महाराष्ट्र में भाषा को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है. इसका एक गहरा इतिहास है, जो महाराष्ट्र की भाषाई पहचान, राजनीतिक आंदोलनों और मराठी बनाम अन्य भाषाओं की स्थिति को लेकर समय-समय पर होने वाले तनावों से प्रभावित होता रहा है.
चूंकि चुनावी राजनीति में मनसे को ज़्यादा तवज्जो नहीं मिल रही है, इसलिए वे कुछ राजनीतिक लाभ पाने के लिए भाषाई गौरव के अपने पुराने परखे हुए मॉडल को आजमाने की फिराक में हैं. मनसे के आक्रामक रुख के परिणामस्वरूप पिछले 6 महीनों में गैर-मराठी भाषियों को निशाना बनाकर कई हिंसक घटनाएँ हुई हैं. मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा उन व्यक्तियों और व्यवसायों पर हमला करने की खबरें आई हैं जो मराठी के माँगों का पालन नहीं करते हैं. उदाहरण के लिए:
अप्रैल 2025 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के ठाणे में मराठी में बात नहीं कर पाने के लिए एक नेशनल बैंक के मैनेजर को धमकाया और उसका कंप्यूटर तोड़ दिया. मनसे कार्यकर्ताओं ने बैंक मैनेजर को मनसे की शैली (हिंसक) में एक सबक सिखाने की धमकी दी. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें बैंक मैनेजर को मनसे कार्यकर्ताओं से कहते हुए सुना जा सकता है कि किसी से मराठी भाषा को तुरंत सीखने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, इसमें समय लगता है.
मुंबई के पास मीरा रोड में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने एक मिठाई दुकान के मालिक, बाबूलाल खिमजी चौधरी पर मराठी नहीं बोल पाने के कारण हमला किया. गले में मनसे का पट्टा पहने कुछ युवक चौधरी की दुकान में आए और उनसे पानी की मांग की. दुकानदार ने हिंदी में जवाब दिया तो मनसे कार्यकर्ताओं ने मिठाई दुकान के मालिक से पूछा कि महाराष्ट्र में कौन सी भाषा बोली जाती है? चौधरी ने जवाब दिया कि महाराष्ट्र में सभी भाषाएं बोली जाती हैं. इसपर मनसे कार्यकर्ता उत्तेजित हो गए और दुकानदार चौधरी को लगातार थप्पड़ मारने लगे. मनसे कार्यकर्ताओं ने दुकानदार को धमकाते हुए कहा कि अगर वह महाराष्ट्र में काम करना चाहते हैं, तो उन्हें मराठी से बोलना चाहिए. हमलावरों ने मारपीट की घटना को रिकार्ड कर सोशल मीडिया पर शेयर किया, वीडियो वायरल होने के बाद इसकी आलोचना हुई और कई व्यापारियों ने चौधरी के समर्थन में अपनी दुकानें बंद कर घटना पर नाराज़गी जताई.
जुलाई 2025 में महाराष्ट्र के पालघार में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिवसेना के समर्थकों ने एक ऑटो रिक्शेवाले पर हमला किया. असल में ऑटो रिक्शेवाले का एक वीडियो इंटरनेट पर वायरल हुआ था, जिसमें वह कह रहा था कि उसे मराठी नहीं आती, वह हिन्दी बोलेगा. वीडियो वायरल होने के बाद मनसे और शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने ऑटो रिक्शेवाले को ट्रैक किया और एक सड़क पर रोककर उसे पीटा. इतना ही नहीं, सार्वजनिक रूप से महाराष्ट्र के लोगों से माफी मांगने के लिए मजबूर किया. इस हमले में कुछ हमलावर महिलाएं भी शामिल थीं, ये हमला कैमरे में कैद हो गया जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.
