30 जनवरी को, अपने दिन भर के गुजरात दौरे के दौरान सूरत में न्यू इंडिया यूथ कॉन्क्लेव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवा पेशेवरों से चर्चा की। सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी ने दावा किया कि उनके कार्यभार संभालने के बाद बलात्कार के मामलों में दोषियों को अपराध के एक महीने में सजा हो रही है।

प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो में 28:30वें मिनट से पीएम मोदी को कहते सुना जा सकता है, “इस देश में बलात्कार पहले भी होते थे। समाज की इस बुराई, कलंक ऐसा है कि आज भी उस घटनाओं को सुनने को मिलता है। माथा शर्म से झुक जाता है, दर्द होता है लेकिन आज 3 दिन में फांसी, 7 दिन मे 11 दिन में फांसी, एक महीने में फांसी लगातार उन बेटियों को न्याय दिलाने के लिए एक के बाद एक कदम उठाए जा रहे हैं और नतीजे नजर आ रहे हैं। लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि बलात्कार की घटना तो 7 दिन तक टीवी पर चलाई जाती है लेकिन फांसी की सजा की खबर आकर के चली जाती है।”

भाजपा और ANI द्वारा गलत उद्धृत

भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से यह बताते हुए कि “लेकिन आज अपराधियों को 3,7,11,30 दिन में फांसी होती है”, मोदी के कथन को, गलत उद्धृत किया गया। जैसा कि ऊपर दिए गए उनके बयान में कहा गया है, वे अपराध के एक महीने के अंदर फांसी की सजा के निर्णय का जिक्र कर रहे थे, उसके निष्पादन का नहीं।

ANI ने भी यह बताकर कि “अब अपराधियों को 3 दिन, 7 दिन, 11 दिन और एक महीने में लटका दिया जाता है”, प्रधानमंत्री को गलत उद्धृत किया है। ऊपर के बयान को पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि यहां फांसी के लिए लटका देना लिखा गया है, जबकि, उस बयान में इसका तात्पर्य फांसी की ‘सजा’ से है। इसके कुछ ही बाद में पीएम मोदी फांसी की सजा बोलते भी हैं।

व्यक्तिगत बलात्कार के मामलों में शीघ्र सजा

यहां, पीएम मोदी उन मामलों का जिक्र कर रहे थे जिनमें स्थानीय अदालत द्वारा रिकॉर्ड समय में फांसी की सजा सुनाई गई थी। ऐसे कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।

अगस्त, 2018 में, मध्यप्रदेश की एक स्थानीय अदालत ने छह-वर्षीया-बालिका से बलात्कार के लिए एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा 8 अगस्त, 2018 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार — “अभियोजन अधिकारी पुष्पेंद्र कुमार गर्ग ने बताया, दतिया के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हितेंद्र द्विवेदी ने मोतीलाल अहिरवार (25) को हाल ही में पेश किए गए आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 की धारा 376(ए)(बी) तथा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के प्रावधान (पाक्सो/POCSO) अधिनियम के तहत दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।”- (अनुवादित) इस मामले की सुनवाई तीन कार्य दिवसों में पूरी की गई थी।

इंदौर, मध्यप्रदेश की एक अन्य स्थानीय अदालत ने रजवाड़ा के निकट तीन-माह की बच्ची से बलात्कार और हत्या के लिए एक व्यक्ति को मृत्युदंड सुनाया। द टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित एक लेख में कहा गया, “मृत्युदंड का निष्पादन उच्च न्यायालय से पुष्टि के बाद होगा।” अभियुक्त को रिकॉर्ड 21 दिनों में दोषी सिद्ध किया गया।

जुलाई, 2017 में, कटनी, मध्यप्रदेश की एक अदालत ने 5 दिनों की सुनवाई के बाद एक नाबालिग से बलात्कार के लिए ऑटो रिक्शा चालक राजकुमार कोल को मृत्युदंड दिया। द टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा 27 जुलाई, 2017 को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया, “उसे 7 जुलाई को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने 12 जून को आरोप-पत्र दाखिल किया और अदालत में मामले की सुनवाई 23 जून को शुरू हुई।” तीन महीने बाद खबरें आईं की मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को कम करके 20 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया। राजस्थान और कर्नाटक के दो अन्य व्यक्तिगत बलात्कार मामलों में अपराधियों को 22 दिनों में मौत की सजा दी गई।

