27 जून को पेरिस के पास फ़्रेंच पुलिस ने 17 साल के नाहेल मेरज़ौक को गोली मार दी. क्यूंकी वो ट्रैफ़िक पुलिस के आदेश पर रुक नहीं पाया. न्यूज़ रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस घटना को पास से गुज़रने वाले एक शख्स ने रिकॉर्ड कर लिया. वीडियो में 2 अधिकारी उस कार चालक की ओर खड़े थे और उनमें से एक ने कोई खतरा नहीं होने के बावजूद तुरंत उस पर बंदूक चला दी. इस ख़बर के सामने आने के बाद देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.

कई वीडियोज़ और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की गईं और दावा किया गया कि ये हाल में फ़्रांस में हो रहे विरोध प्रदर्शन की हैं.

दावा 1: पुलिस की क्रूरता

फ्रांसीसी पुलिस द्वारा नागरिकों की पिटाई की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल है. यूज़र्स का दावा है कि ये देश में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन का वीडियो है. ऐसा लगता है कि ये वीडियो कई वीडियो क्लिप का कंपाइलेशन है.

ट्विटर ब्लू यूज़र ‘मेघ अपडेट्स‘ ने 6 जुलाई को ये वीडियो ट्वीट करते हुए सुझाव दिया कि ये वीडियो हाल के दंगों से संबंधित था. ट्वीट को करीब 6 लाख बार देखा गया और 2 हज़ार से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया. रिडर्स ध्यान दें कि ‘@MeghUpdates’ नियमित तौर पर ग़लत सूचनाएं शेयर करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करता है. ऐसे कुछ उदाहरण आप यहां पर देख सकते हैं.

@TheAbhishek_IND‘, ‘@team_hyv‘, ‘@Amberological‘ और ‘@ajayChauhan4‘ सहित कई और यूज़र्स ने ऐसे ही दावों के ये वीडियो ट्वीट किया. ध्यान दें कि ट्विटर पर @ajayChauhan41 नामक यूज़र भी अक्सर गलत सूचनाएं शेयर करता है.

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फ़ैक्ट-चेक

ऑल्ट न्यूज़ ने वीडियो के फ़्रेम्स को रिवर्स इमेज सर्च किया. हमें अप्रैल 2023 के कई ट्वीट्स मिलें जिनमें संबंधित वीडियो शेयर किया गया था.

ट्विटर यूज़र ‘RadioGenova’ ने 16 अप्रैल को 55 सेकंड का कंपाइलेशन वीडियो इस कैप्शन के साथ ट्वीट किया: “फ्रांस के मैक्रॉन में महिलाओं का महत्व. तालिबान की मंजूरी के मुताबिक.”

उस दौरान कई और यूज़र्स ने भी ये वीडियो ट्वीट किया था जिसमें बताया गया था कि फ्रांसीसी पुलिस महिलाओं के साथ बहुत खराब व्यवहार कर रही थी.

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यानी, ये साफ है कि इस वीडियो क्लिप का हाल में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से कोई संबंध नहीं है. ये वीडियो अप्रैल में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था और हालिया विरोध प्रदर्शन 27 जून को नाहेल एम की मौत के बाद शुरू हुआ.

दावा 2: महंगे स्टोर लूटे गए

जून के आखिर में जैसे ही फ्रांस में ये विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, हाई-एंड स्टोर्स को लूटे जाने की खबरें भी सामने आयी. भीड़ द्वारा ऐप्पल स्टोर और लुई वुइटन स्टोर को लूटने के दो वीडियोज़ सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं और इन्हें फ्रांस में हो रहे हालिया विरोध प्रदर्शन का बताया जा रहा है.

एप्पल स्टोर

ट्विटर यूज़र मनीष ने 30 जून को इस कैप्शन के साथ वीडियो ट्वीट किया: “दंगाइयों ने फ्रांस में एक एप्पल स्टोर को लूट लिया. #पेरिस #फ्रांस राइट्स #फ्रांसप्रोटेस्ट #फ्रांस.” इस कैप्शन के मुताबिक, ये वीडियो फ्रांस में चल रहे हालिया विरोध प्रदर्शन से संबंधित है. आर्टिकल लिखे जाने तक ट्वीट को 1.5 लाख से ज़्यादा बार देखा और 200 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया है. (आर्काइव)

कुछ मीडिया आउटलेट्स ने भी फ्रांस में हाल की घटनाओं के संबंध में इसी वीडियो का इस्तेमाल किया जिनमें मोजो स्टोरी, इंडियन टाइम्स मिरर (@ITMfactchecked) और वनइंडिया न्यूज (@Oneindia) शामिल हैं.

