कई भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने रिपोर्ट किया कि पाकिस्तानी गायिका मीशा शफ़ी को ऐक्टर और सिंगर अली ज़फर के खिलाफ़ ‘यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप लगाने’ के मामले में 3 साल की सज़ा हुई है. द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एक गुमनाम रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा, “रिपोर्ट के मुताबिक, मीशा के खिलाफ़ अली ज़फर द्वारा मानहानि का केस दायर करने के बाद एक पाकिस्तानी अदालत ने मीशा को 3 साल की कैद की सज़ा सुनाई है.”

2018 में ग्लोबल #MeToo मूवमेंट जब अपने चरम पर था, मीशा ने अली ज़फर पर एक से ज़्यादा मौकों पर यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था. इसके अगले ही दिन अली ज़फर ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि वो ये मामला अदालत में ले जायेंगे. पिछले सितम्बर कुछ अन्य महिलाओं ने अली ज़फर पर ऐसे आरोप लगाए थे.

न्यूज़18, ABP न्यूज़, DNA, रिपब्लिक, अमर उजाला, आजतक, IB टाइम्स और Newsd ये रिपोर्ट करने वालों में शामिल थे कि मीशा को 3 साल की सज़ा सुनाई गयी है. ज़ी न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “मेल ऑनलाइन के मुताबिक, शफ़ी ने 2018 में #MeToo मूवमेंट के दौरान अली ज़फर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. मीशा के खिलाफ़ अली ज़फर ने मानहानि का केस दर्ज करवाया था जिसके बाद मीशा को पाकिस्तान जेल में अब 3 साल की सज़ा काटने का फ़ैसला सुनाया गया है.”

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कोइमोई (Koimoi.com) और शी द पीपल ने भी यही रिपोर्ट किया.

फ़ैक्ट-चेक

मीडिया ने ये मामला रिपोर्ट करते हुए कई तथ्यों में गड़बड़ कर दी है. मीशा शफ़ी को पाकिस्तानी अदालत ने 3 साल की सज़ा नहीं सुनाई. फ़ेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (FIA) के साइबरक्राइम विंग ने अली ज़फर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के मामले में मीशा समेत 8 महिलाओं के खिलाफ़ मामला दर्ज किया था. केवल मीशा शफ़ी ने इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी. पाकिस्तान के आउटलेट डॉन ने 29 सितम्बर, 2020 को रिपोर्ट किया था, “FIA विशेष अदालत के आदेश पर 8 महिलाओं के खिलाफ़ असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable offence) का मामला दर्ज किया गया था जिसमें अली ज़फर ने आरोप लगाया कि उन्हें बदनाम करने के लिए कैंपेन चलाया गया है.” डॉन के हालिया आर्टिकल में बताया गया है कि मामले में फ़ैसला आना अभी बाकी है.

द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस मामले की विस्तार से जानकारी देते हुए 12 मार्च को एक रिपोर्ट पब्लिश की थी. इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करने के लिए राज़ी हो गया है कि क्या ज़फर के खिलाफ़ मीशा के आरोप ‘कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न अधिनियम 2010’ के तहत आते हैं या नहीं. इससे पहले मीशा इस मामले से जुड़े मुकदमों में हारती आई हैं जहां न्यायिक अधिकारियों ने कहा है कि मीशा का केस इस कानून के तहत नहीं आता है.

द वॉल स्ट्रीट जर्नल में ये नहीं कहा गया है कि मीशा को 3 साल की सज़ा हो गयी है बल्कि ये बताया गया है कि अगर वो अली ज़फर द्वारा दायर मानहानि का मुकदमा हार जाती हैं तो उन्हें 3 साल तक की कैद हो सकती है. द डॉन के मुताबिक मानहानि का मामला अभी सेशन कोर्ट में पेंडिंग है.

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट को ब्रिटिश टैब्लॉइड डेली मेल ने ग़लत कोट कर दिया और ये भ्रामक रिपोर्ट भारतीय मीडिया का रेफ़रन्स बन गयी.

मीशा के वकील ने ट्वीट करते हुए उन मीडिया रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया जिनमें मीशा को 3 साल की सज़ा होने का दावा किया गया है. उन्होंने इसे फ़ेक न्यूज़ बताते हुए लिखा, “लोग भ्रमित न हों, पाकिस्तान के कोर्ट ने ऐसा कोई फ़ैसला नहीं दिया है. यही नहीं, अली ज़फर ने जिन महिलाओं या पुरुषों पर आरोप लगाया है, कोर्ट ने उनमें से किसी पर कोई भी ग़लत दावा फैलाने का मामला दर्ज नहीं किया है.”

मीशा ने भी अपने ट्विटर हैंडल से इस भ्रामक दावे की आलोचना करते हुए लिखा, “खुद के साथ बदसलूकी होने से भी ज़्यादा मुश्किल है उसके बारे में बताना. इसलिए हम चुप रह जाते हैं.”

भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने ग़लत रिपोर्टिंग करते हुए ये ग़लत जानकारी फैलाई कि मीशा शफ़ी को 3 साल की सज़ा हो गयी है. ये आर्टिकल लिखे जाने तक किसी भी आउटलेट ने इसपर कोई सफ़ाई नहीं दी है.


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Pooja Chaudhuri is a researcher and trainer at Bellingcat with a focus on human rights and conflict. She has a Master's in Data Journalism from Columbia University and previously worked at Alt News.