10 फ़रवरी के बाद से, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने एक रिपोर्ट पब्लिश की है. इनमें कहा गया है कि वुहान और चोंग्क़िंग में सल्फ़र डाईऑक्साइड के स्तर में बढ़ोत्तरी भारी संख्या में कोरोनावायरस के पीड़ितों को जलाने की वजह से हो सकती है. इन रिपोर्ट्स में एक स्क्रीनशॉट भी दिख रहा है, जो मौसम की जानकारी देने वाली चेकोस्लोवाकिया की एक कंपनी windy.com लिया गया है. इसे ‘वुहान में सल्फ़र डाईऑक्साइड के 1,350 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (µg/m3) के चौंकाने वाले स्तर’ को बताने वाली रिपोर्ट्स में मुख्य स्रोत की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.

जिन मीडिया संस्थानों ने इस रिपोर्ट को पब्लिश किया, उनमें हैं- ‘डेली मेल’, ‘द सन’ (आर्काइव लिंक), ‘वियॉन’ (आर्काइव लिंक) और ‘इंडिया टाइम्स’.

9 फ़रवरी को ‘@inteldotwav’ के ट्विटर अकाउंट ने पोस्ट (आर्काइव लिंक) windy की वही तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि वुहान के बाहरी इलाकों में सल्फ़र डाईऑक्साइड (SO2) का ये स्तर जैविक पदार्थों को जलाने से जुड़ा हुआ है. तब से इस ट्वीट को 12 हजार से अधिक बार रीट्वीट किया जा चुका है.

‘@livecrisisnews’ नाम का ट्विटर अकाउंट महामारियों के बारे में भरोसेमंद जानकारी(बायो के अनुसार) देने का दावा करता है. इन्होंने भी वही स्क्रीनशॉट (आर्काइव लिंक) शेयर करते हुए पोस्ट किया,

“वुहान में सल्फ़र डाईऑक्साइड (SO2) गैस, ये आमतौर पर जैविक पदार्थों को जलाने से जुड़ा हुआ है. वे क्या जला रहे हैं?

#coronavirus #coronavirusoutbreak #wuhan सोर्स: windy.com

कमरिपोर्टिंग, ज़्यादा अनुमान

‘डेली मेल’, ‘द सन’ (आर्काइव लिंक), ‘वियॉन’ (आर्काइव लिंक) और ‘इंडिया टाइम्स’ के लेखों में ये अनुमान जताया गया कि SO2 के स्तर में वृद्धि का सीधा संकेत ये है कि वुहान और चोंग्क़िंग भारी संख्या में शवों को जलाया जा रहा होगा. इस तर्क के पीछे कोई सबूत नहीं दिए गए और रिपोर्ट्स में ये भी लिखा गया कि इनकी पुष्टि नहीं हुई है. उदाहरण के लिए, ‘द सन’ की रिपोर्ट में लिखा है, “लेकिन ये निश्चित नहीं है कि SO2 का बढ़ा हुए स्तर वायरस के पीड़ितों को जलाने की वजह से है क्योंकि ये रंगहीन गैस जीवाश्म ईंधनों, जैसे कि कोयला और तेल के जलने या इंडस्ट्री से भी पैदा होती है.”

‘इंडिया टाइम्स’ और ‘डेली मेल’ ने अपनी रिपोर्ट्स को हटा लिया है.

