12 अक्टूबर को जारी हुई वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) की रिपोर्ट सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चा की विषय बन गई। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत, भुखमरी सूचकांक में और नीचे आ गया है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के बयान में कहा गया-”भारत का स्थान 119 देशों में 100वें नंबर पर है, और उसे पूरे एशिया में तीसरा सबसे ज्यादा स्कोर मिला है — केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान की रैंकिंग ही सबसे खराब है।” रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ”31.4 के साथ, भारत का 2017 जीएचआई (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) स्कोर ‘गंभीर’ श्रेणी के उच्च सिरे पर है और यह इस वर्ष जीएचआई में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले क्षेत्र की श्रेणी में दक्षिण एशिया के पिछड़ने का एक मुख्य कारण है, इस श्रेणी में दक्षिण एशिया, सहारा के दक्षिण अफ्रीका से कुछ ही पीछे है।” इस समाचार की रिपोर्टिंग सभी मुख्य मीडिया हाउस द्वारा की गई।
बिजनेस स्टैंडर्ड के ऊपर रेखांकित किए गए आर्टिकल का उल्लेख करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्तारूढ़ सरकार पर तंज कसा।
भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है जेरे-बहस ये मुद्दआ
– दुष्यंत कुमार
https://t.co/JxewmoSfHh— Office of RG (@OfficeOfRG) October 13, 2017
इस तरह की पोस्टों की सोशल मीडिया पर बाढ़ आ गई जिसमें पिछले कुछ वर्षों, खास तौर पर 2014 में भारत की जीएचआई रैंकिंग की तुलना, वर्ष 2017 की रैंकिंग से की गई है। इनमें एक बात पर खास तौर पर जोर दिया गया कि भारत की जीएचआई रैंकिंग 2014 में 55 से गिरकर 2017 में 100 हो गई।
India's ranking in Global Hunger Index
2010: 67
2011: 67
2012: 66
2013: 63
2014: 55 <- Vikas enters in May
2015: 80
2016: 97
2017: 100— Zeeshan Mhaskar (@MhaskarChief) October 13, 2017
टाइम्स नाउ और बिजनेस स्टैंडर्ड की ऐसी न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार जिनमें यह भी बताया गया कि भारत की जीएचआई रैंक 45 स्थान नीचे आ गई हैं, मैंने प्रधानमंत्री मोदी जी की आर्थिक सलाहकार परिषद के वर्तमान अध्यक्ष श्री बिबेक देवरॉय को टैग करते हुए एक ट्वीट किया। इसमें इस मुद्दे पर उनके पक्ष के बारे में प्रश्न पूछा, क्योंकि 2013 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के बारे में उन्होंने ट्वीट किया था। हालांकि, Nesenag नाम के एक ट्वीटर हैंडल ने बताया कि भारत की रैंकिंग 45 स्थान नीचे आना एक गलत तथ्य है।
Wonder what the Chairman of PM Modi's EAC @bibekdebroy has to say about India slipping 45 places in Global Hunder Index report since 2014. pic.twitter.com/eQW2Ymxpfy
— Pratik Sinha (@free_thinker) October 13, 2017
ट्वीटर हैंडल Nesenag के संकेत के अनुसार, हमने वर्ष 2013-2017 की जीएचआई रिपोर्ट का अध्ययन किया। सामान्य तौर पर इन पाँच वर्षों की रिपोर्ट पढ़ने से ज्ञात होगा कि भारत की जीएचआई रैंकिंग 2013 में 63 थी, 2014 में 55 थी, 2015 में 80 थी, 2016 में 97 थी और 2017 में 100 थी। हालाँकि 2016 से पहले के वर्षों में, इस रिपोर्ट में मुख्य तालिका के साथ एक अतिरिक्त तालिका शामिल की जाती थी जिसमें उन सभी देशों के आंकड़े होते थे जिनका जीएचआई इंडेक्स 5 से कम था। मुख्य तालिका में केवल उन देशों को स्थान दिया गया था जिनका जीएचआई इंडेक्स 5 से अधिक था। जीएचआई इंडेक्स में किसी देश का स्थान जितना नीचे होता है, वह देश अपने नागरिकों की भूख मिटाने के मामले में उतना ही बेहतर होता है। नीचे दिया गया चित्र 2014 की जीएचआई रिपोर्ट का वह पृष्ठ है जिसमें देश के अनुसार रैंकिंग दिखाई गई है और नीचे बाईं ओर वह तालिका है जिसमें 5 से कम जीएचआई इंडेक्स वाले सभी देशों के नाम हैं।
