स्पेशल इन्वेस्टीगैशन टीम (SIT) ने 2002 के गुजरात दंगों में कथित संलिप्तता मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी. और सुप्रीम कोर्ट ने इस परिणाम को बरकरार रखा. इसके एक दिन बाद, गुजरात पुलिस की एंटी-टेररिज़्म यूनिट ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और एक पूर्व IPS अधिकारी को हिरासत में ले लिया. 2002 के सांप्रदायिक दंगों के संबंध में गुजरात के खिलाफ़ “झूठे आरोप” लगाने वालों के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए शीर्ष अदालत के निर्देश के आधार पर ये हिरासत की गई.

कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व IPS अधिकारी RB श्रीकुमार की गिरफ़्तारी से कुछ घंटे पहले, गृह मंत्री अमित शाह ने ANI को एक इंटरव्यू दिया. उन्होंने सीतलवाड़ पर आरोप लगाया कि तीस्ता ने अपने NGO का इस्तेमाल करके भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ़ पुलिस को आधारहीन जानकारी दी थी.

राजनीतिक स्पेक्ट्रम में इस गिरफ़्तारी के एक तरफा जश्न और तमाम हंगामे के बीच, सोशल मीडिया यूज़र्स ये दावा करने लगे कि तीस्ता, चिमनलाल हरीलाल सीतलवाड़ की परपोती हैं. चिमनलाल हरीलाल सीतलवाड़ हंटर कमीशन का हिस्सा थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड पर जनरल डायर को ‘क्लीन चिट’ दी थी. एक तरह से ये बताने की कोशिश की जा रही है कि सीतलवाड़ के परिवार ने “देश को धोखा दिया” है.

इस दावे को ट्वीट करने वालों में सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता भी थीं.

यही दावा RSS के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र वीकली, पत्रकार निशांत आज़ाद, भाजपा समर्थक पोर्टल ऑपइंडिया हिंदी के वरिष्ठ उप-संपादक अनुपम के सिंह और कई अन्य लोगों ने भी किया.

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ये दावा फ़ेसबुक पर भी वायरल है.

फ़ैक्ट-चेक

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद कई लोग आपस में बंट गए थे. जनरल डायर के कामों की काफी आलोचना की गई थी. लेकिन इसके साथ ही, कई लोग जनरल डायर के समर्थन में भी आए थे जिनमें माइकल ओ’डायर और जनरल डायर के प्रयासों की तारीफ़ करने वाले पंजाब के तत्कालीन गवर्नर भी शामिल थे. 1991 में पब्लिश डेरेक सेयर की किताब ‘ब्रिटिश रिएक्शन टू द अमृतसर मैसेकर 1919 – 1920‘ में ऐसा बताया गया है. भारत के तत्कालीन राज्य सचिव एडविन मोंटेगु पर बढ़ते दबाव के कारण हंटर कमीशन का निर्माण हुआ था.

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एडविन मोंटेगु ने बॉम्बे, दिल्ली और पंजाब में परेशान करने वाली घटनाएं और “उनसे निपटने के उपाय” के लिए एक जांच समिति की स्थापना की थी. 14 अक्टूबर 1919 को भारत सरकार ने डिसऑर्डर्स इन्क्वायरी कमिटी के गठन की घोषणा की थी जो बाद में इसके अध्यक्ष लॉर्ड विलियम हंटर के नाम पर हंटर कमीशन के रूप में जाना जाने लगा.

हंटर आयोग के सदस्यों का नाम नीचे दिया गया है:

ये सच है कि तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा सर चिमनलाला हरिलाल सीतलवाड़ हंटर कमीशन का हिस्सा थे. उनका नाम ऊपर दी गयी लिस्ट में छठे नंबर पर है. ‘ब्रिटिश रिएक्शन टू द अमृतसर मैसेकर 1919-1920‘ किताब में ये भी ज़िक्र किया गया है कि हंटर कमीशन की रिपोर्ट नस्लीय आधार पर दो भागों में बांट दी गई थी. समिति के 5 अंग्रेज़ सदस्यों द्वारा एक “बहुमत रिपोर्ट” पेश की गई थी और 3 भारतीय सदस्यों ने एक “माइनॉरिटी रिपोर्ट” पेश की थी. सर चिमनलाला हरिलाल सीतलवाड़ समिति के भारतीय सदस्यों में से एक थे.

