अमृतसर में एक दुखद हादसे में, रेलवे ट्रैक पर खड़े लोगों को कुचलते हुए एक ट्रेन निकल गई। कम से कम 61 लोगों की इसमें दर्दनाक मौत हो गई। तुरंत ही एशिया न्यूज़ इंटरनेशनल (ANI) समेत कई मीडिया संगठनों ने, अनेक प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा शूट किए गए इस घटना के वीडियो को हासिल किया। इसके बाद ANI ने इस घटना के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताने वाले एक प्रत्यक्षदर्शी का वीडियो भी चलाया। इस ट्वीट को 19 अक्टूबर को शाम 8:39 बजे पोस्ट किया गया।

रात्रि 11:49 बजे, यह सामने आया कि ANI द्वारा उद्धृत ‘प्रत्यक्षदर्शी’ पंजाब भाजपा के प्रवक्ता और भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के पूर्व अध्यक्ष थे। रात्रि 12:36 बजे, ANI ने एक ‘संशोधन’ ट्वीट करके स्पष्ट किया कि वह ‘प्रत्यक्षदर्शी’ भाजपा नेता राजेश हनी थे।

यह ध्यान देने वाली बात है कि ANI के स्पष्टीकरण के 14 घंटों के बाद, केवल 463 यूजर्स ने इसे रीट्वीट और 769 लोगों ने लाइक किया। इसके विपरीत, इसके पहले के ट्वीट को 5000 से अधिक लाइक और रीट्वीट किया गया था। नुकसान तो पहले ही हो गया था।

इसके अलावा, ANI के ‘संशोधन’ में एक और आवश्यक तथ्य रह गया।

‘प्रत्यक्षदर्शी’ ने खुद 20 मिनट के बाद मौके पर पहुंचने की बात कही

ANI के पहले के ट्वीट पर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया के बाद इसकी समाचार संपादक स्मिता प्रकाश संस्थान के रिपोर्ट के पक्ष में खड़ी हुईं और कहा कि राजेश हनी के भाजपा नेता होने के बावजूद, वे मौजूद थे इसीलिए उन्हें ‘प्रत्यक्षदर्शी’ बनाया गया।

संयोगवश, हनी ने खुद ट्वीट किया कि वह इस घटना के 20 मिनट बाद मौके पर पहुंचे। इसलिए, वे दुर्घटना के साक्षी नहीं हो सके।

सिर्फ यही एक उदाहरण नहीं है, जब ANI की रिपोर्ट में जरूरी तथ्यों को छोड़ दिया गया हो।

1. अमृतसर ट्रेन दुर्घटना के एक और ‘प्रत्यक्षदर्शी’ राजनेता

ANI ने एक और ‘प्रत्यक्षदर्शी’ पंजाब के स्वतंत्र राजनेता मनदीप सिंह मन्ना का नाम बताया, जिसे अन्य मीडिया संस्थानों द्वारा भी लिया गया था।

त्रासदी के कुछ घंटों के भीतर ही, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों द्वारा एक-दूसरे पर दोष डालने के साथ इस दुर्घटना का राजनीतिकरण किया गया। ऐसी स्थिति में, राजनीतिक दलों के सदस्यों द्वारा ‘प्रत्यक्षदर्शी’ के रूप में बयान ट्वीट करना दुर्भाग्यपूर्ण था।

पिछले समय में कई बार ANI ने ऐसी भूल की है।

2. भाजपा विधायक का बयान ‘बंगलौर निवासी’ बताकर ट्वीट किया

मई 2015 में, ANI ने प्रधानमंत्री मोदी के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की प्रशंसा करते हुए एक कथित बैंगलोर निवासी का बयान ट्वीट किया था। हालांकि, जब यह बताया गया कि उद्धृत व्यक्ति सिर्फ ‘निवासी’ नहीं, बल्कि कर्नाटक भाजपा के विधायक हैं, तब ANI ने अपने पहले के ट्वीट को हटाया और उस राजनेता के नाम से नया ट्वीट किया।

3. भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के सदस्य को ‘मैंगलोर’ निवासी के रूप में उद्धृत किया

इस साल अप्रैल में, ANI ने एक ‘मैंगलोर निवासी’ को यह कहते हुए ट्वीट किया था कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैय्या ने शहर में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच अलगाव पैदा किया है। जैसा कि सामने आया, यह ‘मैंगलोर निवासी’ भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ, मैंगलोर के सदस्य फजल थे। ANI ने बाद में एक संशोधन ट्वीट किया और पहले के ट्वीट को हटा दिया जिसमें इस तथ्य की अनदेखी थी।

4. अपने ही संवाददाता से एक आम ग्राहक के रूप में चाय स्टाल की प्रशंसा करवाई

नोटबंदी के बाद नकदी संकट के मद्देनजर दुकान में ऑनलाइन भुगतान की सुविधा शुरू करने के लिए ANI ने एक ‘चाय स्टाल ग्राहक’ को दुकान की सराहना करते हुए उद्धृत किया था। यह ग्राहक ANI का संवाददाता निकला। बाद में समाचार एजेंसी ने बिना किसी स्पष्टीकरण के उस ट्वीट को हटा लिया।

5. बर्बरता करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं की “बस यात्रियों” के रूप में गलत खबर दी

23 मार्च, 2017 को, ANI ने बर्बरता का एक वीडियो इस दावे के साथ ट्वीट किया कि “यूपी के फिरोजाबाद में बस यात्रियों ने टोल बूथ कर्मचारियों को पीटा और नुकसान पहुंचाया।”

