क्या भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1945 में ब्रिटेन के तब के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को एक पत्र लिखा था, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को “युद्ध अपराधी” (वॉर क्रिमिनल) बताया गया था? क्या नेहरू ने बोस के रूसी क्षेत्र” में प्रवेश करने का जिक्र किया था? कथित रूप से लिखे गए एक पत्र की प्रतिलिपि, जिसमे ब्रिटेन के तब के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को संबोधित किया गया है, जो पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर खूब शेयर किया जा रहा है।
भगतसिंह सिंह की मर्सी पिटीशन का प्रस्ताव नेहरू ने ठुकराया भगतसिंह को एक दिन पहले फांसी,
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों को पेंशन का प्रस्ताव रखा नेहरू की नजर में आतंकवादी.?
चन्द्र शेखर आजाद नेहरू से मिलकर अल्फ्रेड पार्क में रुके। अंग्रेज पुलिस पहुंच गई
कारण? pic.twitter.com/DtTyJQIh8U— 💕Sunita Gupta💕 (@Sunitagupta__) October 21, 2018
नेहरू द्वारा कथित रूप से लिखे गए ‘पत्र’ की प्रतिलिपि में रूसियों को बोस अपने देश में प्रवेश करने की इजाजत की आलोचना कर रहे है, और इसे “रूसियों द्वारा धोखाधड़ी और विश्वासघात” बताते हैं। पत्र में आगे एटली को “इस पर ध्यान देने और जो भी उचित लगे वो कार्यवाही करने को” प्रोत्साहित करते हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि इस पत्र के कई अलग अलग संस्करण सोशल मीडिया में शेयर किये जा रहे हैं। ऑल्ट न्यूज ने पाया कि बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिसंबर 2014 में दावा किया था कि ये कथित पत्र नेहरू द्वारा ही लिखवाया गया था ।
पहली नज़र में, उपरोक्त फोटो जिसे सोशल मीडिया पर बार-बार शेयर किया जाता है वह नकली सा लगता है। यह गलतियों से भरा हुआ है। क्लेमेंट एटली को क्लेमेंट ‘एट्टल’ के रूप में लिखा गया है, और पत्र की पहली पंक्ति में ही व्याकरण की गलती है। इस पत्र में दिनांक 27 दिसंबर, 1945 लिखी गयी है। पत्र में आश्चर्यजनक रूप से रूस को “ब्रिटिश-अमेरिकियों के सहयोगी” के रूप में बताया गया है, जबकि इसके विपरीत सच यह था कि 1945 में दुनिया वैचारिक रूप से दो भाग में बटीं हुई थी। यहां ध्यान देने योग्य दो बाते हैं:
1) सुभाष चंद्र बोस को “युद्ध अपराधी” के रूप में उल्लेख किया जाना।
2) पत्र की तारीख 27 दिसंबर 1945 है, जबकि आधिकारिक रिकार्ड्स में कहा गया है कि 18 अगस्त, 1945 को बोस की मृत्यु हो गई थी।
क्या नेहरू ने कभी ऐसा पत्र लिखा था?
यह दावा कितना सच है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री ने बोस को “युद्ध अपराधी” कहा था? या वह बोस के बारे में यह जानते थे कि वो ज़िन्दा है और रूस चले गए है और इस बारे में उन्होंने क्लेमेंट एटली को पत्र में बताया था? ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि इस पत्र की एक प्रति सुभाष चंद्र बोस से संबंधित फाइलों में उपस्थित है जिसे जनवरी, 2016 में एनडीए सरकार द्वारा घोषित किया गया था।
पीएमओ द्वारा घोषित फाइल नंबर 915/11/C/6/96 में अप्रैल 1998 में सुभाष चंद्र बोस के भतीजे प्रदीप बोस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखा एक पत्र भी शामिल किया गया है। पत्र के साथ एक लेख है जिसका शीर्षक है, ‘एक नोट नेताजी के जीवन और मृत्यु के रहस्यों पर’ (अनुवाद) इसी लेख में ये हवाला दिया गया है कि यह पत्र कथित रूप से नेहरू जी द्वारा क्लेमेंट एटली को लिखा गया था। प्रदीप बोस के इस नोट के अलावा, दूसरी जगह जहां इस पत्र का उल्लेख मिलता है वह एक किताब ‘सुभाष बोस एंड इंडिया टुडे: ए न्यू ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ है जिसे प्रदीप बोस ने लिखा है। इसका उल्लेख INA (आईएनए) का हिस्सा रहे लेफ्टिनेंट मनवती आर्य द्वारा लिखित पुस्तक ‘जजमेंट: नो एयरक्रैश, नो डेथ’ में भी किया गया है।
हालांकि, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि ये जवाहरलाल नेहरू के शब्द नहीं हैं। यह पत्र श्यामलाल जैन द्वारा दिए गए साक्ष्य का हिस्सा है, जो नेहरू के आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर) थे। माना जाता है कि जैन को जी डी खोसला आयोग के समक्ष पेश किया गया था जिसे सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय गायब होने के जांच को देखने के लिए 1970 में स्थापित किया गया था। पत्र का कंटेंट वही है जो उन्हें उस समय याद था जिसे दिसंबर,1945 में नेहरू ने लिखवाया था। इसका उल्लेख प्रदीप बोस की पुस्तक में किया गया है।
