़ यूट्यूब पर मौजूद हैं जिनसे साफ पता चलता है कि इन पथरीले रास्ते को पार कर ही घाटी में घास के मैदान तक जाया जा सकता है. (वीडियो 1, वीडियो 2, वीडियो 3).
“बैसरन घाटी जून से पहले 20 अप्रैल को खोल दी गई.” सच क्या है?
सोशल मीडिया पर कई लोग सामने आए जिन्होंने इस बात की जानकारी दी कि ये घाटी आम तौर पर पूरे साल पर्यटकों के लिए खुली ही रहती है और सिर्फ ठंड के महीने में लोग यहां जाना टालते हैं क्यूंकि बर्फ गिरने के कारण रास्ते सुरक्षित नहीं रहते. अमित मालवीय और प्रफुल गर्ग के सोशल मीडिया पोस्ट्स के कमेन्ट सेक्शन ऐसे जवाबों से भरे हुए हैं जहां लोगों ने इस दावे को खारिज किया कि ये घाटी 20 अप्रैल से पहले बंद थी.
इस दावे को लेकर स्थानीय पत्रकारों ने क्या कहा?
ऑल्ट न्यूज़ ने 3 स्थानीय पत्रकारों से बात की और तीनों ने इस दावे को बेबुनियाद बताया
कश्मीर में मौजूद एक स्थानीय पत्रकार ने इस दावे को पूरी तरह से गलत बताया कि आतंकी हमले से चंद दिनों पहले यानी, 20 अप्रैल को ही इस बैसरन घाटी को खोला गया था. उन्होंने कहा, “ये पहाड़ी इलाका है और जाना-माना टुरिस्ट स्पॉट है. ये जगह पूरे साल खुली ही रहती है. और सिर्फ ठंडी के महीनों में जब बर्फबारी होती है तब वहां लोग नहीं जाते हैं. लोग आम तौर पर वहां नज़ारों को देखने के लिए पैदल या घोड़ों से जाते हैं और जब भी बर्फ नहीं होती है और मौसम साफ रहता है, टुरिस्ट घाटी में नेचर को देखने के लिए जाते हैं.”
एक और कश्मीरी लोकल जर्नलिस्ट ने हमें जानकारी दी कि बैसरन घाटी को 20 अप्रैल को खोले जाने का दावा बेबुनियाद है. उन्होंने कहा कि ये जगह एक ओपन प्लेस है और वहां पर्यटक ठंड के महीनों के अलावा पैदल यात्रा कर या घोड़ों पर जाते हैं और घाटी का सुंदर नज़ारा देखते हैं.
कश्मीर से ही एक और स्थानीय पत्रकार ने हमें बताया कि 20 अप्रैल को बैसरन घाटी खोले जाने का दावा सही नहीं है. ये जगह हमेशा ही खुली रहती है और टुरिस्ट वहां पर आम तौर पर पैदल यात्रा कर या फिर घोड़े के ज़रिए जाते है. 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले से पहले वहां पर जाने के लिए कोई पाबंदी नहीं थी.
ऑल्ट न्यूज़ ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ओपरेटर्स, जम्मू एंड कश्मीर चैप्टर के चैयरपर्सन नासिर शाह से बात की
उन्होंने बताया, “ये दावा कि बैसरन घाटी को जून में खोला जाना था लेकिन उसे 20 अप्रैल को ही खोल दिया गया, पूरी तरह से गलत है. ये सारे दावे मनगढ़ंत है. टूर ऑपरेटर एसोसिएशन का हेड होने के नाते हमारे पास ऐसी कोई चिट्ठी नहीं आई थी कि आप टुरिस्ट को वहां मत भेजिए. वहां पर ऐसी कोई झड़प की या संवेदनशील घटना नहीं हुई थी, वहां वातावरण ठीक था. अगर टूर ऑपरेटर्स के पास ऐसी कोई चिट्ठी आती भी तो पुलिस और CRPF ने पर्यटकों को क्यूं ऊपर जाने दिया? वो कहां थे? ये आतंकी हमला एक दुखद घटना है.”