मोदी का बयान आंकड़ों से मेल नहीं खाते। फिर भी, यह कहते हुए कि बलात्कार के अपराधों के साबित होने के एक महीने के भीतर मौत की सजाएं सुनाई गई हैं, वे उनसे एकदम अलग भी नहीं हैं।

2017 में मृत्युदंड

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में कुल 109 कैदियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, जिनमें 43 को, यौन अपराधों के साथ हत्या के शामिल होने से, हत्या के साथ बलात्कार के मुख्य अपराध के लिए, मौत की सजा सुनाई गई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, ” यह 2016 में ऐसे ही अपराधों के लिए मौत की सजा 24की तुलना में 79% ज्यादा था।”

पिछले 14 वर्षों में भारत में मृत्युदंड का परिदृश्य

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित व्यापक सिद्धांत, जिसके तहत केवल अति दुर्लभ श्रेणी से संबंधित अपराध मौत की सजा की योग्यता रखता है, को ध्यान में रखते हुए देशभर में मृत्युदंड मामलों की संख्या कुछ ही है। इसके अलावा, सुनवाई से लेकर निष्पादन तक की प्रक्रिया लम्बी और थका देने वाली होती है। यह, कई मामलों में दायर दया याचिकाओं के कारण है, जो राष्ट्रपति के विवेकाधीन है।

जहां तक मौत की सजा के निष्पादन का संबंध है, 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में अपनी भूमिका के लिए सजा पाए याकूब मेमन के सबसे हालिया मामला समेत, 2004 से केवल चार दोषियों को फांसी दी गई है। बलात्कार के लिए मौत की सजा का सबसे हालिया उदाहरण 2004 का है, जब 1990 में कोलकाता में एक किशोरी से बलात्कार और हत्या के लिए धनञ्जय चटर्जी को फांसी की सजा दी गई थी। फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले, चटर्जी का मुकदमा लगभग 14 साल तक चला था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

गृह मंत्रालय (MHA) के अधीन आने वाले संगठन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित ‘भारत में अपराध’ की पिछली रिपोर्ट 2016 की है। 2016 के इस ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में 38,947 मामले दर्ज हुए, जबकि पिछले वर्षों के 16,124 मामले जांच के लिए विचाराधीन थे। वर्ष 2016 के लिए कुल 55,071 मामले जांच के दायरे में थे। इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि 1,52,165 मामले मुकदमा-प्रक्रिया के इंतजार में थे। एनसीआरबी के ये आंकड़े 2016 में प्रकाशित हुए थे। हम यह भी मान लें कि पिछले तीन साल में बलात्कार के मामलों की संख्या उतनी ही रही, तब भी, प्रधानमंत्री का यह निष्कर्ष कि आपराधिक न्याय प्रणाली में काफी सुधार हुआ है, एक छलावा है। पीएम मोदी का तर्क, तेज़ सजा के केवल चुनिंदा मामलों पर आधारित है।

नरेंद्र मोदी का यह कहना पूरी तरह गुमराह करने वाला है, कि भारत की न्याय प्रणाली में, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध में, काफी सुधार हुआ है। यह केवल चुनिंदा मामलों पर आधारित है, जिनमें बलात्कार के अभियुक़्तों को शीघ्र शैली में सजा सुनाई गई है। फिर भी, प्रधानमंत्री को ANI और दिलचस्प तरीके से उनकी अपनी पार्टी द्वारा भी, गलत उद्धृत किया गया था। अपने भाषण में, वे ‘मौत की सजा’ का जिक्र कर रहे थे ‘फांसी पर लटकाने’ का नहीं।

पूर्व में, ऑल्ट न्यूज़ ने जयदीप सरकार का एक विस्तृत विश्लेषण प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते यौन अपराधों का समाधान मौत की सजा है; और निष्कर्ष दिया था कि यह नहीं है। जयदीप सरकार भारत के कुछ ऊंचे दर्जे के (high-profile) आपराधिक मामलों के मूल्यांकन में शामिल रहे हैं और पूर्व में न्यू स्कॉटलैंड यार्ड के साथ मामलों को देखते हुए लंदन में प्रशिक्षित हैं। यौन अपराधियों के मूल्यांकन और प्रबंधन में — सुरक्षित देखभाल और बाहरी हितधारकों की शृंखला के साथ समुदाय, दोनों में उनकी विशेष रुचि है।

 

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About the Author

Jignesh is a writer and researcher at Alt News. He has a knack for visual investigation with a major interest in fact-checking videos and images. He has completed his Masters in Journalism from Gujarat University.