जैन की गवाही को खोसला आयोग द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था, जिसने निष्कर्ष निकाला था कि अगस्त 1945 के ताइवान के ताइपे में बोस की मृत्यु हो गई थी। उपर्युक्त साक्ष्य में कोई त्रुटियां नहीं हैं, इससे पता चलता है कि जिस पत्र की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है वो फोटोशॉप है ताकि इसे मूल पुराने दस्तावेज़ की तरह दिखाया जा सके।
श्यामलाल जैन की गवाही की वैधता
प्रदीप बोस की पुस्तक के अनुसार जैन ने अपनी गवाही में कहा था कि नेहरू ने 26 या 27 दिसंबर, 1945 को कांग्रेस नेता असफ अली के दिल्ली आवास में ये पत्र लिखवाया था। ऑल्ट न्यूज़ ने इस दावे का पता लगाने के लिए गहरी छानबीन की और पता लगाया कि जिस वक्त यह पत्र लिखा गया उस समय जवाहरलाल नेहरू और असफ अली दोनों किस जगह पर थे।
25-29 दिसंबर,1945 – नेहरू और असफ अली के ठिकाने
ऑल्ट न्यूज़ ने एक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता @raattai द्वारा 2016 में लिखे गए ब्लॉग की छानबीन की, जिसमें 25-29 दिसंबर, 1945 के समय जवाहरलाल नेहरू और असफ अली दोनों के ठिकाने का पता लगाया था, जब पत्र को कथित रूप से लिखा गया था। जिसमें हमने यह पाया:
असफ अली
कांग्रेस नेता असफ अली, दिल्ली में जिनके निवास पर यह पत्र लिखने का दावा किया गया था, वो 25 दिसंबर, 1945 को बॉम्बे में थे। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट ने भी यह पुष्टि की है जिसमें कहा गया था कि असफ़ अली सरदार वल्लभभाई पटेल को 26 दिसंबर, 1945 को बॉम्बे में मिले थे। एक अन्य रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि अली 27 दिसंबर, 1945 को दिल्ली के लिए मुंबई से रवाना हो गए।
जवाहर लाल नेहरू
28 दिसंबर, 1945 को छपी इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू 25 दिसंबर, 1945 को बिहार के पटना में थे।
उसी दिन, नेहरू इलाहाबाद गए थे जहां वह अगले कुछ दिनों के लिए रुके थे। यह इंडियन एक्सप्रेस द्वारा एक समाचार रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है, और 26 दिसंबर को इलाहाबाद से वीके कृष्णा मेनन को लिखे गए एक पत्र द्वारा इसकी पुष्टि की गई थी। यह पत्र नेहरू पोर्टल पर उपलब्ध ‘Selected works of Jawaharlal Nehru Volume XIV’ में उपलब्ध है।
हमें एक अन्य स्रोत भी मिला, 1903-1947 के बीच जवाहरलाल नेहरू द्वारा किये गए पत्राचार, जो नेहरू द्वारा लिखे गए सभी पत्रों का एक
संग्रह है। इस संकलन के पेज 36 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नेहरू ने 26 दिसंबर,1945 और 27 दिसंबर,1945 को बर्मा के आंग सैन यू को पत्र लिखे थे। इन दोनों पत्रों में, उनका स्थान इलाहाबाद के रूप में उल्लेख है।
रिकॉर्ड्स के हिसाब से दिसंबर 1945 के अंत में नेहरू इलाहाबाद में थे, दिल्ली में नहीं थे जैसा श्यामलाल जैन ने अपनी गवाही में दावा किया था। द डिस्कवरी ऑफ इंडिया पुस्तक की प्रस्तावना को नेहरु ने 29 दिसंबर, 1945 को आनंद भवन, इलाहाबाद में लिखा था।
इस बात का तथ्य यह है कि प्रदीप बोस की पुस्तक में जिस पत्र के शब्द को श्यामलाल जैन की गवाही होने का दावा किया जाता है, वह उन्होंने जी डी खोसला आयोग के समक्ष दी थी। अपनी गवाही में, जैन ने 26 दिसंबर,1945 या 27 दिसंबर,1945 को कांग्रेस नेता असफ अली के दिल्ली स्तिथ निवास पर नेहरू द्वारा दिए गए डिक्टेशन का दावा किया था । जैन ने इसे अपनी याददाश्त से पुन: स्मरण किया था। यह नेहरू द्वारा लिखित कोई मूल पत्र नहीं है। हालांकि, ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि नेहरू 25 दिसंबर से 29, 1945 तक पटना और इलाहाबाद में थे, और असफ़ अली 25 दिसंबर और 26 दिसंबर, 1945 को बॉम्बे में थे। सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे पत्र की प्रति और घोषित दस्तावेज के दावे, नेहरू और असफ अली दोनों के ठिकाने के साथ असंगत हैं।
अनुवाद: चन्द्र भूषण झा के सौजन्य से
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.