11 जनवरी को, पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा उन्हें अपने पद से हटाने और उन्हें महानिदेशक, अग्निशमन सेवा के पद पर स्थानांतरित करने के एक दिन बाद सेवा से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, सोशल मीडिया पर सीबीआई पूर्व प्रमुख के नाम से एक कथित दावा वायरल हो गया, जिसमें उन्हें अपने त्यागपत्र में पीएम मोदी को “स्वतंत्र भारत का सबसे भ्रष्ट प्रधानमंत्री” बोलते दिखाया गया है । “पूर्व सीबीआई निदेशक अलोक वर्मा ने दिया इस्तीफा पत्र लिखकर नरेंद्र मोदी को स्वतंत्र भारत का सबसे भ्रष्ट प्रधानमंत्री बताया”। यह संदेश एक फेसबुक पेज “I Support Ravish Kumar” द्वारा पोस्ट किया गया है, जिसे अबतक 18,000 से अधिक बार शेयर किया जा चुका है।

त्याग पत्र प्रधानमंत्री के बारे में कोई उल्लेख नहीं

आलोक वर्मा ने अपने त्याग पत्र को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के सचिव को संबोधित किया था। पत्रकार निधि राजदान ने पत्र की एक फोटो ट्वीट की थी।

कई मीडिया संगठनों ने भी पत्र की रिपोर्टिंग की थी । 11 जनवरी को हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक लेख में भी पत्र को पुन: छापा गया था, जिसकी एक प्रति नीचे पोस्ट की गई है। जैसा कि नीचे दिए गए पत्र में देखा जा सकता है, पत्र में किसी भी बिंदु पर आलोक वर्मा ने प्रधानमंत्री का जिक्र ही नहीं किया है।

आलोक वर्मा का त्याग पत्र (अनुवादित)

11-01-2019

नई दिल्ली

श्री चंद्रमौली सी ,

सचिव, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग

नार्थ ब्लॉक,

प्रिय श्री चंद्रमौली,

विषय – कार्यालय आदेश दिनांक 10 जनवरी, 2019 के संदर्ब में

10 जनवरी 2019 की आदेश अधोहस्ताक्षरी को केंद्रीय जांच ब्यूरो से बाहर स्थानांतरित कर महानिदेशक, अग्निशमन सेवा, नागरिक सुरक्षा और होमगार्ड के रूप में नियुक्त किया गया गया था।

1. चयन समिति ने निर्णय लेने से पहले सीवीसी की तरफ से लगाए गए आरोपों पर सफाई देने का मौका मुझे नहीं दिया है। मुझे सीबीआई के डायरेक्टर पद से हटा दिया गया और इस प्रक्रिया में स्वाभाविक न्याय का गला घोंटा गया और पूरी प्रक्रिया को उलट-पुलट कर दिया गया। चयन समिति ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि सीवीसी की पूरी रिपोर्ट एक ऐसे शिकायतकर्ता के आरोपों पर आधारित थी जो खुद सीबीआई जांच के घेरे में है और जो वर्तमान में सीबीआई द्वारा जांच के अधीन है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि सीवीसी ने केवल शिकायतकर्ता के एक कथित रूप से हस्ताक्षरित बयान को आगे बढ़ाया, और शिकायतकर्ता इस जांच की निगरानी करने वाले माननीय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए.के. पटनायक के सामने पेश ही नहीं हुए। साथ ही, जस्टिस पटनायक ने निष्कर्ष निकाला है कि रिपोर्ट के निष्कर्ष उनके नहीं हैं।

2. संस्थाएं हमारे लोकतंत्र की सबसे मजबूत और दृश्यवान प्रतीक हैं और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सीबीआई आज भारत के सबसे महत्वपूर्ण संगठनों में से एक है। कल किए गए निर्णय से न केवल मेरे कामकाज पर असर पड़ेगा, बल्कि इस बात का प्रमाण बनेगा कि कोई सरकार सीवीसी के जरिए सीबीआई के साथ कैसा व्यवहार कर सकती है। इन्हें सत्ता में बैठी सरकार के सदस्य ही नियुक्त करते हैं। यह समय सामूहिक आत्ममंथन का है।

3. एक नौकरशाह के रूप में, यह मेरी ईमानदारी का विचार ही है जो सार्वजनिक सेवा में चार दशकों से मेरी प्रेरक शक्ति बनी हुई है। मैंने एक बेदाग रिकॉर्ड के साथ भारतीय पुलिस सेवा की है, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुदुचेरी, मिजोरम, दिल्ली में पुलिस बलों का नेतृत्व किया है और दो संगठनों दिल्ली जेलों और सीबीआई का भी नेतृत्व किया है। मैं भाग्यशाली रहा हूं कि मुझे जिस भी बल में काम करने का मौका मिला, उन सभी से मुझे अमूल्य समर्थन मिला है, जिसके परिणामस्वरूप उन उपलब्धियों से बल के प्रदर्शन पर सीधा असर पड़ा है। मैं भारतीय पुलिस सेवा और विशेषकर उन संगठनों को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिनमे मैंने काम किया है।

4. इसके अलावा, यह भी गौर करने की बात है कि मैं 31 जुलाई, 2017 को ही रिटायर हो चुका हूं और 31 जनवरी, 2019 तक की अवधि के लिए सीबीआई के निदेशक पद पर काम कर रहा था, जो कि निश्चित अवधि की एक भूमिका थी। मैं अब सीबीआई डायरेक्टर नहीं हूं और मैं डीजी फायर सर्विसेज, सिविल डिफेंस एवं होमगॉर्ड पद के लिए रिटायरमेंट की उम्र पार कर चुका हूं। इसलिए मुझे आज से ही रिटायर मान लिया जाए।

आपको धन्यवाद।

सादर,

आलोक कुमार वर्मा

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About the Author

Jignesh is a writer and researcher at Alt News. He has a knack for visual investigation with a major interest in fact-checking videos and images. He has completed his Masters in Journalism from Gujarat University.