16 जून को ज़ी न्यूज़ के 2 मिनट के एक प्रसारण में पहाड़ी इलाकों में मार्च करते कुछ लोगों को दिखाया गया. कारगिल में 1960 के दशक से लंबित गोम्पा की स्थापना के लिए जागरूकता पैदा करने के लिए ये मार्च निकाला गया था. BBC के अनुसार, गोम्पा एक तिब्बती संस्था है. ये संस्था एक तीर्थस्थान, एक विहार और एक ध्यान कक्ष को मिलाकर बना है. इसमें पढ़ने और सीखने की सुविधाएं भी हैं. कोलिन्स डिक्शनरी में इसे बौद्ध मठ के रूप में संदर्भित किया गया है.
चैनल के मुताबिक, “शांतिप्रिय” बौद्ध समुदाय और “कट्टरपंथी मुसलमानों” के बीच “झड़प” हुई. ज़ी न्यूज़ के वीडियो में लोगों की भीड़ को मार्च करते हुए दिखाया गया है, साथ ही भिक्षुओं और लेह रीजन को रिप्रेजेंट करने वाले क्लिप भी दिखाए गए हैं. वीडियो में 50 सेकंड पर, ज़ी न्यूज़ ने आरोप लगाया कि बौद्ध धर्म की “रक्षा” करने के लिए भिक्षुओं ने कट्टरपंथी मुसलमानों के साथ “लड़ाई” की. चैनल ने अपने रिपोर्ट में ये नहीं बताया कि इस “लड़ाई” की वजह क्या थी. हालांकि, ज़ी न्यूज़ के प्रसारण में किसी तरह का विवाद नहीं दिख रहा है.
[ज़ी न्यूज़ के प्रसारण के शुरुआती 50 सेकंड में बताया गया: “सबकी नज़रों से दूर लद्दाख में एक ऐसी घटना हुई, जिससे पूरा देश अनजान था. ये ख़बर आज पूरे देश को देखनी चाहिए ताकि सबको पता चले कि हमेशा शांत और एकांत ज़िंदगी जीने वाले बौद्ध अचानक गुस्से में क्यों आ गए. दरअसल, लद्दाख में मौलवियों और कट्टरपंथियों ने बौद्धों को अपना मंदिर बनाने से रोका जिसके बाद बवाल शुरू हो गया. ये मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. इसी के चलते अब उस इलाके में बौद्ध अल्पसंख्यकों ने मौलवियों और कट्टरपंथियों के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने धर्म की रक्षा के लिए अब बौद्ध मुसलमानों से भिड़ गए हैं. मौलवियों और कट्टरपंथियों का विरोध करने के लिए हजारों की संख्या में बौद्ध सड़कों पर उतर आए. जानकारी के लिए आपको बता दें कि कारगिल के इलाके में बौद्धों और मुसलमानों का विवाद कई दशकों पुराना है…”]
ज़ी न्यूज़ ने इसे 16 जून और 17 जून को फ़ेसबुक पर भी पोस्ट किया था. दोनों पोस्ट को मिलाकर एक लाख से ज़्यादा लाइक्स मिले और इसे 12 हज़ार से ज़्यादा बार शेयर किया गया. 16 जून की पोस्ट को दो मिलियन से ज़्यादा बार देखा गया.
हमने ये भी देखा कि कई भाजपा समर्थक और हिंदुत्व समर्थक फ़ेसबुक अकाउंट ने इस वीडियो को शेयर किया. यदि आपके पास CrowdTangle का एक्सेस है, तो आप ये पोस्ट्स यहां देख सकते हैं.
फ़ैक्ट-चेक
ज़ी न्यूज़ ने लद्दाख में बौद्धों और मुसलमानों के बीच हुए झगड़े का कारण स्पष्ट किए बिना दावा किया कि उनके बीच “झड़प” हुई थी. ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि वीडियो में मौखिक या शारीरिक किसी भी तरह की हिंसा नहीं दिखाई गई है.
