11 मार्च को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक पुलिस प्रशिक्षण स्कूल में कोतवाल धन सिंह गुर्जर की प्रतिमा का अनावरण किया. कार्यक्रम में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, जिन लोगों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उस महायज्ञ में इतनी बड़ी आहुति दी उनको हम नमन क्यों नहीं कर पाए? उनको याद क्यों नहीं कर पाए? हमारी इतिहास में ये बातें सही तरीके से दिखाई नहीं गई.
बाद में उपराष्ट्रपति के ऑफ़िशियल हैंडल से भाषण का एक हिस्सा ट्वीट किया गया. यहां उपराष्ट्रपति साफ़ तौर पर इतिहास के तीन भूले हुए बहादुरों के बारे में बात कर रहे हैं – 16 साल की शिवदेवी तोमर जिन्होंने मेरठ के पास 17 अंग्रेजों को मार डाला था. महावीरी देवी जो 22 साथियों के साथ अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गई थीं और रामप्यारी गुर्जर जिन्होंने मेरठ के पास 17 अंग्रेजों को मार डाला था. उन्होंने बताया कि रामप्यारी गुर्जर ने 40 हज़ार की फ़ौज बनाकर तैमूर से लड़ाई की थी. धनखड़ बताते हैं कि इनके नाम हमारे इतिहास में नहीं मिलते. (आर्काइव)
16 वर्ष की शिवदेवी तोमर ने मेरठ के पास 17 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया
वंचित समुदाय से आने वाली वीरांगना महावीरी देवी अपनी 22 साथियों के साथ अंग्रेजों लड़ती हुई शहीद हुईं
रामप्यारी गुर्जर ने 40 हजार की सेना बना कर तैमूर से लोहा लिया
पर हमारे इतिहास में इनका नाम नहीं मिलता pic.twitter.com/I7tV9rr62w
— Vice President of India (@VPIndia) March 11, 2023
ये पहली बार नहीं है जब सार्वजनिक पद पर मौजूद किसी व्यक्ति ने रामप्यारी गुर्जर के बारे में ये बाते की हो. हमने देखा कि 28 जनवरी, 2023 को राजस्थान के भीलवाड़ा में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुर्जर समुदाय की वीरता और देशभक्ति के बारे में बात करते हुए इनका ज़िक्र किया था. पीएमइंडिया वेबसाइट के मुताबिक, गुर्जर महिलाओं की बहादुरी और योगदान का बखान करते हुए और रामप्यारी गुर्जर को श्रद्धांजलि देते हुए मोदी ने कहा, “…ये देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे अनगिनत सेनानियों को हमारे इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया जिसके वो हकदार थे, जो उन्हें मिलना चाहिए था. लेकिन आज का भारत, नया भारत, बीते दशक में हुई उन भूलों को भी सुधार रहा है.”
पीएम का भाषण यहां सुना जा सकता है जिसमें रामप्यारी गुर्जर का ज़िक्र 21 मिनट 58 सेकेंड के बाद होता है.
पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भी 11 अप्रैल, 2020 को अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा की एक सभा को संबोधित करते हुए रामप्यारी गुर्जर के बारे में बात की थी. क्लिप में 8 मिनट 10 सेकेंड के बाद, उन्होंने कहा कि इसी क्षेत्र की महिला रामप्यारी गुर्जर ने 40 हज़ार महिलाओं के साथ चौदहवीं सदी के आततायी आक्रमणकारी तैमूर लंग को हराया. उन्होंने कहा कि ऐसे योद्धाओं के ज़िक्र के बिना भारतीय इतिहास अधूरा है.
Vice President Venkaiya Naidu On Rampyari Gurjari, Raja Vijay Singh Kunjabahadurpur, Kalyan Singh Kalva Gurjar
Posted by Akhil Bhartiya Veer Gurjar Mahasabha on Saturday, 11 April 2020
रामप्यारी गुर्जर का ज़िक्र करने वाले कई ब्लॉग, ओपिनियन पीस और यूट्यूब वीडियोज़ मौजूद हैं. इनमें से कई ने अपने सोर्स के रूप में मनोशी सिन्हा रावल की एक किताब का हवाला दिया है जिसे सैफ्रोन स्वॉर्ड्स (गरुड़ प्रकाशन, 2019) कहा जाता है. लेखिका की ट्विटर प्रोफाइल पर, उन्हें अपनी पुस्तक के समर्थन के लिए तारिक फ़तह को धन्यवाद देते हुए देखा जा सकता है.
