एक ट्विटर यूजर, प्रो एस वेनुगोपालन (Prof. S. Venugopalan) ने एक दुर्बल जैन संत की तस्वीर को ट्वीट करते हुए दावा किया कि ये भारत में गौ हत्या को रोकने के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं। पूर्व इंफोसिस सीएफओ मोहनदास पाई सहित कई लोगों ने इसे रीट्वीट भी किया था।
2015 से सोशल मीडिया पर यह दावा शेयर हो रहा
फेसबुक पेज इंडिया अगेंस्ट काउ स्लॉटर (India Against Cow Slaughter) ने फरवरी 2015 में यही समानं दावा करते हुए इस तस्वीर को दो और अलग-अलग जैन संतो की तस्वीर के साथ पोस्ट किया था। जिसे फेसबुक पर 7,500 से अधिक बार शेयर किया गया था।
हमें 2015 में लिखा एक ब्लॉग पोस्ट भी मिला, जो इसी फेसबुक पोस्ट पर आधारित था।
तथ्य-जांच
ऑल्ट न्यूज को हालिया मीडिया रिपोर्ट में भारत में गौ हत्या के खिलाफ किसी भी जैन संत के आमरण अनशन के बारे में कोई खबर नहीं मिला है। इससे पहले 2011 में, प्रभु सागर नाम के एक जैन संत ने बूचड़ख़ाने को बंद करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की थी जिसे बाद में पुलिस ने उन्हें अस्पताल में जबरन भर्ती कराया। 13 मई, 2011 को दैनिक जागरण में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था, “जैन भिक्षु प्रभु सागर को 16 दिन की लंबी हड़ताल के बाद खराब स्वास्थ्य होने के कारण, बुधवार देर रात पुलिस ने जबरन एक अस्पताल में भर्ती कराया।” हालांकि, वायरल तस्वीर में प्रभु सागर और जिस जैन संत की तस्वीरें वायरल हुई है, वो आपसे में मेल नहीं खाती हैं।
जैन धार्मिक प्रथा
जैन संत की वायरल तस्वीर सल्लेखना/ संथारा (Sallekhana/Santhara) के प्राचीन जैन धार्मिक कर्मकाण्ड से मिलती-जुलती है। कर्मकाण्ड को अहिंसा के सिद्धांत का एक मूलभूत घटक माना जाता है। धार्मिक अभ्यास भोजन और तरल पदार्थों के सेवन को धीरे-धीरे कम करके मृत्यु के लिए एक धार्मिक उपवास है। ऐसा माना जाता है कि सल्लेखना / संथारा का व्रत तब लिया जाता है जब जीवन के सभी उद्देश्यों की प्राप्ति हो जाती है या जब शरीर जीवन के उद्देश्य को पूरा करने में असमर्थ होता है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जैन धर्म में यह प्रथा आम नहीं है क्योंकि केवल संत, नन और अनुयायी ही सल्लेखना / संथारा करने का संकल्प ले सकते हैं।
हमें सल्लेखना के बारे में YouTube पर पोस्ट किया गया एक वीडियो मिला। नीचे पोस्ट में उसकी तुलना बाईं ओर मृत्यु के लिए उपवास कर रहे एक व्यक्ति की दाईं ओर जैन संत की वायरल तस्वीर से की गई है। दोनों तस्वीरों में व्यक्तियों के बगल में मोर के पंख भी रखे है जो जैन अनुष्ठानों के साथ उनके संबंध का संकेत देते हैं। मोर के पंखों का उपयोग जैन भिक्षु / नन द्वारा जमीन पर चलने से पहले किया जाता है। वे जमीन पर किसी भी जीव को मारने से बचाने के लिए जमीन की धूल को हटाते हुए चलते हैं। नीचे दिए गए दो अलग अलग चित्रों के पहलुओं में समानता यह दर्शाती है कि वायरल तस्वीर में व्यक्ति सल्लेखना / संथारा के प्राचीन जैन अनुष्ठान का अभ्यास कर रहे हैं।
मीडिया द्वारा गलत दावा
अमर उजाला द्वारा 7 अप्रैल, 2017 को प्रकाशित एक लेख में झूठा दावा किया गया था कि यह चित्र एक 1000 साल पुरानी बुद्ध की मूर्ति के अंदर पाए गए ममीकृत (mummified) साधु का है। हालांकि, हमने पाया कि यह तस्वीर 2015 में बुद्ध की प्रतिमा के वैज्ञानिक परीक्षण के बाद पाए गए ममीकृत संत के खोज के बारे में बताई गई समाचार से संबंधित नहीं है।
अंत में, एक तस्वीर जो कम से कम पिछले चार साल से सोशल मीडिया पर गलत दावे से चल रही है और जिसे अभी भी जैन भिक्षु द्वारा गोहत्या के विरोध में आमरण अनशन की घटना के रूप में शेयर किया जा रहा है, वो वास्तव में सल्लेखना / संथारा जैन अनुष्ठान की है, और इसका गौ हत्या के लिए आमरण अनशन से कोई संबंध नहीं है ।
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