अप्रैल 2025 में मुंबई के पवई क्षेत्र में काम करने वाले एक निजी सुरक्षा गार्ड को मराठी भाषा नहीं बोल पाने के लिए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने पीट दिया. गार्ड ने समझाया कि वह स्थानीय भाषा नहीं बोल सकता क्योंकि वह उत्तर भारत से है. हमले का वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर वायरल हुआ जिसमें गार्ड को मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा थप्पड़ मारते हुए देखा जा सकता है. वीडियो के अंत में गार्ड को हाथ जोड़ कर माफी मांगते हुए देखा जा सकता है.
मार्च 2025 में, राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने मुंबई की अंधेरी (पश्चिम) के वर्सोवा स्थित डी-मार्ट आउटलेट के एक कर्मचारी को इस वजह से थप्पड़ मारा, क्योंकि वो मराठी में बात नहीं कर रहा था. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक स्टोर कर्मचारी ग्राहक से कह रहा है, “मैं मराठी में नहीं बोलूँगा, मैं केवल हिंदी में बोलूँगा. जो करना है करो.” वीडियो सामने आने के बाद, मनसे के वर्सोवा इकाई के अध्यक्ष संदेश देसाई के नेतृत्व में कई मनसे कार्यकर्ता डी-मार्ट आउटलेट पर पहुँचे और उस कर्मचारी पर हमला किया, उससे माफी मँगवाई और मारपीट की घटना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर किया.
महाराष्ट्र में भाषाई गौरव की राजनीति एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी है, जिसने राज्य के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया है. इसके उदय का श्रेय विभिन्न ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक कारकों को दिया जा सकता है, जिसके उग्र और हिंसक रूख में शिवसेना और उसके संस्थापक बाल ठाकरे जैसे प्रमुख नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
महाराष्ट्र की भाषाई विरासत बहुत मज़बूत है और मराठी भाषा पर गर्व 1960 में राज्य के गठन के समय क्षेत्रीय पहचान के लिए किए गए प्रयासों में इसकी भूमिका से उपजा है. लोग मराठी भाषियों के लिए एक अलग राज्य चाहते थे ताकि उनकी अपनी संस्कृति और पहचान को उचित मान्यता मिल सके. मराठी पहचान को लेकर संघर्ष से भरे इतिहास ने भाषा के प्रति गौरव की भावना पैदा करने में मदद की, जो बाद में एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार के रूप में विकसित हुई.
आज़ादी के तुरंत बाद ही भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग बढ़ गई थी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के खिलाफ थे. ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि यह पहली बार था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसके प्रमुख माधव सदाशिव गोलवालकर ने इस मुद्दे पर नेहरू का समर्थन किया था. उन्होंने भाषा के आधार पर राज्यों के गठन को देश की अखंडता के लिए खतरा माना था.
आज़ाद भारत के इतिहास में अगर भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की बात की जाए, तो सबसे पहले आंध्र राज्य के गठन की बात आती है. तेलुगु बोलने वाली आबादी द्वारा एक मजबूत आंदोलन के परिणामस्वरूप, आंध्र राज्य का गठन हुआ. इसमें स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता, पोटी श्रीरामुलु की भूख हड़ताल की अमिट भूमिका थी जिसने उन्हें ‘अमरजीवी’ बना दिया. पोटी श्रीरामुलु ने 19 अक्टूबर 1952 को तेलुगुभाषियों के लिए अलग राज्य कि मांग को लेकर आमरण भूख हड़ताल शुरू किया. 58 दिनों के भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मौत ने तेलुगु-भाषी क्षेत्रों में व्यापक विरोध प्रदर्शन और हिंसक अशांति पैदा कर दी. पोटी श्रीरामुलु की मृत्यु के बाद सार्वजनिक आक्रोश और आंदोलन ने नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार को तेलुगु भाषियों के लिए अलग राज्य की घोषणा के लिए मजबूर किया. आंध्र राज्य को आधिकारिक तौर पर 1 अक्टूबर 1953 को अपनी राजधानी के रूप में कुरनूल के साथ स्थापित किया गया था, जो भारत में पहला राज्य बना. इसे भाषा के आधार पर बनाया गया था.
