7 अगस्त को नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंक कर स्वर्ण पदक जीता. नीरज चोपड़ा 23 साल की उम्र में स्वर्ण पदक जीतकर, सबसे कम उम्र में ऐसा करने वाले भारतीय हैं. साथ ही, वो अपने पहले ही ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले इकलौते भारतीय हैं.

नीरज के स्वर्ण जीतने के तुरंत बाद, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य एम सिंधिया ने उन्हें बधाई दी और लिखा, “उन्होंने सच्ची मराठा भावना और कौशल का प्रदर्शन किया.”

जिसके बाद से कुछ न्यूज़ आउटलेट्स नीरज चोपड़ा को कथित मराठा वंश का बताने लगे.ऐसा करने वालों में लोकसत्ता, महाराष्ट्र टाइम्स, TV9 हिंदी, ABP मराठी और दैनिक जागरण शामिल हैं. 8 अगस्त को सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने दावा किया कि नीरज के पूर्वज पानीपत की 1761 की लड़ाई के दौरान मराठा सेना की ओर से भाला बटालियन का हिस्सा थे.

दो रास्तों पर जाता इतिहास

नीरज चोपड़ा रोड समुदाय से हैं. द प्रिंट के अनुसार, रोड-मराठा, मराठा सैनिकों के वंशज हैं जो पानीपत 1761 की लड़ाई में लड़े थे. लगभग 7 लाख की संख्या में रोड-मराठा करनाल से रोहतक और भिवानी तक फैले हैं.

इंडिया टुडे (2012), हिंदुस्तान टाइम्स (2016) बीबीसी (2018) और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे मीडिया आउटलेट्स ने रोड समुदाय के उस तबके पर रिपोर्ट की थीं जो खुद को मराठा वंश के मानते हैं. रोड समुदाय के सदस्यों के साथ हमारी बातचीत से ऐसा मालूम पड़ता है कि समुदाय में दो तरह की विचारधारा हैं. एक वर्ग का मानना ​​है कि उनका वंश मराठों के काफ़ी नज़दीक है. हालांकि, नीरज के परिवार सहित अन्य कुछ लोग मराठा वंश सिद्धांत में विश्वास नहीं करते हैं. इस आर्टिकल में, ऑल्ट न्यूज़ ने लोगों के बीच से जानकारी लेकर और संबंधित हितधारकों के इनपुट के आधार पर इस मामले का विश्लेषण किया है.

रोड, जो ख़ुद को मराठा वंश का मानते हैं

ऑल्ट न्यूज़ ने रोड समुदाय के सदस्य राजेंद्र पवार और मराठा जागृति मंच पानीपत-करनाल के एक सदस्य से बात की. राजेंद्र पवार ने बताया कि ज़्यादातर रोड मानते हैं कि उनका और मराठाओं का वंश एक ही है. उन्होंने बताया, “हमारे भाषा का पैटर्न और सरनेम मराठों की तरह ही था. हम हमेशा से जानते थे कि हम मराठा हैं. लेकिन इतिहासकार वसंतराव मोरे की किताब ‘रोल ऑफ रोड मराठाज़ इन द बैटल ऑफ पानीपत’ के बाद इसे वैध माना गया. 2010 के बाद, हमारे समुदाय के कई सदस्यों ने अपने बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र में मराठा लिखना शुरू कर दिया.”

वसंतराव मोरे की किताब से पहले मराठा वीरेंद्र वर्मन ने रोड मराठों के विषय पर शोध किया था. इन्होंने मराठा मिलन समारोह का गठन किया. वीरेंद्र वर्मन ने 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा था.

अलखी भारतीय मराठा जागृति मच के राष्ट्रीय समन्वयक मिलिंद पाटिल ने बताया कि किताब मराठी और हिंदी भाषा में प्रकाशित हुई है. उन्होंने ये भी कहा कि ये किताब 2010 में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को भेंट की गई थी. उन्होंने उस समय की एक तस्वीर शेयर की. उसी साल, कोल्हापुर के शिवाजी विश्वविद्यालय ने मोरे की किताब पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया था.

