पिछले हफ़्ते जब वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय हेट स्पीच पर अपनी याचिका के लिए सुप्रीम कोर्ट में खड़े थे, तो उन्हें ये तो ज़रूर याद होगा कि वहां से सिर्फ 3 किलोमीटर से भी कम दूर जंतर मंतर पर कथित तौर पर उनके ही द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मुसलमानों के खिलाफ़ खुले नरसंहार का आह्वान किया गया था. साथ ही हरिद्वार के धर्म संसद में उन्होंने ‘भगवा संविधान’ की कॉपियां बांटी थी और यति नरसिंहानंद को अपना ‘गुरुदेव’ बताया था.
अश्विनी उपाध्याय का हेट स्पीच के खिलाफ़ विधि आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका (PIL) दायर करना अलग ही विडंबना है. एक तो ऐसा जिसके लिए सैमुअल टेलर कोलरिज की वो बातें ज़रूरी हैं जिसमें उन्होंने अविश्वास को इच्छा से रोकना कहा था. और दूसरा इतना अजीब और विचित्र है कि इस मामले पर लिखने वाले पत्रकार के रूप में आपको आश्चर्य होता है कि क्या आप कुछ मिस कर रहे हैं.
फ़रवरी 2020 में अश्विनी उपाध्याय ने व्यक्तिगत क्षमता से शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर की थी. याचिका में केंद्र से ये मांग की गई कि हेट स्पीच पर विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को लागू करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं. आयोग ने 23 मार्च 2017 को तत्कालीन कानून और न्यायमंत्री रविशंकर प्रसाद को रिपोर्ट सौंपी थी. हेट स्पीच पर मौजूदा कानूनों का विश्लेषण करने के बाद, “भारतीय दंड संहिता, 1860 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधन” की सिफ़ारिश की गयी. 1973 में IPC की धारा 505 के बाद नफ़रत को उकसाने और कुछ मामलों में भय, अलार्म या हिंसा भड़काने पर नए प्रावधानों को जोड़कर, IPC की धारा 153B और तदनुसार CRPC की पहली अनुसूची में संशोधन किया गया.
रिपोर्ट में पेज 38 पर हेट स्पीच को एक “अभिव्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो अपमानित करने, डराने, परेशान करने वाली या किसी की जाति, धर्म, जन्म स्थान, निवास, क्षेत्र जैसी विशेषताओं जैसे भाषा, जाति, समुदाय, यौन अभिविन्यास या व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर किसी समूह के साथ की जाने वाली हिंसा, घृणा या भेदभाव है.”
21 सितंबर, 2022 को अश्विनी उपाध्याय की 10 अन्य याचिकाओं के साथ जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस के एम जोसेफ़ और हृषिकेश रॉय की एक खंडपीठ ने टीवी चैनलों और न्यूज़ ऐंकरों को ये कहते हुए फटकार लगाई कि टेलीविज़न पर अभद्र भाषा अनियंत्रित हो जाती है और ये देश में ज़हर बोने का काम करती है.
“Where is our nation headed, if it is hate speech on which we are feeding on” : Supreme Court expresses concern about hate speech in media, stresses on need to have a proper legal framework.
““Hate Speech completely poisons the very fabric…It cannot be permitted”, Court says. pic.twitter.com/T5fLgUuJ5w
— Live Law (@LiveLawIndia) September 21, 2022
सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि हेट स्पीच किसने दी थी. अश्विनी उपाध्याय ने उत्तर दिया, “नेताओं ने.”
#SupremeCourt hearing batch of pleas seeking steps be taken against hate speech, incidents where hate speeches delivered.
Ashwini Upadhyay: These speeches harm the unity and integrity of our nation.
Justice Joseph: Who gives the hate speeches?@AshwiniUpadhyay: Politicians pic.twitter.com/GmAWvsL24r
— Bar & Bench – Live Threads (@lawbarandbench) September 21, 2022
गौर करें कि ये स्पष्ट नहीं है कि अश्विनी उपाध्याय ने खुद को उन नेताओं में शामिल किया या नहीं.
