हाल के वर्षों में भारत में गौरक्षकों के आतंक में वृद्धि देखी गई है, जिसमें गाय की तस्करी का आरोप लागाकर संदिग्ध व्यक्तियों की हत्या और भीड़ द्वारा हमले की कई घटनाएं शामिल हैं. 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से भारत में ऐसी घटनाओं में वृद्धि देखने को मिली है. कट्टरपंथी हिंदू समूह अक्सर ‘गौरक्षा’ के नाम पर मुस्लिम और दलित समुदाय के लोगों पर हुए हमलों में शामिल रहे हैं. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें कथित गौरक्षकों द्वारा गाय ले जा रही गाड़ी का पीछा किया जाता है, उनपर गोलियां चलाई जाती है और उसके चालक और गाड़ी में मौजूद अन्य व्यक्तियों को पीटा जाता है. इस तथ्य के बावजूद कि यह काम अवैध हैं और मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, कई मामलों में पुलिस की ढ़ील और संलिप्तता भी शामिल रही है.
ऐसी ही एक घटना हरियाणा में हुई, 22 फरवरी 2025 को ट्रक चालक बालकिशन और उसके कंडक्टर संदीप दो दुधारू गाय को राजस्थान से लखनऊ ले जा रहे थे, इसी क्रम में वे रास्ता भटक गए और हरियाणा के पलवल में उनका सामना मोटरसाइकिल सवार कथित गौरक्षकों के एक समूह से हो गया. उन्होंने दोनों पर गौ तस्करी के संदेह के विनाह पर उनका अपहरण कर लिया और उनके साथ बेरहमी से मारपीट की. जब गौरक्षकों को लगा कि उन दोनों की मौत हो गई तो उन्होंने उन्हें गुरुग्राम के सोहना इलाके में एक नहर में फेंक दिया. इस घटना में कंडक्टर संदीप की मौत हो गई और ट्रक चालक बालकिशन किसी तरह तैरकर नहर से निकला और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. उनकी रिपोर्ट के बाद, पुलिस ने आरोपियों के बारे में जानकारी देने वाले को 5,000 रुपये का इनाम देने की घोषणा की. घटना के आठ दिन बाद 2 मार्च को संदीप का शव पुलिस द्वारा एक सप्ताह तक चले तलाशी अभियान के बाद नहर से उस जगह से 15 किलोमीटर दूर बरामद किया गया, जहां उसे फेंका गया था. पुलिस ने इस मामले में अपहरण और मारपीट के आरोप में पाँच गौरक्षकों को गिरफ़्तार किया, जिसमें पंकज, निखिल, देवराज पलवल का रहने वाला है, वहीं पवन गुरुग्राम और नरेश नूंह का निवासी है.
इस मामले में पीड़ित ट्रक चालक बालकिशन ने सीधे तौर पर पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा है कि पुलिस ने हमें गौरक्षकों को सौंप दिया. इसके बाद उनपर और कंडक्टर संदीप पर जानलेवा हमला हुआ और दोनों को नहर में फेंक दिया गया था. संदीप की मौत हो गई और बालकिशन किसी तरह तैरकर बाहर निकला. बालकिशन ने मीडिया को दिए बयान में बताया कि सबसे पहले पुलिस की 112 नंबर वाली गाड़ी ने ही उन्हें रोका था जिसके अंदर तीन पुलिसकर्मी मौजूद थे. इनमें ड्राइवर का नाम है रणवीर सिंह था. उन्होंने बालकिशन की गाड़ी खुलवाई और सबकुछ चेक करने के बाद पुलिस ने तीन मोटरसाइकिल सवार गौरक्षों को बुलाकर बालकिशन और संदीप को उनके हवाले कर दिया, जिसके बाद गौरक्षकों ने इस घटना को अंज़ाम दिया.
यह बयान पुलिस की कार्यशैली और उनके द्वारा गौरक्षों से मिलीभगत को उजागर करती है और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने में गौरक्षकों के आतंक को बढ़ावा देने में पुलिस की संलिप्तता की ओर इशारा करती है. नागरिकों की सुरक्षा और कानून को बनाए रखने की पुलिस की ज़िम्मेदारी को देखते हुए ये काफी चिंताजनक है. इस घटना में संदिग्धों को गिरफ्तार करने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन ये पहली घटना नहीं है जिसमें हरियाणा पुलिस और गौरक्षकों की नजदीकियाँ उजागर हुई हैं, ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जिसमें ऐसा ही पैटर्न देखा गया है.
हालांकि, प्रसाशन ने इस मामले में पुलिस की संलिप्तता पर कोई ठोस बयान जारी नहीं किया वहीं पुलिस उपाधीक्षक (अपराध) मनोज वर्मा ने बताया कि बालकिशन और संदीप 22 फरवरी की रात को राजस्थान से उत्तर प्रदेश के लखनऊ एक पिकअप ट्रक में दो दुधारू मवेशियों को लेकर जा रहे थे, तभी वे रास्ता भटक गए और मोटरसाइकिल सवार आरोपियों से टकरा गए. ये ड्राइवर के बयान से बिल्कुल मेल नहीं खाता, चूंकि ड्राइवर ने स्पष्ट रूप से कहा कि पुलिस ने मोटरसाइकिल सवार गौरक्षकों को बुलाया था.
भयावह हमला
इस घटना में गौरक्षकों की क्रूरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि द हिन्दू की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट में नाम न बताने की शर्त पर पलवल सीआईए में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि आरोपी गौरक्षकों ने दोनों पर लाठियों, तलवारों और हथौड़ों से हमला किया, जिससे उनके कई फ्रैक्चर और चोटें आईं. जब उन्हें लगा कि इन दोनों की मौत हो गई, तो उनलोगों ने बालकिशन और संदीप को एक नहर में फेंक दिया.