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फ़ैक्ट-चेक

ऑल्ट न्यूज़ ने @Manishkumarsah1 के ट्वीट के रिप्लाइ में ट्विटर हैन्डल ‘@PRGuy17’ का एक कमेंट नोटिस किया. उन्होंने 2018 का एक ट्वीट शेयर किया था जिसमें एप्पल स्टोर को लूटे जाने के वीडियो का स्क्रीनशॉट था और कैप्शन में बताया गया कि ये वीडियो 5 साल पुराना है. 11 दिसंबर 2018 को @aapldotio द्वारा किए गए असली ट्वीट में कहा गया, “फ्रांस के Bordeaux में ऐप्पल स्टोर में बड़े पैमाने पर दंगे हुए.”

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इसे ध्यान में रखते हुए की-वर्ड्स सर्च करने पर हमें 11 दिसंबर 2018 की द वर्ज की एक न्यूज़ रिपोर्ट मिली. आर्टिकल के टाइटल में लिखा है, “फ्रांसीसी ‘येलो वेस्ट’ दंगों के दौरान ऐप्पल स्टोर में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई.” रिपोर्ट में ज़िक्र किया गया है कि ये घटना देश में ‘येलो वेस्ट’ विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई थी जिसे ‘गिलेट्स जौन्स’ भी कहा जाता है.

हमें दिसंबर 2018 का हफ़िंगटन पोस्ट का एक यूट्यूब वीडियो मिला. वीडियो में वायरल क्लिप भी थी. फ़्रेंच में लिखे टाइटल का अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है: “येलो वेस्ट के विस्फ़ोट के दौरान Bordeaux के ऐप्पल स्टोर को लूट लिया गया.”

कुल मिलाकर, ये साफ़ है कि वायरल क्लिप का फ्रांस के एक एप्पल स्टोर में हाल ही में हुई लूटपाट से कोई संबंध नहीं है.

रिडर्स ध्यान दें कि असल में स्ट्रासबर्ग में एक एप्पल स्टोर में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई थी. हमें कई सोशल मीडिया पोस्ट और न्यूज़ रिपोर्ट्स मिलीं जिनमें इस घटना की तस्वीरें और वीडियोज़ शेयर किये गए थे.

लुई वुइटन स्टोर

ट्विटर यूज़र JAWAN.. (@cyrlreg) ने लुई वुइटन स्टोर में भीड़ द्वारा तोड़फोड़ और लूटपाट का एक वीडियो शेयर करते हुए दावा किया कि ये वीडियो हाल ही में फ्रांस में हुए दंगों का है. (आर्काइव)

ट्विटर पेज वोकफ्लिक्स ने भी यही वीडियो इस कैप्शन के साथ ट्वीट किया: “लुई वुइटन में 100% डिस्काउंट चल रहा था इसलिए अप्रवासी खरीदार थोड़ा नियंत्रण से बाहर हो गए. #FranceHasFallen #Wokeflix”. आर्टिकल लिखे जाने तक इस ट्वीट को 90 हज़ार बार देखा गया है और इसे 300 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया है. ऑल्ट न्यूज़ ने पहले भी @wokeflix_ द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं का फ़ैक्ट-चेक किया है. (आर्काइव लिंक)

न्यूज़ आउटलेट हिंदुस्तान टाइम्स ने एक यूट्यूब वीडियो अपलोड किया. इसके टाइटल का हिंदी अनुवाद है: “फ्रांस: दंगाइयों ने पेरिस में लुई वुइटन, ज़ारा, नाइकी स्टोर्स को लूट लिया; कैमरे में कैद हुआ पूरा पागलपन | देखें.” इसमें लुई वुइटन स्टोर को लूटे जाने की यही वायरल क्लिप थी.