इसके अलावा, हमें हरि राम गुप्ता की ‘मराठा और पानीपत’ नामक एक किताब मिली. इसे 1961 में पंजाब विश्वविद्यालय ने छापा था. एक चैप्टर के एक पैराग्राफ़ में भाषाई विशेषता के बारे में वैसा ही लिखा गया है जैसा राजेंद्र ने बताया था. रोहतक (हरियाणा), मेरठ (उत्तर प्रदेश) आदि की महिलाएं, उनकी बात नहीं सुनने वाले बच्चों को डराने के लिए “हाऊ आया, हाऊ आया” कहती हैं. किताब के अनुसार, शायद यहां “हाऊ ” का मतलब, “भाऊ” है. राजेंद्र पवार का मानना ​​है कि ये मराठा जड़ों का सबूत है और सदाशिवराव भाऊ, जिन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठा सेना के सरदार सेनापति के रूप में काम किया था, उनके साथ एक कड़ी स्थापित करती है. इस सेक्शन में दी गयी जानकारी प्रमुख मराठा परिवारों ( पेज 351) के इंटरव्यू पर आधारित है. उन इंटरव्यू देने वालों के नाम पेज 363 पर सूचीबद्ध है, जिसमें कोई भी सरनेम नीरज या उनके पिता के सरनेम से नहीं मिलता.

हमने रोड महासभा करनाल के पूर्व एडमिनिस्ट्रेटर ब्रिगेडियर, VSM (सेवानिवृत्त) रणधीर सिंह, से भी बात की, उन्होंने बताया, “मेरे नाना सी शिव राम वर्मा रोड महासभा के अग्रणी थे और उन्होंने रोड भवन बनाने के लिए टीम का नेतृत्व किया था. ब्रिगेडियर सिंह ने आगे कहा, “अगर मुझे इस विषय पर बताना ही पड़े, तो मैं मराठा वंश का होने की बात कहूँगा. हालांकि, मैं पूरी तरह से जानता हूं कि इस मुद्दे पर कोई वैज्ञानिक सूचना न होने की वज़ह से निर्णायक तौर पर ये बात नहीं कही जा सकती. अभी तक, हमारे पास कोई डेटा नहीं है. बाकी चीजों की तरह ये मुद्दा भी काफ़ी राजनीतिक हो गया है. हालांकि, ये ज़रुर ध्यान रखना चाहिए कि मराठा वंश में विश्वास करने वाले रोड्स और न करने वालों के बीच आपसी प्रेम में कोई कमी नहीं आई है. जिस तरह मैं इसे देखता हूं, ये विश्वास की बात है और हर किसी के लिए अलग है.”

मराठा वंश सिद्धांत को नहीं मानने वाले रोड

ऑल्ट न्यूज़ ने रोड समुदाय के एक अन्य सदस्य, अनुराग कादियान से बात की, जो आश्वस्त हैं कि मराठों के साथ रॉर्स का कोई हालिया ऐतिहासिक संबंध नहीं है. अनुराग कादियान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं. उन्होंने कहा, “मैंने ऐतिहासिक दृष्टि और आनुवंशिकी के माध्यम से इस विषय के बारे में पढ़ा है. इस मुद्दे पर हमारा जनसंख्या आनुवंशिकी अध्ययन सबसे ज़यादा निर्णायक है. हमारे अध्ययन के मुताबिक, पिछले 1800 सालों में मराठा समुदाय के साथ रोड का कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है.” इतिहास के आधार पर अनुराग कादियान के निष्कर्षों में रुचि रखने वाले इस ट्वीट थ्रेड को देख सकते हैं. एक तर्क ये भी है कि कुछ रोड गाँव पानीपत की लड़ाई से बहुत पहले के हैं.

2018 में, अनुराग कादियान और एस्टोनियाई बायोसेंटर के लेखक; जर्मनी के मैक्स-डेलब्रुक सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन; स्कूल ऑफ़ लाइफ़ साइंस, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; साइटोजेनेटिक्स प्रयोगशाला, जूलॉजी विभाग, और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इन सब ने ‘The Genetic Ancestry of Modern Indus Valley Populations from Northwest India’ शीर्षक से एक समीक्षा अध्ययन प्रकाशित किया.

रोड सहित चार उत्तर पश्चिमी भारतीय समुदाय से अलग अलग आबादी के बहुत सारे सैंपल में से चुने गए 45 व्यक्तियों के जीनोम-वाइड जीनोटाइप डेटा का अध्ययन किया गया. अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि रोड आनुवंशिक रूप से उन क्षेत्रों में रहने वाली आबादी की तरह हैं जो फिलहाल भारत के पश्चिम में हैं. इस आबादी में सिंधु घाटी के पास स्थित स्वात घाटी के प्रागैतिहासिक और प्रारंभिक ऐतिहासिक प्राचीन लोग शामिल हैं. 2018 में, ये अध्ययन नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन और द अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स में प्रकाशित हुआ था. द हिंदू बिजनेस लाइन ने 2018 में एक डिटेल रिपोर्ट पब्लिश की थी.

