मल्हार सर्टिफ़िकेशन, महाराष्ट्र में हाल ही में शुरू की गई एक पहल है जिसका उद्देश्य झटका (हिंदू परंपराओं के अनुसार पशु हत्या) मांस विक्रेताओं का वेरीफ़िकेशन करना और उन्हें सर्टिफ़िकेट प्रदान करना है. महाराष्ट्र के मत्स्य पालन मंत्री नितीश राणे, मल्हार सर्टिफ़िकेशन की वेबसाइट लॉन्च के दौरान मौजूद थे और उन्होंने इसे प्रमोट करते हुए कहा कि इस सर्टिफिकेशन से हमें अपने (हिंदू) मटन की दुकानों की पहचान करने में मदद मिलेगी जहां 100 प्रतिशत हिंदू धर्म के लोग इस व्यवसाय में शामिल होंगे और किसी भी तरह की मिलावट नहीं होगी.

नितेश राणे ने वेबसाइट लॉन्च के दौरान की एक तस्वीर ट्वीट की और दुकानदारों से यह सर्टिफिकेशन प्राप्त करने की अपील की. उन्होंने लोगों को सुझाव दिया कि वे उन जगहों से मटन न खरीदें जहां मल्हार सर्टिफ़िकेट उपलब्ध नहीं है.

इसे हलाल मीट के समानांतर एक हिन्दू विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. हलाल और झटका माँस के बीच अंतर यह है कि हलाल में इस्लामी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए जानवरों का आधा गला काटा जाता है. और जैसा कि झटका शब्द खुद को परिभाषित करता है, यह एक जानवर को एक झटके से पूरा गला काटकर मारने की प्रक्रिया है, जिसे हिन्दू धर्म के लोग पालन करते हैं.

चूंकि, मल्हार सर्टिफ़िकेशन वेबसाइट के लॉन्च के मौके पर महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे मौजूद थे, इसलिए कई मीडिया आउटलेट्स ने इसे नितेश राणे और महाराष्ट्र सरकार की पहल के रूप में रिपोर्ट किया. अधिकांश मीडिया एजेंसीज और आउटलेट्स ने अपनी रिपोर्ट में इस सर्टिफिकेशन के पीछे के लोगों और संगठन का ज़िक्र नहीं किया, जिससे खबर पढ़ने वालों की नज़र में यह एक सरकारी योजना लगती है.

द हिन्दू ने इस मामले पर रिपोर्ट करते हुए मल्हार सर्टिफ़िकेशन को महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदू परंपराओं का पालन करने वाले हिंदू समुदाय के विक्रेताओं को सशक्त बनाने का एक पहल बताया.

इसी प्रकार, एशियानेट न्यूज ने भी मल्हार सर्टिफिकेशन को महाराष्ट्र सरकार की पहल के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि सरकार ने शुद्ध मांस सुनिश्चित करने के लिए हिंदू मांस व्यापारियों के लिए ‘मल्हार सर्टिफ़िकेशन’ की शुरुआत की है.

NDTV ने भी एक रिपोर्ट में इसे महाराष्ट्र सरकार की पहल बताते हुए कहा कि इसके तहत हिंदुओं के झटका मीट शॉप को सर्टिफ़िकेट दिया जाएगा.

इसी तरह, कई मीडिया संस्थानों ने ‘मल्हार सर्टिफ़िकेशन’ से जुड़े डिटेल्स दिए बिना इसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महाराष्ट्र सरकार की पहल के रूप में रिपोर्ट किया. इनमें इंडिया टुडे, द टाइम्स ऑफ इंडिया आदि शामिल हैं. न्यूज़ एजेंसी ANI ने भी अपनी रिपोर्ट में सर्टिफ़िकेशन के बैकग्राउंड से जुड़ी कोई जानकारी नहीं दी, जिसके बाद कई मीडिया आउटलेट्स ने उनके सिंडिकेट फीड से खबर चलाईं, और इसे सरकार का कदम बताया. ऐसा करने वालों में एशियानेट न्यूज भी शामिल था, जिसने मल्हार सर्टिफ़िकेशन को महाराष्ट्र सरकार की पहल बताया.

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क्या है मल्हार का अर्थ?