फ़ैक्ट-चेक

हमने वीडियो के फ़्रेम को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च किया. हमें @The_Real_Fly नामक यूज़र का एक ट्वीट मिला. यूज़र ने 30 मई 2020 को ये वीडियो इस कैप्शन के साथ ट्वीट किया: “पोर्टलैंड में लुईस वुइटन स्टोर लूट लिया गया.” हमने देखा कि पहले ये वीडियो पत्रकार सर्जियो ओल्मोस ने उसी दिन शेयर किया था.

सर्जियो ओल्मोस ने वीडियो का थ्रेड शेयर किया था जिसमें उन्होंने पोर्टलैंड लुई वुइटन स्टोर को लूटे जाने की घटना भी कवर की थी. थ्रेड में बताया गया कि ये घटना जॉर्ज फ्लॉयड नामक एक अफ़्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति की पुलिस द्वारा हत्या के बाद अमेरिका में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई थी.

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1 जुलाई को एक ट्विटर थ्रेड में, सर्जियो ओल्मोस ने स्पष्ट किया कि 3 साल पहले लिए गए एक वीडियो को अब फ्रांस की हालिया घटना का बताकर शेयर किया जा रहा है और जिस लुई वुइटन स्टोर को लूटा गया था वो संयुक्त राज्य अमेरिका के पोर्टलैंड में था.

यानी, लुई वुइटन स्टोर को लूटने का वायरल वीडियो फ्रांस का नहीं है. ये तीन साल पुराना है और संयुक्त राज्य अमेरिका का है.

दावा 3: बैकग्राउंड में एफ़िल टॉवर के साथ आग की नाटकीय तस्वीर

फ्रांस में हाल में हुए विरोध प्रदर्शन के विज़ुअल्स का बताकर पेरिस में एफ़िल टॉवर के पास लगी आग की एक तस्वीर शेयर की जा रही है.

ट्विटर यूज़र्स प्रोफ़ेसर एन जॉन कैम (@njohncamm) ने 3 जुलाई को ये तस्वीर शेयर की. इस ट्वीट को 1 लाख से ज़्यादा बार देखा गया और इसे एक हजार से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया. (आर्काइव)

अन्य यूज़र्स ने भी इन्हीं दावों के साथ तस्वीर शेयर की, जिनमें @sumitbhati267, @APF_Ind, और @PmukeshGjoshi शामिल हैं.

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फ़ैक्ट-चेक

तस्वीर की सच्चाई जानने के लिए हमने इस पर रिवर्स इमेज सर्च किया, लेकिन हमें किसी भी न्यूज़ रिपोर्ट में इसका कोई इंस्टैंस नहीं मिला. आगे की जांच करने पर, हमें तस्वीर में कुछ गलतियां दिखीं, जैसे –

1. लोग लापरवाही से आग में खड़े हैं.

2. जिस सड़क पर लोग खड़े हैं वो बहुत अंधेरी नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर आसमान में उजाला दिख रहा है.

3. हमने गूगल मैप्स पर एफ़िल टॉवर के आसपास के स्ट्रीट व्यू को चेक किया. हमें ऐसा कुछ भी नहीं दिखा जैसा तस्वीर में दिख रहा है. तस्वीर में टॉवर के दोनों किनारों पर दो बिल्डिंग्स है. लेकिन हमें मैप्स पर ऐसा कुछ नहीं मिला.

इन असमानताओं से ये पता चलता है कि तस्वीर AI-जेनरेटेड है.

हमने तस्वीर को हगिंग फ़ेस, इलुमिनार्टी, ऑप्टिक एआई या नॉट और हाइव मॉडरेशन जैसे अलग-अलग टूल्स पर चेक किया, ताकि ये पता लगाया जा सके कि तस्वीर आर्टिफ़ीसियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके बनाई गई है या नहीं. सभी चार टूल से जो रिज़ल्ट हमें मिले, उनमें ये पता चलता है कि शायद ये तस्वीर AI-जेनरेटेड है.

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हमने ये भी देखा कि @PmukeshGjoshi द्वारा शेयर की गई दूसरी तस्वीर 7 साल पुरानी है और ये यूरो 2016 फ़ुटबॉल फ़ाइनल के समय पेरिस में हुई झड़प के दौरान ली गई थी.