‘थूक जिहाद’ और ‘जनसंख्या जिहाद’
सिर्फ ये देखने के लिए कि कैसे नेता और ऐंकर TV शो के दौरान संवेदना, पत्रकारिता और नैतिकता को हवा में फेंक देते हैं और किसी धर्म समुदाय को बदनाम करते हैं, अदालत को न्यूज़ 18 इंडिया पर 16 नवंबर, 2021 को न्यूज ऐंकर अमन चोपड़ा के शो ‘देश नहीं झुकने देंगे’ पर अश्विनी उपाध्याय की कमेंट्स से ज़्यादा देखने की जरूरत भी नहीं है. न्यूज़लॉन्ड्री के एकआर्टिकल के मुताबिक, यूट्यूब पर अपलोड किए गए शो के वीडियो को अगले दिन हटा लिया गया था. एक घंटे का ये कार्यक्रम इस आरोप पर केंद्रित था कि भारतीय मुसलमान खाना बनाते वक़्त उसमें थूक रहे थे. इस शो में ‘खाने में थूकना, जिहाद या जहालत?’, ‘रिवाज-ए-थूक, ये कैसी भुख?’, और हैशटैग #थूकजिहाद जैसे टीकर्स का इस्तेमाल किया गया था.
शो में अतिथि के रूप में मौजूद अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि मुसलमान न सिर्फ थूक रहे थे बल्कि खाने में भी पेशाब कर रहे थे. उन्होंने कहा, “ये भी तो हो सकता है कि दाल का रंग पीला होता है, सब्जी का रंग पीला होता है, उसमें पेशाब भी कर रहे हो?” कार्यक्रम में कुछ मिनट बाद उन्होंने कहा, “इन थूक जिहादियों को या तो मां-बाप सिखा रहे हैं या कोई स्कूल में जा रहे हैं.” द वायर ने भी अश्विनी उपाध्याय के कमेंट्स पर एक रिपोर्ट पब्लिश की थी.
ऑल्ट न्यूज़ को यूट्यूब पर ‘राष्ट्रधर्म’ नामक शो का एक और वीडियो मिला जिसे ‘न्यूज़ नेशन’ ने पोस्ट किया था. इसमें भी अश्विनी उपाध्याय ‘जनसंख्या जिहाद’ की बात कर रहे हैं.
अपने शुरूआती शब्दों में एक कथित PFI डॉक्यूमेंट का संदर्भ देते हुए ऐंकर विद्यानाथ झा ने पूछा, “क्या भारत 2047 तक एक इस्लामिक राज्य बन जाएगा?” इसके बाद विशेषज्ञ के रूप में शो में मौजूद, अश्विनी उपाध्याय विभाजन के पहले के इतिहास का अपना वर्ज़न बताते हैं. जब ऐंकर ने पूछा कि भारत को इस्लामिक राज्य में बदलने का ब्लूप्रिंट क्या है? अपने जवाब में उपाध्याय पहले बंगाल की सीमा से रोहिंग्याओं की घुसपैठ की बात करते हैं. उपाध्याय बताते हैं, “इस देश की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए, 2017 तक लगभग 5 करोड़ रोहिंग्या और बांग्लादेशी भारत में घुसपैठ कर चुके हैं.” संयोग से, ऑल्ट न्यूज़ ने सितंबर 2018 में इस ग़लत सूचना का पर्दाफाश किया था और ये रिपोर्ट आप यहां पर पढ़ सकते हैं.
वीडियो में 7 मिनट 1 सेकेंड पर ऐंकर, अश्विनी उपाध्याय से पूछता है कि क्या वो ‘जनसंख्या जिहाद’ के बारे में बात कर रहे हैं? उपाध्याय जवाब देते हैं, “बिल्कुल. जनसंख्या जिहाद है ये.” इसके बाद ऐंकर, अश्विनी उपाध्याय से ये बताने के लिए कहता है कि अगर ‘जनसंख्या जिहाद’ है भी तो 2047 तक ये किस तरह भारत को मुस्लिम बहुल देश में बदल देगा.
अश्विनी उपाध्याय ने जवाब देते हुए ये दावा किया, “75 सालों में नौ भारतीय राज्यों में हिंदुओं का अंत हो गया है”. हालांकि, जब वो उन राज्यों की लिस्ट बताते हैं तो सिर्फ पांच राज्यों का नाम लेते हैं – लद्दाख, लक्षद्वीप, मिज़ोरम, नागालैंड और मेघालय. विडंबना ये है कि उन्होंने जिन पांच राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का ज़िक्र किया है. उनमें से तीन में मुस्लिम आबादी हिंदुओं की तुलना में कम है.