1947 में भारत को अंग्रेजी शासन से आज़ादी मिलने के बाद, भाषाओं के आधार पर राज्यों के निर्माण को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई थी. 1956 में, राज्य पुनर्गठन आयोग ने मराठी और गुजराती दोनों भाषियों के लिए एक द्विभाषी बॉम्बे राज्य का प्रस्ताव रखा. इस निर्णय से कई मराठी लोग नाराज़ हो गए, जो मानते थे कि मुंबई केवल उनका होना चाहिए. उनके दावे को अस्वीकार किए जाने से महाराष्ट्र के नेताओं और बुद्धिजीवियों में निराशा फैल गई. उन्होंने एकजुट होकर फरवरी 1956 में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया. यह समूह स्वतंत्र भारत में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का विरोध करने वाले पहले सर्वदलीय गठबंधन के रूप में उल्लेखनीय था. संयुक्त महाराष्ट्र समिति में कम्युनिस्ट श्रीपाद अमृत डांगे, समाजवादी एस.एम. जोशी और केशव सीताराम ठाकरे जैसे प्रमुख नेता शामिल थे. उन्होंने मराठी भाषियों के लिए मुंबई को राजधानी बनाकर एक अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन और सत्याग्रह किए. उनके निरंतर प्रयासों और सार्वजनिक प्रदर्शनों ने स्थानीय लोगों की भावनाओं को उजागर किया. और आखिरकार, उनके आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा और प्रधानमंत्री नेहरू ने उनकी मांग पर सहमति व्यक्त की. इसके परिणामस्वरूप 1 मई 1960 को मुंबई को राजधानी बनाकर एक अलग राज्य के रूप में महाराष्ट्र का गठन हुआ. इस समझौते के बाद, संयुक्त महाराष्ट्र समिति, अपना लक्ष्य प्राप्त करने के बाद भंग हो गई.
महाराष्ट्र राज्य बनने के कुछ ही साल बाद, संयुक्त महाराष्ट्र समिति के सदस्य केशव सीताराम ठाकरे के बेटे बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना का गठन किया, और यहाँ से शुरू हुआ गैर-मराठी भाषियों को लेकर विवाद और उससे जुड़ी राजनीति. यह विवाद मूलतः जनसांख्यिकीय और भाषाई बदलावों के बीच क्षेत्रीय पहचान के संरक्षण से जुड़ा है.
बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना पार्टी की स्थापना की और मराठी भाषा के गौरव का इस्तेमाल राजनीतिक समर्थन हासिल करने के लिए किया. उन्होंने ऐसे भाषण दिए जिनमें मराठी भाषियों के हितों की रक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया, खासकर प्रवासियों और गैर-मराठी भाषियों के विरुद्ध. उनकी पार्टी ने स्थानीय लोगों की भावनाओं का लाभ उठाकर मराठियों के लिए नौकरियों में आरक्षण और उनकी संस्कृति के संरक्षण की माँग की. हालाँकि, कई बार उन्होंने प्रवासियों के खिलाफ गुस्सा और हिंसा भी भड़काई. शिवसेना का गठन मुंबई और महाराष्ट्र में उपेक्षित महसूस कर रहे मराठी भाषियों की चिंताओं को दूर करने के लिए किया गया था. पार्टी का उद्देश्य मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना था और अक्सर शहरों में गैर-मराठी समुदायों के प्रभाव का विरोध करती थी.
