“भारत विभिनताओं का देश है”, “भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है” यह सब हमें बचपन से सिखाया जाता है. सुनके अच्छा लगता है, गर्व होता है देश पर. मगर कुछ लोग हैं जो इन वाक्यों में विश्वास नहीं रखते हैं. बचपन की वो सिखायी हुई बातों को ग़लत साबित करने में लगे हुए हैं. एक विडीओ वाइरल हुआ है सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर जहाँ कुछ शरारती तत्व एक दूसरे धर्म के आदमी को ज़ोर ज़बरदस्ती करके मजबूरन “जय श्री राम” बुलवा रहे हैं. कौन हैं ये लोग? और कैसे बढ़ावा मिल रहा है इनको अपना धर्म किसी और पर थोपने का? कुछ लोग हैं, जो कह सकते हैं की यह एक छोटी घटना है, इसको इतनी तवज्जो नहीं देनी चाहिए. उन लोगों को, जो इसको एक छोटी सी बात समझते हैं, विडीओ के नीचे कामेंट्स पढ़ने चाहिए, “जय श्री राम” “बहुत अच्छा” “भारत में रहना होगा, राम राम कहना होगा.”

सही मायनो में इस विडीओ को हमें एक ख़तरे के रूप में देखना चाहिए. ख़तरा इस देश की एकता के लिए, इस देश के स्वाभिमान के लिए, इस देश के गौरव के लिए. क्या लगता है, उस आदमी को, जिसको ज़बरदस्ती, डरा कर, “जय श्री राम” के नारे लगवाए, रात को नींद आयी होगी ? क्या सोचा होगा उसने घर जाकर ? रोया होगा अपने परिवार से लिपटकर ? उस बेचारे को तो ये भी नहीं पता होगा की राम के ठेकेदारों ने अपनी बहादुरी का परिचय देने के लिए उसे विडीओ को सोशल मीडिया पर डाल दिया है. वो तो इसी सोच में होगा कि क्या अपने देश में रहने के लिए अब मुझे अपना भगवान बदलना होगा ? और रही बात उस दरिंदा रूपी इंसान की जिसने “राम” और भद्दी भद्दी गालियों का प्रयोग एक ही वाक्य में कर दिया, उसको राम का सिर्फ़ नाम नहीं बुलवाना था, अपने क़ौम के, अपने धर्म के प्रभुत्व को दर्शाना था. अगर ज़बरन उस मजबूर आदमी के मुख से “जय श्री राम” बुलाना किसी धर्म की जीत समझा जाता है, तो अफ़सोस के साथ ये कहना पड़ेगा की इस शर्मसार घटना की वजह से “देश हार गया!”

फ़ैसला करना है की वो बचपन की सिखायी हुआ वाक्य, “भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है” जिसको सुनके गर्व होता था इस देश पर, जो असल मायने में इस देश की नींव है, क्या हम इस वाक्य को लुप्त होता हुआ देखते रहेंगे ? इस देश की नींव को हिलने देंगे? और हाँ, ये फ़ैसला हमको करना है, सरकारों को नहीं! क्यूँकि सरकारें हमसे हैं, हम सरकारों से नहीं!

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