ये दावा अक्सर सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है कि भारत किसी साल मुस्लिम बहुल राष्ट्र बन जाएगा. मिंट के आर्टिकल में इस दावे को ‘फ़िक्शन’ का एक हिस्सा बताया गया है. साथ ही 2015-16 में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा से पता चलता है कि ऐसे दावे बिना किसी आधार के किये गए हैं.
अश्विनी उपाध्याय कौन हैं?
बूम लाइव के एक आर्टिकल के मुताबिक़, अश्विनी उपाध्याय एक इंजीनियर हैं. उन्होंने अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी और 2011-12 में अन्ना हज़ारे के आंदोलन में शामिल हो गए. अश्विनी उपाध्याय आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. लेकिन 6 अप्रैल 2014 को अरविन्द केजरीवाल को ‘झूठा’ कहने के बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था. नवंबर, 2014 में वो भाजपा में शामिल हो गए और बाद में उन्हें दिल्ली का प्रवक्ता नियुक्त किया गया.
47 साल के अश्विनी उपाध्याय ने राम जेठमलानी और प्रशांत भूषण जैसे वरिष्ठ बैरिस्टर के साथ काम किया था. इन्होंने समान नागरिक संहिता की मांग करते हुए 2015 में अपनी पहली जनहित याचिका दायर की थी. याचिका को खारिज करते हुए भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश TS ठाकुर ने उन्हें अदालत का समय बर्बाद न करने की चेतावनी दी थी. किसी भी निंदा से बेपरवाह होकर उसके बाद भी उन्होंने शीर्ष अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट में लगभग 50 जनहित याचिकाएं दायर की हैं जिनमें से ज़्यादातर RSS-भाजपा के हितों के बारे में हैं. द प्रिंट के एक आर्टिकल में उन्हें ‘राजनीतिक हित मुकदमेबाज़ी का बेताज बादशाह’ बताया गया है.
मार्च, 2021 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं सहित सभी अवैध प्रवासियों और घुसपैठियों की पहचान, हिरासत और निर्वासन के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की.
हाल ही में इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “आपके देश की समस्याओं को हल करने के सिर्फ तीन तरीके हैं: सड़क, संसद और सुप्रीम कोर्ट. मैं एक सड़क पर किए गए विरोध प्रदर्शन का हिस्सा था. ऐसे आंदोलन रोज़ नहीं होते. भारत के JP आंदोलन को देखने के तीन दशक बाद अन्ना आंदोलन हुआ. मेरे लिए संसद में प्रवेश करना मुश्किल था. मैं भाजपा में शामिल हो गया और देश की समस्याओं के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट का रास्ता चुना.”
अश्विनी उपाध्याय की ‘आयोजित’ रैली में हेट स्पीच
दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित एक बैठक में हेट स्पीच देने के दो दिन बाद 10 अगस्त 2021 को अश्विनी उपाध्याय को पांच अन्य लोगों के साथ गिरफ़्तार किया गया था. उन पर धारा 268, 270, 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर अलग-अलग समुदाय के बीच दुश्मनी बढ़ाना और सद्भाव बनाए रखने के प्रतिकूल काम करना) धारा 188 (विधिवत आदेश की अवज्ञा करना) भारतीय दंड संहिता, महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51B (सरकार द्वारा दिए गए किसी भी निर्देश का पालन करने से मना करना) के तहत आरोप लगाया गया था. अगले ही दिन उन्हें जमानत मिल गई थी.
फ्रंटलाइन ने डिटेल में रिपोर्ट किया कि रैली में किस तरह के नारे लगाए गए थे. रिपोर्ट के मुताबिक, रैली में सैकड़ों लोग शामिल हुए और मीडिया क्रू और दिल्ली पुलिस के जवानों के सामने, ‘जब मुल्ले काटे जाएंगे, राम राम चिल्लायेंगे’, ‘सुअरों की करो विदाई, हिंदू-हिंदू भाई-भाई’, ‘हिंदुस्तान में रहना होगा, राम राम कहना होगा’ और ‘बंद करो बंद करो, मुल्ले का व्यापार बंद करो’ जैसे नारे लगाए गए.
24 साल के पत्रकार अनमोल प्रीतम उस वक्त एक यूट्यूब चैनल के लिए काम कर रहे थे. उन्हें भीड़ ने घेर लिया और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए मजबूर किया.
तथाकथित नक़ली हिंदू संगठनों ने बहुजन पत्रकार ‘@anmolpritamND‘ को धमकाने की कोशिश भी की थी.
