“भाई लोग कोलकाता के रज़ा बाजार में 63 मदरसे के बच्चों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है उनका कहना है कि यह आतंकवादी की ट्रेंनिंग लेने के लिए जा रहे है। इस मैसेज को जल्दी फॉरवर्ड करे, मीडिया ने दिखाने से इंकार कर दिया है मीडिया बोल रहा है कि हमें ऊपर से ऑर्डर है कि नहीं दिखाने का प्लीज़ फॉरवर्ड ऑल ग्रुप “- इस संदेश को फेसबुक पर व्यक्तिगत उपयोगकर्ता द्वारा एक वीडियो के साथ साझा किया गया है। इस वीडियो में, छात्रों के एक ग्रुप को पुलिसकर्मी के साथ क़तार में चलते हुए देखा जा सकता है। इसमें यह दावा किया गया है कि ये मदरसे के बच्चे हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफतार कर लिया है। पोस्ट के अनुसार, पुलिस ने कहा कि वे आतंकवाद का प्रशिक्षण लेने जा रहे थे। कुछ अन्य व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं ने फेसबुक पर इसी दावे को साझा किया है।

 

Bhai log kolkata ke raza bazar me 63 madarse ke bachhe ko police ne giraftar kr liya h unka kahna h ke ye aatankwadi ka training lene ja rahe h..is Msg ko jaldi forward kre media dekhne se in kar kar Diya h media bol raha h ke hme uper se order h nhi dekhne ka plz forward all grp…

Posted by Nazeer Naz on Friday, 31 May 2019

2015 से यह वीडियो सोशल मीडिया में वायरल

यह वीडियो क्लिप पिछले चार सालों से इसी दावे के साथ सोशल मीडिया में वायरल है। अज़ान खान नाम के एक उपयोगकर्ता ने इस वीडियो को 7 अगस्त, 2015 को साझा किया था। खान की इस पोस्ट को 64,000 बार साझा और 10 लाख लोगों द्वारा देखा गया है।

इसे व्हाट्सप्प और ट्विटर पर भी साझा किया गया है।

कोलकाता से 2015 का वीडियो

ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि यह वीडियो चार साल पुराना है और सोशल मीडिया में झूठे दावे के साथ साझा किया जा रहा है। खबरों के मुताबिक, पुणे के एक मदरसें में कुछ छात्र पढ़ने के लिए जा रहे थे, तभी कोलकाता के सियालदह में दस्तावेजों की कमी के कारण पुलिस द्वारा उन्हें रोक दिया गया था। अगर वीडियो में ध्यान से सुना जाये तो लोगों को बंगाली भाषा में कुछ बोलते हुए सुना जा सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह घटना अगस्त 2015 में हुई थी, जब भारतीय रेल पुलिस ने 63 बच्चों को पकड़ा था जो पुणे के एक मदरसे में ट्रैंनिंग लेने के लिए जा रहे थे। बच्चों को CINI (आशा चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी) के अधिकारियों के सुझाव के आधार पर पकड़ा गया था।

तत्कालीन स्टेट कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के चेयरमैन, अशोकेंदु सेनगुप्ता द्वारा दिए गए एक बयान के अनुसार, बच्चों को हिरासत में ले लिया गया और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा पूर्णिया में उनके लिए रहने की व्यवस्था की गई। द हिन्दू को दिए गए एक अन्य बयान के मुताबिक,“हम इस मामले में कानून द्वारा निर्धारित प्रावधानों का पालन करेंगे। और अगर मदरसे में भर्ती होने वाले बच्चों के दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएंगे, तो सीडब्ल्यूसी उन्हें रिहा कर देगा। यदि माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे वापस घर लौट आये तो उनके बच्चों को छोड़ दिया जाएगा। ” -(अनुवाद)

3 अगस्त, 2015 को DNA द्वारा प्रकाशित किये गए रिपोर्ट में कहा गया कि,“इस बीच, कोलकाता पुलिस के शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि बच्चों को किसी भीअनुचित घटना से बचाने के लिए, उन्हें सोमवार रात तक ही बिहार वापस भेज दिया जाएगा । ” (अनुवाद)

हालांकि, छात्रों की गिरफ़्तारी को लेकर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को दोषी ठहराया है –“यह उनकी ओर से अनुचित किया गया है। सिर्फ इसलिए कि वहां पर बहुत सारे मुसलमान सफर कर रहे थे, उन्हें लगता है कि वे आतंकवादी बनने की ट्रैंनिंग लेने के लिए जा रहे हैं। क्या अब हमें देश के अंदर भी यात्रा करने के लिए पासपोर्ट की जरुरत है? वे छोटे बच्चे है जो पढ़ने के लिए जा रहे थे।”

ऑल्ट न्यूज़ ने सेनगुप्ता को अन्य जानकारियों के लिए संपर्क किया। तब उन्होंने बताया कि,“जहां तक ​​मेरी जानकारी है, सबसे पहले यह घटना पुरानी है और हमने चाइल्डलाइन सियालदह की एक रिपोर्ट के आधार पर यह निर्णय लिया है। इस किस्से में, कुछ बच्चे किसी अन्य जगह पर बिना किसी दस्तावेज़ के एक या दो वरिष्ठ लोगों के साथ यात्रा कर रहे थे। इसीलिए मैंने चाइल्डलाइन से बात की कि वे उन्हें आगे बढ़ने से रोके। जे जे (किशोर अधिनियम) के मुताबिक, CWC अपने सभी जिलों के बच्चों की (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की जरुरत के चलते, CNCP) क़ानूनी संरक्षक है। इसलिए बच्चों की पहचान करने के लिए उन्हें संबधित जिलों के CWC को भेजने की जरुरत है लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर यह कहना शुरू कर दिया कि केवल बच्चों को धार्मिक प्रशिक्षण लेने की वजह से उन्हें पकड़ा गया है। मग़र यह बात नहीं है। मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारे सीएम (ममता बनर्जी) ने इस घटना पर अच्छा रुख अपनाया है और खुले दिल से मेरा समर्थन किया है और स्थानीय प्रसाशन को मेरे विरुद्ध जाने से रोका है”।

बच्चों की रिहाई पर स्पष्टता करते हुए उन्होंने कहा,“बच्चों को उनकी जानकारी और मर्जी के बगैर ले जाया जा रहा था। इसलिए, उन्हें उनके संबंधित जिलों की बाल कल्याण समितियों को सौंप दिया गया”

रेलवे पुलिस द्वारा पहचान के लिए हिरासत में लिए गए छात्रों के एक पुराने वीडियो को गलत दावे के साथ साझा किया गया, जिसमें यह दिखाने की कोशिश की गई कि बच्चे आतंकवाद के प्रशिक्षण लेने के लिए जा रहे थे। जबकि यह घटना चार साल पहले हुई थी और उसके बाद पुलिस ने बच्चों को रिहा भी कर दिया था।

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About the Author

Jignesh is a writer and researcher at Alt News. He has a knack for visual investigation with a major interest in fact-checking videos and images. He has completed his Masters in Journalism from Gujarat University.