मद्रास हाईकोर्ट में तलाक की याचिका के खिलाफ़ दायर एक अपील पर खंड न्यायपीठ के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर काफी हंगामा देखने को मिला.

23 जुलाई, 2022 को PTI ने एक रिपोर्ट पब्लिश की जिसकी हेडलाइन थी, “पत्नी द्वारा मंगलसूत्र हटाना पति के लिए बहुत बड़ी मानसिक क्रूरता है: मद्रास हाई कोर्ट.” आउटलुक, इंडिया टुडे और NDTV जैसे कई दूसरे मीडिया आउटलेट्स ने भी इसी तरह की हेडलाइन के साथ आर्टिकल पब्लिश किया.

कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने इन सुर्खियों के आधार पर और कोर्ट के इस फैसले पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल किया.

 

WION ने अपने प्राइमटाइम शो ग्रेविटास की एक वीडियो क्लिप शेयर की, जहां शो होस्ट पालकी शर्मा ने कोर्ट के फैसले के अंश पढ़े. उन्होंने शो के दौरान कहा कि “21वीं सदी के भारत” में अदालत ने इस तरह की टिप्पणी की है.

WION और India TV दोनों ने सोशल मीडिया यूज़र्स द्वारा व्यक्त की गई राय के आधार पर अपनी रिपोर्ट पब्लिश की. आज तक, ABP लाइव, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स जैसे कई हिंदी मीडिया आउटलेट्स ने भी इस मामले पर रिपोर्ट पब्लिश कीं. अधिकतर मीडिया आउटलेट्स ने टाइटल में ही मद्रास हाईकोर्ट को कोट करते हुए लिखा कि पत्नी का अपने गले से मंगलसूत्र उतारना पति के साथ क्रूरता का प्रतीक है.

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फ़ैक्ट-चेक

ऑल्ट न्यूज़ ने मद्रास हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति VM वेलुमणि और न्यायमूर्ति S सौंथर की खंडपीठ द्वारा पारित इस फैसले की एक कॉपी निकाली. निचली अदालत ने मानसिक क्रूरता के आधार पर पर्याप्त सबूत न होने से की वजह से याचिकाकर्ता (पति) को तलाक नहीं देने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ़ ये अपील दायर की गई थी.

इस निर्णय पर पहुंचने के पहले माननीय बेंच के तर्क के साथ निर्णय के ऑपरेटिव पैराग्राफ़ नीचे दिए गए हैं.

17. “उपर दिए गए निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, हमें ये मानने में कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान मामले में, प्रतिवादी / पत्नी ने पति के चरित्र पर शक करके और उनके छात्रों, सहयोगियों और पुलिस के सामने भी उनपर एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर के झूठे आरोप लगाकर मानसिक क्रूरता की. हमें ये बताया गया है कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी 2011 के बाद से अलग-अलग रह रहे हैं और इसका कोई सबूत मौजूद नहीं है कि प्रतिवादी ने इस दौरान फिर से साथ होने की कोई कोशिश की है.”

उपर दिए गए पैराग्राफ़ में साफ तौर पर बताया गया है कि इस मामले में “मानसिक क्रूरता” इस बात से तय की गई है कि पत्नी ने पति के चरित्र पर शक किया, एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर के झूठे आरोप लगाए और उसे अपने सहयोगियों, छात्रों और पुलिस के सामने अपमानित भी किया. मानसिक क्रूरता के निष्कर्ष पर पहुँचते हुए, पीठ ने पत्नी द्वारा मंगलसूत्र न पहनने जाने का कोई ज़िक्र नहीं किया.

इसके बाद, (नीचे दिए गए) पैराग्राफ़ 19 में, न्यायपीठ ने तलाक की एक अलग याचिका में पारित मद्रास हाई कोर्ट के 2016 के फैसले का ज़िक्र किया. पहले के फैसले (पैराग्राफ 33) की होल्डिंग्स में से एक पर भरोसा करते हुए वर्तमान बेंच ने माना कि रिकॉर्ड पर रखे गए अन्य सभी सबूतों के साथ मंगलसूत्र नहीं पहनना भी ये साबित करने के लिए पर्याप्त था कि दोनों पार्टियों का इस झगड़े समाधान करने का कोई इरादा नहीं था. इसके आधार पर वर्तमान अपील स्वीकार की गई.