इस घटना से यही प्रतीत होता है कि ये तथाकथित हिंदू संगठन दलित, ओबीसी समाज से आने वाले लोगों को हिंदू नही मानते हैं.
नेशनल दस्तक टीम इस घटना की निंदा करती हैं।#bahujanmedia pic.twitter.com/ArT6PswjUo
— National Dastak (@NationalDastak) August 8, 2021
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए प्रीतम ने बताया कि वो अपने कैमरापर्सन के साथ दोपहर 3 बजे के आसपास साइट पर पहुंचे थे. उन्होंने बताया, “जब मैं पहुंचा, तो लगभग 300-400 लोग ‘जब मुल्ले काटे जाएंगे तो राम-राम चिल्लाएंगे’ जैसे नारे लगा रहे थे.”
रैली के तुरंत बाद, मानवाधिकार संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ ने अल्पसंख्यक आयोग को “जंतर-मंतर पर हुए हेट स्पीच के बारे में लिखा जिसमें खुले तौर पर मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा का आह्वान किया गया था.” पैनल ने एक ट्वीट में लिखा, “ये ज़हरीली घटना भाजपा दिल्ली के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय के नेतृत्व में एक “आंदोलन” का हिस्सा थी.”
दिल्ली हाई कोर्ट की महिला वकीलों के फ़ोरम ने रैली की निंदा की और सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को “एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा आयोजित एक रैली में जंतर-मंतर पर हुए हेट स्पीच” के बारे में लिखा.
Delhi High Court Women Lawyers Forum condemns and writes to The Registrar General, Supreme Court regarding “Slogans amounting to hate speech raised at Jantar Mantar in a rally organised by Advocate Ashwini Upadhyaya”#JantarMantar pic.twitter.com/BTm9GAV6Yj
— Live Law (@LiveLawIndia) August 9, 2021
अपने बचाव में अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि वो उन लोगों को नहीं जानते जिन्होंने नारे लगाए थे और वो कार्यक्रम स्थल से चले गए थे और जब तक नफ़रत फैलाने वाले नारे लगाए गए तब तक बैठक खत्म हो गई थी. उन्होंने ये भी कहा कि वो रैली में सिर्फ एक अतिथि थे. लेकिन एक ट्वीट से कुछ और ही पता चलता है जिसे बाद में उन्होंने डिलीट कर दिया. इसमें उन्होंने रैली में शामिल होने वाले सभी लोगों को धन्यवाद दिया और उनसे अपने-अपने शहरों में इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा. (आर्काइव लिंक)
उन्होंने जंतर-मंतर रैली की एक तस्वीर भी ट्विटर पर प्रोफ़ाइल पिक्चर में लगाई थी. लेकिन बाद में उन्होंने उसे भी डिलीट कर दिया. (आर्काइव लिंक)
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इस रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के हवाले से कहा है, “अश्विनी उपाध्याय ने कार्यक्रम आयोजित करने से पहले पुलिस को सौंपे गए आवेदन पत्र में प्रीत के नाम का ज़िक्र किया था.” आरोपियों में से एक प्रीत सिंह सेव इंडिया फ़ाउंडेशन का निदेशक है.
यति नरसिंहानंद द्वारा आयोजित धर्म संसद में अश्विनी उपाध्याय
जब अश्विनी उपर्युक्त मामले में जमानत पर बाहर थे. उन्होंने 17 और 19 दिसंबर, 2021 के बीच उत्तराखंड में यति नरसिंहानंद सरस्वती द्वारा आयोजित एक धर्म संसद में भाग लिया था. जहां एक बार फिर मुसलमानों के खिलाफ़ खुले नरसंहार का आह्वान किया गया. बैठक में बोलते हुए उन्होंने नरसिंहानंद को अपना ‘गुरुदेव, मित्र और भाई’ बताया और उन्हें एक किताब की एक कॉपी भेंट की. भाषण के दौरान उन्होंने एक किताब को ‘भगवा संविधान’ बताया. उन्होंने ये भी कहा कि ये शर्मनाक है कि उन्हें हिंदुस्तान में ‘भगवा संविधान’ बनाना पड़ा, संविधान हमेशा भगवा होना चाहिए था.
उन्होंने आगे कहा, “महाराज जी (यति नरसिंहानंद) जो लड़ाई लड़ रहे हैं, वो असंवैधानिक नहीं है. पांच मिनट में मैं उनके शब्दों को संविधान से जोड़ सकता हूं.”