बढ़ा हुआ है गौरक्षकों का मनोबल
गौरक्षकों की मनमानी और बढ़े हुए हिम्मत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, राज्य में गौरक्षकों द्वारा पलवल में हुई इतनी बड़ी घटना को अंज़ाम देने के कुछ ही दिन बाद, 8 मार्च को हरियाणा के झज्जर में कुछ गौरक्षकों को टिप मिली कि भिवानी से गौ तस्कर कैंटर में गाय ले जा रहे हैं. इस आधार पर गौ रक्षकों ने गाड़ी का पीछा शुरू कर दिया. गौ रक्षकों को आता देख ड्राइवर ने अपनी गाड़ी बेरी पुलिस चौकी के सामने रोक दी और गाड़ी से उतरकर दो लड़के जिनकी पहचान तारिफ़ और कयूम के रूप में हुई है, वे चौकी के अंदर भागने लगे, लेकिन गौरक्षकों ने दोनों को पुलिस चौकी के सामने पकड़ लिया और पिटाई शुरू कर दी. हालांकि, मारपीट का शोर सुनकर चौकी से पुलिस कर्मी बाहर निकले और उन्होंने गौरक्षक को पकड़ लिया मारपीट में घायल हुए दोनों लड़कों को इलाज के लिए पीजीआई भेजा और वहीं से पुलिस ने दोनों लड़कों के खिलाफ मामला दर्ज किया जिनके साथ मारपीट हुई. साथ ही आठ गौ रक्षकों (मुकेश, राहुल, सोनू, रोहित, कन्हैया, प्रदीप, आदि) के खिलाफ गैर जमानती धाराओं में मामला दर्ज कर लिया और ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दिया. कानूनी कार्रवाई के बावजूद, पुलिस चौकी के सामने गौरक्षकों द्वारा कानून की परवाह किये बिना मारपीट करना दर्शाता है कि उन्हें कानून और प्रसाशन का जरा भी खौफ नहीं है.
झज्जर की घटना में पुलिस चौकी शहर बेरी में घटना के समय तैनात E/ASI अमृत ने शिकायत पत्र में साफ तौर पर लिखा है कि जब दो लड़के अपनी गाड़ी पुलिस चौकी की गेट पर लगाकर चौकी की तरफ भाग रहे थे तब 7-8 लड़कों ने मिलकर दोनों लड़कों पर हमला बोल दिया और वे पुलिस चौकी के सामने चिल्लाकर कह रहे थे “मुसलमानों आज तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे, तुम्हें गायों को भरकर ले जाने का मज़ा चखाते हैं.”
ये घटना गौरक्षकों द्वारा की जाने वाली हिंसा के पैटर्न का हिस्सा है. कई मामलों में पीड़ितों के परिवारों को स्थानीय अधिकारियों से अपर्याप्त समर्थन के कारण न्याय पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ऐसी घटनाओं पर समय-समय पर पुलिस प्रसाशन और सरकार की प्रतिक्रिया की अपर्याप्त होने के लिए आलोचना की जाती है. यहां तक कि कुछ हिंदूवादी नेताओं द्वारा गौरक्षकों की हिंसा का समर्थन भी किया जाता है.
हरियाणा में गौरक्षकों द्वारा होने वाली हिंसाओं के मामलों को ऑल्ट न्यूज़ ने लगातार डॉक्यूमेंट किया है. हमने अक्सर ये नोटिस किया है कि गौरक्षक किस तरह पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं. मोनू मानेसर के साथ एक इंटरव्यू में हमें पता चला कि मोनू और उनकी टीम कथित गौ तस्करों को पकड़कर पुलिस को सौंपने की कार्यप्रणाली क्या है. इसके अलावा, गौरक्षकों को अक्सर शीर्ष पुलिस अधिकारियों के साथ तस्वीरें सामने आती रहती हैं. कई वीडियो में हमने इन गौरक्षकों को हथियार ले जाते और पुलिस द्वारा उनकी सुरक्षा करते हुए देखा है. उदाहरण के लिए, एक वीडियो में हरियाणा गौरक्षक संगठन का जाना-माना चेहरा आचार्य आज़ाद सिंह आर्य को पुलिस अधिकारियों द्वारा सुरक्षा प्रदान करते हुए देखा गया, जबकि वे और उनके साथी खुलेआम अपने हथियारों का प्रदर्शन कर रहे थे. अक्सर जब कोई कथित गौ तस्कर इन गौरक्षकों द्वारा पकड़ा जाता है, तो उनकी तस्वीरें पुलिस अधिकारियों के साथ दिखाई देती हैं, जिसमें तस्कर घायल और खून से लथपथ अवस्था में दिखाई देते हैं.
ऐसी घटनाओं की जड़ में हरियाणा गौवंश संरक्षण एवं गौसंवर्धन अधिनियम, 2015 है जिसके लागू होने से कई गंभीर सामाजिक और कानूनी मामले सामने आए हैं. इनमें सांप्रदायिक तनाव और मानवाधिकार उल्लंघन शामिल हैं. गौरक्षा को प्रोत्साहित करने वाले कानून ने स्वयंभू समूह को गौरक्षा के नाम पर कानून को अपने हाथ में लेने का अवसर दे दिया है. इससे राज्य में गोमांस खाने, गौहत्या या गौतस्करी के शक पर कईयों के खिलाफ हिंसा की गंभीर घटनाएं हुई हैं, जो अक्सर हाशिए के समुदायों को निशाना बनाती हैं.
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