गुजरात के जामनगर में रिलायंस के वनतारा पशु और पुनर्वास केंद्र के कामकाज के बारे में एक दक्षिण अफ्रीकी वन्यजीव संगठन ने चिंता जताई थी. इस बारे में रिपोर्ट करने के कुछ दिनों बाद, कम से कम तीन प्रमुख मीडिया आउटलेट्स ने वेब से अपनी स्टोरीज हटा ली हैं.
6 मार्च को लिखे एक लेटर में पशु कल्याण की वकालत करने वाले 30 संगठनों के संघ, दक्षिण अफ्रीका के वन्यजीव पशु संरक्षण मंच (WAPFSA) ने देश के पर्यावरण मंत्रालय से दक्षिण अफ्रीका से वनतारा तक तेंदुआ, चीता, बाघ और शेर सहित जंगली जानवरों के बड़े पैमाने पर ट्रान्सफ़र की जांच करने का आग्रह किया.
रिलायंस ग्रुप की परियोजना वनतारा को अनंत अंबानी लीड कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 मार्च को इसका उद्घाटन किया था. 3 हज़ार एकड़ में फैला ये वनतारा “भारत और अन्य देशों के बीमार और लुप्तप्राय जानवरों की देखभाल और उनके बचाव, उपचार और पुनर्वास पर केंद्रित है”. ये बचाए गए जानवरों को समर्पित 650 एकड़ का एक सेटअप है, जिसे ग्रीन्स जूलॉजिकल, रेस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर (GZRRC) के रूप में जाना जाता है. दक्षिण अफ़्रीकी पर्यावरण मंत्री डायोन जॉर्ज को संबोधित पत्र में, WAPFSA ने वनतारा द्वारा लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के साथ संभावित गैर-अनुपालन के बारे में चिंता जताई. CITES एक बहुपक्षीय संधि है जो लुप्तप्राय जानवरों और पौधों के वैश्विक व्यापार को नियंत्रित करती है.
9 मार्च से 11 मार्च के बीच कई भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने इस घटनाक्रम पर रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें मंत्री को WAPFSA के लेटर में उठाए गए प्रमुख बिंदुओं पर जोर दिया गया. इन आउटलेट्स में डेक्कन हेराल्ड, द टेलीग्राफ़, फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस, द ट्रिब्यून, स्क्रॉल, द वायर, नॉर्थईस्ट नाउ, वार्ता भारती और डाउन टू अर्थ शामिल हैं. हमें बंगाली डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म inscript.me पर भी एक रिपोर्ट मिली.
दिलचस्प बात ये है कि इस आर्टिकल के लिखे जाने तक, डेक्कन हेरल्ड, द टेलीग्राफ़ और द ट्रिब्यून ने अपनी स्टोरीज़ हटा ली थीं और पाठक को आर्टिकल्स के लिंक पर क्लिक करने पर ‘error 404’ या ‘पेज नॉट फ़ाउंड’ मैसेज मिलता है. नीचे देखें:
यहां अब हटाए गए डेक्कन हेराल्ड आर्टिकल का एक आर्काइव्ड वर्जन देख सकते है.
“मकसद संरक्षणवादी कम और व्यावसायिक ज़्यादा”
CITES के साथ वनतारा की संभावित गैर-अनुपालन के बारे में चिंताएं पहली बार नवंबर 2023 में CITES स्थायी समिति (SC77) की 77वीं बैठक में उठाई गईं. 28 जुलाई, 2023 को GZRRC के प्रतिनिधियों ने CITES सचिवालय का दौरा किया. उन्होंने बताया कि हाल के सालों में GZRRC ने भारत के बाहर मुश्किल परिस्थितियों में जानवरों को बचाया था और उन्हें अलग-अलग देशों से भारत में आयात किया था. इस स्पष्टीकरण के बावजूद, उन लेनदेन की वैधता और CITES डॉक्यूमेंट प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों के बारे में चिंता जताई गई थी.