उन्होंने आगे कहा, “मान लीजिए इस जगह को बंद करार देते हुए कोई एडवाईज़री जारी की गई थी तो पर्यटक टिकट लेकर वहां कैसे पहुंच रहे थे? उन्हें क्यूं नहीं रोका गया था. उन्होंने बताया, “अगर हमारे पास ऐसी कोई जानकारी होती तो हम अपने टूर गाइड को इन्फॉर्म करते कि आप वहां न जाए. लेकिन ऐसा कोई मामला नहीं था.” उन्होंने कहा कि ठंड के महीनों में बर्फबारी के कारण वहां लोग जाने से बचते हैं, क्यूंकी वहां पैदल और घोड़ों या ट्टू के ज़रिए जाया जाता है. इसके अलावा, बाकी के महीनों में अक्सर वहां टुरिस्ट विज़िट करते हैं.
पहलगाम पोनिवाला एसोसिएशन के हेड अब्दुल वहीद वानी ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया:
“जो भी लोग ये दावा कर रहे हैं कि लोकल लोगों ने और टूर ऑपरेटरों ने 20 अप्रैल को बैसरन घाटी ओपन कर दी जबकि इसे जून महीने में खोला जाना था, ये दावे फेक हैं. ये घाटी 12 महीने खुली ही रहती है और आम तौर पर मार्च और अप्रैल महीने में काफी लोग यहां घूमने आते हैं. टुरिस्ट घोड़े और खच्चरों या फिर पैदल चलकर घाटी में घास के मैदान को देखने के लिए जाते हैं. पिछले साल अमरनाथ यात्रा के दौरान इसे चंद दिनों के लिए बंद किया गया था. लेकिन ऐसा नहीं कि अमरनाथ यात्रा के अलावा ये घाटी बंद रहती है. ये दावा गलत है कि इसे स्थानीय लोगों ने ओपन किया था. ये बैसरन घाटी 5000 लोगों का रोज़गार है और यही कारण है कि ये हमेशा खुली रहती है.”
खबरों के मुताबिक, 22 अप्रैल को आतंकी हमले के बाद जब पुलिस ने वहीद को हमले की जानकारी दी तो वो तुरंत शॉर्ट कट रास्ते के ज़रिए घाटी तक पहुंचे थे इस रास्ते को गणेशबल ट्रैक भी कहा जाता है. वहीद उन पहले लोगों में से एक थे जो हमले के बाद घाटी तक पहुंचे थे और उन्होंने कई लोगों की मदद की थी.
ऑल्ट न्यूज़ ने एसोसिएशन के प्रेसीडेंट रईस भट से भी बात की जिन्होंने बताया कि ये घाटी पूरे साल खुली ही रहती है और सिर्फ बर्फ गिरती है तब लोग वहां आम तौर पर नहीं जाते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि इस घाटी को किसी ने खोल दिया था, आम तौर पर इस वक़्त ये घाटी खुली ही रहती है.
बैसरन घाटी में 20 अप्रैल, 2025 से पहले घूमने गए लोगों ने क्या कहा?
ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी इंवेस्टिगेशन जारी रखते हुए उन लोगों से बात की जो बैसरन घाटी में इस साल 20 अप्रैल से पहले घूमने गए थे. शिवानी अग्रवाल 22 मार्च को अपने परिवार के साथ बैसरन घाटी घूमने गई थी. उन्होंने हमें मौके की 1 तस्वीर भी भेजी. हालांकि, शिवानी की रीक्वेस्ट के कारण हम इस तस्वीर को आर्टिकल में शामिल नहीं कर रहे हैं.
हमने 6 अप्रैल, 2025 को पहलगाम के बैसरन घाटी घूमने गए एक परिवार से बात की. नाम जारी नहीं करने की शर्त पर उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने टिकट खरीदी जिसके बाद वो ऊपर घाटी तक घोड़े की सवारी कर पहुंचे थे. उन्होंने ये भी बताया कि टिकट काउन्टर तक सिक्युरिटी मौजूद थी लेकिन उसके आगे घाटी में स्थित घास के मैदान में कोई सुरक्षा बल तैनात नहीं था.
15 अप्रैल 2025 को बैसरन घाटी घूमने गए एक और परिवार ने हमें बताया कि बैसरन घाटी में घास के मैदान तक पहुंचने का रास्ता काफी खराब है. वो लोग पहलगाम से घोड़े की सवारी से घाटी तक पहुंचे थे. उन्होंने रास्ते में टिकट काउन्टर पर कथित रूप से सिक्युरिटी का ड्रेस पहने एक व्यक्ति से बात की और पूछा था कि बैसरन घाटी क्या सुरक्षित इलाका है? इसके जवाब उस व्यक्ति ने बताया था कि यहां पर हर रोज़ टुरिस्ट आते हैं और डरने वाली कोई बात नहीं है. बाद में पहलगाम की ओर वापस जाते वक़्त उन्होंने सिपाही की ड्रेस में एक और व्यक्ति को घोड़े पर सवार होकर घाटी की तरफ जाते हुए देखा था. उन्होंने बताया कि श्रीनगर में सुरक्षा के इंतेज़ाम काफी ज़्यादा थे इसके मुकाबले पहलगाम में उन्हें सेना के जवान कम दिखे थे.