मल्हार सर्टिफ़िकेशन का नाम हिंदू देवता मल्हारी के नाम पर आधारित है जिन्हें खंडोबा के नाम से भी जाना जाता है. उनकी पूजा मुख्य रूप से महाराष्ट्र में की जाती है, वे वहां के सबसे लोकप्रिय कुलदेवता हैं. मल्हारी देवता की पूजा का सबसे प्रमुख केंद्र जेजुरी स्थित मंदिर है जो महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित है.

क्या मल्हार सर्टिफ़िकेशन महराष्ट्र सरकार की पहल है?

कई न्यूज़ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि मल्हार सर्टिफ़िकेशन महाराष्ट्र सरकार की एक पहल है, लेकिन उन्होंने इसे सरकार से जोड़ने वाला कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है. मल्हार सर्टिफिकेशन वेबसाइट टॉप लेवल डोमेन (.com) का इस्तेमाल करती है, जबकि सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं की वेबसाइटों का टॉप लेवल डोमेन आमतौर पर (.gov.in) होता है. इस वेबसाइट पर कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि यह एक सरकारी पहल है, न ही इस पर सरकार से जुड़ा कोई लोगो या मंत्रालय या विभाग का नाम लिखा है.

क्या है इस सर्टिफ़िकेशन की सच्चाई?

मल्हार सर्टिफ़िकेशन को 10 मार्च, 2025 को लॉन्च किया गया था. डोमेन रजिस्ट्रेशन डाटा लुकअप टूल के मुताबिक, मल्हार सर्टिफ़िकेशन वेबसाइट के डोमेन (malharcertification dot com) को इसके लॉन्च से मात्र 1 महीने पहले, 4 फरवरी 2025 को रजिस्टर कराया गया था.

मल्हार सर्टिफ़िकेशन की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, ये एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है जो झटका मटन और चिकन विक्रेताओं को सर्टिफ़िकेट प्रदान करती है. इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि चिकन, मटन, इत्यादि को हिंदू धार्मिक परंपराओं के अनुसार मारा गया हो. इसके अलावा, वह ताजा, साफ, किसी अन्य जानवर के मांस के साथ मिश्रित, या लार से दूषित न हो. वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, यह मांस विशेष रूप से हिंदू खटिक समुदाय के विक्रेताओं के माध्यम से उपलब्ध किया जाता है और यह मल्हार द्वारा सर्टिफाइड दुकानों से ही मटन खरीदने के लिए प्रोत्साहित करता है.

इस वेबसाइट पर किसी कंपनी या संगठन का नाम नहीं है, न ही कोई पता दिया गया है. बस इतना बताया गया है कि इसे पुणे, महाराष्ट्र से संचालित किया जाता है. कॉन्टेक्ट डिटेल्स में वेबसाइट पर एक ईमेल और फोन नंबर है जिसपर कॉल नहीं लगता. इस वेबसाइट पर किसी भी कथित सर्टिफ़िकेशन संस्था के किसी भी अधिकारी का नाम नहीं है जिससे सर्टिफ़िकेशन से जुड़ी जानकारी के लिए संपर्क किया जा सके.

वेबसाइट के एक सेक्शन में कथित सर्टिफ़ाइड दुकानों की लिस्ट मौजूद है जिसमें उनके पते और मोबाइल नंबर दिए गए हैं. हमने कुछ दुकानदारों से बात की, उन्होंने हमें बताया कि वेबसाइट पर केवल उनकी दुकान का नाम और नंबर उपलब्ध कराया गया है, उन्हें अभी तक कोई सर्टिफ़िकेट नहीं मिला है.

इस मामले पर जानकारी जुटाने के दौरान हमें हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट मिली जिसे पत्रकार श्रीनिवास देशपांडे ने लिखा है. रिपोर्ट में इस मामले को विस्तार से बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, ये सर्टिफ़िकेशन हिंदू दलित खटिक महासंघ की पहल है, जो हिंदू कसाईयों का एक संगठन है. खटिक समुदाय पारंपरिक रूप से कसाई का काम करता है.

इस आर्टिकल में हिंदू दलित खटिक महासंघ के प्रवक्ता आकाश पलांगे का बयान भी मौजूद है, जिसमें उन्होंने कहा कि यह सर्टिफ़िकेट हलाल-प्रधान व्यवसायों की वजह से खोए गए आर्थिक अवसरों को वापस पाने का एक प्रयास है.

हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया कि मल्हार सर्टिफ़िकेशन शुरू होने के एक दिन बाद, जिस देवता के नाम पर सर्टिफिकेट का नाम मल्हार रखा गया है, उनके जेजुरी में स्थित सबसे प्रमुख मंदिर का संचालन करने वाले श्री मार्तंड देव संस्थान के एक ट्रस्टी राजेन्द्र खेडेकर ने सर्टिफ़िकेट में ‘मल्हार’ नाम पर आपत्ति जताई और कहा कि मल्हारी देवता शाकाहारी हैं और जानवरों से प्यार करते हैं. इसलिए उन्होंने मंत्री नितेश राणे से इस सर्टिफ़िकेशन का नाम बदलने की अपील की. हालांकि, बाद में बताया गया कि यह सिर्फ़ एक ट्रस्टी की निजी राय थी, इसपर गहन चर्चा के बाद उन्होंने सर्वसम्मति से इस कदम का समर्थन किया.

मल्हार सर्टिफ़िकेट लाने वाले हिंदू दलित खटिक महासंघ के प्रवक्ता आकाश पलांगे से ऑल्ट न्यूज़ की बातचीत

मीडिया रिपोर्टों में सर्टिफ़िकेट को सरकार की पहल बताए जाने पर हमारे सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “यह सर्टिफ़िकेट हिंदू दलित खटिक महासंघ की पहल है. फिलहाल इसे सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर नहीं लाया गया है, लेकिन सरकार में कई लोग हमारे समर्थन में हैं और निकट भविष्य में इसे सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर लाने का प्रयास भी किया जाएगा.”

वेबसाइट पर कार्यालय का पता न होने, मोबाइल नंबर काम न करने आदि के सवाल पर उन्होंने कहा, “वेबसाइट अभी डेवलपमेंट स्टेज में है, इसे अपडेट किया जाएगा. वेबसाइट पर दिया गया हमारा मोबाइल नंबर अभी बंद है, लेकिन इस नंबर से हमारा व्हाट्सएप सक्रिय है, जिस पर लोग सर्टिफिकेशन के लिए आवेदन कर सकते हैं.”

दुकानदारों को अबतक किसी भी तरह का सर्टिफ़िकेट न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा, “अभी तक किसी भी दुकानदार को सर्टिफ़िकेट नहीं दिया गया है, केवल उनका नाम, नंबर और दुकान का नाम ही हमारी वेबसाइट पर अपलोड किया गया है. हम दुकानदारों के लिए एक बड़े कार्यक्रम की योजना बना रहे हैं, जिसमें बड़े नेताओं की मौजूदगी में उन्हें यह सर्टिफिकेट वितरित किए जाएंगे.” हालांकि उन्होंने इस मामले पर अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया.

वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, केवल हिंदू खटिक समुदाय के विक्रेताओं को ही सर्टिफ़िकेशन दिए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि “फिलहाल हम महाराष्ट्र पर ध्यान दे रहे हैं और यहां कसाई का काम अधिकतर खटिक समुदाय के लोग ही करते हैं, इसलिए वेबसाइट पर खास तौर पर खटिक समुदाय का नाम लिखा है. हमें महाराष्ट्र से उन्हें करीब 600-700 सर्टिफिकेशन संबंधी रिक्वेस्ट मिले हैं. इसके अलावा, पंजाब, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से भी हमें कई मैसेज मिले हैं, हालांकि इनकी संख्या बहुत कम है. भविष्य में जब हम इसे अन्य जगहों पर लाएंगे, तो सभी तरह के हिंदू समुदाय के लोग भी इससे जुड़ सकेंगे.”

कुल मिलाकर, कई मीडिया आउटलेट्स ने बताया कि मल्हार सर्टिफ़िकेशन एक सरकारी पहल है, जबकि वास्तव में इसका सरकार से कोई आधिकारिक संबंध नहीं है. महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे इसके लॉन्च में व्यक्तिगत रूप से शामिल थे, लेकिन इससे यह सरकारी पहल नहीं बन जाती.

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Abhishek is a senior fact-checking journalist and researcher at Alt News. He has a keen interest in information verification and technology. He is always eager to learn new skills, explore new OSINT tools and techniques. Prior to joining Alt News, he worked in the field of content development and analysis with a major focus on Search Engine Optimization (SEO).