जूलॉजी विभाग के साइटोजेनेटिक्स लैब में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के लेखकों में से एक, ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया, “हमारे अध्ययन में, कम से कम पिछले 1,500 सालों से रोड समुदाय और मराठा समुदाय के वंश में कोई भी समानता नहीं मिली है.”

नीरज चोपड़ा का परिवार खुद को मराठा वंशज नहीं मानता

ऑल्ट न्यूज़ ने नीरज चोपड़ा के मैनेजर अमन शाह से संपर्क किया, जिन्होंने नीरज चोपड़ा के दादा धर्मसिंह चोपड़ा और उनके चाचा (पिता के सबसे छोटे भाई) सुरेंद्र कुमार से हमारी बात कराई. नीरज हरियाणा के पानीपत जिले के खंडरा गांव में एक संयुक्त परिवार में उनके साथ रहते हैं. अक्सर, संवेदनशील मुद्दों पर सुरेंद्र ही नीरज की तरफ से मीडिया से बातचीत करते हैं. उन्होंने बताया, ‘नीरज की उपलब्धि को जाति और राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने एक भारतीय के रूप में पदक जीता. हम हरियाणा के रोड समुदाय से हैं. इस समुदाय के एक वर्ग का मानना ​​है कि उनका मराठा वंश है. हालांकि, हम और हमारे समुदाय के ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं मानते हैं.”

75 वर्षीय धर्मवीर चोपड़ा ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “मुझे अपने पिता और दादा के साथ बचपन बिताने का सौभाग्य मिला. दोनों किसान थे. उनलोगों ने कभी ज़िक्र नहीं किया कि हमारा वंश मराठों का है.”

सुरेंद्र कुमार ने बताया, “दो दशक पहले तक, मराठा रोड्स की घटना लोकप्रिय नहीं थी. हालांकि, पिछले कुछ सालों में इसे वोट बैंक की राजनीति के कारण लोकप्रिय बनाया गया है. इस तरह, जो रोड्स इस सिद्धांत को नहीं मानते थे, उन्हें अपना विचार सामने रखना पड़ा. अपने रोड मराठा मित्रों से मिलते वक्त हम उन्हें मराठा के रूप में संबोधित करके ये दिखाते हैं कि हम उनकी मान्यताओं का सम्मान करते हैं. और वे भी हमारी करके ऐसा ही करते हुए ऐसा ही करते हैं. हालांकि, रोड मराठा समुदाय के कुछ असमाजिक तत्व रोड्स पर मराठा वंश को अपनाने के लिए जोर दे रहे हैं. कुछ सालों में, मैंने देखा है कि रोड्स समुदाय के कई घरों में तोड़फोड़ कर के वहां मराठा टेक्स्ट में लिखा गया.”

सुरेन्द्र कुमार ने सोशल मीडिया से मिले कुछ स्क्रीनशॉट को फॉरवर्ड करते हुए बताया, “नीरज के टोक्यो प्रदर्शन के बाद फिलहाल इस तरह के दावे बहुत ज़्यादा किये जा रहे हैं.” उन्होंने कहा, “कल (12 अगस्त), मराठा जागृति मंच पानीपत-करनाल के सदस्य अपनी शुभकामनाएं देने के लिए हमारे घर आए और छत्रपति शिवाजी महाराज और नीरज की तस्वीरों के साथ एक फोटो फ्रेम हमें दिया. हम राष्ट्र द्वारा दिखाए गए सभी समर्थन और प्यार की सराहना करते हैं. लेकिन सभी से अनुरोध है कि नीरज की जीत को जातिगत पहलू से न जोड़ें. हम मराठों के बजाय रोड्स के रूप में पहचाने जाते हैं.”

 

सुरेंद्र ने बताया कि ऐसा ही एक बैनर खंडरा बस स्टॉप पर भी लगाया गया था.

टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा की जीत के तुरंत बाद केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य एम सिंधिया और कई मीडिया आउटलेट्स ने चोपड़ा के वंश को मराठा समुदाय से जोड़ने की कोशिश की, जबकि समुदाय के भीतर अलग-अलग मान्यताएं हैं. नीरज चोपड़ा के दादा और चाचा ने स्पष्ट किया कि परिवार मराठा वंशज के रूप में पहचाना नहीं जाता है.


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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.