प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 जून को उत्तर प्रदेश के मगहर में कबीर के मृत्यु की पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने गए थे। मगहर वही जगह है जहां कबीर ने अपनी आखिरी साँस ली थी। नानक, नामदेव, चैतन्य और ज्ञानेश्वर के साथ कवि और सूफी कबीर ने एक नई विचारधारा का प्रतिनिधित्व किया था जो भक्ति आंदोलन के रूप में लोकप्रिय हुआ था। भक्ति आन्दोलन मध्ययुगीन भारत में फैला और इसमें भक्ति, सहिष्णुता, सद्भाव और भाईचारे पर बल दिया गया।
अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री ने कबीर की महानता का गुणगान करते हुए कहा, “महात्मा कबीर को उनकी ही निर्वाण भूमि से मैं एक बार फिर कोटि कोटि नमन करता हूं, ऐसा कहते है कि यहीं पर संत कबीर, गुरु नानक देव और बाबा गोरकनाथ जी ने एक साथ बैठ करके आध्यात्मिक चर्चा की थी।”
प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यकालीन युग के तीन प्रसिद्ध व्यक्तियों कबीर, नानक और गोरखनाथ को संदर्भित किया। उन्होंने यह भी कहा कि तीनों समकालीन थे- और आध्यात्मिक मामलों पर चर्चा करने के लिए मगहर में इकट्ठे हुए थे। अगर मध्यकालीन भारत के इतिहास को गौर से देखे, तो यह दावा फिजूल लगता है। आइए इन तीनो नामों में से प्रत्येक को जाने और जिन वर्षों में ये तीनों जीवित थे उसका पता लगाए।
कबीर
कबीर, सूफी संत और कवि थे जिनके दोहे आज तक प्रचलित हैं। कबीर को अधिकांश इतिहासकारों ने लगभग 15वीं शताब्दी में रखा गया है, हालांकि तिथियां निर्णायक नहीं हैं। कबीर भक्ति आंदोलन के एक परंपरा का हिस्सा थे, जिसे निर्गुण (गुणों के बिना, असीम दिव्य चेतना) कहा जाता है।
दक्षिण एशियाई इतिहास के लेखक और विद्वान डेविड लॉरेनज ने हिंदू धर्म की खोज में कहा कि कबीर लगभग 15वीं शताब्दी के समय के थे। वह लिखते हैं, “कबीर लगभग 1450 और 1520 ईस्वी के बीच बनारस में रहते थे, और कहा जाता है कि वे वैष्णव गुरु रामानंद के अनुयायी बनने से पहले एक मुस्लिम परिवार में पले बढ़े।” लिंडा हेस -कबीर के लेखक और विद्वान ने कबीर को 1398-1518 बीच रखा है।
नानक
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक निर्गुण भक्ति के एक अन्य प्रसिद्ध समर्थक थे, वे 15वीं और 16वीं सदी से संबंधित हैं। गुरु नानक का जन्म 1469 ईसवी में लाहौर के पास ननकाना साहिब में हुआ था। कहा जाता है कि वह 1539 ईसवी तक जीवित थे।
प्रधानमंत्री मोदी इस हद तक सही हैं कि कबीर और नानक दोनों समकालीन थे। उनकी शिक्षाओं में भी कई समानताएं हैं, और दोनों कवि-संत एक-दूसरे को प्रेरित और प्रभावित करते हैं। लेकिन गोरखनाथ के सन्दर्भ में क्या सच है?
गोरखनाथ
गोरखनाथ को नाथ आंदोलन के संस्थापक के तौर पर माना जाता है, जो एक शैववादी योग परंपरा है। उन्हें मठवासी आंदोलन क्रम की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। कई विद्वानों के मुताबिक, गोरखनाथ लगभग 12वीं शताब्दी से सम्बंधित थे, जिस अवधि में नाथ आंदोलन का प्रसार हुआ था।
जॉर्ज वेस्टन ब्रिग्स द्वारा (Gorakhnath and the Kanphata Yogis) गोरखनाथ और कनफटा योगी जिसे नाथ पंथी आंदोलन के सबसे आधिकारिक ग्रंथों में से एक माना जाता है, “इस प्रकार ज्ञानेश्वरी में गोरखनाथ को साहित्यिक संदर्भ में पाया गया है, जो उन्हें इतिहास में एक निश्चित स्थान देता है। यदि ज्ञानेश्वरी के अनुसार सामान्य तिथि 1290 को स्वीकार करें तो गोरखनाथ को 1225 से बाद में नहीं रखा जा सकता है। हालांकि, इस तारीख से संबंधित कुछ अनिश्चितताएँ है। हालांकि यह भी कहा जा सकता है कि कविता 1290 के बाद तो नहीं लिखी गई थी, यह पहले लिखी जा सकती थी।” ज्ञानेश्वर भगवद् गीता पर एक टिप्पणी है जिसे लगभग 13वीं शताब्दी में जानेश्वर (या दानेश्वर), मराठी कवि संत द्वारा लिखा गया था। यह इंडोलॉजिस्ट और विद्वान डॉ जेम्स मैलिन्सन द्वारा पुष्टि की जाती है जो नाथ संप्रदाय में लिखते हैं कि लगभग 12 वीं शताब्दी में गोरखनाथ रहते थे।
गोरखनाथ | लगभग 12वीं शताब्दी सीई (CE) |
कबीर | 15वीं शताब्दी सीई (CE) (लगभग 1398-1518) |
नानक | 15वीं शताब्दी सीई(CE) (1469-1539) |
क्या कबीर, नानक और गोरखनाथ के बीच बातचीत के संदर्भ हैं?
कबीर, नानक और गोरखनाथ के बीच होने वाली वार्तालापों या बातचीत के दो संदर्भ हैं। गुरु नानक की जनसखी में, सिख धर्म के संस्थापक को गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ (जो कि हठ योग के संस्थापक है) से बात करते हुए दर्शाया गया है। दूसरी तरफ, गोरखनाथ की गोष्ठी गोरखनाथ और कबीर के बीच वार्तालाप बताती है। हालांकि, छंदों की जांच कर विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इन संवादों के संदर्भ रूपरेखात्मक हैं, और गोरखनाथ का जन्म कबीर और नानक से बहुत पहले हुआ था।
संदर्भ के आधार पर, प्रधानमंत्री मोदी ऐतिहासिक संदर्भों के साथ अपनी भाषण देते हैं, लेकिन उनसे पहले भी कई अवसरों पर इतिहास की जानकारी देते हुए चूक चूक हुई है। अभी कुछ दिन पहले मई 2018 में कर्नाटक चुनाव प्रचार में, उन्होंने गलत तरीके से दावा किया था कि जब अंग्रेजों ने भगत सिंह को जेल में कैद किया हुआ था तब कोई भी कांग्रेस नेता भगत सिंह से मिलने जेल नहीं गया था। यह सच है कि नानक और कबीर दोनों गोरखनाथ की शिक्षाओं से प्रेरित थे जो उनके भक्ति भजनों में प्रकट होते भी हैं। यह भी सच है कि लोग उनके बीच संवाद की बात करते हैं, लेकिन यह तथ्य नहीं हैं। विद्वानों की राय निश्चित रूप से नानक और कबीर को गोरखनाथ से कम से कम तीन शताब्दी अलग दिखाती है।
अनुवाद: चन्द्र भूषण झा के सौजन्य से
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