पेज 26 और 27 में वो तैमूर के योद्धाओं के खिलाफ़ रामप्यारी गुर्जर की वीरता के बारे में लिखती हैं. इसे नीचे पढ़ा जा सकता है.
दैनिक जागरण ने 26 नवंबर, 2020 को सिन्हा की किताब पर एक आर्टिकल पब्लिश किया. इसका टाइटल था, “जिनकी नहीं सुनी कहानी थी, वो रानी रामप्यारी मर्दानी थीं.” इसमें कहा गया है, “20 साल की रामप्यारी गुर्जर ने मेरठ से लेकर हरिद्वार तक तैमूर को खदेड़ा. हरिद्वार में भागती तैमूर की सेना पर पंचायती योद्धाओं ने धावा बोल दिया था. तैमूर की सेना को मैदान छोड़कर भागना पड़ा.”
हमें वेबसाइट www.myindiamyglory.com पर भी रामप्यारी गुर्जर द्वारा तैमूर पर जीत हासिल करने का ज़िक्र मिला. इस वेबसाइट को भी मनोशी सिन्हा चलाती हैं.
कौन था तैमूर?
अमीर तीमूर (जिसे तैमूर लंग, तामेरलेन, तम्बुरलाइन, अक्सक-तैमूर, आदि के नाम से भी जाना जाता है) 1369 में समरकंद के सिंहासन पर बैठा था. उसने फ़ारस, अफ़ग़ानिस्तान और मेसोपोटामिया पर जीत के बाद सितंबर 1398 में 62 साल की उम्र में भारत पर आक्रमण किया. फिरोज शाह तुगलक की मौत के बाद दिल्ली सल्तनत मुश्किल से बची थी. तैमूर ने 18 दिसंबर को दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया. नागरिकों का नरसंहार और शहर की संपत्ति की लूट कई दिनों तक चली. उसने 1 जनवरी, 1399 को समरकंद की वापसी यात्रा पर दिल्ली छोड़ दिया. वो फ़िरोज़ाबाद और मेरठ से गुज़रा जिस पर उसने 19 जनवरी को धावा बोल दिया. फिर वो कांगड़ा और जम्मू के रास्ते आगे बढ़ा, उसने हर पड़ाव पर नागरिकों को मार डाला. मार्च, 1399 के मध्य में उसने इस देश को छोड़ दिया. दिल्ली और भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांत को लुटेरों ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया था. इन्हें किसी भी तरह की स्थिरता को फिर से पाने में सालों लग गए, चाहे वो सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक हो. 1405 में कड़ाके की ठंड की वजह से बीमारी के बाद चीन के पेकिंग जाने वाले रास्ते में ओटार, कजाकिस्तान में तैमूर की मौत हो गई. उसकी मौत की परिस्थितियों का वर्णन डिटेल में उसकी जीवनी के लेखक जस्टिन मरोज़ी ने टेमरलेन: स्वॉर्ड ऑफ़ इस्लाम, कॉन्करर ऑफ़ द वर्ल्ड (कैम्ब्रिज, 2006) में किया है.
इतिहासकारों के मुताबिक, रामप्यारी गुर्जर पर किए जा रहे दावे बेतुके हैं
इस दावे की सच्चाई जानने के लिए कि क्या सच में रामप्यारी गुर्जर/गुर्जरी ने 40 हज़ार महिलाओं की सेना के साथ तैमूर को हराया था, ऑल्ट न्यूज़ ने कई इतिहासकारों से बात की.
इतिहासकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर हरबंस मुखिया ने कहा कि 40 हज़ार की सेना के साथ तैमूर जैसे आक्रमणकारी के खिलाफ लड़ना और उसे हराना – ये दोनों बेतुके विचार थे. “यहां तक कि राज्य भी शायद इतनी बड़ी ताकत नहीं जुटा सका. 1388 में फिरोज शाह तुगलक की मौत के बाद ये विघटित हो गया था. और जो कुछ भी हम जानते हैं, उसके मुताबिक तैमूर ने 1398 में तुगलक शासन से जो कुछ भी बचा था उसे पूरी तरह से तबाह कर दिया. तैमूर को किसी भी तरह की लड़ाई या प्रतिरोध देने वाले किसी भी शासक का कोई रिकॉर्ड नहीं है.”
