दो तस्वीरों को साथ में रखकर सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. एक तस्वीर में जवाहरलाल नेहरू एक कुत्ते के साथ हवाई जहाज़ से उतरते दिख रहे हैं और दूसरी तस्वीर में कुछ खिलाड़ी नंगे पांव खड़े दिख रहे हैं. इसे इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि भारतीय फ़ुटबॉल खिलाड़ियों के पास पहनने को जूते तक नहीं थे और जवाहरलाल नेहरू का कुत्ता तक हवाई जहाज़ में सफ़र करता था.
The picture above is of the Indian football team playing the 1948 London Olympics.Azad India’s football team did not have enough money to buy shoes.Some players wore socks & others played barefoot.This was the time when Nehru’s clothes went to Paris to be dry-cleaned pic.twitter.com/CtQkWVYa4V
— Kavi🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@kavita_tewari) July 26, 2021
फ़ेसबुक पर ये ख़ूब वायरल है.
ये दावा 2018 से सोशल मीडिया पर वायरल है. जुलाई 2018 में एक फ़ेसबुक पेज, सोशल तमाशा (Social Tamasha) ने ये तस्वीर इस मेसेज के साथ शेयर किया: “ऐसे थे कांग्रेस नवाबों के ठाठ”.
ऐसे थे कांग्रेस नवाबों के ठाठ
Posted by Social Tamasha on Thursday, July 19, 2018
एक और फ़ेसबुक पेज, भारत पॉजिटिव (Bharat Positive) ने इसी तस्वीर को 4 नवंबर, 2018 को अपने दोबारा शेयर किया था. कई फ़ेसबुक यूजर्स ने भी इन्ही तरह के दावों के साथ इस तस्वीर को शेयर किया.
क्या भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी नंगे पांव खेले थे ?
ऑल्ट न्यूज़ ने गूगल रिवर्स इमेज सर्च किया और पाया कि ये बात सच थी. फ्रंटलाइन द्वारा प्रकाशित एक लेख में एक तस्वीर थी जिसमें तालिमेरेन आओ, भारत के पहले फ़ुटबॉल कप्तान, फ्रेंच टीम के कप्तान जी रॉबर्ट के साथ हाथ मिला रहे थे. जबकि, नेहरू की तस्वीर टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की वेबसाइट टाइम्स कॉन्टेंट में मिली. वेबसाइट के मुताबिक, इस तस्वीर को जनवरी,1961 के आसपास लिया गया था. जब तस्वीरें सच पायी गयीं तो क्या इन तस्वीरो के साथ किया गया दावा भी सच है? क्या आर्थिक सहायता न मिलने की वजह से फ़ुटबॉल खिलाड़ियों को नंगे पांव खेलना पड़ा था?
भारतीय खिलाड़ियों के पास जूते थे – कलकत्ता चयन शिविर
भारतीय फ़ुटबॉल टीम को 1948 ओलंपिक चयन से पहले दो ट्रायल मैच खेलने पड़े थे. उसी दिन छपी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में लिखा था, “लंदन ओलंपिक के लिए भारतीय फ़ुटबॉल टीम के चयन के लिए होने वाले दो ट्रायल मैचों में से पहला मैच आज दर्शको से खचाखच भरे कलकत्ता के एफ.सी. मैदान पर खेला गया. भारी बारिश से मैदान खराब हो जाने के कारण सभी खिलाड़ी जूते पहनकर मैदान में आये. “ इस रिपोर्ट के आधार पर, यह स्पष्ट था कि टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही सभी खिलाड़ियों के पास फ़ुटबॉल खेलने के लिए जूते थे.
खिलाड़ियों के पास निश्चित रूप से टूर्नामेंट शुरू होने से पहले जूते थे, पर क्या वे इसे लंदन ओलिंपिक ले गए थे? ऑल्ट न्यूज को भारतीय ओलंपिक फुटबॉल टीम के 1948 यूरोप दौरे की एक कार्यक्रम सूची मिली. मैचों के कार्यक्रम के आधार पर, हमने विभिन्न मैचों के नतीजे देखे.
हमें 1 सितंबर, 1948 के ब्रिटिश अखबार Birmingham Daily Gazette में एक अंग्रेज़ी खेल पत्रकार जॉन कैमकिन द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट देखी. ये रिपोर्ट 31 अगस्त, 1948 को भारत और बोल्डमेयर सेंट माइकल्स एफसी के बीच मैच के बारे में थी, जिसमें कैमकिन ने बताया कि भारतीय खिलाड़ियों को मैदान में नमी के कारण जूते पहनकर खेलने के लिए मजबूर होना पड़ा था – “भारतीयों को निस्संदेह जूते और मौसम की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा – आमतौर पर उन्होंने हर मैच में चार गोल किये होंगे – लेकिन जूतों की वजह से टेढ़े मेढ़े पास व गीले मैदान में न खेल पाने का अनुभव परेशानी का कारण बना“ नीचे दी गई रिपोर्ट के आधार पर, यह स्पष्ट था कि भारतीय खिलाड़ियों के पास इस दौरान जूते थे और लंदन ओलंपिक इसी दौरे का हिस्सा था.