Day 2, 18 December:
Swami Premanand Maharaj stresses on the need for Hindus to purchase weapons to defend religion.#HaridwarGenocidalMeet pic.twitter.com/0uIQ9Bg5Qr— Kaushik Raj (@kaushikrj6) December 22, 2021
बैठक का विषय ‘इस्लामिक भारत में सनातन (धर्म) का भविष्य: समस्या और समाधान’ था. स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक, यति नरसिंहानंद ने भाषण में कहा, “आर्थिक बहिष्कार [मुसलमानों के खिलाफ़] काम नहीं करेगा…कोई भी समुदाय बिना हथियार उठाए जीवित नहीं रह सकता…और तलवारें काम नहीं करेंगी, वे केवल चरणों में अच्छी लगती हैं. आपको अपने हथियारों को अपडेट करने की ज़रूरत है…ज़्यादा से ज़्यादा संतान और बेहतर हथियार, सिर्फ यही आपकी रक्षा कर सकते हैं.”
स्पीकर्स में से एक, धर्मदास महाराज ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संदर्भ देते हुए कहा कि अगर वो संसद में राष्ट्रीय संसाधनों पर अल्पसंख्यकों के अधिकार के बारे में बात करते और मनमोहन सिंह वहां मौजूद होते, तो उन्हें 6 बार गोली मार देते.
Dharamdas Maharaj from Bihar
“If I was present in the parliament when PM Manmohan Singh said that minorities have first right over national resources, I would’ve followed Nathuram Godse, I’d have shot him six times in the chest with a revolver. #HaridwarHateAssembly pic.twitter.com/p5Li3gkPN2— Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 22, 2021
कार्यक्रम के आयोजक और अश्विनी उपाध्याय के ‘गुरुदेव, मित्र और भाई’ नरसिंहानंद को 15 जनवरी को गिरफ़्तार किया गया था और लगभग तीन सप्ताह बाद इस शर्त पर जमानत पर रिहा कर दिया गया था कि वो ऐसा भाषण नहीं देंगे जिससे सामाजिक सद्भाव बाधित हो सकता है. हालांकि, उन्होंने इसकी परवाह नहीं की.
हेट स्पीच देने के मामले में नरसिंहानंद असल में एक सीरियल अपराधी हैं. सभी प्रमुख मीडिया घरानों ने मुसलमानों के खिलाफ़ बार-बार उनके द्वारा दिए गए बयानों का डॉक्यूमेंटेशन किया है. इसके कुछ उदाहरण आप स्क्रॉल.इन, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, बीबीसी, द इंडियन एक्सप्रेस पर पढ़ सकते हैं. द वायर की इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट के मुताबिक, नरसिंहानंद और उनके सहयोगियों के हेट स्पीच ने दंगाइयों को कट्टरपंथी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके बाद उन्होंने फ़रवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में ज़हर उगला. उस दिन दिल्ली में हुए चार दंगों में 53 लोग मारे गए थे.
विडंबना ये है कि अश्विनी उपाध्याय जिस रिपोर्ट को लागू करना चाहते हैं, उसके पेज 47 पर ‘एन एफ़र्ट टू फ़ाइंड सॉल्यूशन’ टाइटल के तहत, विधि आयोग में कहा गया है, “धर्म के संदर्भ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के सभी उदाहरण और घृणा को बढ़ावा देने से होने वाली हिंसा की निंदा की जानी चाहिए और इसे रोका जाना चाहिए.”
अश्विनी उपाध्याय ने फ़ेसबुक पेज पर यति नरसिंहानंद के साथ अपनी दोस्ती की तस्वीरें शेयर की हैं.
अश्विनी उपाध्याय के ‘अच्छे दोस्त’ सुरेश चव्हाणके
अश्विनी उपाध्याय की ट्विटर गतिविधियों को ध्यान से देखने पर हमने नोटिस किया कि वो उन जनहित याचिकाओं और संबंधित विषयों पर नियमित रूप से ट्वीट करते हैं. उन्हें अलग-अलग ट्वीट्स में सुदर्शन न्यूज़ को 14 साल पूरे होने पर बधाई देते हुए और इसके संपादक सुरेश चव्हाणके को उनके जन्मदिन पर बधाई देते हुए भी देखा जा सकता है. उन्होंने चव्हाणके को अपना ‘प्रिय मित्र’ बताते हुए कहा कि संपादक ‘मां भारती’ की बहुत सेवा कर रहे हैं.
