26 जनवरी, 2001 को राष्ट्रप्रेमी युवा दल के अध्यक्ष बाबा मेंढे सहित दो कार्यकर्ताओं रमेश कलामबे और दिलीप चट्टानी ने अन्य लोगों के साथ मिलकर कथित तौर से बलपूर्वक नागपुर स्थित रेशमीबाग़ के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के परिसर में घुस कर वहां राष्ट्रीय ध्वज फ़हराने का प्रयास किया। जिसके बाद पुलिस ने तीनों पर बम्बई पुलिस एक्ट और आई.पी.सी. की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। 14 अगस्त 2013 को नागपुर के एक न्यायलय ने उन्हें आरोपों से मुक्त करते हुए रिहा कर दिया। इस घटना के पहले, 26 जनवरी 1950 को आखरी बार स्वयं सेवक संघ ने स्वेच्छा से अपने मुख्यालय पर तिरंगा लहराया था। इसके बाद 26 जनवरी 2002 को स्वयं सेवक संघ ने नागपुर स्थित अपने मुख्यालय और रेशमीबाग़ स्थित “स्मृति भवन” जहाँ संघ के पहले दो सरसंघचालकों डॉ केशव बलिराम हेडगेवार और एम.एस. गोलवलकर के स्मारक है वहां राष्ट्रीय ध्वज फ़हराया।

हालाँकि आज कल जब इन ‘राष्ट्रवादियों’ से यह सवाल किया जाता है कि उन्होंने 52 सालों में कभी राष्ट्रीय ध्वज क्यों नहीं फ़हराया तो वह आमतौर पर सन 2002 से पहले लागु होने वाले ‘भारतीय ध्वज संहिता’ को गलत तरीके से उद्धृत करते है। उनका दावा है कि 2002 तक भारत के निजी नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी जो कि 2002 के बाद केंद्र सरकार द्वारा संशोधित राष्ट्रीय ध्वज संहिता पारित करने के बाद ही हासिल हुई। यह दावा अपने आप में कितना बेतुका है इसकी चर्चा करने से पहले ट्विटर पर ‘भक्तों’ के इन अजीबोगरीब दावो पर एक नज़र डाल लेते है। नीचे दी गयी गैलरी में हर एक ‘राष्ट्रवादी’ प्रधान मंत्री मोदी द्वारा ट्विटर पर फॉलो किया जाता है।

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कौन राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकता है और कब फहरा सकता है यह पूरा मसला मुख्यधारा की चर्चा में तब आया जब फरवरी 1995 में उद्योगपति नवीन जिंदल ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर अधिकारियों द्वारा उनपर अपनी रायगढ़ फैक्ट्री पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने से रोके जाने के आदेश को चुनौती दी।

तब तक, 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर जैसे ख़ास मौकों को छोड़ कर भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी। 15 जनवरी 2002 को केंद्रीय कैबिनेट ने डॉ पी.डी. शेनॉय कमिटी जिसका गठन कैबिनेट द्वारा इस मसले के समाधान के लिए किया गया था की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए यह घोषणा की कि 26 जनवरी 2002 से भारत का कोई भी नागरिक किसी भी दिन राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए स्वतंत्र है।

यह तथ्य कि भारत के सभी नागरिक 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर जैसे खास मौकों पर बिना किसी रोक-टोक के राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकते है कम से कम दो दस्तावेजों में दर्ज है- तत्कालीन प्रचलित ‘राष्ट्रिय ध्वज संहिता’ और 15 जून 1971 के गृह मंत्रालय के मंत्री द्वारा जारी एक पत्र में। मैं 2002 से पहले प्रचलित राष्ट्रीय ध्वज संहिता को 1982 के प्रोटोकॉल मैनुअल जो कि पंजाब सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध है में खोजने में कामयाब रहा। 6 हिस्सों में बंटे इस मैन्युअल की चौथी पी.डी.एफ. फाइल के 12वे पन्ने पर राष्ट्रीय ध्वज कोड मौजूद है जिसके 14वे पन्ने पर इन मामले में प्रासंगिक अनुभाग मौजूद है, जिसकी क्लिपिंग नीचे देखी जा सकती है।

Flag Code-India stating that unrestricted access is available on republic day national week, independence day and mahata gandhi's birthday

ऊपर दिए गया लिखित ब्यौरा सीधे तौर पर यह कहता है कि जनतंत्र दिवस, राष्ट्रीय सप्ताह, स्वतंत्रता दिवस और महात्मा गाँधी के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय ध्वज को किसी भी व्यक्ति द्वारा फहराया जाना कानूनन अप्रतिबंधित है। और वास्तव में हम सब में से ज़्यादातर लोग, अपने स्कूल और कॉलेजों में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर आयोजित कार्यक्रमो में राष्ट्रीय ध्वज को प्राचार्य द्वारा फहराये जाते देख कर ही बड़े हुए है। गृह मंत्रालय द्वारा 15 जून 1971 को जारी पत्र में भी यह तथ्य स्पष्ट दर्ज है।

1971 letter flag can be hoisted by anyone on special ocassions

यह दोंनों दस्तावेज़ साफ़ तौर पर यह बात स्पष्ट कर देते है कि कम से कम साल में 3 ख़ास मौकों पर भारतीय नागरिकों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर 2002 से पहले प्रचलित राष्ट्रीय ध्वज संहिता में कोई प्रतिबंध नहीं था। राष्ट्रीय ध्वज फहराने का कानूनी अधिकार होते हुए भी स्वयं सेवक संघ राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया। यह ‘राष्ट्रवादी’ जो इन दिनों सिनेमाघरों में राष्ट्र गान का सम्मान न करने वालों के ख़िलाफ़ हिंसा का मुखर समर्थन कर रहे है उन्होंने खुद 52 सालों में कभी राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया न ही उनकी ऐसी कोई इच्छा रही। 52 सालों में न ही स्वतंत्रता दिवस पर, न गणतंत्र दिवस पर उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। इतने ‘राष्ट्रवादी है यह सच्चे ‘राष्ट्रवादी’। इस लेख का अंत मैं तथाकथित ‘देश-द्रोहियों’ द्वारा गए जाने वाले एक गीत से करूँगा, जो हमारे देश के धर्म निरपेक्ष तानेबाने की बात करता है।

Would such a song upholding the secular fabric of India be ever sung in a RSS Shakha who for the longest time refused to fly the Indian national flag?

“Hamare mulk mein Hindu-Musalman saath rehte hai, yahaan Isaai ke kandho pe Sikh ke haath rehte hai..”

Posted by Pratik Sinha on Thursday, March 16, 2017

“हमारे मुल्क में हिन्दू-मुसलमान साथ रेहते है ,
यहाँ ईसाई के कंधो पे सिख के हाथ रहते है”

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