आधार कार्ड हर जगह डिस्कस किया जा रहा है. जनता दो भागों में बंटी हुई है. एक का मानना है कि आधार हमारी ज़रुरत है दूसरे हिस्से का मानना है कि आधार में कुछ खामियां मौजूद हैं. पहले भाग में आने वाले लोगों का ये भी मानना है कि चूंकि सरकार ने आधार को प्रपोज़ किया है इसलिए ये ठीक ही होगा. इस जमात को एक अलग ही नाम दिया गया है. खैर, ये बातें हल्की हैं और सोशल मीडिया से जुड़ी हैं. जहां किसी भी बात का मूलभूत आधार ही महाखोखला होता है.

हाल ही में एक घटना हुई जिसकी वजह से इस डिस्कशन को और हवा मिली. महेंद्र सिंह धोनी की आधार इन्फो अपडेट की गई. रांची के CSC सेंटर में धोनी मौजूद थे. वहां उन्होंने अपनी बायोमीट्रिक इन्फो दी और साथ ही और भी जानकारियां दीं. इस क्रम में वहां मौजूद लोगों में से किसी एक ने उनकी एक तस्वीर खींची और ट्विटर पर लगा दी. साथ ही एक गलती भी कर दी. एक कम्प्यूटर स्क्रीन की भी फ़ोटो साली जिसमें साफ़-साफ़ देखा जा सकता था कि धोनी की जानकारी सॉफ्टवेर के ज़रिये अपडेट की जा रही थी. इसका नुकसान ये हुआ कि धोनी की प्राइवेट जानकारी हर कोई देख सकता था.

ये दो तस्वीरें ट्वीट किये जाने के बाद लोगों का जब ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने एमएस धोनी और उनकी पत्नी साक्षी सिंह को नोटिफाई करने की कोशिश की. साक्षी को जैसे ही मालूम चला तो कुछ गुस्से में उन्होंने इनफॉर्मेशन मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद को टैग करते हुए ट्वीट किया और उनसे पूछा कि क्या उनका और धोनी का निजता का कोई हक़ नहीं है? क्यूंकि ट्वीट में अटैच तस्वीर से धोनी की पर्सनल इन्फो पब्लिक हुई जा रही थी.

इसके बाद इनफॉर्मेशन मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने मामले का संज्ञान लेते हुए ट्वीट डिलीट करवाया और साक्षी सिंह से कहा कि वो इसकी जांच करेंगे. अगले दिन ये भी मालूम चला कि उस CSC सेंटर को सस्पेंड कर दिया गया है और मौजूद अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी.

मगर इसके बाद जो कुछ हुआ, वो शर्मनाक था. ट्विटर पर मौजूद बेशर्म ट्रोल सेना ने साक्षी सिंह को बेहद घटिया बातें कहते हुए कोसना शुरू किया. हालांकि ऐसी बातों का उल्लेख भी करना जायज़ नहीं मालूम देता लेकिन उनकी टुच्चई को सामने लाने के लिए ऐसा ज़रूरी है. नीचे कुछ स्क्रीनशॉट्स मौजूद हैं जिनमें जो कुछ भी है वो साक्षी के साथ हुई इस भद्दी घटना का एक नमूना मात्र है.

बीते डेढ़-दो बरसों में ट्विटर, फ़ेसबुक पर ट्रोल सेना काफ़ी ऐक्टिव रही है. औरतों को रंडी कहना और उनके चरित्र पर सवाल उठाना जिसकी फ़ितरत माना जा रहा है. ये सेना मूल रूप से मौजूदा सरकार को सपोर्ट करती है. मौजूदा निज़ाम इनके मसीहा मालूम देते हैं और ये किसी से भी छुपा नहीं है कि पर्दे के पीछे सारा खेल एक ही जगह से चलाया जा रहा है. यूपीए के कार्यकाल में जब मनमोहन सिंह और राहुल गांधी और यहां तक कि राजनीति से दूर रहने वाले रॉबर्ट वाड्रा पर सवाल उठाये जाते थे तो उन्हें डिफेंड करने वाले ज़रूर मिले लेकिन इस घटिया स्तर पर उतरने वाले कम ही मिलते थे. अब ऐसों की बाढ़ आ गई है. ज़रूर ही ये मानव सभ्यता के विकास का एक अंग होगा. और अगर ऐसा है तो चार्ल्स डार्विन को हमें आगाह कर देना चाहिए था.

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