कई सोशल मीडिया यूज़र एक तस्वीर पोस्ट कर रहे हैं जिसमें एक फ़्लाईओवर के मलबे में दबी कुछ कारें देखी जा सकती हैं. सोशल मीडिया के दावों के अनुसार, ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 2018 में हुई एक घटना की है. तस्वीर के साथ किए गए दावे के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार के तहत परियोजना के ठेकेदार को अभी तक ग़िरफ्तार किया जाना बाकी है.

(वायरल टेक्स्ट: 5 मई 2018 वाराणसी पुल हादसा याद है वो ठेकेदार योगी को आज तक नही मिल पाया.)

एक लाख से ज्यादा फ़ॉलोअर्स वाला फ़ेसबुक पेज अनऑफ़िशियल: अरविंद केजरीवाल ने तस्वीर के साथ इस दावे को पोस्ट किया. इसे 5 हज़ार से ज़्यादा बार शेयर किया जा गया है.

इसी तरह कई हाई नेटवर्क वाले फ़ेसबुक पेज ने इस दावे को शेयर किया. जिनमें, बीजेपी मुक्त भारत, आई एम विद राजा गुरजोत सिंह, इंडिया सोशल मीडिया और समाजवादी आईटी सेल आदि शामिल हैं. सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टूल, क्राउडटेंगल का इस्तेमाल करके हमने देखा कि फ़ेसबुक पर सैकड़ों दूसरे पेज ने इस दावे को आगे बढ़ाया [PDF देखें]. ये दावा कई ट्विटर यूज़र्स ने भी किया.

सच्ची घटना, भ्रामक दावा

ऑल्ट न्यूज़ ने रिवर्स इमेज करने पर देखा कि ये तस्वीर असल में 15 मई, 2018 की है और वाराणसी में हुई एक घटना से संबंधित है. उस समय छावनी रेलवे स्टेशन एरिया के पास एक पुल गिर गया था. वायरल तस्वीर स्टॉक इमेज वेबसाइट अलामी पर मौजूद है और इसे प्रभात कुमार ने क्लिक किया था.

द हिंदू ने रिपोर्ट किया था कि ये फ़्लाईओवर बन ही रहा था और उसका एक हिस्सा ढह गया. इस घटना में करीब 18 लोगों की मौत हो गई. रिपोर्ट के मुताबिक, “करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए, एक मिनी बस और एक टेंपो सहित करीब 7 गाड़ियां गर्डर के गिरने से उसके नीचे दब गयीं.”

द हिंदू की रिपोर्ट घटना के एक दिन बाद की है. इसके अनुसार, सिगरा पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज की गई थी. FIR में कुछ विशिष्ट व्यक्तियों का नाम नहीं हैं लेकिन अलग-अलग कामों के लिए UPSBC द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षी अधिकारियों, ठेकेदारों और कर्मचारियों को सूचीबद्ध किया गया. धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), धारा 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और भारतीय दंड संहिता की धारा 427 (हानि) लागू की गईं. FIR में पब्लिक प्रॉपर्टी डैमेज प्रिवेंशन एक्ट 1984 की धारा 3 और 4 का भी ज़िक्र है.

दो महीने बाद आठ लोगों को ग़िरफ्तार किया गया. पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह ने द वायर हिंदी को बताया कि उत्तराखंड के रुड़की स्थित केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की मदद से इकट्ठा किए गए तकनीकी सबूत के आधार पर कार्यवाही की गई. जांच में पाया गया कि निर्माण में कई खामियां थीं.

ग़िरफ्तार लोगों में परियोजना प्रबंधक, इंजीनियर और ठेकेदार साहेब हुसैन भी शामिल हैं. उसी महीने, पुलिस कमिश्नरेट वाराणसी ने एक बयान ट्वीट किया जिसमें ग़िरफ्तार किए गए लोगों के नाम सूचीबद्ध हैं. इस बयान के अनुसार, 15 लोगों की मौत हो गई थी. ऑल्ट न्यूज़ ने सिघरा पुलिस स्टेशन के SHO से बात की. उन्होंने बताया, “सोशल मीडिया का दावा ग़लत है. ठेकेदार समेत आठ लोगों को ग़िरफ्तार किया जा चुका है.

कुल मिलाकर, आगामी यूपी चुनावों से पहले कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने 2018 में हुए वाराणसी की घटना की भ्रामक कहानी शेयर की. दावे के मुताबिक, 2018 में वाराणसी में एक फ़्लाईओवर गिर गया था लेकिन करीब चार साल बाद भी ठेकेदार को ग़िरफ्तार नहीं किया जा सका है. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स और पुलिस के मुताबिक, ठेकेदार समेत आठ लोगों को ग़िरफ्तार किया गया था.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.