कुल मिलाकर, एफ़िल टॉवर के पास आग की वायरल तस्वीर फ्रांस में हाल ही में हुए दंगों का विज़ुअल नहीं है, बल्कि ये AI-जेनरेटेड तस्वीर है.

दावा 4: रेफ्यूजी का स्वागत करते हुए नागरिक

रेफ्यूजी का स्वागत करते हुए नागरिकों की दो तस्वीरें, फ्रांस में आयोजित शरणार्थी समर्थक रैलियों की तस्वीरों के रूप में सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं. यूज़र्स आप्रवासियों का स्वागत करने के लिए फ्रांस के लोगों का मज़ाक उड़ाने के इरादे से तस्वीरें शेयर कर रहे हैं. क्योंकि देश में इस अशांति के लिए ज़्यादातर अप्रवासियों को ही ज़िम्मेदार ठहराया गया है.

पहली तस्वीर

पहले भी कई बार ग़लत सूचनाएं शेयर करने वाले ट्विटर हैन्डल @MJ_007Club ने एमनेस्टी इंटरनेशनल का साइन पहनी एक महिला की तस्वीर इस कैप्शन के साथ ट्वीट की, “ये 2016 का फ्रांस था. मुझे उम्मीद है कि ये आज फ्रांस की सबसे खुश महिला होगी. आज सड़कों और टीवी पर फ्रांस में अप्रवासियों को देखकर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया होगा. #FranceRiots #FranceOnFire #FranceHasFallen.” आर्टिकल लिखे जाने तक इस ट्वीट को 1 लाख से ज़्यादा बार देखा और 300 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया है. (आर्काइव लिंक)

अक्सर ग़लत सूचनाएं शेयर करने वाले ट्विटर ब्लू यूज़र ऋषि बागरी ने 4 तस्वीरों का एक सेट ट्वीट किया जिसमें एफ़िल टॉवर के पास आग की AI-जनरेटेड तस्वीर भी शामिल है. उन्होंने कैप्शन में लिखा है कि मूर्खतापूर्ण गेम्स खेलने पर मूर्खतापूर्ण इनाम ही मिलता है. (आर्काइव लिंक)

ट्विटर हैन्डल ‘@vishnuguptuvach‘ और ‘@Akhi_Rohila‘ जैसे कई यूज़र्स ने भी ये तस्वीर इसी कैप्शन के साथ ट्वीट की.

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हमने संबंधित तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च किया जिससे हमें 2018 का एक ट्वीट मिला.

16 जुलाई 2018 को लासिया क्रेट्ज़ेल ने एक थ्रेड ट्वीट किया था जिसमें ब्रिटिश प्रसारक और पूर्व राजनेता निगेल फराज को बुलाया गया था. उन्होंने क्रेट्ज़ेल द्वारा ली गई एक पुरानी तस्वीर का एक एडिटेड वर्ज़न शेयर किया था. उन्होंने 2015 की एक न्यूज़ रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट शेयर किया था. मूलस तस्वीर में महिला द्वारा पहने गए साइन पर लिखा है, “अप्रवासियों के लिए मेरा दरवाजा खुला है.” उनके ट्वीट में ये भी बताया गया है कि रैली कनाडा में आयोजित की गई थी.

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कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (या CBC) ने भी उस समय इस मामले पर रिपोर्ट की थी. CKOM, वो रेडियो स्टेशन है जहां क्रेट्ज़ेल काम करती थी जब उन्होंने ये तस्वीर ली थी. उन्होंने इस बारे में कनाडाई प्रेस की एक रिपोर्ट भी शेयर की जिसमें साफ किया गया था कि वायरल तस्वीर एडिटेड है.

कुल मिलाकर, एमनेस्टी इंटरनेशनल का साइन पहनी हुए एक महिला की वायरल तस्वीर एडिटेड है. असली साइन में कहा गया है, “अप्रवासियों के लिए मेरा दरवाजा खुला है.” इसके अलावा, ये तस्वीर पुरानी है और ये कनाडा की है.

