टाटा संस ने एयर इंडिया के लिए 18 हज़ार करोड़ रुपये की बोली लगाई. इस एयरलाइन को 1932 में JRD टाटा ने स्थापित किया था. उस वक़्त इसे टाटा एयर सर्विसेज़ के नाम से जाना जाता था. भारत सरकार ने 1953 में एयर कॉर्पोरेशन ऐक्ट पारित किया और टाटा संस से की हिस्सेदारी खरीद ली. हालांकि, टाटा 1977 तक अध्यक्ष बने रहे. 11 अक्टूबर, 2021 को टाटा समूह द्वारा नियंत्रित कंपनी टैलेस प्राइवेट लिमिटेड ने एयर इंडिया और उसकी एयर इंडिया एक्सप्रेस के लिए बोली जीती.

जीतने वाली बोली के आने से पहले ही सोशल मीडिया पर अटकलें लगाई जा रही थीं कि एयर इंडिया टाटा के पास ही वापसी करेगी. इस सब के बीच आनंद रंगनाथन ने एक ट्वीट किया. आनंद रंगनाथन के अनुसार, JRD टाटा ने कहा था, “मेरे अपने दोस्त नेहरू ने मेरी पीठ में छुरा घोंपा. मैं इस बात के लिए सिर्फ दुख जता सकता हूं कि हमें उचित सुनवाई दिए बिना इतना महत्वपूर्ण कदम उठाया गया.” इस ट्वीट को करीब 30 हज़ार लाइक्स और 8 हज़ार रीट्वीट मिले. पाठकों को ध्यान देना चाहिए कि आनंद रंगनाथन पहले भी भ्रामक जानकारियां शेयर करते आये हैं.

आनंद रंगनाथन के ट्वीट को द इकॉनमिक टाइम्स, आज तक, ईस्ट मोजो और बिज़नेस टुडे सहित अलग-अलग मीडिया रिपोर्टों में शामिल किया गया.

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फ़ैक्ट-चेक

आनंद रंगनाथन ने JRD टाटा की जिस बात का हवाला अपने ट्वीट में दिया, उसका सार्वजनिक तौर पर कोई संदर्भ मौजूद नहीं है. ऑल्ट न्यूज़ ने देखा कि इसे दो अलग-अलग जगहों सेलिये गए वाक्यों को जोड़कर बनाया गया है. इनमें से सिर्फ़ एक वाक्य JRD टाटा से जोड़ा जा सकता है.

पहला बयान 2014 के ब्लॉग से लिया गया

गूगल पर एक कीवर्ड सर्च करने से पता चला कि ये दावा 2014 से किया जा रहा है. ये हमें ‘SRajah Iyer’s Blog’ नामक एक ब्लॉग पर मिला. ब्लॉग में कई दावे किए गये हैं. साथ ही लेखन में कई ग़लतियां भी हैं. हालांकि, हम केवल कथित बयान की सच्चाई पर ध्यान देंगे.

इस ब्लॉग के मुताबिक, “जवाहरलाल नेहरू ने 1953 में इस टाटा एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण किया था. JRD ये सहन नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, “मेरे अपने करीबी दोस्त ने मेरी पीठ पर छुरा घोंपा.” ज़ख्म पे नमक छिड़कते हुए, नेहरू ने जगजीवन राम नामक एक जोकर के माध्यम से इस राष्ट्रीयकरण के बारे में उन्हें बताया. इतिहास जानता है कि अगर एयरलाइंस टाटा के अधीन होती तो क्या होता…”

ब्लॉग के लेखक के मुताबिक, JRD टाटा की डायरी में ये बात लिखी है.

ये ध्यान दिया जाना चाहिए कि सही मुहावरा ‘stabbed me in the back’ होता. रंगनाथन के ट्वीट में व्याकरण की यही गलती मिलती है. हालांकि, इससे ये साबित नहीं होता कि ये उद्धरण मनगढ़ंत है. मगर शक ज़रूर पैदा होता है. JRD टाटा के लेखन से परिचित किसी को भी पता होगा कि वो ऐसी ग़लती करेंगे, इसकी संभावना न के बराबर होगी.

दिवंगत लेखक रूसी एम. लाला ने टाटा की जीवनी और अन्य किताबों के रूप में जेआरडी टाटा के बारे में ख़ूब लिखा है. गौरतलब है कि रूसी एम. लाला 1974 में टाटा समूह में शामिल हुए थे, और 2003 में वो सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए. इसके अलावा, उपलब्ध साहित्य से ये मालूम चलता है कि टाटा और लाला बेहद करीबी थे.

2000 में लाला ने ‘द जॉय ऑफ़ अचीवमेंट: कन्वर्सेशन्स विद JRD टाटा’ लिखी. इस किताब में इस बात का ज़िक्र है कि एक बार टाटा ने अपनी “व्यक्तिगत लाल टाटा डायरी” से एक चुटकुला पढ़ा था.

ये एकमात्र ऐसा मौका है जहां हमें टाटा की किसी डायरी का सन्दर्भ मिला. हालांकि, इसी किताब की प्रस्तावना लिखते हुए ख़ुद जेआरडी टाटा ने बताया है कि वो कोई भी डायरी नहीं रखते थे.

इसके अलावा, जेआरडी टाटा की जीवनी ‘बियॉन्ड द लास्ट ब्लू माउंटेन: ए लाइफ ऑफ़ जेआरडी टाटा’ में में यही जानकारी मिलती है कि वो कोई भी डायरी नहीं रखते थे.

