व्हाट्सऐप पर एक हॉस्टल की एक तस्वीर बहुत वायरल है और दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस ने 2012 में जम्मू एवं कश्मीर के छात्रों के लिए जेएनयू में 400 कमरों का हॉस्टल बनवाया था. वायरल टेक्स्ट में लिखा है, “इस हॉस्टल में, कोई हिन्दू या अलग धर्म वाला नहीं रह सकता.” इस मेसेज में ये भी दावा किया गया है कि जम्मू एवं कश्मीर के मुस्लिम छात्रों को ‘मुफ़्त’ में हॉस्टल सुविधा दी गयी है.

ये तस्वीर फे़सबुक पर भी वायरल है.

यही तस्वीर मई में ट्विटर पर भी वायरल हुई थी, लेकिन तब इसे जामिया का बताया गया था.

फै़क्ट चेक

इस तस्वीर में जेएनयू का कथित ‘जम्मू एंड कश्मीर हॉस्टल (J&K Hostel)’ नहीं है. तस्वीर में जो बोर्ड है, उसमें धुंधले रूप से ‘जामिया मिलिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia)’ लिखा हुआ दिखता है.

2017 में केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ति को जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) में एक गर्ल्स हॉस्टल का उद्घाटन करने के लिए बुलाया गया था. द हिन्दू ने 17 नवम्बर, 2017 को रिपोर्ट किया था, “ये हॉस्टल केन्द्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली जम्मू एवं कश्मीर की सभी महिला छात्राओं को सुविधा देगा. इस हॉस्टल में 135 कमरे हैं.”

इसका उद्घाटन प्रदर्शनों के बीच टाल दिया गया था. हालांकि अगले महीने ही इस 400 बेड वाली हॉस्टल सुविधा को स्टूडेंट्स के लिए शुरू कर दिया गया था.

द हिन्दू की रिपोर्ट में आगे कहा गया, “हॉस्टल बनाने का प्लान 2012 में तय हुआ था जब जामिया और गृह मंत्रालय के बीच मेमोरैंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया गया था. मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया था कि पिछले दो वर्षों में राजनाथ सिंह ने राज्य के जो दौरे किए, उसके कारण इस परियोजना में तेजी आई है.”

ये दावा कि हॉस्टल 2012 में कांग्रेस ने बनवाया है, गलत है. JMI और कांग्रेस के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर 2012 में हुए, लेकिन ये हॉस्टल भाजपा सरकार के समय बना है.

जामिया के J&K हॉस्टल के पूर्व हेड डॉ. सबीहा ज़ैदी ने ऑल्ट न्यूज़ से इस बात की पुष्टि की कि हॉस्टल में राज्य और धर्म के आधार पर सुविधा नहीं मिलती है. उन्होंने कहा, “इस हॉस्टल में कैंपस के बाकी हॉस्टल की ही तरह सभी रेगुलर छात्राओं को सुविधा दी गयी है. हां, कॉलेज उत्तर-पूर्वी भारत और जम्मू कश्मीर की छात्राओं को प्रेफ़रेंस देता है जिन्हें कहीं और जगह मिलने में मुश्किल होती है. लेकिन ये दावा कि किसी अन्य राज्य की स्टूडेंट्स हॉस्टल के लिए नहीं अप्लाई कर सकतीं, ग़लत है. J&K हॉस्टल में ज़्यादा स्टूडेंट्स को दाखिला मिल सके, इसलिए इसे बड़ा भी किया गया है.” उन्होंने ये भी बताया कि स्टूडेंट्स हॉस्टल की फ़ीस देते हैं.

JMI हॉस्टल के मैन्युअल 2019-2020 के मुताबिक, J&K हॉस्टल में 700 बेड्स हैं और जिन स्टूडेंट्स के माता-पिता/पति या पत्नी दिल्ली में रहते और काम करते हैं, ‘वो ज़रूरी नहीं है कि हॉस्टल सुविधा के लिए एलिजिबल हों.’ अन्य सभी स्टूडेंट्स को मेरिट और अन्य कारकों, जैसे अपने घर से दूरी और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हॉस्टल में एडमिशन दिया जाता है.

नीचे 2018-2019 अकेडमिक सेशन के लिए J&K हॉस्टल के लिए सेलेक्ट हुए कैंडिडेट्स की लिस्ट है. इसमें कुछ हिन्दू नाम भी हैं. मुस्लिम कैंडिडेट्स के ज़्यादा नाम होने का सीधा सा कारण है कि ये एक अल्पसंख्यक संस्थान है.

स्टूडेंट्स को फ़ीस 2 इनस्टॉलमेंट में भरनी होती है. यानी, जो वायरल टेक्स्ट का दावा, जिसके अनुसार हॉस्टल सुविधा मुफ़्त में मिलती है, ग़लत है. विकलांग स्टूडेंट्स, जिनके माता-पिता की वार्षिक आय 1.5 लाख से कम है, को कमरे का किराया देने से छूट दी जाती है.

क्या जेएनयू में कोई ऐसा ‘J&K हॉस्टल’ है जो केवल जम्मू एवं कश्मीर के मुस्लिम छात्रों के लिए ही है?

नहीं.

जामिया के ‘J&K Hostel’ की एक तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया गया कि जेएनयू जम्मू एवं कश्मीर के मुस्लिम छात्रों को मुफ़्त हॉस्टल सुविधा देता है. लेकिन ये दावा गलत है.

हॉस्टल के लिए कॉलेज आरक्षण नीति के अनुसार, 22.5% सीटें SC/ST कैंडिडेट्स के लिए और 3% सीटें विकलांग स्टूडेंट्स (PH) के लिए आरक्षित हैं. हॉस्टल में दाखिला कुछ कारकों पर निर्धारित है. मसलन, बाहर से आने वाले स्टूडेंट्स को प्राथमिकता मिलती है. जम्मू एवं कश्मीर के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है. इसके अलावा, SC/ST/PH छात्रों में से किसी के माता-पिता की वार्षिक आय 75,000 रुपये से कम होती है तो उन्हें फ़ीस देने से रहत मिलती है.

कुल मिलाकर, वायरल तस्वीर के दोनों दावे गलत हैं:

1. शेयर की जा रही तस्वीर जामिया के J&K हॉस्टल की है, न कि जेएनयू के.

2. दोनों में से कोई भी कॉलेज जम्मू एवं कश्मीर के मुस्लिम छात्रों को मुफ़्त हॉस्टल सुविधा नहीं देता. हॉस्टल में दाखिला राज्य और धर्म के आधार पर नहीं दिया जाता है.

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a researcher and trainer at Bellingcat with a focus on human rights and conflict. She has a Master's in Data Journalism from Columbia University and previously worked at Alt News.