हरबंस मुखिया ने आगे बताया, “इतिहास को देखने के दो तरीके हैं. एक, इतिहासकारों द्वारा सबूत और प्रामाणिकता पर आधारित है. दूसरा, वो इतिहास है जो रिकॉर्ड किए गए इतिहास से अलग है… लोकप्रिय धारणा में देखा गया इतिहास…नायक, नायिकाएं, घटनाएं… ये मानदंडों से बंधे नहीं हैं और किसी भी तरह के सबूत के अधीन नहीं हैं. रामप्यारी गुर्जर जैसे पात्र उसी विमर्श का हिस्सा हैं. बहादुरी के बारे में ऐसे मिथक हर संस्कृति का हिस्सा हैं. लेकिन उनके लिए ऐतिहासिकता है.”
हमने राईट विंग इतिहासकार माने जाने वाले और राष्ट्रवादी इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अधीन D. litt करने वाले, आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव की किताब द सल्तनत ऑफ़ डेल्ही (1206-1526 ई.) देखी. संयोग से आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव ने ही अकबर की बायोग्राफ़ी में पहली बार राणा प्रताप को एक महान वीर व्यक्ति के रूप में वर्णित किया है. उसके बाद से कई राईटविंग राजनेताओं और समर्थकों ने शोक व्यक्त किया कि राणा प्रताप को भारतीय इतिहास में अकबर के समान दर्जा क्यों नहीं दिया गया.
श्रीवास्तव की किताब में तैमूर का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति का ज़िक्र नहीं है. इसमें कहा गया है कि उसने दो हिंदू सेनाओं के साथ युद्ध किया था और उन्हें हरा दिया था. आक्रमणकारी को ज़रा सी भी परेशानी देने वाली किसी सेना का ज़िक्र तक नहीं है, उसे घायल करना और उसे भगाने या उसे भागने के लिए मजबूर करना तो दूर की बात है. किताब के सबंधित हिस्से को आगे स्लाइड में पढ़ा जा सकता है.
ऑल्ट न्यूज़ ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर और इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी से बात की. उन्होंने इस दावे को ‘बिल्कुल बेतुका’ बताया. वो हमें भारत का हिंदू इतिहास लिखने की भारतीय विद्या भवन परियोजना में ले गए. हेरंब चतुर्वेदी ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “1935 में पूना (पुणे) में आयोजित भारतीय इतिहास कांग्रेस में ये निर्णय लिया गया कि भारत का राष्ट्रवादी इतिहास व्यवस्थित तरीके से लिखा जाना चाहिए. के एम मुंशी और आर सी मजूमदार के नेतृत्व में भारतीय विद्या भवन द्वारा इस परियोजना को शुरू किया गया था. इसका रिज़ल्ट 11-वॉल्यूम वर्क ‘हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ़ द इंडियन पीपल‘ है. वॉल्यूम 6 में दिल्ली सल्तनत और तैमूर के आक्रमण की चर्चा है. अगर जीतने वाला कोई तथाकथित हिंदू होता, तो इस किताब में उसका ज़िक्र मिलता. लेकिन इसमें किसी रामप्यारी गुर्जर या किसी स्थानीय सरदार के लड़ाई करने का कोई ज़िक्र नहीं है.”
सबंधित अध्याय यहां पढ़ा जा सकता है:
इसके बाद ऑल्ट न्यूज़ ने दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में मध्यकालीन इतिहास के रिटायर्ड प्रिंसिपल और एसोसिएट प्रोफ़ेसर सूरजभान भारद्वाज से संपर्क किया. भारद्वाज ने राजस्थान के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास पर कई वॉल्यूम लिखे और संपादित किए हैं. उन्होंने कहा, “तैमूर के खिलाफ़ रामप्यारी गुर्जर की लड़ाई की ये कहानी, हर समुदाय द्वारा कहानी बनाने की घटना के रूप में हाल में बनाई गई कोई कहानी हो सकती है. मध्यकालीन इतिहास और क्षेत्र के लोककथाओं में मेरे सालों के रिसर्च में मुझे इस तरह के दावों का कोई सबूत नहीं मिला है.”
