TMC सांसद नुसरत जहां ने पहली बार कोलकाता में अपने पति निखिल जैन के साथ दुर्गा पूजा मनाई। इसके तुरंत बाद, मुख्यधारा की मीडिया ने इस हैडलाइन को फ़्लैश करते हुए सुर्खिया बटोरी कि दारुल उलूम देवबंद के मौलवी ‘मुफ्ती असद कासमी’ ने नुसरत जहां पर एक हिन्दू त्यौहार के उत्सव में शामिल होने के लिए उन्हें तीखे स्वर में प्रतिक्रिया दी।

फर्स्टपोस्ट के लेख के शीर्षक के मुताबिक, “नुसरत जहां ने इस्लाम को बदनाम किया’: दारुल उलूम देवबंद से मौलवी दुर्गा पूजा समारोह में भाग लेने के लिए टीएमसी सांसद पर ज़ुबानी हमला किया”-अनुवाद। यह PTI की रिपोर्ट थी, जिसे अन्य कई समाचार संगठन मनीकंट्रोल, द वायर, टाइम्स ऑफ इंडिया, फ्री प्रेस जर्नल, द हिंदू, आउटलुक और न्यूज 18 ने भी प्रकाशित किया है।

तथ्य जांच

दारुल उलूम देवबंद भारत के सबसे पुराने इस्लामी विश्वविद्यालयों में से एक है। दारुल उलूम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ़ उस्मानी ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया –“संस्था कभी भी किसी भी व्यक्ति पर व्यक्तिगत बयान नहीं देती है। यदि यह संस्था किसी मुद्दे पर राय देती है तो वह हमेशा एक प्रेस नोट के माध्यम से होता है। “

मुफ्ती असद कासमी, जिन्हें मीडिया ने दारुल उलूम देवबंद से मौलवी के रूप में बताया है, वह इस संस्था से जुड़े हुए नहीं है। संयोग से, यह पहली बार नहीं था जब उन्हें टीवी पर नुसरत जहां की निजी ज़िन्दगी पर टिप्पणी करने के लिए दिखाया गया हो। उन्हें इस साल जुलाई में भी मीडिया संगठनों ने समाचार स्टूडियो में बुलाया था, जब नुसरत जहां के जैन से शादी करने के बाद संसद में सिंदूर पहनने पर विवाद हुआ था। क़ासमी के व्यक्तिगत बयानों को पहले इस्लामिक मौलवियों के विचार के रूप में साझा किया गया था, फिर दारुल उलूम देवबंद के विचारों के रूप में और अंत में जहां के खिलाफ जारी फतवे के रूप में प्रसारित किया गया।

ऑल्ट न्यूज़ ने जुलाई में असद कासमी से बात की थी, उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह किसी भी तरह से दारुल उलूम देवबंद से जुड़े हुए नहीं हैं, लेकिन वह इस संस्था के पुराने छात्र है। कासमी वर्तमान में देवबंद में एक मुफ्ती हैं। आप मीडिया द्वारा फैलाई गई इस गलत सूचना की विस्तृत पड़ताल यहां पढ़ सकते है।

अन्य शब्दों में, एक ऐसे ही किसी मुफ़्ती को नुसरत जहां के दुर्गा पूजा में भाग लेने पर बयान देने के लिए बुलाया गया, जिसके बाद एक अलग ही विवाद उत्त्पन हो गया।

मीडिया द्वारा बनाई गई ‘खबर’

PTI की खबर के मुताबिक, दारुल उलूम देवबंद से जुड़े मौलवी मुफ्ती असद कासमी ने टीवी चैनलों से कहा, “इस्लाम को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है जो मुस्लिम नामों का प्रयोग कर इस्लाम और मुस्लिम समुदाय को बदनाम करे”-अनुवाद। जैसे कि पहले बताया गया था कि, इसे अन्य कई मीडिया संगठनों ने प्रकाशित किया।

हालांकि, ऐसे कई मीडिया संगठन भी है जिन्होंने इस गलत खबर पर स्वतंत्र रूप से लेख प्रकाशित किये हैं। फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, “दारुल उलूम देवबंद से जुड़े हुए मौलवी मुफ्ती असद कासमी नुसरत पर मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम करने का आरोप लगाया है”-अनुवाद। इंडिया टीवी और स्वराज्य ने भी ऐसे ही लेखो को प्रकाशित किया है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, दारुल उलूम देवबंद से जुड़े मौलवी मुफ़्ती असद कासमी ने मीडिया से कहा, “उसने [नुसरत जहां] ने मजहब से बाहर विवाह किया है। उन्हें अपने नाम और धर्म को बदल देना चाहिए”-अनुवाद।

इंडिया टुडे ने कई टीवी प्रसारणों के माध्यम से इस ‘मुद्दे’ को कवर किया है। दारूल उलूम शब्द का प्रयोग शो के दौरान नहीं किया गया, पत्रकार शिव अरूर ने अपने रोजिंदा कार्यक्रम ‘5ive’ के दौरान कहा, “मौलवियों ने उन्हें गैर-इस्लामिक कहा”-अनुवादित, आगे उन्होंने कहा कि, “ध्यान दीजिये कि यह पहली बार नहीं है कि नुसरत जहां पर कुछ मौलवियों ने हमला किया हो लोकसभा में शपथ लेने के तुरंत बाद, नुसरत के सिंदूर लगाने और वंदे मातरम का नारा देने के लिए उनके खिलाफ एक फ़तवा जारी किया गया था”-अनुवादित। अरुर का बयान सभी पहलुओं से गलत था। एक मुफ़्ती की राय को सभी मौलवियों की राय नहीं बताया जा सकता। उन्होंने एक और गलत खबर फतवे के बारे में भी ज़िक्र किया था, जिसकी पड़ताल महीनों पहले की जा चुकी है।

