राजस्थान के चुरू में प्रेस की स्वतंत्रता और पुलिस की जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें स्थानीय घटनाओं को कवर करने वाले पत्रकार अख्तर मुगल को कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित एक विरोध प्रदर्शन का लाइव वीडियो प्रसारित करना भारी पर गया. यह घटना न केवल स्थानीय पत्रकारों के सामने आने वाली चुनौतियों को दर्शाती है बल्कि पुलिस बल के भीतर संभावित कदाचार पर भी प्रकाश डालती है.

क्या है पूरा मामला?

कांग्रेस पार्टी ने 9 जून को बिजली, पानी आदि जैसे अन्य स्थानीय शिकायतों को लेकर हल्ला बोल रैली निकाली थी जिसमें चुरू सांसद राहुल कस्वां सहित कांग्रेस के अन्य नेता और कार्यकर्ता कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने के लिए एकत्र हुए. इस दौरान इन शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की मांग की गई. पत्रकार अख्तर मुगल इस हल्ला बोल रैली को कवर करने के लिए कलेक्ट्रेट के गेट से फेसबुक पर लाइव हुए और अपने दर्शकों को रियल-टाइम अपडेट दे रहे थे. पत्रकार द्वारा फ़ेसबुक पर किये गए फ़ेसबुक लाइव के दौरान, एक अप्रत्याशित घटना घटी. दर्शकों ने डीएसपी सुनील झाझड़िया को एक महिला कांस्टेबल को दूसरी तरफ बुलाने के लिए उसकी पीठ पर थप्पड़ मारते हुए लाइव देखा.

 

#चूरू: कांग्रेस हल्ला बोल…….
#इस लाइफ वीडियो में कुछ खास पूरा देखें।

Posted by Akther Mugal on Sunday 8 June 2025

ये घटना सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो गई. डीएसपी के रवैये की काफी निंदा हुई और लोगों ने राजस्थान पुलिस से जवाबदेही की मांग की. लाइव वीडियो में कैद इस पल ने पुलिस बल में वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा महिला पुलिसकर्मियों के साथ आचरण को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए. कई प्रमुख समाचार आउटलेट्स ने इस खबर को चलाते हुए डीएसपी के व्यवहार पर सवाल उठाए और पुलिस विभाग से स्पष्टीकरण मांगा.

पत्रकार अख्तर मुगल व अन्य के खिलाफ एफआईआर

इस घटना में चकित करने वाला मोड़ तब आया जब पीड़ित महिला कांस्टेबल ने खुद शिकायत दर्ज कराई कि वीडियो को बिना उनकी अनुमति के एडिट कर तोड़-मरोर कर वायरल कर उनका अनादर किया गया है. पुलिस ने पत्रकार अख्तर मुगल और अन्य के खिलाफ कोतवाली चुरू में बीएनएस की धारा 352, 79, और आईटी एक्ट की धारा 72 के तहत एफआईआर (139/2025) दर्ज की. इन लोगों उन पर राजस्थान पुलिस को बदनाम करने के इरादे से एडिटेड वीडियो शेयर करने का आरोप लगाया गया.

FIR कॉपी

पुलिस का ये कदम इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि फ़ेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर लाइव वीडियो को एडिट नहीं किया जा सकता है. ऑल्ट न्यूज़ ने चुरू पुलिस के इस दावे का फ़ैक्ट-चेक किया जिसमें पुलिस ने लोगों पर संबंधित वीडियो एडिट कर वायरल करने का आरोप लगाया था.

पुलिस स्टेशन में पत्रकार के साथ बदसलूकी का आरोप

अख़्तर मुगल ने 17 जून, 2025 को एक वीडियो जारी किया. उन्होंने इसमें एफ़आईआर दर्ज होने के बाद के अपने अनुभव को साझा किया. उन्होंने बताया कि उन्हें 14 जून को इंस्पेक्टर सुख राम चोटिया द्वारा पुलिस स्टेशन बुलाया गया, जहां उनका मोबाइल फ़ोन ज़ब्त कर लिया गया. इस दौरान उनसे जबरदस्ती चार खाली कागज़ों पर हस्ताक्षर करवाए गए, मां-बहन की गालियां दी गई और पुलिस द्वारा जेल में डालने की धमकी भी दी गई.