हमें और सबूत भी मिले है जिससे स्पष्ट होता है की लंदन ओलंपिक के दौरान भारतीय खिलाड़ियों के पास जूते थे. पत्रकार जयदीप बसु ने अपनी किताब ‘Stories from Indian Football’ में, भारतीय फ़ुटबॉल कोच बीडी चटर्जी का एक बयान लिखा है- “खिलाड़ियों के पास जूते थे और अगर मैदान में नमी के कारण उन्हें ज़रूरत पड़े तो वो उसे पहन सकते थे. लेकिन वे नंगे पांव खेलना पसंद करते थे.” द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह बयान 16 जुलाई, 1948 को मेट्रोपॉलिटन पुलिस के ख़िलाफ़ खेले जाने वाले प्री-ओलंपिक फ़्रेंडली मैच के दौरान रॉयटर्स को दिया गया था.
इस बयान के संदर्भ की पुष्टि करने के लिए आल्ट न्यूज ने जयदीप बसु से संपर्क किया. ऑल्ट न्यूज के साथ बातचीत में, भारतीय फुटबॉल की कहानियों के लेखक जयदीप बसु ने कहा, “मेरी किताब के अध्याय, जिसमें नंगे पांव फ़ुटबॉल के बारे में लिखा है, वो मैंने भारतीय फ़ुटबॉल कोच बीडी चटर्जी के रॉयटर्स को दिए बयान की एक रिपोर्ट के हवाले से दिया था. जो भी अफ़वाह आप सुन रहे हैं वो बिल्कुल बकवास है. भारतीय फ़ुटबॉल खिलाड़ी उन दिनों नंगे पांव ही खेलते थे. उन्होंने 1948 ओलंपिक, 1951 एशियाई खेल और 1952 ओलंपिक नंगे पांव ही खेले थे. 1952 के ओलंपिक के बाद, जिसमे भारत को यूगोस्लाविया ने 10-1 से हराया था, तब ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन ने महसूस किया कि उन्हें जूते पहनने चाहिये. भारत में, कुछ को छोड़कर, जूते पहनकर खेलना किसी को पसंद नहीं था. इसके अलावा, फ़ीफ़ा का नियम भी बाद में आया था, जिसमें कहा गया था कि जो भी अंतर्राष्ट्रीय फ़ुटबॉल खेलता है, उसे जूते पहनकर ही खेलना पड़ेगा. यहां तक कि 1911 में, जब मोहन बागान ने ऐतिहासिक आईएफए शील्ड जीती, उस समय भी एक खिलाड़ी नंगे पांव ही खेला था. भारतीय नंगे पांव खेलना ही पसंद करते थे. अगर वे उस समय लंदन की यात्रा कर पाए थे, तो वे जूते भी खरीद ही सकते होंगे. यह बहुत ही सरल तर्क है इस अफ़वाह को समझने की लिए.”
31 जुलाई, 1948 को भारत और फ़्रांस के बीच ऐतिहासिक मैच में भारत 2-1 से हार गया, इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट में लिखा था कि 11 में से 8 खिलाड़ियों ने नंगे पांव ही खेला था.
भारतीय बिना जूते पहने ही खेलना पसंद करते थे
रोनोजो सेन अपनी किताब ‘Nation at Play: A history of sports in India’ में लिखते हैं, “भारतीयों के लिए जूते पहने हुए फ़ुटबॉलर के खिलाफ नंगे पांव खेलना कोई असामान्य नहीं था; वास्तव में, बिना जूते पहने खेलने से उनके खेल कौशल में बढ़ावा मिलता था… मन्ना (भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी) ने जवाब दिया कि बिना जूते पहने फ़ुटबॉल को नियंत्रण में रखना आसान होता था.”
1948 ओलंपिक में, ज़्यादातर भारतीय खिलाड़ियों ने नंगे पांव खेला था. नीचे दी गई तस्वीर में ये देखा जा सकता है. हालांकि, तस्वीर में सबसे बायें खड़े खिलाड़ी को जूते में देखा जा सकता है.
इस प्रकार, ये साफ़ है कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा दावा गलत है कि भारतीय फ़ुटबॉल टीम को आर्थिक सहायता की कमी के चलते बगैर जूते पहले खेलना पड़ता था. असल में भारतीय फ़ुटबॉल खिलाड़ी नंगे पांव खेलना खेलना पसंद करते थे क्योंकि वो ऐसे ही खेलने के आदी थे. जब तक अंतर्राष्ट्रीय नियमों में जूते पहनना अनिवार्य नहीं कर दिया गया, भारतीय खिलाड़ियों ने नंगे पांव खेलना जारी रखा. जवाहरलाल नेहरू की खिलाड़ियों के प्रति उदासीनता दिखाने का ये दावा भ्रामक है.
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