घटना का कारण समझने के लिए ऑल्ट न्यूज़ ने सभी संबंधित स्टेकहोल्डर्स से बात की और मामले पर दूसरे न्यूज़ रिपोर्ट्स ढूंढे.
12 जून को अमर उजाला ने रिपोर्ट किया कि तिब्बती धार्मिक नेता और आठवें चोएकयोंग, पालगा रिनपोछे ने ‘पदयात्रा’ पर कई सौ बौद्ध समुदाय के सदस्यों का नेतृत्व किया. 27 मई को रिनपोछे के फ़ेसबुक पेज पर एक तस्वीर पोस्ट की गई जिसमें मार्च के बारे में जानकारी दी गई थी. ये 31 मई से 14 जून तक हुआ था. पोस्ट के मुताबिक, कारगिल गोम्पा की बहाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मार्च का आयोजन किया गया था.
फ़र्स्टपोस्ट ने ऐतिहासिक संदर्भ का जिक्र करते हुए लिखा, “रिपोर्ट के मुताबिक, 15 मार्च, 1961 को जम्मू -कश्मीर की तत्कालीन सरकार, सामान्य विभाग और लद्दाख अफ़ेयर्स ने बौद्ध मंदिर के निर्माण के लिए लद्दाख बौद्ध संघ (LBA) को जमीन और सराय स्वीकृत की थी. आदेश में साफ़ तौर पर ज़िक्र किया गया था कि ज़मीन पर धार्मिक निर्माण की अनुमति दी गई थी. हालांकि, 1969 में सरकार ने एक और आदेश जारी किया. इस आदेश में कहा गया कि LBA को आवंटित जमीन का इस्तेमाल सिर्फ आवासीय या व्यावसायिक भवनों के निर्माण के लिए किया जा सकता है और भूमि पर धार्मिक निर्माण की अनुमति देने से इनकार कर दिया.” इस तरह, ये पूरी तरह से 1961 का भूमि विवाद है.
ऑल्ट न्यूज़ ने कारगिल बौद्ध संघ (KBA) के अध्यक्ष स्कार्मा दादुल से बात की. दादुल ने 1961 और 1969 के डाक्यूमेंट्स की ट्रू कॉपीज शेयर की. [PDF देखें] उन्होंने कहा, ‘मैं मार्च में शामिल हुआ था. इस मार्च का मकसद नींव रखकर कारगिल गोम्पा के बारे में जागरूकता बढ़ाना था. मार्च कर रहे लोगों का जो वीडियो ज़ी न्यूज़ ने दिखाया, वो 12 जून का है.”
जब हमने पूछा कि क्या मार्च के दौरान कोई “झड़प” हुआ था तो उन्होंने जवाब दिया, “कोई झड़प नहीं हुआ था. भाजपा लद्दाख के अध्यक्ष और सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल ने मुलबेक मठ के पास मार्च कर रहे लोगों से मुलाकात की (गूगल मैप्स पर देखें) और कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मार्च को रोकने के लिए कहा है. रिक्वेस्ट के अनुसार हमने मार्च रोक दिया.” दादुल ने हमें बताया कि “विरोध शांतिपूर्ण था.”
यूट्यूब यूज़र स्टैनजिन जिंगतक ने बीजेपी सांसद नामग्याल का एक भाषण अपलोड किया है. भाषण में (8 मिनट 27 सेकेंड से 8 मिनट 47 सेकेंड तक) नामग्याल ने दावा किया कि अमित शाह ने पालगा रिनपोछे से इस पदयात्रा को रोकने की रिक्वेस्ट की थी. उन्होंने कहा, “कल जब गृह मंत्री अमित शाह ने मुझे फ़ोन किया… उन्होंने ये नहीं कहा कि ये रिनपोछे को मेरा आदेश है, बल्कि उन्होंने कहा कि रिनपोछे जी से मेरा विनम्र निवेदन है वे मार्च को वापस ले लें.”