“He was liberal with his time and granted interviews whenever requested and made available two big cupboards full of his personal letters as he kept no diary.”

– Excerpt From: Lala, R M. “Beyond the last blue mountain”.

दूसरा बयान नेहरू को भेजे टेलीग्राम से

इस कथन को 1952 के उस टेलीग्राम (PDF देखें) में देखा जा सकता है जो टाटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू भेजा था. इस मौके पर वो एयर ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री में बदलावों के बारे में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.असल में नेहरू ने टाटा को एक ख़त लिखा था और उसमें टाटा एयरलाइंस के राष्ट्रीयकरण को लेकर अपने विचार रखे थे. इसी के जवाब में टाटा ने ये टेलीग्राम भेजा, जिससे ये दूसरा वाक्य उठाया गया है.

ख़त में JRD टाटा ने नेहरू से कहा कि उन्हें नीतियों में हुए बदलाव के बारे में जगजीवन राम से मालूम पड़ा. ये हिस्सा बेहद ज़रूरी है क्यूंकि 2014 में लिखे गये उस ब्लॉग में भी जगजीवन राम का ज़िक्र आता है. ब्लॉग में इस बात को भी हवा देने की कोशिश की गयी है कि टाटा और जगजीवन राम के बीच अच्छे सम्बन्ध नहीं थे.

1952 के टेलीग्राम में जेआरडी टाटा ने एयरलाइंस के राष्ट्रीयकरण की ख़बर मिलने के तरीके को लेकर कैसा भी रोष प्रकट नहीं किया. जगजीवन राम 1952 से 1956 तक केंद्रीय संचार मंत्री थे. टाटा की जीवनी के आधार पर ये कहा जा सकता है कि टाटा और जगजीवन राम के बीच अच्छे संबंध थे. रूसी एम. लाला ने लिखा, “जेआरडी जगजीवन राम के काम करने के तरीके से बहुत प्रभावित थे. जगजीवन राम का कोई काम पिछड़ा नहीं रहता था और टाटा जिस विषय के संबंध में उनसे मिलने जाते थे, जगजीवन राम को उसके बारे में सब कुछ मालूम होता था.”

टाटा एयरलाइंस, इसके राष्ट्रीयकरण और पीएम नेहरू पर JRD टाटा के विचार

वरिष्ठ पत्रकार राजीव मेहरोत्रा ​​ने 1987 में अपनी “इन कन्वर्सेशन” सीरीज़ के लिए JRD टाटा का इंटरव्यू लिया था. उस वक़्त ये दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था. 1987 का इंटरव्यू टाटा संस की वेबसाइट और मेहरोत्रा ​​के यूट्यूब चैनल पर मौजूद है.

इस इंटरव्यू में (3 मिनट के करीब) राजीव मेहरोत्रा ​​ने पूछा, “आप खुद का मूल्यांकन कैसे करते हैं?” टाटा ने जवाब दिया, “मेरे अनुमान से, निश्चित रूप से, मैं अपने आप को बहुत निचले स्तर पर मानता हूं. जबकि मेरे लिए चीजें बढ़ा-चढ़ा कर पेश की जाती हैं. मुझे नहीं लगता कि मैं उस दोस्ती के लायक हूं जो मुझे मिलती है.. दोस्ती नहीं… दोस्ती ग़लत शब्द है. तारीफ़, सम्मान जो मुझे दिया जाता है. आखिरकार, मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया है, शायद, एक छोटी सी मेल एयरलाइन से एयर इंडिया को बनाने के अलावा मैंने व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं किया है .. मैंने कभी भी पूरी तरह से कुछ नया नहीं बनाया है. मुझे ये स्थिति विरासत में मिली…” ये बात बिल्कुल साफ़ है कि वो टाटा एयरलाइंस से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे.

एयरवेज के राष्ट्रीयकरण पर उनके विचार अच्छे से दर्ज हुए हैं. वो इसके पक्षधर नहीं थे. हालांकि, रूसी एम. लाला ने उनकी जीवनी में लिखा था, “पीछे मुड़कर देखने पर, जेआरडी टाटा को लगता है कि स्थितियां ऐसी हो गई थीं कि राष्ट्रीयकरण को टाला नहीं जा सकता था. लेकिन सालों बाद उन्होंने प्राइवेट उद्यमियों द्वारा चलायी जा रही इस इंडस्ट्री को लेकर सरकार के रवैये के बारे में बात की.”

JRD की जीवनी से हमें पता चला कि JRD टाटा नेहरू को 20 साल की उम्र से जानते थे. उस वक़्त नेहरू की उम्र 36 साल थी. उनकी जीवनी में कई बार नेहरू के लिए उनके प्रेम और सम्मान का ज़िक्र हुआ है. परस्पर स्नेह के बावजूद, दोनों कई विषयों पर एक-दूसरे से असहमतियां भी रखते थे.आने वाले समय में भारत के लिए कैसा समाजवाद और अर्थशास्त्र हितकारी होगा, इस विषय पर दोनों अक्सर एक दूसरे से अलग विचार रखते थे.

आनंद रंगनाथन ने दिवंगत JRD टाटा के नाम पर एक भ्रामक उद्धरण ट्वीट किया. इसे कई मीडिया आउटलेट्स ने बिना वेरिफ़ाई किये, पब्लिश कर दिया. जे आरडी टाटा राष्ट्रीयकरण के पक्ष में नहीं थे. लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने टाटा एयरलाइंस के राष्ट्रीयकरण के बाद कहा- “नेहरू ने मेरी पीठ पर छुरा घोंपा”.


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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.