ऑल्ट न्यूज़ से जुड़ी एक फ़ैक्ट-चेकर 2 मई 2023 को बैसरन घाटी घूमने पहुंची थी. उन्होंने बताया, “घाटी में जाने के लिए किसी पर्मिशन या पुलिस पर्मिट की ज़रूरत नहीं होती है. बस वहां पहुंचने के लिए टिकट लेना पड़ता है. और कोई भी टुरिस्ट वहां घोड़ों के जरिए या पैदल यात्रा कर पहुंच सकता है. घाटी में ऊपर की ओर खुला मैदान है जो आगे जंगल जैसे एरिया से मिलता है.”
ऑल्ट न्यूज़ के एडिटर अपने परिवार के साथ 17 अप्रैल 2021 को बैसरन घूमने गए थे. उन्होंने बताया, “घाटी में जाने के किये किसी पर्मिशन की ज़रूरत नहीं होती है. आप घोड़े या टट्टू के ज़रिए घाटी में ऊपर तक पहुंच सकते हैं.” उन्होंने बताया कि उन्हें याद नहीं है कि घास के मैदान में या फिर घाटी तक जाने वाले रास्ते में उन्होंने किसी सुरक्षाकर्मी को देखा हो क्यूंकि इसके अलावा पहलगाम नगर समेत कश्मीर में लगभग सभी जगह भारी सुरक्षा बल तैनात रहता है. उन्होंने इस यात्रा की एक तस्वीर भी शेयर की जिसे नीचे देखा जा सकता है.
सोशल मीडिया पोस्ट्स
हमें एक यूट्यूब ब्लॉग मिला जिसमें रास्ते से लेकर बैसरन घाटी दिखाई गई है. इस ब्लॉग को रिकार्ड करने वाले व्यक्ति ने वीडियो में बताया है कि वो 19 मार्च 2025 को बैसरन घूमने गए थे. वीडियो में मार्च महीने के वक़्त में भी काफी टुरिस्ट दिख रहे हैं.
ऑल्ट न्यूज़ ने कई लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट्स देखे जिन्होंने बैसरन घाटी का दौरा इस साल 20 अप्रैल से पहले किया था. (फ़ेसबुक पोस्ट्स लिंक 1, लिंक 2)
इंस्टाग्राम पर भी कई ऐसे पोस्ट्स मौजूद हैं जिनमें यूजर्स ने बैसरन घाटी का दौरा 20 अप्रैल से चंद दिनों पहले या 1 या 2 महीने पहले करने की बात कही है. (लिंक 1, लिंक 2, लिंक 3, लिंक 4)
हमने इनमें से एक इंस्टाग्राम यूज़र से बात भी की जिन्होंने बताया कि वो लोग अप्रैल महीने की पहली तारीख (01-04-2025) को बैसरन घाटी घूमने गए थे.
एक यूट्यूब शॉर्ट वीडियो में बैसरन घाटी के 4 अप्रैल 2025 के दृश्य दिखाए गए हैं.
यानी, ये बात साफ हो जाती है कि बैसरन घाटी को 20 अप्रैल को नहीं खोला गया था बल्कि ये खुली ही रहती है. इसलिए ये दावा ग़लत है कि लोकल टूर ऑपरेटरों ने बिना किसी ऊपरी अधिकारी को सूचित किये टुरिस्ट को वहां ले गए.
बाद में मीडिया ने मामले पर रिपोर्ट करते हुए क्या कहा?
बैसरन घाटी को 20 अप्रैल, 2025 को खोले जाने के दावे के बाद कई मीडिया रिपोर्ट्स भी सामने आईं. इन रिपोर्ट्स में कथित दावे को खारिज किया गया है. द हिन्दू की 26 अप्रैल की एक रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी की ओर से कहा गया कि बैसरन घाटी पूरे साल सिवाय बर्फीले महीनों के, खुली ही रहती है. और वहां जाने के लिए कभी पुलिस परमिट नहीं मांगी गई है. आर्टिकल में अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि बैसरन घाटी सालों से पर्यटकों के लिए खुली है. इसके गेट पर लगे पोस्टर पर ‘पिकनिक स्पॉट’ लिखा है. पोस्टर के अनुसार, इसे पहलगाम विकास प्राधिकरण संचालित करता है और घाटी के लिए एंट्री फीस 35 रुपये है.
