‘Lies, damned lies and statistics’, इस कहावत का इस्तेमाल अक्सर आंकड़ों की ताकत दिखाने के लिए किया जाता है. लेकिन अगर आंकड़ों को चुनिंदा ढंग से दिखाया जाए तो ये आंकड़े गुमराह भी कर सकते हैं. ये बात आप इस आर्टिकल के अंत तक समझ जाएंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देश को संबोधित करते हुए भाषण दिया था. इस भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ आंकड़ों के ज़रिए ये दिखाने की कोशिश की थी कि अन्य विकसित देशों के मुकाबले भारत कोरोना वायरस महामारी से लड़ने में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि भारत में कोरोना वायरस के प्रति 10 लाख लोगों में 5,500 मामले सामने आते हैं जबकि अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देशों में कोरोना के मामले प्रति 10 लाख लोगों में 25 हज़ार मामले दर्ज किये गए हैं.

उन्होंने आगे बताया कि भारत में डेथ रेट प्रति 10 लाख लोगों पर 83 है. जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राज़ील में ये आंकड़ा 600 से ऊपर है.

आगे नरेन्द्र मोदी ने बताया कि भारत ने अब तक 10 करोड़ के करीब टेस्ट किये हैं. इन आंकड़ों के इस्तेमाल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को ये विश्वास दिलाने की कोशिश की कि हम बाकी देशों के मुकाबले कोरोना वायरस महामारी से बचने में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.

आर्टिकल लिखे जाने तक भारत में कोरोना वायरस के कन्फ़र्म केसेज़ 77 लाख के पार पहुंच गए हैं. दुनिया में अमेरिका के बाद भारत, कोरोना वायरस के पॉज़िटिव केसेज़ के मामले में दूसरे नंबर पर है. जनसंख्या में अंतरों को ध्यान में रखते हुए जब बाकी देशों से तुलना की गयी तो मोदी ने वास्तविक आंकड़ों की बजाय प्रति मिलियन (10 लाख) की आबादी पर पाए जाने वाले केसेज़ देखे जो कि एक सही फ़ैसला था. लेकिन जब हम केसेज़ की संख्या और मृत्यु के लिए प्रति मिलियन का पैमाना ले रहे थे तो आखिर टेस्ट्स की संख्या के लिए वास्तविक आंकड़ा क्यूं चुना गया? क्यों सिर्फ़ अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राज़ील से ही भारत के आंकड़ों की तुलना की गयी? हम दूसरे देशों से तुलना क्यूं नहीं कर रहे हैं? क्यूं पूरी दुनिया के एवरेज या एशिया के एवरेज से उसकी तुलना नहीं कर रहे हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिनके कड़वे जवाब मिलेंगे.

केसेज़ प्रति मिलियन (10 लाख)

प्रति 10 लाख केसेज़ की बात करें तो भारत का आंकड़ा है 5,544. ये आंकड़ा वैश्विक एवरेज (जो कि 5,241 है) और एशियन एवरेज (जो कि 2,764 है) से ज़्यादा है. भारत देश अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राज़ील से इन आंकड़ों के मामले में नीचे हैं. जबकि भारत अपने आस-पास के क्षेत्र के अन्य देशों से इन आंकड़ों में कही ज़्यादा आगे है.

कोरोना वायरस के वैश्विक मामलों पर लगातार निगाह रखने वाला वर्ल्डोमीटर 215 देशों के आंकड़े दिखाता है. इन देशों में भारत का स्थान 131वां है. यानी कोरोना केसेज़ के मामले में 130 देश हमसे पीछे हैं. सिर्फ़ 84 देश ऐसे हैं जहां प्रति लाख आबादी पर केसेज़ की संख्या हमसे ज़्यादा है. हमारे पड़ोसी देशों के अलावा जापान, मलेशिया, इंडोनेशिया वो एशियन देश है जहां प्रति लाख आबादी पर मिलने वाले कोरोना केसेज़ हमसे कम हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की तुलना उन 2 बड़े देशों से की जहां पर प्रति 10 लाख केसेज़ की संख्या भारत से ज़्यादा है. ताकि ये दिखाया जा सके कि भारत अन्य देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.

प्रति मिलियन (10 लाख) के हिसाब से मृत्यु दर

जब प्रति 10 लाख आबादी पर हुई मौतों की बात आती है तो भारत का आंकड़ा 84 है जो कि वैश्विक डेथ रेट के एवरेज 144 से कम है. लेकिन बाकी एशियन देशों की प्रति मिलियन आबादी पर होने वाली मौत का एवरेज 49 है और यहां भारत मात खाता दिखाई देता है. भारत का डेथ रेट अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राज़ील जैसे देशों से तो काफ़ी कम है मगर एशियन देशों के ऐवरेज डेथ रेट से ज़्यादा है.

रिकॉर्ड किये गए 215 देशों के डेथ रेट में भारत 134वें पायदान पर है. यानी 133 देश का डेथ रेट भारत से कम है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी का बाकी के देशों से डेथ रेट के मामले में भारत के अच्छा प्रदर्शन करने का दावा सही साबित नहीं होता.

प्रति हज़ार लोगों पर हुए टेस्ट्स की संख्या

भारी जनसंख्या वाले देश भारत के आंकड़ों को अन्य देशों के प्रति मिलियन आबादी पर पाए गए केसेज़ और डेथ रेट से कम्पेयर करना असल में आम जनता को एक भ्रामक नज़रिया दे सकता है. यही बात टेस्ट के आंकड़ों पर भी लागू होती है और हमें प्रति 1,000 लोगों की आबादी पर किये गए टेस्ट्स की संख्या देखनी चाहिए. इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी ने असल आंकड़े दिए हैं न कि प्रति 1,000 की आबादी पर होने वाले टेस्ट्स के. नीचे दिए गए ग्राफ़ के मुताबिक, अमेरिका और ब्रिटेन ने प्रति 1000 लोगों की आबादी पर काफ़ी ज़्यादा टेस्ट किये हैं. जबकि ब्राज़ील ने भारत की तुलना में प्रति 1,000 की आबादी पर काफ़ी कम टेस्ट किये हैं. अमेरिका और ब्रिटेन में कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों की संख्या भी काफ़ी ज़्यादा है क्योंकि वहां पर किये जाने वाले टेस्ट की संख्या भी भारत की तुलना में काफ़ी ज़्यादा है.

इससे एक बात तो साफ़ हो जाती है कि चुनिंदा डेटा का उपयोग करते हुए ये दिखाने की कोशिश की गई है कि भारत अन्य देशों की तुलना में कोरोना महामारी से बचने में काफ़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. मगर जब हम एशिया और दक्षिण एशिया के देशों से भारत की तुलना करते हैं तो कोरोना से लड़ने के मामले में ये तस्वीर इतनी सुंदर नहीं दिखती है. अगर कोरोना के केसेज़ और डेथ रेट को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से कम्पेयर किया जाता है तो कोरोना टेस्ट के आंकड़ों की भी उन्हीं देशों से तुलना होनी चाहिए. तभी ये वास्तविकता सामने लाई जा सकती है कि भारत कोरोना वायरस को रोकने में कितना सफ़ल साबित हो सका है.

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