दूसरी तस्वीर:

इस तस्वीर में एक रैली दिखती है जहां कुछ लोग एक बैनर पकड़े हुए हैं. बैनर पर लिखे टेक्स्ट का हिंदी अनुवाद है, “वो खतरनाक नहीं हैं, वो खतरे में हैं. अप्रवासियों का स्वागत.” पिछली तस्वीर की तरह ही सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस तस्वीर को भी शेयर करते हुए अप्रवासियों का स्वागत करने के लिए फ्रांसीसी लोगों का मज़ाक उड़ाया है. साथ ही ये दावा भी किया जा रहा है कि ये तस्वीर फ्रांस में आयोजित किसी शरणार्थी समर्थक रैली की है.

न्यूज़18 हिंदी के प्रबंध संपादक अमीश देवगन ने इस तस्वीर को दो और तस्वीरों के साथ ट्वीट किया. उन्होंने दावा किया कि ये 2023 में मार्सिले लाइब्रेरी और 1202 ईस्वी में नालंदा लाइब्रेरी की तस्वीरें हैं. (आर्काइव)

कई यूज़र्स ने भी ऐसे ही दावों के साथ ये तस्वीर ट्वीट की जैसे ट्विटर हैन्डल ‘@Akhishekkkk10‘, ‘@Frust Indian‘ और ‘@AkhimanyuX_‘ .

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वायरल तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें 27 सितंबर 2015 की गेटी इमेज में उसी रैली की एक अलग ऐंगल से ली गई तस्वीर मिली. तस्वीर के टाइटल में कहा गया है, “ब्रुसेल्स में अप्रवासियों का स्वागत मार्च.”

इसे ध्यान में रखते हुए हमने सर्च किया जिससे हमें 29 सितंबर 2015 को VideoNews द्वारा पोस्ट किया गया एक यूट्यूब वीडियो मिला. इसमें ब्रुसेल्स में आयोजित पूरे शरणार्थी समर्थक मार्च को कवर किया गया था. वायरल बैनर वाला हिस्सा वीडियो में 1 मिनट 39 सेकेंड पर दिखता है.

हमें VRT NWS की एक न्यूज़ रिपोर्ट भी मिली जिसमें अप्रवासियों के स्वागत के लिए रैली करते और बैनर पकड़े हुए लोगों की वायरल तस्वीर मौजूद थी.

यानी, ये साफ है कि रैली की तस्वीर फ्रांस की नहीं बल्कि 2015 में बेल्जियम में आयोजित शरणार्थी समर्थक मार्च की है.

दावा 5: सड़कों पर चिड़ियाघर के जानवर

ऐसे वीडियोज़ सामने आए हैं जिनमें सड़कों पर ज़ेब्रा, घोड़े और अन्य जंगली जानवरों दौड़ते और घूमते हुए दिखते हैं. इन वीडियोज़ को इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि फ्रांस में दंगाइयों ने जबरदस्ती इन जानवरों को चिड़ियाघर से रिहा कर दिया है.

ट्विटर यूज़र नरेन मुखर्जी ने 3 वीडियोज़ ट्वीट किए हैं जिनमें साफ तौर पर ज़ेब्रा और घोड़े सड़कों पर दौड़ रहे हैं. तीन वीडियोज़ में से एक खराब क्वालिटी का वीडियो है और इस कारण वीडियो में क्या हो रहा है ये साफ़ नहीं दिख रहा. यूज़र ने दावा किया कि फ्रांस की सड़कों पर ज़ेब्रा के अलावा शेर भी घूम रहे थे. उनके ट्वीट को 85 हज़ार से ज़्यादा बार देखा और 300 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया गया. (आर्काइव लिंक)

कई यूज़र्स ने भी इसी दावे के साथ ये वीडियो ट्वीट किया. इस लिस्ट में ट्विटर हैन्डल ‘@dks6720‘ और ‘@lekh27‘ शामिल हैं.

