दक्षिणपंथी एक्स-यूज़र मिस्टर सिन्हा ने एक तस्वीर शेयर की. इसमें खून की तरह लाल रंग के पानी से भरी सड़क पर रिक्शा चलाते हुए एक शख्स को देखा जा सकता है. मिस्टर सिन्हा ने तस्वीर को भारत का दर्शाते हुए लिखा, “हर साल, हम त्यौहार मनाने के नाम पर इसे बर्दाश्त करते हैं, क्या आप “प्रदूषित” हवा वाला एक दिन भी बर्दाश्त नहीं कर सकते?”
Every year, we tolerate this in the name of festival celebration..
Can’t you tolerate a day with “polluted” air? pic.twitter.com/3mwoUs7spE
— Mr Sinha (@MrSinha_) October 21, 2025
X-हैंडल @MohiniWealth, @jignesh03011976 और अर्नब गोस्वामी के पैरोडी अकाउंट समेत कई एक्स-यूज़र्स ने ऐसी ही टिप्पणियों के साथ ये तस्वीर शेयर की.
फैक्ट-चेक
ऑल्ट न्यूज़ ने वायरल तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च किया. हमें यही तस्वीर 13 सितंबर 2016 को बांग्लादेशी न्यूज़ संस्था ढाका ट्रिब्यून के एक रिपोर्ट में मिली. इस रिपोर्ट के अनुसार, 13 सितंबर को ईद की सुबह मूसलाधार बारिश के बीच, ढाका के नागरिक ईद की नमाज़ अदा करने गए और अपने जानवरों की कुर्बानी दी. जब बारिश का पानी ढाका की सड़कों पर जमा हो गया और राजधानी के कई इलाकों में पानी भर गया तो यह खून के साथ मिलकर एक असामान्य और रक्तरंजित दृश्य पैदा कर दिया था, जिसे देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे पूरे शहर में लाल नदियां बह रही हों.
आगे रिपोर्ट में बताया कि कैसे नगर निगम, शहर के जल निकासी प्रणालियों को कार्यात्मक रखने में विफल थे और ईद से पहले इस मामले पर कोई ध्यान नहीं दिया था. इस घटना पर ढाका साउथ सिटी कॉर्पोरेशन के उप-मुख्य अपशिष्ट प्रबंधन अधिकारी खांडकर मिल्लतुल इस्लाम ने कहा कि राजधानी में जलभराव एक पुरानी समस्या है. उन्होंने स्वीकार किया, “हम अभी भी इस समस्या के समाधान के लिए काम कर रहे हैं.”
इसी घटना पर 2016 में बीबीसी बंगाली और न्यूज़लॉन्ड्री ने अपने रिपोर्ट में बताया कि पशुओं को कुर्बानी देने के लिए 1,000 स्थान निर्धारित किए गए थे, लेकिन लोगों ने सड़कों पर या जहां भी उन्हें सुविधा हो, जानवरों की कुर्बानी दे दी.
रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में ईद के दौरान ढाका में लगभग 1,00,000 जानवरों की कुर्बानी दी गई थी. हर साल सड़कों पर थोड़ा-बहुत खून बहता था, लेकिन इस बार बारिश ने स्थिति और बिगाड़ दी, जिससे शहर में लाल रंग की नदी बहती हुई नज़र आने लगी.
यानी, वायरल तस्वीर 9 साल पुरानी है और बांग्लादेश की है. लेकिन इसे भारत में मुसलमानों के त्योहार से जोड़कर भ्रामक दावा किया जा रहा है. ध्यान दें कि प्रदूषण की समस्या पर इस तरह के भ्रामक पोस्ट कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है. लेंसेट की 2022 की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में लोगों की औसत उम्र प्रदूषण के चलते करीब पांच साल कम हो गई है. इसमें सबसे ज़्यादा खतरनाक एयर पॉल्यूशन यानी वायु प्रदूषण को ही बताया गया है.
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