अरुर के शुरूआती बयान के बाद, मुफ्ती असद कासमी को शो में लाया गया, जहाँ उन्होंने ऐसे बयान दिए थे। बाद में कासमी के शब्दों को शिया वक्फ बोर्ड के प्रमुख और वीएचपी के उपाध्यक्ष ने भी दोहराया। इस चैनल ने नुसरत जहां से बात भी की थी। पत्रकार ने सांसद से पूछा कि –“क्या आप दूसरे विवाद के लिए तैयार है?“-अनुवादित। इस शो का निष्कर्ष इस मुद्दे पर करीबन आधे घंटे की बहस के बाद आया, जिसमें स्क्रीन पर ‘नुसरत बनाम मुफ़्ती’ फ़्लैश किया जा रहा था।

टाइम्स नाउ ने भी इस विषय पर एकशो का प्रसारण किया था। हालांकि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मुफ़्ती दारुल उलूम से जुड़े हुए है मगर प्रसारण के दौरान इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया था। एंकर राहुल शिवशंकर ने इस बयान के साथ शो की शुरुआत की कि, “एक बड़ा विवाद हुआ है”-अनुवाद। इसके बाद, उन्होंने जहां के खिलाफ जारी हुए एक अन्य फतवे की बात की, जो उनके “एक हिन्दू दुल्हन” के प्रतिक (सिंदूर) पहनने पर जारी किया गया था।

हिंदी मीडिया संगठन भी “इस विवाद” में पीछे नहीं रहे। ‘दारुल उलूम देवबंद’ के एंगल से कई मीडिया संगठन – नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, न्यूज़18 हिंदी, पंजाब केसरी, NDTV हिंदी, ज़ी न्यूज़, प्रभात खबर, लोकमत समाचार, वनइंडिया हिंदी, वेबदुनिया हिंदी, एशियानेट न्यूज़ हिंदी, IBC 24 और न्यूस्ट्रैक – लेख प्रकाशित किये है।

हालांकि, कई अन्य समाचार चैनलों ने दावा किया कि मुफ्ती ‘इत्तेहाद उलेमा-हिंद’ से जुड़े हुए हैं। इसमें ANI, रिपब्लिक टीवी, NDTV अंग्रेजी और न्यूज़18 हिंदी शामिल थे। न्यूज़18 ने फतवे के एंगल को भी शामिल किया था।

दक्षिण पंथी वेबसाइट ओपइंडिया ने भी इस गलत खबर को फतवे के एंगल से प्रकाशित किया और लिखा कि, “प्रमुख दारुल उलूम देवबंद के मौलवी मुफ्ती आज़ाद कासमी ने टीएमसी सांसद को हिंदू परंपराओं को अपनाने पर प्रतिक्रिया दी है और और उन्हें इस्लाम धर्म का अपमान करने के लिए धर्मपरिवर्तन करने के लिए कहा है”-अनुवादित।

निष्कर्ष के तौर पर, मीडिया देवबंद के एक अज्ञात मुफ्ती के पास पहुंचा, जिसने हिंदू त्योहार में नुसरत जहां की भागीदारी पर विवादास्पद बयान दिया और कोई भी मुद्दा नहीं होने के बावजूद इसपर खबर प्रकाशित की। कुछ मीडिया संगठनों ने मुफ़्ती को दारुल उलूम देवबंद का बताया, जबकि कुछ मीडिया संगठनों ने मुफ़्ती को ‘इत्तेहाद उलेमा-हिंद’ से बताया। हालांकि, यह संभव है कि कुछ ऐसी मीडिया रिपोर्ट ऐसी भी है जिसने दो अलग-अलग रिपोर्ट पेश किए – एक में इत्तेहाद उलेमा-हिंद का उल्लेख था जबकि दूसरे में दारुल उलूम देवबंद का। उदाहरण के लिए, NDTV ने अपने अंग्रेजी रिपोर्ट में क़ासमी इत्तेहाद उलेमा-हिंद से संबंधित बताया था जबकि समान चैनल की हिंदी रिपोर्ट में उन्हें दारुल उलूम देवबंद का बताया गया था। News18 ने भी दो अलग-अलग हिंदी लेख – 1, 2 – समान दावों के साथ प्रकाशित किए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी दो अलग-अलग रिपोर्ट् प्रकाशित किए – 1, 2। लेख में इस तरह का मतभेद PTI और ANI की रिपोर्ट के कारण हो सकता है क्योंकि PTI ने दावा किया था कि क़ासमी दारुल उलूम से हैं जबकि ANI ने दावा किया है कि वह इत्तेहाद उलेमा-हिंद से हैं।

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a researcher and trainer at Bellingcat with a focus on human rights and conflict. She has a Master's in Data Journalism from Columbia University and previously worked at Alt News.