वर्ष 2016 से जीएचआई रिपोर्ट में 5 से कम जीएचआई वाले देशों को मुख्य तालिका में शामिल करना शुरू किया गया था जिससे रैकिंग में परिवर्तन आया। नीचे दिया गया चित्र 2017 की जीएचआई रिपोर्ट का वह पृष्ठ है जिसमें देश के अनुसार रैंकिंग दिखाई गई है। तालिका का ऊपरी रेखांकित हिस्सा उन 14 देशों का है जिनका जीएचआई इंडेक्स 5 से कम है। आधार रैंकिंग 15 मानते हुए, 5 से अधिक जीएचआई वाले देशों को इससे आगे रैंकिंग दी गई है।
वर्ष 2013 में, जीएचआई रिपोर्ट में 42 देशों की एक तालिका है जिनका जीएचआई इंडेक्स 5 से कम है, 2014 में ऐसे देशों की संख्या 44 है और वर्ष 2015 में ऐसे 13 देश हैं। इसलिए 2015 से पहले के वर्षों के लिए किसी देश की सही समग्र रैंकिंग की गणना मुख्य तालिका में उसकी रैंकिंग के साथ उन देशों की संख्या जोड़कर प्राप्त होगी जिनका जीएचआई उस वर्ष 5 से कम रहा है। उपरोक्त फ़ार्मूले के अनुसार, वर्ष 2013 में भारत की जीएचआई रैंकिंग 105 (63+42) थी, 2014 में 99 (55+44) थी और 2015 में 93 (80+13) थी। यहाँ इस तथ्य पर भी गौर करना जरूरी है कि इन वर्षों में तालिका में शामिल देशों की संख्या इस आधार पर भी अलग-अलग रही कि उस समय किस देश का डेटा उपलब्ध था। Nesenag के निम्नलिखित ट्वीट से वर्ष 2011-2017 के दौरान देशों की रैंकिंग के विवरण मिलते हैं।
Include footnote portion from Hunger index reports
2011:108/122
2012:106/120
2013:105/120
2014:99/120
2015:93/117
2016:97/118
2017:100/119 https://t.co/nQpuEbT1wJ— The Masakadzas (@Nesenag) October 13, 2017
इस तरह, टाइम्स नाउ और बिजनेस स्टैंडर्ड का यह दावा करने वाली रिपोर्ट कि भारत की रैंकिंग 45 स्थान नीचे आ गई है, गुमराह करने वाली रिपोर्ट है
हालांकि, उस डेटा में एक चीज अभी भी स्पष्ट नहीं है, जिसमे बताया गया है कि 5 से कम जीएचआई वाले देशों की संख्या 2014 में 44 थी और 2015 में यह संख्या मात्र 13 रह गई। जैसा कि हमने पहले भी बताया है, जीएचआई का स्कोर जितना कम होगा, उस देश के नागरिकों का पेट उतना ही अधिक भरा होगा। जबकि जीएचआई रिपोर्ट में लगातार दावा किया गया है कि बीते वर्षों के दौरान वैश्विक भूख में कमी आई है लेकिन इसके बावजूद 5 से कम जीएचआई रैंकिंग वाले देशों की संख्या में 2014 से 2015 के बीच अत्यधिक कमी आने से क्या अर्थ निकलता है, शायद यही कि विश्व में भूखे लोगों की संख्या में किसी न किसी प्रकार से बढ़ोत्तरी हुई है। इसका जवाब आईएफ़पीआरआई वेबसाइट के इस नोट में मौजूद है जो बताता है कि पोषण मापने की वर्तमान अवधारणा को दर्शाने के लिए वर्ष 2015 में जीएचआई का फ़ार्मूला बदल गया था।
हमने 2015 से पहले 3 वर्षों के लिए भूख सूचकांक के आधार पर ग्राफ तैयार किये हैं जिसमें पुराने फार्मूले के अनुसार स्कोर की गणना की गई थी और 2015-17 का एक और ग्राफ तैयार किया है जिसमें नये फ़ार्मूले के अनुसार हंगर इंडेक्स स्कोर की गणना की गई है। ये सभी अंक ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वेबसाइट से डाउनलोड की गई रिपोर्ट से प्राप्त किये गये हैं।
हंगर इंडेक्स स्कोर में नीचे की ओर रुझान वैश्विक भूख के क्षेत्र में सुधार को दर्शाता है और उपरोक्त ग्राफ दिखाता है कि हंगर इंडेक्स स्कोर में 2012-14 में नीचे की ओर हल्का रुझान है जो भूख के लिहाज से वैश्विक कमी के अनुरूप है। हालांकि, 2015-17 से जीएचआई स्कोर के आधार पर, भारत द्वारा अपने नागरिकों को दो वक्त का भोजन मुहैया कराने के पैमाने पर कोई सुधार नहीं देखा गया है। हालांकि ग्लोबल हंगर इडेक्स में भारत 45 स्थान नीचे नहीं आया है लेकिन फिर भी दूसरे देशों की तुलना में हमारी रैंकिंग अभी भी लगातार निराशाजनक बनी हुई है। वर्ष 2014 में, हम 99वें स्थान पर आए और 2017 में हमारी रैंकिंग 100 है। इसमें देखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इस निराशाजनक रैंकिंग और स्कोर को बेहतर करने के लिए क्या प्रयास किये जा रहे हैं। जबकि पिछले वर्ष के कई आर्थिक सूचकों से अर्थव्यवस्था की बिगड़ती स्थिति का संकेत मिल रहा है, क्या वर्ष 2018 में भारत वैश्विक भूखमरी सूचकांक में अपनी स्थिति बेहतर करने में कामयाब हो पाएगा?
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