फ़ैक्ट चेक

एक्सपर्ट ओपिनियन

इस दावे की सत्यता जांचने के लिए ऑल्ट न्यूज़ पहुंचा राज भगत पलानीसामी के पास. वो भारत के वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट में रिमोट सेंसिंग के विशेषज्ञ हैं. पलानीसामी ने कहा, “जिन तस्वीरों को सेटेलाइट से ली गई तस्वीरों के तौर पर पेश किया जा रहा है, वो दरअसल सेटेलाइट तस्वीरें हैं ही नहीं. ये असल में GEOS-5 मॉडल से मिली हैं जिन्हें windy.com के द्वारा दिखाया और शेयर किया गया हैं. तस्वीरों में SO2 का अनुमानित स्तर दिखाया गया है, ये ऑब्जर्वेशन्स नहीं हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “GEOS-5 मॉडल उत्सर्जन यंत्रों का इस्तेमाल करते हैं जो मॉडल रन और फ़ोरकास्ट रन से काफ़ी पहले बनाए गए थे. इनमें लाइव ऑब्जर्वेशन नहीं होते हैं. कृत्रिम प्रदूषण के स्रोतों में किसी भी तरह का शॉर्ट टर्म (खासतौर पर आकस्मिक) बदलाव मॉडल के परिणाम में कोई भूमिका नहीं निभाता है. इसलिए इन मॉडल्स के द्वारा SO2 के संबंध में की गई भविष्यवाणी को नोवेल कोरोनावायरस या उससे पैदा हुए सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ़, SO2 के स्तर को ग्राउंड स्टेशनों और सेटेलाइट तस्वीरों से मॉनिटर किया जा सकता है. वे बताई गई अवधि में कोई असाधारण बदलाव नहीं दिखाते हैं, जैसा कि न्यूज़ आर्टिकल्स में दावा किया गया है.”

जब ऑल्ट न्यूज़ ने ये पूछा कि Windy की रीडिंग्स इतनी ज़्यादा क्यों है, पलानीसामी ने बताया, “चूंकि Windy की तस्वीर कृत्रिम सोर्सेज़ के लिए बने उत्सर्जन यंत्रों के मॉडल पर आधारित है और प्रदूषण का फैलाव आकाशीय घटनाओं से निर्धारित होता है. ये मॉडल सामान्य परिस्थिति में कृत्रिम स्रोतों के लिए काम करता है और शॉर्ट टर्म के बदलावों के लिए जवाबदेह नहीं है, इसलिए वुहान जैसे अत्यधिक प्रदूषित चीनी शहरों में इसका लेनल ऊंचा है.”

तस्वीरों में SO2 के स्तर की भविष्यवाणी है, वो वास्तविक आंकड़ा नहीं है

Windy के जनरल डिस्कशन वाले पन्ने पर आए सवालों का जवाब देते हुए, Windy की कम्युनिटी मैनेजर ने लिखा, “windy.com SO2 मास डाटा नासा के GEOS-5 मॉडल से लेता है, लेकिन हम पुराने डेटा नहीं दिखाते हैं. डेटा के संबंध में सबसे नीचे विस्तार से बताया है.” नीचे दिख रहा स्क्रीनशॉट Windy के होमपेज का है. पीले रंग वाला बटन दिख रहे डेटा के बारे में जानकारी देता है, जिस सेक्शन को लाल रंग से हाईलाइट किया गया है, उसमें ये दिख रहा है कि डेटा नासा से लिए गए हैं.

13 फ़रवरी को ब्रिटेन की स्वतंत्र फ़ैक्ट-चेकिंग संस्था ‘फ़ुल फैक्ट’ ने इस मुद्दे पर रिपोर्ट किया है. डॉ. अरलिंडो एम डि सिल्वा नासा के मॉडलिंग एवं एसिमिलेशन ऑफ़िस में मौसमविज्ञान के रिसर्चर हैं. उन्होंने संस्था को बताया कि GEOS-5 के सल्फ़र डाईऑक्साइड मॉडल ‘वास्तविक सेटेलाइट डेटा नहीं दिखाते हैं’, बल्कि उत्सर्जन स्तर के पुराने प्रमाणों पर आधारित होते हैं.