WAPFSA की एक लंबी रिपोर्ट जिसके टाइटल का हिंदी अनुवाद है, “न तो बचाव और न ही संरक्षण: दक्षिण अफ्रीका से प्राप्त भारत के वनतारा के जंगली जानवरों के संग्रह का संचय.” रिपोर्ट दक्षिण अफ्रीका से GZRRC को निर्यात किए गए तेंदुओं, चीतों, बाघों और शेरों की महत्वपूर्ण संख्या पर प्रकाश डालता है और ये सुझाव देता है कि हो सकता है दक्षिण अफ्रीका में कैद में पाले गए इन जानवरों में से कई का असली संरक्षण की करने कोशिश के बजाय व्यावसायिक मकसद के लिए व्यापार किया गया हो. नेटवर्क ने मामले की तत्काल जांच की मांग की.
वनतारा को “वन्यजीव बचाव, पुनर्वास और संरक्षण केंद्र” के रूप में वर्णित किया गया है, जिसमें 2 हज़ार से ज़्यादा प्रजातियां और 1.5 लाख से ज़्यादा बचाए गए, लुप्तप्राय और संकटग्रस्त जानवर रहते हैं. हालांकि, WAPFSA, अपने डाक्यूमेंट्स में वनतारा को “चिड़ियाघर” के रूप में संदर्भित करता है और तर्क देता है कि ये कई लुप्तप्राय जानवरों सहित दक्षिण अफ्रीका से आयात की जाने वाली वन्यजीव प्रजातियों को संभालने के लिए अपर्याप्त रूप से सुसज्जित है.
WAPFSA रिपोर्ट ने वनतारा के जगह के बारे में भी चिंता जताई, जिसमें कहा गया, “वनतारा के जगह की उपयुक्तता के बारे में सवाल उठाए गए हैं क्योंकि गुजरात भारत के कई हिस्सों की तुलना में ज़्यादा गर्म है. संभावित रूप से चिड़ियाघर में आयातित कई प्रजातियों के लिए इसका जगह अनुपयुक्त है.” रिपोर्ट में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत को निर्यात किए जाने वाले चीतों के भाग्य पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि संलग्न क्षेत्रों से जंगल में छोड़े जाने के बाद कई चीते या तो मर गए या उन्हें फिर से पकड़ना पड़ा.
इसके अलावा, इसमें ज़िक्र किया गया है कि ब्राज़ील (स्पिक्स मैकॉज़ वाला एकमात्र देश) ने जर्मनी द्वारा लगभग विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को वनतारा में भेजने पर आपत्ति जताई थी, क्योंकि ये सुविधा ब्राज़ील के संरक्षण कार्यक्रम की हस्ताक्षरकर्ता नहीं है.
गायब हो रही स्टोरीज़
ये देखते हुए कि टेलीग्राफ़ और डेक्कन हेराल्ड वेबसाइटों पर स्टोरीज हटा ली गई हैं, ऑल्ट न्यूज़ ने दोनों संगठनों से संपर्क किया. द टेलीग्राफ़ में वरिष्ठ संपादकीय पद पर बैठे किसी व्यक्ति से हमने संपर्क किया और उन्होंने ‘मीडिया से बात करने के लिए प्राधिकरण की कमी’ का हवाला देते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. डेक्कन हेराल्ड के एक प्रतिनिधि ने भी कहा कि वो “आधिकारिक या अनौपचारिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.”
फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट का मामला उतना ही दिलचस्प है. उन्होंने असल में एक रिपोर्ट पब्लिश की थी जिसका टाइटल था, “दक्षिण अफ्रीकी संगठन ने दक्षिण अफ्रीका से अंबानी के वनतारा में जंगली जानवरों के निर्यात पर चिंता जताई.” हालांकि, जब कोई अब इस आर्टिकल के लिंक पर क्लिक करता है, तो उन्हें इस टाइटल वाले आर्टिकल पर निर्देशित किया जाता है, “वनतारा: पशु कल्याण के लिए एक मॉडल: 10 चीजें जो इसे अद्वितीय बनाती हैं.” हालांकि, URL वही रहता है. नीचे देखें:
जबकि असली आर्टिकल में वनतारा और WAFSPA को जानवरों के निर्यात पर उठाई गई चिंताओं पर रिपोर्ट की गई थी, जिसमें “जानवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र वैज्ञानिक जांच” की मांग की गई थी. वर्तमान में उपलब्ध वर्जन में वनतारा को दुनिया के सबसे बड़े वन्यजीव बचाव अभियान, उन्नत निदान के साथ एशिया का पहला वन्यजीव अस्पताल, संगरोध सुविधाओं और विशेष बचाव केंद्रों में एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में प्रशंसा की गई है और अन्य पहलुओं को सूचीबद्ध किया गया है जो इसे “अद्वितीय” बनाते हैं. यहां असली आर्टिकल के आर्काइव्ड वर्जन का लिंक है और यहां उनके शुरूआती ट्वीट का आर्काइव है.