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फ़ैक्ट-चेक

की-वर्ड्स सर्च करने पर हमें NDTV की 2020 की एक रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट का टाइटल है: “सर्कस से भागे हुए ज़ेब्रा और घोड़े पेरिस की सड़कों पर दौड़ते हुए. देखें.” रिपोर्ट में वायरल वीडियो का स्क्रीनग्रैब शामिल है. रिपोर्ट में ये बताया गया है कि ये जानवर बडिन सर्कस से भाग गए थे, मालिक ने कहा कि जानवर उस वक्त भाग गए थे जब बाड़े को खुला रखा गया था और उन्हें वापस पकड़ लिया गया था. इस दौरान लगभग 15 मिनट के लिए जानवर बाहर थे.

हमें 11 अप्रैल, 2020 का एक ट्वीट भी मिला. ट्वीट में चलते ट्रैफ़िक के साथ सड़कों पर दौड़ते ज़ेब्रा और घोड़ों का एक वीडियो शेयर किया गया था.

हाल ही में जब ये वीडियो दोबारा सामने आए तो कुछ लोग चिंतित हो गए और उन्होंने ट्विटर पर पेरिस ज़ूलॉजिकल पार्क से पूछा कि क्या कोई जानवर उनके चिड़ियाघर से भाग गया है. इस पर चिड़ियाघर ने जवाब देते हुए कहा कि चिड़ियाघर में सभी जानवर ठीक और सुरक्षित हैं.

कुल मिलाकर, पेरिस की सड़कों पर जानवरों के विज़ुअल्स पुराने हैं. दंगाइयों ने चिड़ियाघर के जानवरों को आज़ाद नहीं किया है.

दावा 6: मार्सिले लाइब्रेरी में आग

अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फ्रांस में चल रहे दंगों के दौरान मार्सिले की एक लाइब्रेरी में आग लगने के दावे के साथ एक वीडियो शेयर किया जा रहा है. वीडियो में कई खंभों वाली एक बिल्डिंग में आग लगी हुई है और बिल्डिंग के चारों ओर धुएं के काले बादल दिख रहे हैं. बैकग्राउंड में लोग चिल्ला रहे हैं.

ट्विटर प्रोजेक्ट TABS नामक एक वेरिफ़ाईड ट्विटर अकाउंट ने 5 जुलाई को वीडियो ट्वीट करते हुए दावा किया कि अल्कज़ार के नाम से जानी जाने वाली मार्सिले की सबसे बड़ी लाइब्रेरी को दंगाइयों ने नष्ट कर दी. (आर्काइव)

फ़ेसबुक पेज Bullnews ने भी यही वीडियो 9 जुलाई को पोस्ट किया था.

In Marseille, migrants burned one of the largest libraries in France.

In Marseille, migrants burned one of the largest libraries in France.

The Alcazar Library’s collection contained almost a million documents, 350,000 of which were in the public domain. In particular, medieval manuscripts and unique editions, works of great thinkers and philosophers were kept here.

Posted by Bullnews on Sunday, 9 July 2023

फ़ैक्ट-चेक

हमने वीडियो के एक फ़्रेम को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च किया जिससे हमें 22 मई को पब्लिश CNN का एक आर्टिकल मिला. आर्टिकल के मुताबिक, वीडियो में दिखाई देने वाली बिल्डिंग फ़िलीपींस की मनीला सेंट्रल पोस्ट ऑफ़िस है. ये घटना 21 मई, 2023 को हुई और इससे बिल्डिंग और उसके भीतर रखे डाक्यूमेंट्स को काफी नुकसान हुआ. आग लगने का कारण आर्टिकल लिखे जाने तक पता नहीं चल पाया है.

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फ़्री प्रेस जर्नल की एक न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक, मार्सिले में लाइब्रेरी को कथित तौर पर दंगाइयों ने जला दिया था. रिपोर्ट में घटनास्थल के विज़ुअल्स दिखाए गए हैं जो वायरल वीडियो में दिख रहे विज़ुअल से बिल्कुल अलग है. न्यूज़ रिपोर्ट के दृश्य गूगल मैप्स के स्ट्रीट व्यू से मेल खाते हैं.

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कुल मिलाकर, एक बिल्डिंग में आग लगने का वायरल वीडियो मार्सिले की लाइब्रेरी का नहीं है. ये फ़िलीपींस की मनीला सेंट्रल पोस्ट ऑफ़िस है।

ऑल्ट न्यूज़ की इन्टर्न काजोल नानावटी के इनपुट के साथ.

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