पिछले कुछ महीनों से भारत में नफ़रत फैलाने वाली एंटी-मुस्लिम प्रोपगंडा रोज़मर्रा की बातचीत का हिस्सा बन गई हैं. राईट विंग हिंदू संगठन द्वारा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ डर फैलाने की कोशिश की जा रही है. ‘लव जिहाद’ और ‘थूक जिहाद’ के बाद, अब नैरेटिव ‘हलाल’ के खिलाफ़ करने की कोशिश की जा रही है.

हिंदू जनजागृति समिति ने हलाल मांस और खाने की चीज़ो पर बैन लगाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया था. इसके बाद दो नैरेटिव सामने आयीं. पहली ये कि हलाल मांस की बिक्री, भारत को एक ‘इस्लामिक राज्य’ बनाने की दिशा में एक कदम है. और दूसरी ये कि हलाल उत्पादों को रखने वाली कंपनियां ‘हिंदू विरोधी’ हैं, विशेष रूप से जिन कंपनियों के संस्थापक मुस्लिम हैं.

30 मार्च को पिरामल एंटरप्राइजेज़ में स्ट्रैटेजिक बिजनेस के ग्रुप डायरेक्टर हरिंदर एस सिक्का ने हिमालया कंपनी की पुणे फैक्ट्री में लगी एक कथित ‘हलाल पॉलिसी’ डॉक्यूमेंट की एक तस्वीर शेयर की. तस्वीर के साथ हरिंदर सिक्का ने इस पॉलिसी पर अपनी राय भी शेयर की. हलाल के बहिष्कार को बढ़ावा देते हुए, उन्होंने जोर देकर कहा कि हलाल सर्टिफ़िकेट रखने वाली कंपनी का मतलब है कि वहां काम करने वाले मुस्लिम हैं, और वे उत्पादों में गोमांस के अंश का इस्तेमाल करते हैं.

इस ट्वीट के तुरंत बाद, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सामंत ने उसी डॉक्यूमेंट को ट्वीट करते हुए लिखा, “मुझे ऐसे प्रोडक्ट पसंद हैं जिन्हें बनाने के लिए क्रूरता नहीं किया गया हो. तो जब तक हिमालया कंपनी हलाल प्रोडक्ट बनाना बंद नहीं करती, मैं उसके प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं करूंगी.” द फ्रस्ट्रेटेड इंडियन के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ये डॉक्यूमेंट ट्वीट करते हुए हिमालया कंपनी के हलाल सर्टिफ़िकेट के बारे में सवाल किया.

कई दूसरे राईट-विंग हस्तियों ने हिमालया और हलाल प्रोडक्ट्स के बहिष्कार का आह्वान किया, जिनमें अभिनेता और भाजपा सांसद परेश रावल और भाजपा नेता अमर प्रसाद रेड्डी शामिल हैं.

This slideshow requires JavaScript.

मुस्लिम व्यापारियों के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने का अभियान

हिमालया कंपनी और उसकी सब्सिडरीज़ पर निशाना कोई नई बात नहीं है. पिछले दो सालों से लगातार अलग-अलग झूठे दावों से कंपनी के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं.

2020 में वायरल एक मेसेज में दावा किया गया था कि हिमालया के संस्थापक आतंकवादी ग्रुप्स को पैसा मुहैया कराते हैं. उसी साल, एक और वीडियो वायरल हुआ जिसमें दावा किया गया कि बाबरी मस्जिद पर फैसले के बाद, हिमालया के संस्थापक ने मुसलमानों को न्यायपालिका, पुलिस बल आदि पर नियंत्रण बनाने के लिए कहा था. पिछले साल, ग़लत सूचनाओं के कम से कम तीन इंस्टैंस सामने आए थे, जिनमें कैप्सूल टैबलेट में जिलेटिन का इस्तेमाल करने के लिए सेलेक्टिव्ली हिमालया कंपनी को टारगेट किया गया. ऑल्ट न्यूज़ ने हिमालया कंपनी से संबंधित झूठी ख़बरों के कई मामलों को खारिज़ किया है जिन्हें विस्तार से हमारी वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है.

हलाल पॉलिसी की वजह से हिमालया कंपनी पर निशाना साधा जा रहा है, जबकि ज़्यादातर FMCG कंपनियों को भी हलाल सर्टिफ़िकेट मिले हैं.

