फ़ेसबुक और ट्विटर पर कई यूज़र्स एक तस्वीर शेयर कर रहे हैं. इसमें हिजाब पहने एक महिला के आस-पास पुलिसकर्मी खड़े हैं. ट्विटर यूज़र बबलू सैनी ने ये तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है, “उर्दू मीडियम से पढ़कर IPS बनी पहली मुस्लिम SP महिला बधाई की पात्र हैं किन्तु ड्रेस कोड को दरकिनार करके आप जिस वेशभूषा मे सरकारी कुर्सी पर विराजमान हैं तो पहला नियम का उल्लंघन तो आपने आते ही कर दिया है महाराष्ट्र मे ये छूट आप लोगो के लिये ही है या सबको दी जायेगी ? अच्छा मजाक है.”

ये तस्वीर मार्च से शेयर की जा रही है, जहां इसे पहली मुस्लिम महिला SP बताकर शेयर किया गया था.

इस तस्वीर के अलावा एक वीडियो भी शेयर हो रहा है. यूज़र्स इसे शेयर करते हुए लिख रहे हैं – “भारत की पहली मुस्लिम I.P.S लेडी ऑफिसर (महारास्ट्र)बिना यूनिफार्म के वो भी हिजाब पहने परेड़ में, मतलब देश का कानून अब इनके हिसाब से चलेगा.”

इस दावे से ये वीडियो सोशल मीडिया में वायरल है.

फ़ैक्ट-चेक

इस तस्वीर का रिर्वस इमेज सर्च से कोई परिणाम नहीं मिला. लेकिन यूट्यूब पर कीवर्ड सर्च से हमें टाइम्स ऑफ़ इंडिया का 5 मार्च, 2020 की एक वीडियो रिपोर्ट मिली. वीडियो का टाइटल है, “महिला दिवस : महाराष्ट्र के बुलढाणा में 14 साल की लड़की एक दिन के लिए DSP बनी.”

वीडियो के डिस्क्रिप्शन में बताया गया है कि 14 साल की हाई-स्कूल छात्रा सहरीश कंवल को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महाराष्ट्र के बुलढाणा में एक दिन के लिए ज़िला पुलिस अधीक्षक (डीएसपी) बनाया गया.

वहीं 4 मार्च को बुलढाणा पुलिस ने भी ट्वीट किया था, “मैं एक पुलिस अधीक्षक बनना चाहती हूं…” ये मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है. एक दिन के लिए पुलिस अधिकारी सहरिश कंवल, जिला परिषद उच्च विद्यालय, मलकापुर ने कहा – [मराठी में असली मेसेज: मलाही पोलीस अधिक्षक व्हायचयं..” आजचा दिवस माझ्यासाठी अत्यंत महत्वाचा! – एक दिवसाच्या पोलीस अधिक्षीका सहरीश कवल, जिल्हा परिषद हायस्कुल, मलकापुर यांच्या अपेक्षा –पोलीस अधिक्षक, बुलडाणा मा.डॉ.दिलीप पाटील-भुजबळ यांचा जागतिक महिला दिनानिमित्त अभिनव उपक्रम.]

इस तरह सोशल मीडिया दावा गलत साबित होता है.

पुलिस में महिला या मुस्लिम महिला को प्रतिनिधित्व दिये जाने का कारण

2019 में टाटा ट्रस्ट ने ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2019‘ प्रकाशित की थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 15 साल से भी ज़्यादा (1999–2013) से बहुत कम मुस्लिम पुलिस का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं. केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत मुसलमानों के लिए आरक्षण होता है. 2013 के बाद से राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट में पुलिस में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की रिपोर्टिंग बंद हो गई है. इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि “पुलिस में सिर्फ 7% महिलाएं हिस्सा बनती हैं (ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट, जनवरी 2017) 5 सालों में 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने सुरक्षा बल में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार किया है. हालांकि, ये सुधार बहुत स्लो है.”

नीचे दिए गए इन्फ़ोग्राफिक से पता चलता है कि भारतीय राज्यों को पुलिस में 33% महिलाओं के प्रतिनिधित्व तक पहुंचने में कितना समय लगेगा.

Info graphic on page 28

 

[अपडेट: 3 सितम्बर को इस आर्टिकल में बबलू सैनी का ट्वीट शामिल किया गया है.]
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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.