महाराष्ट्र में भाषाई गौरव के नाम पर हिंसा कोई नई बात नहीं है. यह हिंसा सिर्फ़ हिंदी भाषियों या उत्तर भारतीयों तक ही सीमित नहीं था, एतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि इसकी शुरुआत सबसे पहले दक्षिण भारतीयों से हुई, जो भारत की आज़ादी के तुरंत बाद बेहतर अवसरों की तलाश में मुंबई आए थे. बाल ठाकरे द्वारा 1960 में स्थापित की गई कार्टून वीकली ‘मर्मिक’ के माध्यम से ‘मराठी माणूस’ की शिकायतों को आवाज़ देना शुरू किया गया. 1966 में उन्होंने मुंबई में ‘यंदुगुंडस’ (दक्षिण भारतीयों के लिए अपमानजनक शब्द) के उदय का मुकाबला करने के लिए शिवसेना की स्थापना की और अपने “उठाओ लुंगी, बाजाओ पूंगी” जैसे प्रांतीय-विभाजनकारी नारे से प्रसिद्धि हासिल की.
बाल ठाकरे ने अपने कार्टून साप्ताहिक ‘मार्मिक’ में दक्षिण भारतीयों का उपहास किया और स्थानीय लोगों में यह भय पैदा करने का प्रयास किया कि वहां आने वाले दक्षिण भारतीय उनकी नौकरियां छीन रहे हैं और उनकी बढ़ती संख्या महाराष्ट्र की संस्कृति को सीमित कर देंगी. जल्द ही, शिवसेना ने कम्युनिस्ट होल्ड से ट्रेड यूनियनों को छीन लिया और इसका उपयोग ‘मराठी माणूस’ के लिए नौकरियों को प्राप्त करने के लिए किया गया था, जिसके बाद इसका समर्थन आधार कई गुना बढ़ गया.
रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब India After Gandhi में टिप्पणी की है: ठाकरे ने धोती पहनने वाले मद्रासियों का मज़ाक उड़ाया, वहीं उनके समर्थकों ने उडुपी रेस्टोरेंट्स और तमिल और तेलुगु भाषियों के घरों पर हमले किये. उनके एक अन्य टारगेट कम्युनिस्ट थे, जिनके शहर के कपड़ा यूनियनों का नियंत्रण शिवसेना ने प्रबंधन के साथ सौदे करके कमजोर करने की मांग की. मूल निवासी एजेंडा आश्चर्यजनक रूप से सफल साबित हुआ, इसने विशेष रूप से शिक्षित बेरोजगारों को आकर्षित किया.
दिव्य मराठी के पूर्व संपादक और पूर्व राज्यसभा सांसद कुमार केतकर तहलका पत्रिका में लिखते हैं, “बालासाहेब निशाना बदलते रहे, “मद्रासी” से लेकर कम्युनिस्ट, बिहारी से मुसलमान, कम्युनिस्ट लेखकों से लेकर दलित कवि, विजय तेंदुलकर के नाटकों से लेकर दीपा मेहता की फ़िल्मों तक, लेकिन हमले का माध्यम लगभग हमेशा हिंसा और आतंक ही रहा. शिवसेना की आलोचना करने वाले पत्रकार (कुमार केतकर सहित) अक्सर शिवसेना के गुस्से का शिकार होते थे, जिसे बालासाहेब ख़ुद बढ़ावा देते थे.”
शिवसेना के राजनीतिक परिदृश्य में उदय से एक महत्वपूर्ण बदलाव आया. भाषा के मुद्दों पर पार्टी के आक्रामक रुख ने कई मराठी भाषियों को प्रभावित किया, जिससे चुनावी सफलता मिली. ठाकरे के नेतृत्व और मराठी गौरव के विचार के इर्द-गिर्द जनता को संगठित करने की क्षमता ने राज्य में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में शिवसेना की स्थिति को मजबूत किया.
अन्य राज्यों के प्रवासियों और गैर-मराठी भाषियों के खिलाफ फैलाए गए नफरत से शिवसेना को मिली समर्थन और सफलता ने बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे को शिवसेना में हुए आपसी अनबन के बाद 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना के लिए प्रेरित किया, लेकिन पुरानी सफलता को देखते हुए, मनसे की पटरी एक ही रही, वही पुरानी भाषा और प्रांत की राजनीति और हिंसा.