मनोशी सिन्हा की किताब के संदिग्ध सोर्स
लेखिका मनोशी सिन्हा की रचना ‘सैफ्रॉन स्वोर्ड्स’ रामप्यारी गुर्जर के आसपास के ग़लत इतिहास का सोर्स मालूम पड़ती है. उन्होंने रामप्यारी गुर्जर पर अपने अध्याय के लिए सोर्स के रूप में चार किताबों का हवाला दिया है. इनमें से कोई भी प्राइमरी और ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध नहीं है.
दूसरी एंट्री, फ़ेक है जो विदेशी लेखकों के नामों की वजह से विशिष्ट है. प्रकाशक के नाम की जगह पर ‘बुक ऑन डिमांड’ लिखा है. जब हमने ऑनलाइन सर्च किया तो देखा कि ‘किताब’ ‘बुकविका पब्लिशिंग’ ने प्रकाशित की है. किताब के कवर पेज पर एक मुहर है जिस पर लिखा है ‘हाई क्वालिटी कंटेंट बाय विकिपीडिया आर्टिकल्स.’ गौर करें कि फिलहाल विकिपीडिया पर रामप्यारी गुर्जर के बारे में कोई पेज नहीं है.
हमने बुकविका के दूसरे टाइटल्स सर्च किए तो पाया कि उनकी सारी किताबें एक ही लेखक – जेसी रसेल और रोनाल्ड कोहन द्वारा लिखी गई हैं. और सभी किताब पर एक ही मुहर है, ‘हाई क्वालिटी कंटेंट बाय विकिपीडिया आर्टिकल्स.’
इससे ये पता चलता है कि ये ‘किताबें’ विकिपीडिया के आर्टिकल्स का संकलन हैं और लेखकों का अस्तित्व मौजूद नहीं है. कोई भी लेखक अपने सोर्स के रूप में इस तरह की किताब का हवाला देता है तो तुरंत उसकी गंभीरता पर सवाल खड़े होते हैं.
आगे तलाशने पर हमने देखा कि रामप्यारी गुर्जर का विकिपीडिया पेज 2015 में हटा दिया गया था. इस विकिपीडिया नोटिसबोर्ड आर्काइव्स में आर्टिकल को हटाने की वजह के बारे में चर्चा है. उनमें से एक ने लिखा, “राम प्यारी गुर्जर पर आर्टिकल में दावा किया गया है कि वो एक महिला सेनापति थी जिसने तैमूर के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. हालांकि, आर्टिकल में एकमात्र सोर्स नौ निहाल सिंह द्वारा लिखित द रॉयल गुर्जर है. ये किताब एक विश्वसनीय विद्वता कम और जातिय महिमामंडन की कोशिश ज़्यादा लगती है. मुझे कोई दूसरा सोर्स नहीं मिल रहा है — गूगल विकिपीडिया पर आधारित विकिपीडिया मिरर्स या आर्टिकल ही दिखाता है.”
उनमें से एक और ने लिखा है, “अगर इनमें से कोई भी सच होता (या कम से कम ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित), तो स्कॉलर कम से कम इसका ज़िक्र करना नहीं भूलते.”
एक और एडमिनिस्ट्रेटर ने कहा, “मुझे लगता है कि ये सभी आर्टिकल उस 2009 से लेकर 2010 की शुरुआत तक के हैं जब एक गुर्जर चर्चा बोर्ड लोगों को यहां आने और एडिट करने के लिए प्रेरित कर रहा था. यहां के एडिटरों में से एक ने ये पोस्ट भी किया था कि रडार के नीचे कैसे रहना है और इसे कैसे करना है (इसमें कौन से एडमिन से दूर रहना है!).”
आखिरकार, उनमें से एक ने 29 जुलाई, 2015 को कहा कि आर्टिकल हटा दिया गया है.
नौ निहाल सिंह की किताब जिसे द रॉयल गुर्जर कहा जाता है, मनोशी सिन्हा द्वारा दिया गया पहला सोर्स है. जैसा कि देखा जा सकता है, इसकी विश्वसनीयता पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं.
