भारत के विकास के लिए और प्रेस की स्वतंत्रता के साथ-साथ आधार की सुरक्षा बनाए रखने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. FIR अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ है..”(अनुवाद) “,
Govt. is fully committed to freedom of Press as well as to maintaining security & sanctity of #Aadhaar for India's development. FIR is against unknown. I've suggested @UIDAI to request Tribune & it's journalist to give all assistance to police in investigating real offenders.
— Ravi Shankar Prasad (@rsprasad) January 8, 2018
ये ट्वीट है केंद्रीय क़ानून और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद का। ट्रिब्यून अख़बार की संवाददाता रचना खेड़ा ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे लोगों के आधार कार्ड की जानकारी 500 रुपए में उपलब्ध हैं। लेकिन इस रिपोर्ट को लेकर उन्हीं के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कर दी गयी। उन पर ये एफआईआर आधार डाटा के उल्लंघन की वजह से दायर की गई थी।
4 जनवरी, 2018 को ट्रिब्यून ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें बताया गया था कि मैसेजिंग सेवा व्हाट्सएप पर आधार डाटा बेचने वालों का एक नेटवर्क है। जो करीब 1 अरब से अधिक नागरिकों के आधार जानकारी बहुत कम फ़ीस में बेचते हैं। किसी भी नागरिक का ब्यौरा जैसे जन्म तारीख, फ़ोन नंबर, पता, इमेल इत्यादि 500 रुपये की छोटी राशी देकर आधार डेटाबेस से प्राप्त किया जा सकता है।
#TRIBUNEINVESTIGATION — #SECURITYBREACH | by @RachnaKhaira
Rs 500, 10 minutes, and you have access to billion #Aadhaar details | Group tapping @UIDAI data may have sold access to 1 lakh service providershttps://t.co/3vlJhbP94t #AadhaarData pic.twitter.com/CvF6F6Y1Ap— The Tribune (@thetribunechd) January 3, 2018
उसी रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 300 रुपये लेकर एक एजेंट ने आधार का सॉफ्टवेर दिया जिससे आधार कार्ड छापा जा सकता है। रचना खेड़ा जो चंडीगढ़ के दैनिक समाचार-पत्र ट्रिब्यून के साथ काम करती है उनके इस लेख को इन्टरनेट पर व्यापक रूप से साझा किया गया था। UIDAI (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में ही इस रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया। इसे गलत रिपोर्टिंग का मामला कहा और यह दावा किया कि आधार के बायोमेट्रिक डाटा की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया गया है।
Tribune’s Story “Rs 500, 10 minutes, and you have access to billion Aadhaar details” is a case of misreporting. No biometric data breach @thetribunechd @rsprasad @ceo_uidai @timesofindia @firstpost @IndiaToday @ZeeNews
— Aadhaar (@UIDAI) January 4, 2018
UIDAI ने इस बात पर जोर देकर कहा कि बायोमेट्रिक डाटा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं किया गया है, लेकिन UIDAI ने स्वीकार किया कि शिकायत निवारण खोज सुविधा का दुरुपयोग हो सकता है क्योंकि इसे कुछ कर्मचारी ऑपरेट कर सकते हैं लेकिन इस दुरूपयोग का पता भी लगाया जा सकता है।
Some persons have misused demographic search facility, given to designated officials to help residents who have lost Aadhaar/Enrollment slip to retrieve their details @thetribunechd @rsprasad @ceo_uidai @timesofindia @firstpost @IndiaToday @ZeeNews @htTweets @TheQuint
— Aadhaar (@UIDAI) January 4, 2018
इसके तुरंत बाद, भाजपा के आधिकारिक ट्विटर मैनेजमेंट ने ट्वीट किया कि द ट्रिब्यून की आधार डेटा के उल्लंघन की रिपोर्ट गलत थी।
Tribune's report suggesting the data breach at @UIDAI is fake news! pic.twitter.com/qtOzNIq7zH