कारगिल के स्थानीय लोगों से बात करने पर हमें पता चला कि मुस्लिम समुदाय को डर था कि कारगिल गोम्पा की आधारशिला रखने वाली पदयात्रा भाजपा के सह-संस्थापक स्वर्गीय लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा से प्रेरित थी, उस वक्त रथ यात्रा में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने की मांग की गई थी. उन्हें चिंता थी कि कारगिल में हजारों बौद्धों के मार्च से तालमेल बिगड़ सकता है.
रीजनल पुलिस सोर्स के अनुसार, “कारगिल में गोम्पा का निर्माण एक संवेदनशील मुद्दा है. 9 जून को ये मार्च मुलबेख क्षेत्र पहुंचा था. उस वक्त पुलिस ने मार्च रोक दिया क्योंकि इस क्षेत्र से आगे मुस्लिम समुदाय रहते हैं. (मुलबेख़ क्षेत्र कारगिल में गोम्पा के लिए साइट से लगभग 40 किलोमीटर दूर है) ज़ी न्यूज़ में दिखाया गया फ़ुटेज उससे पहले का नहीं है. हमारे अनुमान के मुताबिक़, इसमें 9 जून से 13 जून के बीच की घटनाओं को दिखाया गया है. हालांकि, कारगिल में एक गोम्पा की नींव रखने के लिए पालगा रिनपोछे के बयान पर विवाद शुरू हुआ. इसके बाद, AJUIAK के अध्यक्ष शेख नज़ीर मेहदी ने ये कहकर विवाद को बढ़ा दिया कि “अगर सरकार इस मार्च को रोकने के लिए कदम नहीं उठाती है, तो हमें ऐसा करना होगा.” पुलिस अधिकारी ने घटना के संवेदनशील होने के कारण अपना नाम न उजागर करने का अनुरोध किया.
शेख नज़ीर मेहदी ने 10 जून को एक बयान देते हुए कहा, “जैसा कि आप जानते हैं, पालगा लामा ने लेह से शांति मार्च के नाम पर पैदल चलना शुरू किया और कारगिल के जिलों में प्रवेश किया. प्रशासन इस यात्रा के नकारात्मक परिणाम से अच्छी तरह वाकिफ है लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है और उन्हें रोका नहीं है. उन्हें कारगिल ज़िलों में प्रवेश करने देना एक तर्कहीन कदम है और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, उन्हें [प्रशासन को] इसे रोकना होगा.” ये बयान 17 सेकेंड से 1 मिनट 2 सेकेंड तक देखा जा सकता है.
एक मिनट बाद, उन्होंने आगे कहा, “जब दलाई लामा ने दौरा किया था… तो पूरे मुस्लिम समुदाय ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था. सबने उनका आदर किया, लोगों के साथ व्यवहार करने का हमारा यही तरीका है. जो सम्मान के साथ आएंगे उन्हें सम्मान मिलेगा, जो हमसे बात करने आएंगे, उनके साथ हम बैठकर बात शुरू करेंगे. लेकिन जो हमसे लड़ने आएंगे हम भी उनसे लड़ेंगे. उन्होंने आगे कहा, “अगर आप यहां शांति और सद्भाव बनाए रखना चाहते हैं, तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, उन्हें रोक दें. यदि आप [प्रशासन] उन्हें नहीं रोकेंगे या नहीं जानते कि उन्हें कैसे रोका जाए, तो ध्यान रखें कि हम जानते हैं कि इसे कैसे रोका जाए. जब हम इसे रोकेंगे, तब आप लाचार होंगे. इसलिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, उन्हें वापस भेज दीजिए.” (2 मिनट 18 सेकेंड से 2 मिनट 48 सेकेंड तक)
15 जून को पालगा रिनपोछे ने न्यूज़ नेशन को बताया कि ये ज़मीन LBA की है. उन्होंने कहा कि जमीन का क्या इस्तेमाल करना है ये तय करने के लिए LBA स्वायत्तता से काम करेगा. उन्होंने ये भी बताया कि 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित करने के बाद गोम्पा स्थापित करने की ये पहली पहल थी.