मीडिया आउटलेट्स को मिल रहे हैं ‘धमकी भरे ईमेल’, ‘फ़ाइनेंशियल ऑफ़र’
ऑल्ट न्यूज़ ने गुवाहाटी स्थित मीडिया आउटलेट नॉर्थईस्ट नाउ से भी संपर्क किया जिन्होंने ये स्टोरी नहीं हटाई है. संपादक, महेश डेका ने हमें बताया कि दक्षिण अफ़्रीकी NGO के जांच अनुरोध के बारे में आर्टिकल प्रकाशित होने के बाद संगठन को एक धमकी भरा ईमेल मिला. ईमेल के अलावा, संगठन से एक PR फ़र्म ने भी संपर्क किया था और आर्टिकल को हटाने या इसे एजेंसी द्वारा प्रस्तावित एक अलग वर्जन में बदलने के लिए फ़ाइनेंशियल ऑफ़र की पेशकश की थी. जनवरी में भी जब नार्थईस्ट नाउ ने पूर्वोत्तर से गुजरात में हाथियों को ले जाए जाने के बारे में लिखा था, तो दिल्ली और मुंबई की कई एजेंसियों ने फ़ाइनेंशियल ऑफ़र के साथ उनसे संपर्क किया था.
कर्नाटक स्थित मीडिया हाउस वर्त भारती को भी इसी तरह के मेसेज मिले. संगठन के एक संपादक ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया कि उन्हें अपने वनतारा आर्टिकल के संबंध में एक व्यक्ति का फ़ोन आया था. फोन पर एक शख्स खुद को रिलायंस कॉरपोरेट कम्युनिकेशन का प्रतिनिधि बता रहा था.
एक अन्य डिजिटल मीडिया आउटलेट ने भी ये रिपोर्ट नहीं हटाई है. नाम न छापने की शर्त पर ऑल्ट न्यूज़ को बताया कि उन्हें एक धमकी भरा ईमेल मिला था.
WAPFSA वेबसाइट पर मंत्री को लिखा पत्र हट गया
इसके अलावा, हमने ये भी देखा कि WAPFSA की आधिकारिक वेबसाइट पर दक्षिण अफ़्रीकी मंत्री डायोन जॉर्ज को लिखे लेटर वाला वेबपेज भी पहुंच से बाहर है. वनतारा टाइटल वाले पेज के आर्काइव में भारत में जंगली जानवरों के निर्यात से संबंधित चिंताओं को सूचीबद्ध किया गया है और इसमें मंत्री जॉर्ज को भेजे गए लेटर का लिंक भी शामिल है. नीचे पहले और बाद की तुलना है.
वेबपेज लिंक- https://wapfsa.org/vantara/
हमने इस मुद्दे पर और जानकारी के लिए WAPFSA और वनतारा दोनों से संपर्क किया. उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
यूके स्थित इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट में वनतारा के हवाले से कहा गया है कि इसके खिलाफ शिकायतें “निहित स्वार्थों से प्रेरित लगती हैं”, और “पुराने मामलों को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है जिनकी पूरी तरह से जांच की गई है और वन्यजीव हस्तांतरण अनुपालन पर दुनिया के सर्वोच्च प्राधिकरण CITES द्वारा निर्णायक रूप से बंद कर दिया गया है.” इसने आरोपों को “पूरी तरह से ग़लत और निराधार” कहकर खारिज कर दिया.
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