हलाल और हलाल-सर्टिफ़ाइड प्रोडक्ट क्या हैं?

भारतीय ब्रांडों को हलाल सर्टिफ़िकेट देने वाले जमीयत उलमा हलाल फ़ाउंडेशन (JUHF) के मुताबिक, ‘हलाल‘ एक इस्लामिक शब्द है जिसका मतलब है वैध, जायज़ या कानूनी. बीबीसी हलाल भोजन को ऐसे भोजन के रूप में परिभाषित करता है जिसमें इस्लामी आहार मानकों का पालन किया जाता है.

ऑल्ट न्यूज़ ने JUHF के हलाल कोऑर्डिनेटर और शरिया ऑडिटर वसीम अख्तर शेख से संपर्क किया. उन्होंने हमें बताया, “हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है वैध, और वैध का मतलब बहुत सी चीज़ो से हैं. इसका मतलब कुछ ऐसा भी हो सकता है जिसे आप पहन सकते हैं या कुछ ऐसा जिसे आप पी सकते हैं, जिन चीजों को बोलने या कहने की अनुमति है, आदि. हलाल खाने-पीने तक ही सीमित नहीं है, इसका सीधा सा मतलब है कि इस्लाम में इन चीजों की अनुमति है. हलाल का एक विपरीत शब्द भी है जिसे ‘हराम’ कहा जाता है, जिसका मतलब है ग़ैरकानूनी या अवैध.”

उन्होंने आगे बताया, “जब भोजन की बात आती है, तो हलाल को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. पहला हलाल भोजन और दूसरा हलाल मांस. हलाल भोजन का मतलब है, ऐसा खाना जो वैध है और हलाल मांस का मतलब है, ऐसे जानवर जिन्हें इस्लाम में खाया जा सकता है. ये एक बकरी, मुर्गा, ऊंट आदि हो सकते हैं. इन जानवरों को सिर्फ इस्लामिक तरीके से शाहदा पढ़ने के बाद मारा जाता है, इसमें और कुछ अलग नहीं है. हलाल का मांस खाने से कोई मुसलमान नहीं बनता, ये एक मिथक है.”

निष्कर्ष के तौर पर उन्होंने बताया, “अब, अगर प्रोडक्ट एक दवा या कॉस्मेटिक क्रीम है और हलाल-सर्टिफ़ाइड है, तो इसका मतलब है कि इस प्रोडक्ट में कोई गैर-हलाल या हराम आइटम नहीं है. एक गैर-हलाल आइटम, सूअर का मांस, सूअर के मांस का अंश, या शराब हो सकता है. इस्लाम में इन चीजों की अनुमति नहीं है, इसलिए उन्हें हलाल नहीं माना जाता है. फिर से, ये एक मिथक है कि हलाल प्रोडक्ट का मतलब ये होता है सिर्फ मुसलमानों ने इसे बनाया है, या इसमें मांस के अंश है. जैसे चावल का उदाहरण लें, ये हमारे किसान भाइयों द्वारा उत्पादित किए जाते हैं. ये पूरी तरह से शाकाहारी चीज़ है जिसे हम हलाल मानते हैं. क्यों? क्योंकि इसमें कोई गैर-हलाल आइटम नहीं मिला है और इस्लाम में चावल खाने की अनुमति है.”

संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन ने भी हलाल का मतलब और उससे जुड़ी बारीकियों को समझाया है. हमारा सुझाव है कि हमारे पाठक इन टर्म्स को बेहतर समझने के लिए ये पूरा टेक्स्ट पढ़ें.

क्या हलाल सर्टिफ़िकेशन सिर्फ मुस्लिम व्यापारियों तक ही सीमित है?

