45 वर्ष से अधिक उम्र के मुस्लिम महिलाओं को महरम या पुरुष अभिभावक के बिना हज यात्रा करने की अनुमति देने वाले नियमों में राहत देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दावा किए जाने पर एक विवाद उभरा है. मन की बात प्रोग्राम में उन्होंने कहा, ” कि यदि कोई मुस्लिम महिला हज यात्रा के लिए जाना चाहती है तो वह अपने महरम या मेल गार्डियन के बिना नहीं जा सकती, जब मैंने इसके बारे में पहली बार सुना तो सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है, ऐसे नियम किसने बनाये होंगे? लेकिन जब मै इस बात की गहराई में गया तो यह जानकर हैरान हो गया कि आजादी के 70 साल बाद भी ये प्रतिबंध लगाने वाले हम ही लोग थे. दशकों से मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा था. यहाँ तक कि कई इस्लामिक देशों में भी यह नियम नहीं है लेकिन भारत में मुस्लिम महिलाओं को ये अधिकार प्राप्त नहीं था.” उन्होंने कहा, “हमारी मिनिस्ट्री ऑफ़ माइनॉरिटी अफेयर्स ने आवश्यक कदम उठाये और ये 70 साल से चली आ रही परम्परा को नष्ट करके इस प्रतिबंध को हमने हटा दिया“. उनके शब्दों को सोशल मीडिया पर तीव्र प्रतिक्रिया मिली। तर्क यह दिया गया कि वीजा देने वाला देश, अर्थात सऊदी अरब, नियमों में किसी भी तरह के बदलाव के लिए जिम्मेदार है और इसलिए श्रेय भी उन्हें जाता है. पर सच क्या है? क्या मोदी सरकार सऊदी अरब सरकार द्वारा यह नियम लागू करने का श्रेय खुद ले रही है? आएये पता करते हैं…

भारत की हज समिति (HCOI) हज के तीर्थयात्रियों की व्यवस्था करने के लिए उत्तरदायी है. 2017 में, भारत से 1.7 लाख तीर्थयात्रियों का हज कोटा था. इनमें से 1,25,025 लाख HCOI और 45,000 निजी टूर ऑपरेटर (PTOs) के माध्यम से गए थे. सरकार के पास हज पालिसी की एक रूप-रेखा होती है जिसकी समय-समय पर समीक्षा की जाती है. 2013-17 के लिए हज निति का अनुमोदन करते समय, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “अगले पांच साल की पालिसी इसी तरह तैयार की जाएगी, इसको अनुसरण करते हुए किसी भी समस्या का सामना करने पर नए बदलाव को ध्यान में रखते हुए, आगामी पालिसी से सामग्री और गुणवत्ता जोड़कर, तकनीकी उन्नति के साथ इसे पिछले नीति से बेहतर प्रदर्शन के लिए बनाया जाएगा”. तदनुसार, फरवरी 2017 में, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने मौजूदा हज पालिसी की समीक्षा करने के लिए एक समिति गठित की और नई हज निति 2018-22। के ढांचे का सुझाव दिया.

2018-22 की हज पालिसी में, इसके कई सिफारिशों में, समिति ने यह भी सिफारिश की, कि 45 वर्ष से अधिक उम्र के महिलाओं को 4 या उससे अधिक के समूह में बिना महरम या पुरुष अभिभावक के जाने की अनुमति दी जाए. 2013-17 के निति में कहा गया था कि सऊदी नियमों के अनुसार महरम सभी महिला यात्रियों के लिए आवश्यक है.

हज निति 2013-17 में महरम की आवश्यकता

हज निति 2018-22 में महरम की आवश्यकता

सऊदी नियम कब बदले गए?

इंडियन एक्सप्रेस के लेख के मुताबिक ये नियम 2014 में बदल दिए गए थे और इन्हें लागू करने में भारत को तीन साल लग गए. MoMA कमेटी की अध्यक्षता करने वाले सेवानिवृत्त IAS अधिकारी अफजल अमानुल्ला ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले जब हमने सऊदी दूतावास से जांच की तो उन्होंने हमें बताया कि महरम के बिना 45 से अधिक उम्र की महिलाओं के यात्रा पर कोई रोक नहीं है, और वीजा उन्हें एक समूह में जारी किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा,” भारत महरम के बिना महिलाओं को अपनी मनमानी रूप से अस्वीकार कर रहा है- और फिर हमने इसे रिपोर्ट में शामिल किया।” राज्यसभा सांसद हुसैन दलवाई से बात करने के बाद, जोकि भारत की हज समिति और सऊदी दूतावास के सदस्य हैं, यह निष्कर्ष निकाला कि नियम 2014 में बदल गए थे.