दलीप सिंह अहलावत द्वारा लिखित तीसरा सोर्स, ‘जाट वीरों का इतिहास’ खुद लेखक द्वारा पब्लिश किया गया था. चैप्टर IV में उन्होंने एक बार रामप्यारी गुर्जर के नाम का ज़िक्र सेना में कमांडर के रूप में चुनी गई महिलाओं में से एक के रूप में किया जो तैमूर के खिलाफ लड़ी थी. इसके अलावा कोई डिटेल नहीं है. और ऊपर से जाटों के महिमामंडन के साफ़ मकसद से लिखी गई अहलावत की किताब किसी भी तरह की कल्पना के आधार पर प्राइमरी इतिहास की किताब नहीं है.
मनोशी सिन्हा का चौथा सोर्स हिंदी दैनिक न्यूज़ पेपर पत्रिका में जनवरी 2017 का एक आर्टिकल है. इसमें लेखक का नाम या लेख की सही तारीख का ज़िक्र नहीं है.
ऐसे ‘आविष्कारों’ के पीछे हिंदुत्व की राजनीति?
उपराष्ट्रपति के ऑफ़िशियल हैंडल से किए गए ट्वीट के कुछ दिनों बाद, पत्रकार और लेखक मणिमुग्धा शर्मा ने बताया कि ऐसी कोई जीत ‘कभी नहीं हुई.’
India’s Vice President peddling WhatsApp balderdash created by the Hindutva School of Historical Forgery. Sir, the reason why history books don’t tell you about ‘Gurjari Rampyari Chauhan’ defeating Amir Temur Gurkan with her 40,000 women warriors is because it NEVER happened. https://t.co/eCCj9nXIvC
— Manimugdha Sharma (@quizzicalguy) March 13, 2023
मणिमुग्धा शर्मा ने ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए मनोशी सिन्हा के काम के सोर्स को ‘हास्यास्पद’ बताया. उन्होंने कहा, “रामप्यारी गुर्जर की एक गैर-हिंदू विजेता को हराने की कहानी अलग-अलग राजनीतिक मकसद के साथ बनाए गए काल्पनिक इतिहास का एक उदाहरण है. 2019 की किताब, सैफरन स्वॉर्ड्स में संकलित किए जाने के बाद ये लोकप्रिय हो गए. इसके बाद सोशल मीडिया फ़ॉरवर्ड और वीडियो शॉर्ट्स का निर्माण हुआ. इस ग्रंथ सूची में संदिग्ध प्रविष्टियां हैं, और मेन टेक्स्ट पूरी तरह काल्पनिक है. इस सिद्धांत के लिए कोई सबूत नहीं है कि एक मुस्लिम विजेता को एक महिला योद्धा ने पराजित किया था और वो शर्म से पीछे हट गया था, और किसी तरह ज़िन्दा बच पाया था जैसा कि किताब में दावा किया गया है.”
हमें दो ब्लॉग (यहां और यहां) मिले जो रामप्यारी गुर्जर के तथाकथित इतिहास को ‘धोखाधड़ी’ और ‘कहानी’ बताते हैं और ऊपर बताई गई किताबों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं. हमें एक ट्विटर थ्रेड भी मिला जिसमें मनोशी सिन्हा की किताब के सोर्स पर सवाल उठाया गया है.
18 मार्च को स्क्रॉल ने तैमूर के खिलाफ़ रामप्यारी गुर्जर की लड़ाई को इतिहास मानने में आ रही दिक्कतें बताते हुए एक आर्टिकल पब्लिश किया. स्टोरी में इस तरह के आख्यानों के जन्म देने के लिए भाजपा को “जाति की राजनीति के लिए एक नए हिंदुत्व इतिहास का आविष्कार” बताया गया है.
कुल मिलाकर, इस दावे का कोई विश्वसनीय सोर्स नहीं है कि रामप्यारी गुर्जर नाम की एक महिला असल में अस्तित्व में थी और उसने 40 हज़ार की सेना के साथ तैमूर के खिलाफ़ लड़ाई लड़कर उसे हरा दिया था. यहां तक कि राईट विंग इतिहासकारों ने भी ये दावा नहीं किया कि उत्तर भारत को लूटने के दौरान तैमूर को काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था. मानुषी सिन्हा रावल की किताब, जो रामप्यारी गुर्जर के इर्द-गिर्द निर्मित आख्यान को बढ़ावा देती है, संदिग्ध, अविश्वसनीय और यहां तक कि ‘अस्तित्वहीन’ किताबों पर आधारित है.
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