हालांकि, सुदर्शन न्यूज़, इसके संपादक सुरेश चव्हाणके और इसके पत्रकारों पर बार-बार हेट स्पीच देने का आरोप लगा है. उनके कार्यक्रम जिसे वे ‘UPSC जिहाद’ कहते थे, इसमें उन्होंने सिविल सेवाओं में मुसलमानों की मौजूदगी पर आक्षेप लगाया और भारतीय सिविल सेवाओं में मुसलमानों को शामिल करने की एक कथित साजिश को ‘उजागर’ करने की मांग की. इससे 2020 में एक बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में कहा था कि ये शो ‘आक्रामक है, अच्छी प्रकृति का नहीं है और इसमें सांप्रदायिक भेदभाव को बढ़ावा देने की संभावना है.’
सुरेश चव्हाणके के शो की प्रकृति और कंटेंट के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था, “क्या राष्ट्र की स्थिरता और अखंडता के लिए इससे ज़्यादा कुछ और भी घातक और खतरनाक हो सकता है? ये बिना किसी सबूत के UPSC जैसी संस्था पर आक्षेप लगाकर, सिविल सेवाओं की संस्था की विश्वसनीयता को भी नष्ट करने का काम करता है.”
ऑल्ट न्यूज़ ने अगस्त 2020 में सुदर्शन न्यूज़ के खतरनाक और सांप्रदायिक भेदभाव को बढ़ावा देने वाली ग़लत सूचनाओं का डॉक्यूमेंटेशन करते हुए ये रिपोर्ट पब्लिश की थी.
अश्विनी उपाध्याय के ‘अच्छे दोस्त’ सुरेश चव्हाणके द्वारा की गई कई ‘मां भारती की सेवाओं’ में ये उल्लेखनीय था कि उन्होंने 19 दिसंबर 2021 को नई दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हिंदुराष्ट्र के लिए हत्या करने की शपथ दिलाई थी.
This is no longer some fringe activity, this is happening with the absolute collusion of mainstream Hindutva forces. Threatening to kill in order to make India as a Hindu nation, is, in mild terminology “ethnic cleansing”, and in actual translation, “Muslim genocide”! pic.twitter.com/8q50GrQvD3
— Dr Meena Kandasamy ¦¦ மீனா கந்தசாமி (@meenakandasamy) December 23, 2021
ऑल्ट न्यूज़ ने अश्विनी उपाध्याय के सार्वजनिक और पेशेवर जीवन में साफ़ तौर पर दिए गए उनके कट्टर विरोधाभास भरे बयानों के लिए उनसे संपर्क किया. उन्होंने कुछ भी कमेंट करने से इनकार कर दिया.
तो हमें किस अश्विनी उपाध्याय को गंभीरता से लेना चाहिए?
एक अश्विनी उपाध्याय, जिन्होंने शीर्ष अदालत से “हेट स्पीच और अफवाह फ़ैलाने से संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानूनों की जांच करने, नागरिकों के स्वतंत्रता, गरिमा और अन्य मौलिक अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए, हेट स्पीच देने वाले और अफवाह फैलाने वाले को नियंत्रित करने के लिए उचित प्रभावी कड़े कदम उठाने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया था या दूसरे अश्विनी उपाध्याय, जो नरसिंहानंद की बैठक में शामिल हुए थे?
एक याचिका में उन्होंने कहा, “नागरिकों की चोट बहुत बड़ी है क्योंकि हेट स्पीच और अफवाह फ़ैलाने से किसी व्यक्ति या समाज को आतंकवाद के कृत्यों को जातीय सफाई आदि के लिए उकसाने की क्षमता है.” या दूसरा वो जिसने कथित तौर पर नफ़रत का आयोजन किया जिसे जंतर-मंतर पर रैली में हेट स्पीच देने के बाद गिरफ़्तार किया गया?
एक अश्विनी उपाध्याय, जो अपनी जनहित याचिका में ये नोट करते हैं, “धर्म के संदर्भ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन और घृणा को बढ़ावा देने के बाद हिंसा के सभी मामलों की निंदा की जानी चाहिए और इसे रोकना चाहिए” या दूसरे वो जो ये कहते हैं कि मुसलमान खाने में पेशाब करते हैं?
क्या माई लॉर्डशिप कृपया असली अश्विनी उपाध्याय को सबके सामने आने के लिए कहेंगी?
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.