प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ट्विटर के इतने बड़े शौक़ीन हैं कि दुनिया में कुछ भी हुआ हो, उस पर आपको उनका ट्वीट जरूर मिल जाएगा; वो चाहे लोगों को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं देने वाले ट्वीट हों या फिर उनकी मौत की बरसी को याद करते ट्वीट हों, retweet फीचर का इस्तेमाल कर दुसरे लोगों के कैंपेन, जैसे #selfiewithdaughter और #SwachhBharat, को बढ़ावा देने के लिए ट्वीट हों या दुनिया के किसी भी देश में हुए आतंकी हमले की निंदा करने वाले ट्वीट हों, विदेश में हुई घटनाओं पर उनके अनेकों ट्वीट हैं। लेकिन जब बारी देश के आंतरिक मुद्दों पर अपनी बात रखने की आती है तब नरेन्द्र मोदी का ट्विटर अकाउंट एक अजीब सी ख़ामोशी की चादर ओढ़ सो जाता है। बहुत बार ऐसे मुद्दे आयें जब लोगों को देश के प्रधान सेवक से उन घटनाओं की निंदा में, या शोक व्यक्त करते हुए, उनसे अपनी बात रखने की उम्मीद रखी, पर घरेलु मुद्दों पर नरेन्द्र मोदी द्वारा उतनी तत्परता कभी नहीं दिखाई गयी जितनी वो बाहर की घटनाओं पर दिखाते हैं।
एक ऐसी ही एक घटना में 28 सितम्बर 2015 को, 52 साल के मोहम्मद अखलाक को उत्तर प्रदेश के दादरी इलाके में गौरक्षकों की एक भीड़ ने उनके द्वारा महज बीफ खाए जाने का शक होने पर उनके घर में घुस कर पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना पर नरेन्द्र मोदी ने अपनी चुप्पी 8 अक्टूबर की एक रैली में तोड़ी। एक और ऐसी ही घटना में, पिछले साल 11 जुलाई को गुजरात के एक छोटे से कसबे ऊना में फिर से कुछ गौ-रक्षकों ने दिनदहाड़े 4 दलित युवकों को कार से बाँध कर बेरहमी से पीटा। इस घटना पर भी नरेन्द्र मोदी लम्बे वक़्त तक खामोश रहे। उनकी चुप्पी तब टूटी जब उन्हें लगा की लोगों का गुस्सा हाथ से निकल रहा है। 11 जुलाई को हुई घटना पर नरेन्द्र मोदी ने 7 अगस्त को कुछ बोला। 5 अगस्त को इस घटना और दलितों पर अत्याचारों के विरोध में एक ऐतिहासिक मार्च अहमदाबाद से ऊना जाने के लिए शुरू हो चुकी थी।
इस महीने की 3 तारीख को, पहलु खान नाम के एक 55 साल के शख्श, जिन पर 2 दिन पहले एक भीड़ ने राजस्थान के अलवर शहर के एक हाईवे पर हमला किया था, उनकी अस्पताल में मौत हो गयी। राजस्थान के गृह मंत्री ने इस घटना पर एक चौकाने वाला बयान दिया जिसमें वह गौरक्षकों की हरकत को सही ठहराने के कोशिश कर रहे थे।
बीजेपी के मुख़्तार अब्बास नकवी तो इससे भी एक कदम आगे निकल गये। राज्य सभा में दिए एक बयान में उन्होंने कहा कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं और विपक्ष बात का बतंगड़ बना रहा है। इस बयान के चौतरफा विरोध और घटना के फोटो और विडियो के वायरल होने के बाद मुख़्तार अब्बास नकवी ने अपना बयान बदल लिया।
ऐसे में जब बीजेपी के सारे नेता गौरक्षकों द्वारा दिन-दहाड़े की गयी इस हत्या को दबाने की कोशिशों में लगे थे, तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को स्वीडन के स्टॉकहोम में हुए एक कथित आतंकी हमले की निंदा करते हुए ट्वीट करने की सूझी और वो भी तब जब उन्होंने अलवर में हुई हत्या पर एक भी शब्द ना बोला हो। सोशल मीडिया पर बहुत लोगों को नरेन्द्र मोदी और बसुन्धरा राजे का यह दोगला आचरण रास नहीं आया और इन दोनों का इस पर खूब खरी-खोटी सुनाई।
प्रधानमंत्री मोदी गौरक्षकों की गुंडागर्दी पर हमेशा कुछ भी बोलने से परहेज करते हैं पर जब आम आदमी पार्टी की रैली में एक किसान ने आत्महत्या की तो उन्हें इस घटना पर ट्वीट करने में कुछ घंटे भी नहीं लगे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या देश के प्रधानमंत्री को, और मोदी जी के शब्दों में कहें तो देश के प्रधानसेवक को, अपनी पार्टी के राजनीतिक एजेंडे से ऊपर उठकर सभी मुद्दों पर एक जैसा व्यवहार करना चाहिए कि नहीं? और खासकर तब जब वह ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे पर चुनाव जीत कर आया हो।
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