डेक्कन हेरल्ड के एक रिपोर्ट में एक वरिष्ठ टूर ऑपरेटर और इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ ट्रैवल एंड टूरिज्म एक्सपर्ट्स, कश्मीर चैप्टर के अध्यक्ष शेख मोहम्मद सुल्तान के हवाले से बताया गया है कि पर्यटक इस सीज़न में हर रोज़ बैसरन घाटी घूमने जाते हैं. इसके लिए उन्हें पुलिस पर्मिशन या किसी विशिष्ट अनुमति की ज़रूरत नहीं होती है. उन्होंने बताया कि पहलगाम पहुंचने वाले यात्रियों में से 70 प्रतिशत पर्यटक बैसरन घाटी का दौरा करते हैं.
इस रिपोर्ट में एक टुरिज़म अधिकारी ने भी कहा कि बैसरन घाटी जाने के लिए कभी किसी पुलिस पर्मिशन या सिक्युरिटी क्लियरंस की ज़रूरत नहीं होती है.
ऑल्ट न्यूज़ ने डेक्कन हेरल्ड की ये रिपोर्ट लिखने वाले पत्रकार ज़ुल्फिकर माजिद से भी बात की. उन्होंने पहलगाम के कुछ लोकल को कोट करते हुए यही बताया कि ये घाटी आम तौर पर साल भर खुली रहती है और वहां जाने के लिए किसी अनुमति की ज़रूरत नहीं है.
ABP न्यूज़ ने भी इस कथित दावे को खारिज करते हुए रिपोर्ट पब्लिश की है. आर्टिकल में पहलगाम डेवलपमेंट अथॉरिटी (PDA) के अकाउंट ऑफिसर बशीर खान के हवाले से बताया गया है, “बैसरन घाटी साल भर खुली रहती है. लेकिन अगर बर्फ या बारिश ज्यादा हुई तो टूरिस्ट खुद ही उधर नहीं जाना चाहते हैं तो उस वक्त बंद रहता है. हमारी तरफ से कोई रिस्ट्रिक्शंस नहीं है. हमने बैसरन घाटी के मेंटेनेंस का कॉन्ट्रैक्ट अलॉट किया है, उसमें हमने साफ-साफ लिखा है कि यह बैसरन घाटी साल भर खुली रहनी चाहिए. जब भी टूरिस्ट यहां आना चाहेंगे आ सकते हैं. अगर मौसम ठीक रहेगा, रास्ता ठीक रहेगा तो घाटी पूरे साल भर खुली रहेगी.”
हालांकि, इस तफ़तीश से सरकारी अधिकारियों द्वारा सर्वदलीय बैठक में किया गया दावा ग़लत साबित होता है. लेकिन ये सारे तर्क हमारे मन में कई सवाल खड़े करते हैं:
एक पल के लिए सरकारी अधिकारियों की बात मान लेते हैं कि बैसरन घाटी को अभी टुरिस्ट के लिए नहीं खोलना था, लेकिन इसे 20 अप्रैल 2025 को खोला गया और 22 अप्रैल 2025 को आतंकी हमला हुआ. इन 2 दिनों में यानी, 48 घंटों में बैसरन घाटी में कथित रूप से 1000 से ज़्यादा टुरिस्ट घूमने पहुंचे. (ये बात कथित रूप से सरकारी अधिकारियों ने सर्वदलीय बैठक में ही बताई थी) और इतने सारे लोग टिकट लेकर ही यहां पहुंचे होंगे. ये सोचने वाली बात है कि कैसे 2 दिनों तक किसी प्रतिबंधित जगह पर इतने सारे सैलानी पहुंच गए और इसकी भनक न ही हमारे सुरक्षाबलों को हुई न ही स्थानीय प्रशासन को और न ही सुरक्षा एजेंसियों को. ये चीज़े खुद ही सरकार, प्रशासन की लापरवाही को उजागर करती है. हमारे देश की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे? कैसे इंटरनेट के इस फास्ट ज़माने में 2 दिनों तक ये जानकारी सुरक्षाबलों और सरकार तक नहीं पहुंची? और वो भी जम्मू-कश्मीर में जो देश के सबसे सैन्यीकृत क्षेत्रों में गिना जाता है.
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