स्थानीय पत्रकार पर प्रभाव

अख्तर मुगल सीमित संसाधनों वाली पृष्ठभूमि से आने वाले पत्रकार हैं जो सुबह के समय अखबार वितरण का काम करते हैं और अपना पूरा दिन स्थानीय अखबारों के लिए रिपोर्टिंग करने में बिताते हैं. उनका मोबाइल फोन उनके काम के लिए एक ज़रूरी उपकरण है, जो उन्हें सोर्स से जुड़ने और स्थानीय घटनाओं के बारे में जानकारी रखने में अहम भूमिका निभाती है. उनके फोन के ज़ब्त हो जाने के कारण वे अपने संपर्कों से संवाद करने में असमर्थ हो गए हैं. उन्हें समाचार रिपोर्ट करने और महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर करने में असमर्थता का सामना करना पर रहा है.

इस मामले पर चुरू के स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार जेपी जोशी ने ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि अख्तर मुगल ने जो फ़ेसबुक लाइव किया था, वो अपने काम के हिसाब से कवरेज किया था. उसके साथ ज्यादती की गई है. पुलिस का ये काम नहीं है कि किसी के साथ बससुलूकी करे, गालियां दे और सादे कागज पर साइन करवाए. ये गुंडागर्दी है, इसके विरूद्ध पूरे पत्रकार जगत को एक होना चाहिए और कार्रवाई की मांग करनी चाहिए.

एक अन्य स्थानीय पत्रकार ने अख्तर मुगल से जुड़े मुद्दे पर बात करते हुए बताया कि संबंधित वीडियो चलाने पर 2 चैनलों को भी वकील के माध्यम से नोटिस भेजा गया है. ये लोकतंत्र की हत्या है, इसके जरिए ज़िले में पत्रकारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है. इससे पहले आजतक यहाँ ऐसी कोई घटना नहीं हुई जिसमें पत्रकारों के खिलाफ इस तरह के मुकदमे दर्ज किये गए हों, उन्हें नोटिस दिया गया हो या तलब किया गया हो. यहां राजनेताओं से ज़्यादा प्रशासन हावी है. प्रशासन ये चाहता है कि जैसा हम कहें वैसा ही मीडिया लिखे, वे अपनी मनमर्ज़ी चलाना चाहते हैं. लेकिन ऐसा हो नहीं सकता, मीडिया निष्पक्ष लिखेगा, प्रशासन अच्छा करेगा तो उसे अच्छा लिखेगा, लेकिन अगर प्रशासन गलत है तो वो भी जनता को दिखाएगा.

मिलीभगत का एक पैटर्न?

अख्तर मुगल के खिलाफ की गई कार्रवाई पुलिस विभाग के भीतर मिलीभगत के व्यापक पैटर्न को दर्शाती है, जिसमें एक पत्रकार पर दोष मढ़कर, एक वरिष्ठ अधिकारी के दुर्व्यवहार को छिपाने का प्रयास प्रतीत होता है. यह घटना उन पत्रकारों के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करती है जिन्हें रिपोर्टिंग करने के लिए अक्सर बहुत बड़ा व्यक्तिगत जोखिम उठाना पड़ता है.

प्रशासन का अपारदर्शी रवैया

मामले पर स्पष्टता पाने के प्रयास में हमने चूरू के एसपी जय यादव से फ़ोन कॉल के जरिए संपर्क किया. हालांकि, पत्रकार अख्तर मुगल के मामले का ज़िक्र करने पर, एसपी ने अचानक कॉल काट दिया और हमारा नंबर ब्लॉक कर दिया. अधिकारियों की यह अस्पष्टता, साथ ही मीडिया से बातचीत करने की उनकी अनिच्छा, उन्हें उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने के प्रयासों को काफी हद तक कमजोर करती है और एक कार्यशील लोकतंत्र में अविश्वास को जन्म देती है.

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Abhishek is a senior fact-checking journalist and researcher at Alt News. He has a keen interest in information verification and technology. He is always eager to learn new skills, explore new OSINT tools and techniques. Prior to joining Alt News, he worked in the field of content development and analysis with a major focus on Search Engine Optimization (SEO).