19. “जब प्रतिवादी/पत्नी की R.W.1 की जांच की गई, तो उसने स्वीकार किया कि अलग होने के समय उसने अपनी मंगलसूत्र (विवाहित होने के प्रतीक के रूप में पत्नी द्वारा पहनी गई पवित्र माला) को हटा लिया था. हालांकि, वो ऐसा समझने लगी थी कि उसकी शादी बरकरार है और उसने सिर्फ मंगलसूत्र हटाई है. शादी के मंगलसूत्र को हटाने का भी अपना अर्थ था. प्रतिवादी के विद्वान वकील ने हमें हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक, मंगलसूत्र बांधना जरुरी नहीं है और इसलिए प्रतिवादी द्वारा मंगलसूत्र हटाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. यहां तक ​​कि यह भी माना गया कि वैवाहिक बंधन पर कोई प्रभाव नहीं होगा. लेकिन, ये सामान्य ज्ञान की बात है कि दुनिया के इस हिस्से में होने वाले विवाह समारोह में मंगलसूत्र पहनाना एक ज़रूरी अनुष्ठान है. यहां, इस न्यायालय की एक समन्वय पीठ की टिप्पणियों पर 2017 (1) MWN (सिविल) 128 में रिपोर्ट की गई वल्लभी बनाम आर. राजसबाही का ज़िक्र करना जरूरी है.” इस न्यायालय की डिवीजन बेंच की टिप्पणियां इस प्रकार हैं:

33. अभिलेख में मौजूद चीजों से ये भी देखा गया कि याचिकाकर्ता ने “मंगलसूत्र” उतार दिया और उसने खुद ही ये भी स्वीकार किया कि उसने इसे बैंक लॉकर में रखा है. ये ज्ञात तथ्य है कि कोई भी हिंदू विवाहित महिला 18/22 https://www.mhc.tn.gov.in/judis C.M.A.No.3249 2017, अपने पति के जीवनकाल में किसी भी समय “मंगलसूत्र” नहीं उतारेगी. पत्नी के गले में “मंगलसूत्र” एक पवित्र चीज है जो वैवाहिक जीवन की निरंतरता का प्रतीक है और इसे पति की मौत के बाद ही हटाया जाता है. इसलिए, याचिकाकर्ता/पत्नी द्वारा “मंगलसूत्र” उतार देने को उच्चतम स्तर की मानसिक क्रूरता कहा जा सकता है क्योंकि इससे प्रतिवादी की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती थी और उसे तकलीफ़ हो सकती थी.”

ये ध्यान देने लायक है कि उपर दिए गए पैराग्राफ़ 33 में जो निष्कर्ष निकाला गया वो वर्तमान पीठ द्वारा लिया गया विचार नहीं है. वर्तमान पीठ ने केवल इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए समन्वय पीठ के इस निष्कर्ष पर भरोसा किया. पत्नी द्वारा मंगलसूत्र उतार देने को एक संकेत के रूप में ये अनुमान लगाया जा सकता है कि पत्नी को अब याचिकाकर्ता (पति) के साथ अपने संबंध बनाए रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

सामान्य कानून अदालतों के लिए ये एक मानक प्रथा है कि किसी निश्चित मुद्दे पर निर्णय लेते समय पिछले निर्णयों को आमतौर पर “पूर्ववर्ती” के रूप में जाना जाता है. इसका मतलब ये नहीं है कि दोनों मामले उनके तथ्यात्मक मैट्रिक्स के संदर्भ में समान हैं, लेकिन ये सिर्फ एक संकेत है कि एक एक जैसे मामले में पिछले निष्कर्ष पर भरोसा किया जा रहा है जो वर्तमान अदालत को एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद कर सकता है.