जमीयत उलमा हलाल फाउंडेशन की वेबसाइट पर, अलग-अलग कंपनियों की ‘हलाल स्टेटस‘ को चेक किया जा सकता है. इसके लिस्ट में अडानी विल्मर लिमिटेड, पारले और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट जैसे बड़े नाम हैं. इन उत्पादों में अरंडी के तेल, बिस्किट से लेकर चाय की पत्ती तक शामिल हैं. इसलिए, ये दावा कि जिन कंपनी में सिर्फ मुस्लिम कर्मचारी हैं या जिन कंपनियों के मालिक मुस्लिम हैं, वही हलाल-सर्टिफ़ाइड प्रोडक्ट बनातीं हैं, हास्यास्पद और पूरी तरह से झूठा है. हलाल एक खाद्य मानक सर्टिफ़िकेट है, जिनसे मुसलमानों को ये पता चलता है कि कोई प्रोडक्ट उनके खाने के मुताबिक है या नहीं. हलाल का सीधा सा मतलब है कि मुसलमानों के लिए ये जायज़ है. इसका मतलब ये नहीं है कि ये गैर-मुसलमानों के लिए नाजायज़ है.

This slideshow requires JavaScript.

बड़ी कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स को दुनिया भर के सैकड़ों देशों में निर्यात करती हैं और उन्हें आयात करने वाले देशों के नियमों का पालन किया जाता है. ज़्यादातर मामलों में OIC देशों और खाड़ी देशों में व्यापार करने के लिए हलाल सर्टिफ़िकेशन लिया जाता है. सिर्फ 2015 में सऊदी अरब के हलाल खाद्य आयात का मूल्य 21.54 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. इसी तरह मलेशिया में 14.96 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के हलाल खाद्य आयात किए गए थे. वैश्विक हलाल बाज़ार बहुत बड़ा है और भारतीय कंपनियों के लिए रोचक है. हिमालया प्रोडक्ट्स के खिलाफ़ अभियान के संबंध में कंपनी द्वारा जारी बयान में इसे बहुत हद तक हाईलाइट किया गया है.

 

सिर्फ हिमालया को ही टारगेट नहीं किया गया है

2021 में बेंगलुरु स्थित एक और मुस्लिम व्यवसाय, आईडी फ्रेश फूड्स इस अभियान का शिकार हुआ था. सोशल मीडिया फ़ॉरवर्ड्स में दावा किया गया कि कंपनी ‘सिर्फ मुसलमानों को काम पर रखती है’ और ‘हलाल-सर्टिफ़ाइड’ है. अपने कई स्पष्टीकरण के बावजूद, आईडी फ्रेश फूड्स एक टारगेट बना हुआ है. इससे पहले मार्च में कंपनी ने बेंगलुरु में अपने कारखाने से लाइव वीडियो फ़ीड शेयर करना शुरू किया था, ताकि इन ग़लत सूचनाओं को ख़ारिज किया जा सके.

हालांकि, नफ़रत फैलाने के लिए चलाए जा रहे अभियानों का खामियाज़ा आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिम व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है. हाल ही में कर्नाटक सरकार ने धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 2002 का हवाला देते हुए कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और मंदिर परिसर में होने वाले मेला में मुस्लिम विक्रेताओं को बैन कर दिया. ऐसा तब हुआ, जब राईट विंग हिंदू ग्रुप्स ने उन पर बैन लगाने की मांग की.

इसी तरह, हलाल-सर्टिफ़ाइड प्रोडक्ट्स पर बैन लगाने के अपने इस नए अभियान के तहत, हिंदुत्व संगठनों ने कर्नाटक के शिवमोग्गा ज़िले में एक मुस्लिम मांस विक्रेता पर हमला किया. जनवरी, 2021 में एक मुस्लिम जूता विक्रेता को एक राईट विंग ग्रुप के सदस्यों ने ‘ठाकुर’ लिखे जूते बेचने का आरोप लगाया जिसके बाद उसे हिरासत में लिया गया था. पिछले साल अक्टूबर में गुजरात में 100 लोगों ने एक होटल के उद्घाटन का विरोध किया क्योंकि उसका मालिक मुसलमान था.

अगस्त, 2021 में आगरा में सड़क किनारे फूड स्टॉल चलाने वाले दो मुस्लिम भाइयों को परेशान किया गया और उनके स्टॉल में तोड़फोड़ की गई. उसी महीने, एक मुस्लिम चूड़ी विक्रेता को स्थानीय लोगों ने कथित तौर पर चूड़ियां बेचते समय अपनी पहचान छिपाने की वज़ह से पीटा था. बाद में उस पर छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए.

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.

Tagged:
About the Author

Kalim is a journalist with a keen interest in tech, misinformation, culture, etc