नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण के पॉज़िटिव केसेज़ की संख्या भारत में 600 से ज़्यादा तक पहुंच चुकी है. समूचे देश को लॉकडाउन किया हुआ है. दुनिया भर में तकरीबन 4 लाख केस कन्फर्म हुए हैं और 15,000 के करीब लोगों की मौत हो चुकी है. इसकी वजह से लोग अलग-अलग तरह की भ्रामक जानकारियों के जाल में फंसते हैं. कई असंबंधित तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में डर को बढ़ावा दे रहे हैं. इन झूठे दावों के ज़रिए घरेलू उपचार और नुस्खों को शेयर किया जा रहा है. हालांकि लोग अक्सर ऐसा ग़लत इरादे से ऐसा नहीं करते हैं लेकिन ऐसे गंभीर समय के दौरान फैल रही गलत जानकारियां लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं. हम अपने पाठकों से अनुरोध करते है कि वो सोशल मीडिया या व्हाट्सऐप पर शेयर किये गए किसी भी मेसेज पर बिना उसे वेरिफ़ाई किये यकीन न करें.

सड़क किनारे रास्ते पर लेटे हुए कुछ लोगों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर COVID-19 से जुड़ी हुई बताकर शेयर की जा रही हैं. इन तस्वीरों के साथ तेलुगु, हिन्दी और बंगाली भाषा में मेसेज भी हैं.

तस्वीर 1.

एक फ़ेसबुक यूज़र ने ये तस्वीर शेयर करते हुए हिन्दी में लिखा -“लोगो को कोरोना मजाक लगता है देखे इटली में इसे उठाने वाला कोई नही.”

एक यूज़र ने तेलुगु मेसेज के साथ ये तस्वीर ट्वीट की है -“ఇటలీ లో ఏం జరుగుతుందో శాటిలైట్ చిత్రం ద్వారా చూడండి పిట్టల రాలిపోయిన జనాలు చూడండి వారి ప్రధాని చెప్పిన మాట వినకుండా విచ్చలవిడిగా తిరిగిన దానికి కలిగిన ఫలితం కనీసం శవాలను పూడ్చి పెట్టడం కూడా సాధ్యం కాని పరిస్థితి … తస్మాన్ జాగ్రత్త.” (अनुवाद – सेटेलाइट से ली गई तस्वीर के ज़रिए इटली में क्या हो रहा है देखे. प्रधानमंत्री की बात को ना मानते हुए वो बाहर निकले, अब ऐसी स्थिति है कि उनके शरीर को जलाया भी नहीं जा सकता. ध्यान रखे.

ऑल्ट न्यूज़ के व्हाट्सऐप नंबर (+91 76000 11160) और ऑफ़िशियल ऐप पर इस तस्वीर की सच्चाई जानने के लिए कुछ रीक्वेस्ट मिली हैं.

फ़ैक्ट-चेक

फ़रवरी के पहले हफ़्ते में चीन में कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ. ये तस्वीर उस वक़्त की स्थिति दिखा रही है, ऐसे दावे के साथ इसे शेयर किया जाने लगा.

ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि ये तस्वीर 14 मार्च 2014 को न्यूज़ एजेंसी रॉइटर्स ने अपलोड की थी. तस्वीर को ये कहते हुए शेयर किया गया कि कैट्सबाख़ के नाज़ी कंसंट्रेशन कैम्प में मारे गए 528 लोगों की याद में 24 मार्च 2014 को फ्रैंकफर्ट में लोग सड़क के किनारे लेटे हुए थे. कैट्सबाख़ कैम्प, जो कि एडलर इंडस्ट्रियल फैक्ट्री का एक हिस्सा था, उसके कैदियों को बुहेनवॉल्ड और डहाऊ के कंसंट्रेशन कैम्प में डेथ मार्च के लिए भेज दिया गया था. कैट्सबाख़ के कुछ 528 लोग फ्रैंकफर्ट के सेंट्रल कब्रिस्तान में दफ़न हैं.

इस लिए लोग कैट्सबाख़ नाज़ी कंसंट्रेशन सेंटर के कैदियों की याद में ज़मीन पर लेटे हुए थे.

दूसरी तस्वीर : ताबूत

वायरल मेसेज के साथ फ़ेसबुक पेज ने और दो तस्वीरे शेयर की है. दूसरी वायरल तस्वीर में कुल 3 तस्वीरों का कोलाज बनाकर शेयर किया गया है. इन्हें शेयर करते हुए बंगाली मेसेज में लिखा गया है -“খুবই করুণ পরিস্থিতি ইটালির কাজের দোহাই দিয়ে বাড়ি থেকে অকারনে বেরোনোর আগে এই দৃশ্যটা একটু মাথায় রাখবেন. (अनुवाद – इटली की स्थिति काफ़ी गंभीर है. अगर आप काम के बहाने से घर से बाहर निकलते रहे तो इन तस्वीरों को आप अपने दिमाग में बैठा लीजिएगा.)”

फ़ैक्ट चेक – तस्वीर 1 और 2

ऑल्ट न्यूज़ ने तीनों तस्वीरों को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च किया. मालूम हुआ कि ये तस्वीरें अफ्रीकी प्रवासियों की है जिन्हें इटली के लैम्पेडुसा के नज़दीक मार दिया गया था. ये वारदात 3 अक्टूबर 2013 की है.

पहली तस्वीर ‘द गार्डियन’ ने 2013 के एक रिपोर्ट में शेयर की थी.

दूसरी तस्वीर को 2014 के ‘इन्टरनेशनल बिज़नेस टाइम्स’ की रिपोर्ट में प्रकाशित हुई थी. तीसरी तस्वीर 2013 की ‘द स्टार’ की रिपोर्ट में शेयर की गई थी.

फ़ैक्ट-चेक – तस्वीर 3

बंगाली यूज़र द्वारा शेयर की गई तीसरी तस्वीर में तमाम कब्रों को सेना के जवान और मेडिकल स्टाफ़ घेर कर खड़े हुए है. तस्वीर में प्रोटेक्टिव गियर पहने मेडिकल स्टाफ़ के लोगों को कुछ शव को दफ़नाते हुए भी देखा जा सकता है. दोबारा रिवर्स इमेज सर्च करने से पता चला कि ये तस्वीर 2011 की एक हॉलिवुड फ़िल्म से ली गई है. फ़िल्म के ऑफ़िशियल ट्रेलर में इस दृश्य को 2:19 मिनट पर देखा जा सकता है. ऐसे कई आर्टिकल प्रकाशित हुए हैं जो फ़िल्म के साथ कोरोना वायरस की समानता के बारे में बताते है.

इस तरह सोशल मीडिया में तस्वीरों के साथ किया जा रहा है दावा गलत है. वायरल तस्वीरों का COVID-19 से कोई लेना-देना नहीं है.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.