झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने 1 अगस्त 2022 को संसद में एक बयान दिया. उन्होंने कहा कि भारत में पिछले 8 सालों में विपक्ष ने किसानों की आत्महत्या को लेकर कोई चर्चा नहीं की क्यूंकि किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं. निशिकांत दुबे ने कहा, “आज पिछले 8 साल में एक भी चर्चा अपोज़ीशन ने किसानों की आत्महत्या का किया है? यदि नहीं किया है तो इसका मतलब किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं. हमने (भाजपा) किसानों को इतनी ताकत दी है कि आज किसान लड़ाई कर रहा है. और किसान की क्या स्थिति है कि किसान जो है, साल भर तक वहीं मोदीजी की सरकार थी, वही पैसा था इस तरह से हमने किसानों को मजबूत किया कि सालभर तक वो आंदोलन करता रहा लेकिन कोई किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की.”

क्या हकीकत में किसानों ने पिछले 8 सालों में आत्महत्या नहीं की?

लोकसभा में सांसद निशिकांत दुबे द्वारा दिए गए बयान की असलियत जानने के लिए ऑल्ट न्यूज़ ने गूगल पर सर्च किया. अक्टूबर 2021 में NDTV इंडिया ने साल 2020 में किसानों की आत्महत्या के बारे में रिपोर्ट पब्लिश की थी. इस आर्टिकल में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि साल 2020 में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले सामने आये थे. इसमें से कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,677 में 5,579 किसानों और 5,098 कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी. गौर करें कि ये आंकड़ा सिर्फ़ साल 2020 का है.

निशिकांत दुबे ने बयान में 8 सालों का यानी, साल 2014 से 2021 के मोदी शासन का हवाला दिया था. हमने 2014 से 2020 तक का डेटा देखा. (2021 का डेटा NCRB की वेबसाइट पर अभी उपलब्ध नहीं है.)

साल 2014 में कुल 1,31,666 लोगों ने आत्महत्या की थी. NCRB डेटा के मुताबिक, 2014 में 5,650 किसानों ने आत्महत्या की. इससे साल 2015 के आंकड़ों में कुछ ज़्यादा अंतर नहीं है. 2015 में कुल 1,33,623 लोगों में 8,007 किसानों ने आत्महत्या की थी. वहीं साल 2016 में कुल 1,31,008 लोगों ने आत्महत्या की थी. इनमें से 8.7 प्रतिशत लोग ऐग्रिकल्चर सेक्टर से जुड़े हुए थे. रिपोर्ट बताती है कि 2016 में कृषिक्षेत्र से जुड़े हुए 11,379 लोगों ने आत्महत्या की थीं जिसमें से 6,270 किसान और 5,109 खेतिहर मजदूर थे.

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NCRB के डेटा के मुताबिक, कुल 1,29,887 सुसाइड के केस साल 2017 में दर्ज हुए थे. इनमें से 8.2% मामले कृषि क्षेत्र के थे. कृषि सेक्टर से जुड़े 10,655 लोगों ने आत्महत्या की थी जिनमें से 5,955 किसान और 4,700 खेतिहर मजदूर थे. ऐसे ही 2018 में आत्महत्या के कुल 1,34,516 मामलों में से 10,349 कृषि सेक्टर से जुड़े थे. ये आंकड़ा कुल सुसाइड के मामलों का 7.7% हिस्सा है. यानी 2018 में 5,763 किसानों और 4,586 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की थी. वहीं वर्ष 2019 में कृषिक्षेत्र से जुड़े 10,281 लोगों ने आत्महत्या की थी जो कि कुल आंकड़ों का 7.4% हिस्सा है. इनमें से 5,957 किसान और 4,324 खेतिहर मजदूर थे.

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आज तक की 28 जुलाई 2021 की रिपोर्ट में साल 2017 से साल 2019 तक देश के सभी राज्यों में हुई किसानों की खुदखुशी का डेटा दिया गया है. इन आंकड़ों के अनुसार, देश में सबसे ज़्यादा किसानों की आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र और कर्नाटक से सामने आये हैं. महाराष्ट्र में 2017 में 2426 किसानों, 2018 में 2239 किसानों और साल 2019 में 2680 किसानों ने आत्महत्या की थी. वहीं कर्नाटका में ये आंकड़ा क्रमानुसार 1157, 1365 और 1331 है. data.gov.in पर भी राज्यों में साल 2018 और 2019 में किसानों द्वारा की गई आत्महत्या के यही आंकड़े दिए गए हैं.

यानी, NCRB के डेटा के हिसाब से साल 2014 से लेकर साल 2020 तक कृषि सेक्टर से जुड़े कुल 78,303 लोगों ने आत्महत्या की जिसमें से 43,181 किसान थे. ये आंकड़े साफ तौर पर लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे के दावे का खंडन करते हैं. भाजपा सांसद लोकसभा सदन में बिना कोई रिपोर्ट का हवाला दिए देश में किसानों की आत्महत्या नहीं होने का दावा किया. ये दावा बिल्कुल ग़लत है कि पिछले 8 सालों में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की.

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Kinjal Parmar holds a Bachelor of Science in Microbiology. However, her keen interest in journalism, drove her to pursue journalism from the Indian Institute of Mass Communication. At Alt News since 2019, she focuses on authentication of information which includes visual verification, media misreports, examining mis/disinformation across social media. She is the lead video producer at Alt News and manages social media accounts for the organization.