इसके अलावा, वर्तमान निर्णय का पैराग्राफ़ 20 नीचे दिया गया है:

20.“मंगलसूत्र उतार देना अक्सर एक अनौपचारिक कार्य माना जाता है. हम एक पल के लिए भी ये नहीं कहते कि मंगलसूत्र उतार देने से वैवाहिक बंधन खत्म हो जाता है, लेकिन प्रतिवादी द्वारा किया गया इस तरह का काम दोनों पक्षों के इरादों के बारे में अनुमान लगाने में सबूत का एक छोटा पहलु है. रिकॉर्ड पर मौजूद अलग-अलग अन्य सबूतों के साथ, अलग होते समय प्रतिवादी द्वारा मंगलसूत्र उतार देना हमें एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मजबूर करता है कि दोनों पक्षों का वैवाहिक बंधन को समेटने और जारी रखने का कोई इरादा नहीं है.”

फैसले के पैराग्राफ़ 20 से ये साफ़ है कि माननीय पीठ ने मंगलसूत्र उतार देना ही तलाक की तरफ़ ले जाने वाली मानसिक क्रूरता को साबित करने के लिए पर्याप्त कानूनी आधार नहीं माना.

दावे के कानूनी दांव-पेंच को और बेहतर समझने के लिए ऑल्ट न्यूज़ ने उत्तर प्रदेश और दिल्ली में वकालत करने रहे वकील अरीब उद्दीन अहमद से बात की. उन्होंने कहा:

“ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि निर्णय / आदेश पर कुछ मीडिया आउटलेट्स ने बहुत ग़लत तरीके से रिपोर्ट किया.”

उन्होंने आगे कहा, “उक्त आदेश का पालन करने के बाद ये साफ़ है कि हाई कोर्ट ने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की थी, बल्कि सिर्फ वल्लभी बनाम आर. राजसबाही (2016) में एक समन्वय पीठ के फैसले का ज़िक्र किया था, जिसमें इसी तरह के उदाहरण में कहा गया था कि पत्नी द्वारा “मंगलसूत्र” उतार देने को एक ऐसा कार्य कहा जा सकता है जो उच्चतम स्तर की मानसिक क्रूरता को दर्शाता है क्योंकि इससे प्रतिवादी को तकलीफ़ और उनकी भावनाओं को ठेस पहुंच सकती थी. इसलिए कुछ मीडिया आउटलेट्स द्वारा “मंगलसूत्र” उतारने को ग़लत तरीके से हेडलाइन बना दिया गया, और इससे फैसले के बारे में ग़लत प्रचार हुआ.”

उन्होंने ये भी कहा, “एक तरीका है जिसमें किसी निर्णय या आदेश को रिपोर्ट किया जा सकता है या पढ़ा जा सकता है. ये निष्पक्ष रूप से मामले के फ़ैक्ट्स के साथ शुरू होता है, फिर मुद्दे, फिर दोनों पक्षों द्वारा किए गए सबमिशन और उनके तर्क और अंत में अदालत की टिप्पणियों के साथ खत्म होता है.

इसे भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: 1) अनुपात निर्णय जिसे न्यायाधीश द्वारा उसके या अदालत के सामने समस्या का निर्णय करने के मकसद से तैयार किए गए कानून के सिद्धांतों के रूप में परिभाषित किया गया है ,और 2) आज्ञाकारिता, जिसका मतलब है न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियां, लेकिन ये निर्णय के लिए ज़रुरी नहीं हैं.”

हालांकि, NDTV जैसे कई मीडिया आउटलेट्स द्वारा रिपब्लिश किए गए PTI के आर्टिकल में सिर्फ एक भ्रामक शीर्षक था, आर्टिकल के कंटेंट में निर्णय के सार पर पूरी तरह से लिखे गए थे. लेकिन कुछ अन्य मीडिया आउटलेट्स जैसे कि IndiaTV और WION ने पूरी तरह से ग़लत व्याखा करते हुए फैसले के निष्कर्षों को ग़लत तरीके से पेश किया है. WION ने इसी भ्रामक ख़बर के साथ एक वीडियो रिपोर्ट भी पब्लिश की.

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About the Author

Nilofar Absar is a lawyer by training and a storyteller by nature who takes a keen interest in the lives of people belonging to South Asian diasporic communities.