यदि नियम वास्तव में 2014 में बदल गए, तो यह दुनिया भर में एक बड़ी खबर होती. याद रखें, यह केवल भारत के तीर्थयात्रियों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर से है. Alt News को 2014 में ऐसी किसी भी खबर की जानकारी नहीं मिली इसलिए हमने इसकी गहराई तक जाने का फैसला किया.

महरम के नियम से जुड़ा एक और संधर्भ 2012 में पाया गया जब नाइजीरियाई तीर्थयात्रियों के एक समूह को सऊदी अरब में प्रवेश से वंचित किया गया था. हज मंत्रालय के प्रवक्ता हतेम बिन हसन कडी ने आलोचना का सामना करते हुए अधिकारिक सऊदी समाचार एजेंसी से कहा, “तीर्थयात्रा के नियम कई वर्षो से लागू हैं और क्योंकि इसमें कोई नए नियम नहीं जुड़े हैं तो उसे जरुर व्यवहार में लाना चाहिए. ध्यान दें! 2012 में उन्होंने ये कहा कि ये नियम कई वर्षो से लागू है इसलिए हमने इससे पहले के दस्ताबेज ढूंढने की कोशिश की.

हमने वाशिंगटन डीसी की सऊदी दूतावास की वेबसाइट पर 2001 के नियमों को देखा, जो एक पुरुष साथी के संबंध में वैसा ही नियम बताता है. Hajinformation.com साइट का एक 2005 का Archived संस्करण भी यही नियम बताता है। निश्चित रूप से ये नियम कम से कम 16 वर्षों के लिए बनाया गया है. 2001 से पहले संग्रहीत लेखों में डेटा अंक ढूंढना मुश्किल है, लेकिन यह बिलकुल संभव है कि यह नियम 2001 से पहले भी मौजूद था.

जब सलाम गेटवे द्वारा महबूब अली केशर से इस विसंगति का उल्लेख किया गया जो उस समय संसद से सदस्य और भारत के हज समिति के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने स्वीकार किया कि यह नियम सिर्फ भारत का ही हो सकता है. उन्हें सलाम गेटवे को उद्धृत करते हुए कहा, “जब वे (सऊदी अरब) यूरोपीय या अमेरिकियों और अन्य राष्ट्र की महिलाओं को हज यात्रा की अनुमति दे रहे हैं, तो यह शायद भारतीय नियम ही होगा. ग्रामीण क्षेत्रों की कई महिलाएं हज की यात्रा करती हैं. वे किसी अन्य कारणों की वजह से अकेले यात्रा नहीं करती होंगी, हो सकता है धार्मिक नियम कारण न हो.”

क्या प्रधानमंत्री को श्रेय जा सकता है?

सभी सबूत इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि सऊदी नियमों ने 45 वर्ष से अधिक उम्र कि महिलाओं को महरम के बिना हज की यात्रा करने की अनुमति दी थी और भारतीय हज समिति के नियम महरम के मामले में अधिक कठोर थे

हाल के विवाद के बाद, सोशल मीडिया पर कई लोग दावा कर रहे थे कि उनके महिला रिश्तेदारों ने कई साल पहले मरहम के बिना हज की यात्रा की थी। हमें इस बात का यकीन नहीं है कि यह कैसे संभव हो सका था और क्या इसके लिए कोई अलग से उपाय थे.

ध्यान देने वाली बात यह है कि ‘सभी महिलाओं के लिए महरम’ यह एक हज समिति का नियम था. लगभग 30% तीर्थयात्री निजी टूर ऑपरेटर के द्वारा यात्रा करते हैं. कथित तौर पर सिर्फ 45 वर्ष से कम उम्र के महिला यात्रियों के साथ महरम होने की आग्रह करने पर जो सऊदी वीजा नियमों का पालन कर रहे थे.

इसलिए प्रधानमंत्री मोदी का यह दावा गलत नहीं था कि उम्र को ध्यान में न रखते हुए सभी महिलाओं के लिए महरम आवश्यक यह नियम सिर्फ भारतीय हज समिति के अनुसार था ना कि सऊदी अरब का. ऑल्ट न्यूज़ के अनुसार भारतीय नियम को सऊदी नियम के अनुरूप बदलने के लिए उनको श्रेय दिया जाना चाहिए. यह काम सालों पहले किया जाना चाहिए था लेकिन नहीं किया गया था. कुछ सवाल के जवाब अभी भी नहीं हैं. कोई भी इस मुद्दे को पहले क्यों नहीं उठाया? हज यात्रा के लिए सऊदी नियम के अनुसार भारतीय नियम को सम्मिलित करने की मांग इतने वर्षों से क्यों नहीं की गयी थी?

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