उसी दिन एबीपी न्यूज़ ने बताया था कि बर्बरता में शामिल लोग भाजपा कार्यकर्ता थे। रिपोर्ट के अनुसार, “आरोप है कि मारपीट करने वाले बीजेपी के कार्यकर्ता थे और बीजेपी नेता के शव को लेकर टोल से होते हुए पास के गांव उसायनी जा रहे थे। टोल पर किसी तरह की कहासुनी हुई, जिसके बाद शव को गांव पहुंचा कर कुछ लोग लाठी डंडों के साथ वापस आए और टोल पर मारपीट की।”

6. “वाराणसी की मुस्लिम महिलाओं” को बार-बार दिखलाना

पिछले समय में कई मौकों पर, ANI ने हिंदू अनुष्ठानों को मनाते हुए या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए “वाराणसी की मुस्लिम महिलाओं” के बारे में ट्वीट किया है।

स्क्रॉल करके इन ट्वीट्स को देखने वाला एक आम व्यक्ति भी या तो अनुमान लगाएगा कि वाराणसी के मुस्लिम समुदाय की कई महिलाएं हिंदू त्योहार मना रही थी और/या प्रधानमंत्री मोदी को बढ़ावा दे रही थीं, या फिर कोई मुस्लिम संगठन ऐसा कर रहा था। ANI ने कभी यह उल्लेख नहीं किया कि ये महिलाएं एक निष्ठावान भाजपा समर्थक द्वारा स्थापित संगठन की सदस्य हैं।

कोलाज के पहले ट्वीट में, ANI ने मुस्लिम महिला फाउंडेशन (एमएमएफ) की ‘सदस्य’ को उद्धृत करते हुए कहा कि वह प्रार्थना करती है कि प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी से लड़ें। यह ट्वीट 2014 का है। तस्वीर वाली महिला महज सदस्य नहीं, बल्कि एमएमएफ की संस्थापक नाज़नीन अंसारी हैं। वह एएनआई के कई अन्य ट्वीट्स में बार-बार दिखलाई पड़ती हैं।

अंसारी एक मुखर भाजपा समर्थक हैं। 2014 में, उन्होंने भाजपा के एक अन्य समर्थक के साथ भारतीय आवाम पार्टी (बीएपी) की घोषणा की और नरेंद्र मोदी को बिना शर्त समर्थन घोषित किया। बीएपी ने आरएसएस के साथ भी मंच साझा किया है। पिछले साल, अंसारी ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने में अपने और अपने फाउंडेशन के समर्थन के तौर पर अयोध्या की मिट्टी स्वीकार की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, “मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के पदाधिकारी, पूर्णेंद्रु उपाध्याय ने कहा कि “पवित्र” मिट्टी सार्वजनिक दृष्टिकोण के लिए अलग-अलग जगहों पर रखी जाएगी।” मुस्लिम राष्ट्रीय मंच आरएसएस से संबद्ध है।

हालांकि इन “वाराणसी की महिलाओं” के बारे में ANI की रिपोर्ट गलत नहीं है, फिर भी, यह जानकारी अधूरी और भ्रामक है।

7. आरएसएस से संबद्ध मुस्लिम संगठन को, केक काटकर बक़रीद मनाते “लखनऊ में लोग” बताने की गलत खबर

21 अगस्त, 2018 को, एएनआई ने ट्वीट किया कि इस बक़रीद में “लखनऊ में लोग” बकरियों के बलिदान की बजाए केक काट रहे थे। मीडिया संस्थान ने मुस्लिम समुदाय के एक व्यक्ति को भी उद्धृत किया, जिसने कहा था, “बक़रीद पर किसी जानवर के बलिदान का रिवाज सही नहीं है।”

वे महज “लखनऊ के लोग” नहीं, बल्कि आरएसएस से संबद्ध मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सदस्य थे जो केक काटकर बक़रीद मना रहे थे। तस्वीर में दिख रहा व्यक्ति संगठन का सदस्य है। ऑल्ट न्यूज ने पहले भी इस उदाहरण की सूचना दी थी।

8. प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार व्यवसायी की “पूर्व कांग्रेस विधायक” के रूप में रिपोर्ट

2017 में, ANI ने ट्वीट किया कि पूर्व कांग्रेस विधायक गगन धवन को 5,000 करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल होने पर ईडी ने गिरफ्तार किया था। बाद में समाचार एजेंसी ने इस ट्वीट को हटा दिया और स्पष्टीकरण दिया कि धवन एक व्यापारी हैं और कांग्रेस के पूर्व विधायक नहीं हैं।

देश के कोने-कोने से सूचनाओं की बाढ़ और विभिन्न मीडिया संस्थानों में सबसे पहले समाचार देने की होड़ के बीच बेपरवाही में भूल स्वाभाविक है। हालांकि बाद में संशोधन जारी किए जाते हैं, फिर भी, शुरुआती गड़बड़ियां हमेशा चिंताजनक होती हैं, क्योंकि गलत जानकारी को व्यापक प्रसार मिलता है। ज्यादातर मामलों में हमने देखा है कि सही संस्करण उन दर्शकों तक नहीं पहुंचते जो पहले गलत सूचना से प्रभावित हुए हैं। इस तरह की गलत सूचनाएं न केवल नागरिकों को गुमराह करती हैं, बल्कि मौजूदा राजनीतिक पूर्वाग्रहों की आग में घी डालने और कुछ खास पार्टियों के पक्ष में होने का काम करती हैं।

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a researcher and trainer at Bellingcat with a focus on human rights and conflict. She has a Master's in Data Journalism from Columbia University and previously worked at Alt News.