बाल ठाकरे और राज ठाकरे ने उत्तर भारतीय के लिए कई अपमानजनक बयान दिए, खास कर बिहार और उत्तर प्रदेश से आए प्रवासियों के लिए, जहां से सबसे ज्यादा लोग कम के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं. शिव सेना की मुखपत्रिका ‘सामना’ में बाल ठाकरे ने बिहारी प्रवासियों के लिए अपमानजनक वक्तव्य का इस्तेमाल करती हुए ‘एक बिहारी, सौ बीमारी‘ जैसे फ्रेज का इस्तेमाल किया, जिसको लेकर उनकी आलोचना भी हुई, और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा कारवाई के आश्वासन के बावजूद उनपर कोई कारवाई नहीं हुई. इसी प्रकार राज ठाकरे ने दिल्ली गैंग रेप के आरोपियों के बारे में कहा कि ये सारे बिहारी हैं. राज ठाकरे ने अपने एक बयान में बिहार के महापर्व छठ पूजा को ड्रामा बतया था. ऐसे कई मौके हुए जिसमें राज ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने बिहार, उत्तर प्रदेश वासियों पर हमले किये जिसमें 2008 एक महत्वपूर्ण वर्ष माना जाती है, जिसमे ये हमले लगातार हो गए थे. इनमें से कुछ हमले सुर्खियों में रही, उदाहरण के लिए,
एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमला किया, जो यूनाइटेड नेशनल प्रोग्रेसिव एलायंस (यूएनपीए) द्वारा आयोजित एक रैली में भाग लेने के लिए जा रहे थे. पार्टी का बचाव करते हुए, एमएनएस के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि यह हमला शक्ति का उत्तेजक और अनावश्यक प्रदर्शन और उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासियों और उनके नेताओं के अनियंत्रित राजनीतिक और सांस्कृतिक दादगिरी का जवाब था.
इसी प्रकार अक्टूबर 2008 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने मुंबई में रेलवे भर्ती बोर्ड प्रवेश परीक्षा के लिए आए हुए उत्तर भारतीय उम्मीदवारों पर हमला किया, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने परीक्षा में महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के विरोध में मुंबई में 13 रेलवे बोर्ड परीक्षा केंद्रों पर हमला किया और बिहार के सभी लोगों को खाली कर दिया और उन्हें परीक्षा देने से रोक दिया.
प्रवासन, आर्थिक विकास और सार्वजनिक जीवन में, विशेष रूप से मुंबई में, हिंदी के उदय के कारण कुछ शहरी और व्यावसायिक क्षेत्रों में मराठी भाषा के प्रयोग में कथित तौर पर कमी देखी गई है. इसने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) जैसे समूहों द्वारा समय-समय पर किए गए आंदोलनों को हवा दी है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) भाषा संबंधी मुद्दों पर, खासकर गैर-मराठी भाषियों के खिलाफ, अपने आक्रामक रुख के लिए सुर्खियों में रही है.
हाल के वर्षों में भाषा गौरव की राजनीति में पुनरुत्थान देखा गया है, विशेष रूप से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के उदय के साथ. मनसे ने भाषा गौरव के प्रति अधिक उग्र दृष्टिकोण अपनाया है और अक्सर मराठी न बोलने वालों के खिलाफ हिंसा का सहारा लिया है. इसमें मनोरंजन उद्योग और स्थानीय व्यवसायों सहित विभिन्न क्षेत्रों में गैर-मराठी भाषियों पर हमले शामिल हैं.
मनसे सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक सेवाओं में मराठी के विशेष उपयोग की अपनी मांग को लेकर मुखर रही है. पार्टी की बयानबाज़ी अक्सर गैर-मराठी भाषियों को घुसपैठियों के रूप में चित्रित करती है जो महाराष्ट्र के सांस्कृतिक ताने-बाने के लिए खतरा है. इससे भय और तनाव का माहौल पैदा हुआ है, खासकर शहरी इलाकों में जहाँ दूसरे राज्यों से प्रवासी आकर बस गए हैं.
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