2020 में आउटलुक ने रिपोर्ट किया, “लद्दाख के कारगिल क्षेत्र में स्थित अलग-अलग राजनीतिक और धार्मिक दलों का एक ग्रुप, कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) ने कहा कि लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति को मान्यता नहीं दी जाएगी. KDA ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की है. और गठबंधन ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि क्षेत्र के लोगों से विधान सबंधी और गवर्निंग पॉवर छीन ली गई है. पिछले साल लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के केंद्र के कदम पर निशाना साधते हुए KDA ने आरोप लगाया कि सरकार ने इस क्षेत्र पर निरंकुशता थोपी है.”
LBA के अध्यक्ष श्री थुपस्तान त्सेवांग ने JK24x7News लद्दाख के साथ एक इंटरव्यू में (5 मिनट 50 सेकेंड से 6 मिनट 45 सेकेंड के बीच) कहा कि LBA और KDA सभी सामाजिक-धार्मिक संगठनों के साथ चर्चा के बाद मुद्दों को हल करने के लिए बातचीत कर रहे हैं. थुपस्तान त्सेवांग, पालगा रिनपोछे की गोम्पा की नींव रखने की घोषणा से असहमत थे.
LBA President Shri Thupstan tsewang response to the allegations made by His Eminence Palga Rimpoche. #LBA #palgarimpoche #thupstantsewang #Kargilgonpa #allegations #UTLadakh .
Posted by JK24x7News Ladakh on Friday, 3 June 2022
KDA सदस्य सज्जाद कारगिल ने एक प्रेस नोट शेयर की जिसमें गोम्पा के निर्माण पर LBA और KDA के बीच हुई बैठक की पुष्टि की गई है. डॉक्यूमेंट में चार साईन किए गए हैं. इनमें थुपस्तान त्सेवांग का साईन भी शामिल है.
ऑल्ट न्यूज़ ने गुलाम मोहम्मद, ब्यूरो हेड गुलिस्तान न्यूज़ लद्दाख से बात की. उन्होंने कहा, “ये मुद्दा 1960 के दशक से अनसुलझा है. अगर सच में कोशिश की जाती तो बहुत पहले ही इसे सुलझाया जा सकता था. लेकिन अच्छी ख़बर ये है कि इस ज़मीन के असली मालिक, LBA लेह और कारगिल लीडरशीप के बीच बातचीत शुरू हो गई है. और सकारात्मक परिणाम के लिए दोनों समुदायों को धैर्य के साथ इंतज़ार करना चाहिए. इस देरी ने सालों से दोनों धार्मिक समूहों के निर्माण और नवीनीकरण को प्रभावित किया है. यदि इस तरह के मुद्दों को समय पर हल किया जाता है, तो प्रशासन और जनता राज्य कल्याण के दूसरे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती है.”
कुल मिलाकर, ज़ी न्यूज़ ने एक भ्रामक प्रसारण में दावा किया कि कारगिल के पास बौद्धों और मुसलमानों के बीच “झड़प” हुई. प्रसारण में मुसलमानों को “कट्टरपंथी” और बौद्धों को “शांतिप्रिय” कहा गया. ऐतिहासिक संदर्भ वाले एक ज़रूरी मुद्दे को भड़काऊ नेरेशन के इस्तेमाल से एक अपमानजनक रिपोर्ट दी गई. पुलिस और कई बौद्ध संघों के अध्यक्ष ने इस दावे का खंडन किया कि वहां कोई “झड़प” हुई थी. असल में, LBA के अध्यक्ष श्री थुपस्तान त्सेवांग पालगा रिनपोछे की पदयात्रा के पक्ष में नहीं थे.
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