2013 में नासा के ग्लोबल मॉडलिंग एंड एसिमिलेशन ऑफ़िस द्वारा किया गया रिसर्च GEOS-5 के सल्फ़र डाईऑक्साइड मॉडल्स की पुष्टि करता है. इसमें लिखा है, “2010 के फ़्रोस्टबर्ग फ़ील्ड कैंपेन के दौरान एक सैंपलिंग स्टेशन में जब मॉडल SO2 और प्राप्त(ब्लू) SO2 की तुलना की गई, तो कंट्रोल रन (लाल) में SO2 का फ़ैक्टर 4-5 गुना अधिक था. हालांकि रिवाइज़्ड रन (काला) में परिणाम पहले से बेहतर थे, फ़िर भी वे काफ़ी ज्यादा था.

रियल-टाइम डेटा में SO2 के स्तर के बारे में कोई चिंताजनक बात नहीं है

वर्ल्ड एयर क़्वालिटी इंडेक्स प्रोजेक्ट, 2007 में शुरू की गई एक गैर-लाभकारी परियोजना है. वुहान में SO2 लेवल का इंडेक्स 10 फ़रवरी (सोमवार) से अच्छे की श्रेणी में रहा है.

ये परियोजना 100 से ज़्यादा देशों के 1,000 बड़े शहरों में 12,000 स्टेशन्स के ज़रिए हवा की गुणवत्ता के संबंध में जानकारी देती है. दो वेबसाइट्स के माध्यम से: aqicn.org और waqi.info.

दाह-संस्कार के दौरान निकले SO2 के स्तर के बारे में कुछ तथ्य

नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नॉलजी इंफ़ोर्मेशन स्टडीज़ ने मई 2018 में एक जर्नल पब्लिश किया गया था. इसका शीर्षक था, ‘चीन के बीजिंग में शवदाह से निकले हानिकारक वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन की विशेषताएं’. इस स्टडी में लिखा गया था, “शवों को जलाने से कई तरह के वायु प्रदूषक पैदा होते हैं. जिसमें शामिल हैं पार्टिकुलेट मैटर (PM), सल्फ़र डाईऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) और वज़नी धातुएं.” उत्सर्जन का संकेंदर्ण कई कारकों से प्रभावित होता है जैसे कि, “ईंधन कौन सा है, शवदाह स्थल का प्रकार, जलने के बाद धुएं की निकासी का तंत्र और रखरखाव.” जर्नल में एक इंफोग्राफिक भी है जो पोस्ट-ट्रीटमेंट के साथ या इसके बिना पार्टिकुलेट मैटर और गैसीय प्रदूषकों के लेवल की तुलना दिखाता है.

इंफ़ोग्राफिक के मुताबिक, SO2 का संकेंद्रण बाकी प्रदूषकों की तुलना में सबसे कम होता है. न तो किसी भी मीडिया रिपोर्ट में इस फ़ैक्ट का ज़िक्र किया गया है और न ही उन्होंने दाह-संस्कार के दौरान पैदा होने वाले अन्य मुख्य प्रदूषकों के बारे में कोई जानकारी दी.

मिलान का एक गैर-लाभकारी मीडिया संगठन है ओपेन. इसने 12 फ़रवरी को एक फ़ैक्ट-चेक पब्लिश किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ पलेरमो में केमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर पेलेग्रिनो कॉन्टे से बात की. उन्होंने कहा कि नुकसान के लिए संकेंद्रण 50 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम से ज़्यादा होना चाहिए. कॉन्टे की गणना के अनुसार, वुहान के एयर स्पेस के पहले 10 किलोमीटर में की हवा में 50 ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर का मतलब होगा कि लगभग 3 करोड़ लाशें जलाई गई हैं. ‘यूरो न्यूज़’ ने भी अपने फ़ैक्ट-चेक में कॉन्टे की बात को जगह दी.

इसलिए, ये दावा कि वुहान में भारी संख्या में लाशों को जलाने की वजह से सल्फ़र डाईऑक्साइड (SO2) के स्तर में बढ़ोत्तरी हुई है, ये windy.com के डेटा से पुष्ट नहीं हो पाता है. वर्ल्ड एयर क़्वालिटी इंडेक्स के अनुसार, वुहान में SO2 का स्तर चिंताजनक नहीं है.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.