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ऑल्ट न्यूज़ ने एक प्रोफ़ेसर से संपर्क किया. नाम न छापने की शर्त पर प्रोफ़ेसर ने हमें वही बताया जैसा कि किताब में ज़िक्र किया गया है. उन्होंने कहा, “हंटर कमीशन में 5 अंग्रेज़ सदस्य और 3 भारतीय सदस्य थे. सदस्यों द्वारा दो रिपोर्ट पेश की गईं थी – मेजॉरिटी रिपोर्ट और माइनॉरिटी रिपोर्ट. बहुमत रिपोर्ट जनरल डायर पर उदार थी. जबकि माइनॉरिटी रिपोर्ट में जनरल डायर और पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ’डायर को बरी करने के खिलाफ़ असहमतिपूर्ण टिप्पणी दी गई थी.”

दोनों रिपोर्ट यहां और यहां पढ़ी जा सकती हैं. नीचे हमने रिपोर्ट लिखने वालों के नाम हाईलाइट किये हैं.

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हम अपने रिडर्स को माइनॉरिटी रिपोर्ट का चैप्टर IV पढ़ने की सलाह देते हैं जिसका टाइटल है – “द फ़ायरिंग एट द जलियांवाला बाग”. इस चैप्टर में माइनॉरिटी पक्ष ने फ़ायरिंग की निंदा की है और फ्रांस और बेल्जियम में जर्मन अत्याचारों की तुलना इस घटना से करते हुए इसे “भयानक” कहा है. साथ ही इसे “अमानवीय और गैर-ब्रिटिश” बताया है. कमिटी ने जनरल डायर से ये भी पूछा कि अगर जलियांवाला बाग का रास्ता आर्मर्ड कारों को भी अंदर ले जाने लायक होता तो क्या वो मशीनगनों से गोलियां चलाते? जिस पर डायर ने जवाब दिया, “मुझे लगता है, शायद, हां.” असल में, जनरल डायर घटनास्थल पर मौजूद लोगों को लगातार “टारगेट” के रूप में संदर्भित करता था.

नीचे हमने इस रिपोर्ट के कुछ हिस्से जोड़े हैं.

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माइनॉरिटी रिपोर्ट में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर की भी आलोचना की गई है. साथ ही ये बताया गया कि उनका “पॉइंट ऑफ़ व्यू जनरल डायर की तरह ही था और अब भी है.”

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इसके अलावा, यहां तक ​​कि V.N.दत्ता, ने अपनी किताब ‘जालियांवाला बाग: ए ग्राउंडब्रेकिंग हिस्ट्री ऑफ़ द 1919 मैसेक्र’ में साफ तौर पर ये ज़िक्र किया कि माइनॉरिटी रिपोर्ट में अपने समकक्ष की तुलना में अधिक मजबूती से जनरल डायर की कार्रवाई की आलोचना की गई थी. गौरतलब है कि V.N.दत्ता ने जलियांवाला बाग में बड़े पैमाने पर काम किया है जिसमें प्राइमरी सोर्स और नरसंहार में बचे हुए पीड़ित की गवाही का रिकार्ड लिया है.

‘द पेशेंट असैसिन: ए ट्रू टेल ऑफ़ मैसेक्र, रिवेंज एंड द राज’, किताब में लेखक अनीता आनंद बताती हैं कि हंटर कमीशन इस बात से सहमत था कि जनरल डायर ने अपने अधिकारों की सीमा पार की थी. लेकिन पैनल में शामिल भारतीयों ने अंतिम रिपोर्ट में अपना नाम लिखने से इनकार कर दिया और इसकी निंदा की. भारतीय पैनल ने एक अलग माइनॉरिटी रिपोर्ट जारी की थी. किताब के इस हिस्से को कॉलमिस्ट नीलांजना रॉय ने ट्विटर पर भी शेयर किया है.

किताब में ये भी बताया गया है कि हंटर कमीशन की रिपोर्ट के बाद जनरल डायर के साथ क्या हुआ. इस मुद्दे पर ब्रिटिश समाज में बंटवारा जारी रहा. जनरल डायर को सेना से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और CBE (ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे उत्कृष्ट आदेश के कमांडर) के लिए उनकी सिफारिश भी वापस ले ली गई.

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कुल मिलाकर, जनरल डायर को ऐसी सज़ा तो नहीं मिली होगी जो मरने वालों को न्याय दिला सके. लेकिन ये कहना बिल्कुल ग़लत है कि हंटर कमीशन का भारतीय पैनल जनरल डायर को ‘क्लीन चिट’ देने के लिए सहमत था. भारतीय पैनल द्वारा जनरल डायर से पूछे गए सवालों से लेकर नोट किए गए ऐतिहासिक एकाउंट्स तक, सभी यही बताते हैं कि भारतीय पैनल जनरल डायर के साथ-साथ पंजाब के लेफ़्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर पर भी सख्त था.

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