2 अक्टूबर यानी, दशहरे के दिन भोपाल में रावण दहन के साथ कुछ महिला आरोपियों का चेहरा लगाकर पुतला जलाया गया. वो भी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ़. दरअसल, सोनम रघुवंशी जिसपर हनीमून के दौरान शिलॉन्ग में पति की हत्या का आरोप है, उसकी मां ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने इसे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए पुतला दहन पर रोक लगा दी थी. इसके बावजूद पुतला दहन किया गया.

पुतले पर जिन महिलाओं की तस्वीरें लगाई गईं, उनमें सोनम के अलावा उत्तरप्रदेश के मेरठ की आरोपी मुस्कान और इंजीनियर अतुल सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया शामिल थीं.

 

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दशहरे के पहले इंदौर में पौरुष नामक एक संस्था ने सोनम रघुवंशी और अन्य महिलाओं के पुतले जलाने की योजना बनाई थी. इस संस्था ने पुतले को उन 11 महिला अपराधियों का प्रतीक बताया गया था जिन्होंने पति और मासूम बच्चों की हत्या जैसे जघन्य अपराध किए. PAURUSH (People Against Unequal Rules Used to Shelter Harassment) इंदौर की संस्था है. ये संस्था खुद को कथित तौर पर समाज में महिला अपराधों के बढ़ते मामलों पर जागरूकता फैलाने की एक पहल बताता है. इन्होंने नवरात्रि की शुरुआत में ही एक पोस्टर बनाकर सोशल मीडिया पर चढ़ाया था जिसमें 11 महिलाओं के नाम और उनपर लगे आरोपों का ज़िक्र है.

पौरुष ने 22 सितंबर के अपने एक पोस्ट में लिखा, “आयोजन का उद्देश्य यह है की महिलाएं कोई जगन्य अपराध भी कर दे चाहे प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ही हत्या कर दे परंतु कानून उन्हें फ़ासी की सजा नहीं देता हिंदुस्तान के इतिहास में 1955 के बाद किसी भी महिला को फांसी की सजा नहीं हुई। इन सभी 11 महिलाओं को भी अब तक कोई सजा नहीं हुई है।”

 

इस पोस्टर पर अगर गौर करें तो इसमें लिखा है, औरत के प्रति नजरिया बदलिए. पुरुषों के अधिकार के लड़ने वाली इस संस्था ने एक तरह से महिलाओं का सामान्यीकरण किया है. एक ऐसा समाज, जो अभी भी घोर पितृसत्तात्मक है, जहाँ महिलाओं को हर कदम पर असमानता का सामना करना पड़ता है, वहां चंद घटनाओं के नाम पर हर महिला का सामान्यीकरण घोर प्रॉब्लमैटिक है.

कथित तौर पर पुरुषों के अधिकार के लिए कार्य करने वाली संस्था पौरुष ने हाई कोर्ट के पुतले दहन पर रोक लगाये जाने के बाद 28 सितंबर को एक वीडियो पोस्ट करते हुए लोगों से निवेदन कर उन्हें कमिश्नर ऑफिस पलासिया आने को कहा था ताकि पुलिस कमिश्नर इंदौर से मुलाकात कर उनसे पुतले दहन के लिए अनुमति मांगी जा सके.

इस संस्था के बारे में जांच करते हुए मालूम चला कि इसे अशोक दशोरा अपनी टीम के साथ चलाते हैं और करीब 5 वर्षों से सक्रिय हैं. इनके यूट्यूब चैनल पर 100 से ज़्यादा वीडियोज़ हैं. कुछ वीडियो में अशोक दशोरा महिलाओं की स्वतंत्रता को समाज की गंदी सोच बताते हैं. जैसे नीचे का ये पोस्ट 29 जनवरी 2024 का है.

प्राचीन काल में कुछ संस्कृतियों में, अपराधियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित और शर्मिंदा करने की प्रथा थी. उन्हें चौराहे पर खड़ा करके कोड़े मारना या उन पर पत्थर फेंकना, पुतला दहन भी उसी तरह है. हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से सोनम रघुवंशी या किसी भी अन्य व्यक्ति के पुतले दहन पर रोक लगा दी थी. इस रोक के बावजूद पुतले जलाना सीधे तौर पर न्यायपालिका के आदेशों और कानून के शासन का उल्लंघन है. अदालत के आदेश को न मानना कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक गंभीर चुनौती है और यह संदेश देता है कि लोग न्यायिक निर्देशों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं.

किसी व्यक्ति के पुतले को सार्वजनिक रूप से जलाना, खासकर एक उत्सव के दौरान, उस व्यक्ति की और उसके परिवार की सार्वजनिक रूप से मानहानि करता है. ये घटना कानून की स्पष्ट अवहेलना, एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन, और सार्वजनिक रूप से व्यक्तिगत अपमान को दर्शाती है.

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