19 फरवरी को खबर आई कि पाकिस्तान ने मैंडरिन को अधिकारिक भाषा घोषित कर दिया है। यह जानकारी सबसे पहली बार पाकिस्तानी समाचार चैनल ‘अब टक’ न्यूज ने दी थी।
Senate Approves Motion to Declare Chinese as Official Languagehttps://t.co/GpMvhR0anu pic.twitter.com/lbbinXweXb
— AbbTakk (@AbbTakk) February 19, 2018
कुछ ही समय में, अन्य समाचार संगठनों ने भी इसी खबर को प्रसारित किया। सीमा के इस पार, भारतीय मीडिया एजेंसियों ने भी समाचार एजेंसी एएनआई सहित इस खबर की सूचना दी।
पाकिस्तानी चैनल अब तक जिसने सबसे पहले इस खबर की जानकारी दी थी, इसका हवाला देते हुए एएनआई ने लिखा, “सोमवार को पाकिस्तानी सीनेट ने मैंडरिन को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषाओं में से एक घोषित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। प्रस्ताव में कहा गया कि पाकिस्तान और चीन के बीच संबंधों को देखते हुए यह कदम जरूरी है, यह अब तक न्यूज की रिपोर्ट है।”
टेलीविज़न चैनल इंडिया टुडे और टाइम्स नाउ ने भी बताया कि मैंडरिन को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित किया गया है।
कई समाचार पत्रों ने भी इसी समाचार की सूचना देने में देरी नहीं की।
यह खबर नकली निकला क्यूंकि पाकिस्तानी संसद ने ऐसा कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं किया था, जिसमें मैंडरिन को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित किया। सोशल मीडिया पर एक ट्विटर यूजर ने इस गलती की ओर ध्यान दिलाया।
Dozens of major media outlets, mostly Indian ones, have been incorrectly reporting that Pakistan made Chinese an official language, but apparently that is fake news and the Pakistani Senate actually just passed a measure for Mandarin language classes.https://t.co/TeMc7puebQ
— Ben Norton (@BenjaminNorton) February 20, 2018
खबर यह थी कि पाकिस्तानी संसद में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) परियोजना के तहत संचार बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया है। जिसमें इसे पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा बनाने की बात नहीं कही है, बल्कि चीन की इस आधिकारिक भाषा को पाकिस्तान में पढ़ाए जाने की बात कही गयी है। यह प्रस्ताव पीपीपी नेता खालिदा परवीन द्वारा पारित किया गया था जिसमें यह कहा गया है:
“यह प्रस्ताव इस बात की सिफारिश करता है कि सीपीईसी के तहत पाकिस्तान और चीन के बीच बढ़ते सहयोग को देखते हुए, आधिकारिक चीनी भाषा के पाठ्यक्रमों को सभी मौजूदा और संभावित पाकिस्तानी सीपीईसी मानव संसाधनों के लिए लॉन्च किया जाना चाहिए ताकि किसी भी कम्युनिकेशन बैरियर को दूर किया जा सके।”
Reports of Pakistan adopting Chinese as official language might be mistaken? This was was being considered: pic.twitter.com/SL7nBMBjC0
— Dhruva Jaishankar (@d_jaishankar) February 19, 2018
एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल द्वारा रिपोर्टिंग करने में हुई गलती को सत्यापन के बिना भारतीय समाचार वेबसाइट ने भी प्रकाशित किया। यह समाचार झूठा साबित हुआ, लेकिन मुख्यधारा के मीडिया प्रकाशनों को इस बारे में सूचना मिलने के बाद इसका एहसास हुआ। अधिकांश समाचार संगठनों ने बाद में इस रिपोर्ट को हटा लिया।
अन्य मामलों में भी एक स्वतंत्र तथ्य जाँच के बजाय कॉपी-पेस्ट की प्रवृति ज्यादा देखी जाती जाती है। पिछले हफ्ते एक खबर वायरल हो रहा था कि रोटोमैक पेन के मालिक ने बैंकों से उधार लिए गए 800 करोड़ रुपये के भुगतान न कर पाने के बाद देश छोड़ दिया। कई समाचार वेबसाइट ने इसकी प्रामाणिकता की जांच किए बिना इस समाचार को प्रकाशित किया।
After #NiravModi, Rotomac Pen's Rs. 800 crore defaulter flees country https://t.co/P3HUOCCLXP pic.twitter.com/TClzv8KSpc
— NDTV (@ndtv) February 18, 2018
#FrontPage
Another Nirav Modi in making? Rotomac Pen's Rs 8 billion defaulter flees country #PNBScam https://t.co/LQyH5Gh6ja pic.twitter.com/6x6z87Af4D— Business Standard (@bsindia) February 19, 2018
यह खबर भी झूठी थी, रोटोमैक पेन कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी देश में ही हैं और कुछ समाचार संस्थानों ने देश छोड़कर भाग जाने की खबर बता दी। कोठारी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था और उनकी संपत्ति पर छापे मारे गए थे।
इससे पहले, जब रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद का पद संभाला था, तब समाचार संगठनों ने बताया कि उनके ट्वीटर पर 30 लाख से अधिक फॉलोअर्स एक घंटे के भीतर बन गए थे। एक सामान्य जांच से पता चला कि यह भारत के राष्ट्रपति के आधिकारिक खाते से डेटा का संक्रमण था। जिसके परिणामस्वरूप मुखर्जी के आधिकारिक खाता के फॉलोअर्स कोविंद को विरासत में मिला। यह छोटी सी जानकारी कई समाचार संगठनो ने अनदेखा कर दिया।
और यह कौन भूल सकता है जो पिछले साल स्नैपचैट के सीईओ इवान स्पिगल ने ‘कथित तौर पर‘ भारत के बारे में क्या कहा था। कई मीडिया प्रकाशनों द्वारा यह रिपोर्ट किया गया था जिसमें स्नैपडील और मिरांडा केर पर सोशल मीडिया पर किये गए हमले की खबर थी। स्वतंत्र सत्यापन के माध्यम से सूचना का प्रमाणीकरण पत्रकारिता का एक अनिवार्य अंग है, और विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है। दुर्भाग्य से, हाल के दिनों में हमने जो कुछ भी उदाहरणों के तौर पर देखा है, वह कॉपी-पेस्ट पत्रकारिता की एक प्रवृत्ति है।
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