— BJP (@BJP4India) January 4, 2018
इसके जवाब में ट्रिब्यून ने एक और लेख प्रकाशित किया जिसमें UIDAI के दावे का विरोध किया गया। ट्रिब्यून अपने रिपोर्ट को लेकर अड़ा रहा और लिखा कि वास्तव में डाटा लीक हुआ है और UIDAI के सुरक्षित सिस्टम का दावा ग़लत है क्योंकि तथ्य कुछ और कहते हैं।
लेकिन ये मामला UIDAI के इनकार तक ही सीमित नहीं रहा। इसके बाद UIDAI के एक अधिकारी ने पुलिस शिकायत दर्ज करायी जिसमें कथित तौर पर द ट्रिब्यून और रचना खेड़ा और साथ ही लेख से जुड़ी जानकारी के लिए जिन तीन लोगों से रचना खेड़ा ने संपर्क किया था, को आरोपी के रूप में नामजद करवाया। UIDAI ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि अख़बार और पत्रकार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई क्योंकि यह ‘सभी मामलों का खुलासा करने के लिए ज़रूरी था। मामले के सभी विवरण और ‘सभी का नाम बताएं जो अपराध होने वाली घटनाओं की श्रृंखला में एक सक्रिय भागीदार है, भले ही वह व्यक्ति पत्रकार हो या कोई और हो …’ (अनुवाद)
Pls see our statement in the @thetribunechd story case @htTweets @timesofindia @FinancialXpress @DeccanChronicle @EconomicTimes @CNBCTV18News @ndtv @abpnewstv @aajtak @TimesNow @IndianExpress pic.twitter.com/Nj25guIiyp
— Aadhaar (@UIDAI) January 7, 2018
UIDAI का स्पष्टीकरण रविशंकर प्रसाद के दावे के साथ मेल नहीं खाता जिसमें उन्होंने कहा था कि शिकायत अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई है। जबकि UIDAI ने यह स्वीकार किया कि पत्रकार और संगठन के नाम शिकायत में दर्ज है। तो इस मामले की सच्चाई क्या है? ऑल्ट न्यूज़ ने इस मामले की गहराई तक जाने और पता लगाने का फैसला किया।
FIR की कॉपी जो ऑल्ट न्यूज़ तक पहुंची उसे ऊपर सम्मिलित किया गया है। जैसा कि FIR के पहले पेज के बिंदु 7 पर देखा जा सकता है यह शिकायत UIDAI के द्वारा दर्ज की गई है और FIR ‘अज्ञात’ लोगों के खिलाफ दर्ज की गयी है। हालांकि FIR के पेज नंबर 2 पर स्पष्ट रूप से द ट्रिब्यून और रचना खेड़ा का नाम पढ़ा जा सकता है। उपरोक्त उल्लिखित व्यक्तियों ने अनाधिकृत रूप से आपराधिक षड्यंत्र से आधार पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग किया है। अनिल कुमार, सुनील कुमार, राज, रचना खेड़ा, द ट्रिब्यून और अन्य अज्ञात व्यक्ति उपरोक्त आधार अधिनियम, 2016 की धारा 36 और 37 धारा 419 (ग़लत पहचान दे कर धोखा देना),420 (धोखाधड़ी),468 (जालसाज़ी) और 471 (नकली दस्तावेज़ को सही बता कर इस्तेमाल करने) आईपीसी 1860 और धारा 66 आईटी अधिनियम, 2000 का उल्लंघन किया है।”
रविशंकर प्रसाद ‘तकनीकी’ रूप से गलत नहीं कह रहे क्योंकि FIR अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ ही है लेकिन FIR के पेज 2 पर UIDAI की प्राथमिक शिकायत का हिस्सा दर्ज है ये शिकायत UIDAI ने दर्ज की थी और उसमें स्पष्ट रूप से ट्रिब्यून और खेड़ा का नाम है। लेकिन शिकायत दर्ज करने वाला UIDAI रविशंकर प्रसाद के मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है।
दूसरी ओर, UIDAI का यह स्पष्टीकरण कि द ट्रिब्यून और खेड़ा के खिलाफ शिकायत, जांच के लिए आवश्यक प्रक्रिया का हिस्सा है, इसपर सवाल उठाये गए हैं। ऑल्ट न्यूज़ ने नई दिल्ली स्थित कानूनी विशेषज्ञ रमनजीत सिंह चीमा से बात की, जिन्होंने कहा, “इस FIR में विशेष रूप से रिपोर्टर और संगठन का नाम एक गवाह के बजाय अभियुक्त के तौर पर पेश करने जैसा लगता है। यह सारांश नहीं है लेकिन स्पष्ट रूप से पुलिस को यह कहा गया कि है कि वे एक षड्यंत्र का हिस्सा हैं, जबकि ज्यादातर मामलों में जब प्रेस कुछ रिपोर्ट करता है, तो सामान्य तौर पर उन्हें गवाह माना जाता है लेकिन इस FIR प्रक्रिया में उन्हें गवाह के तौर पर नहीं बल्कि मुख्य रूप से आरोपी पार्टी की तरह पेश किया गया। वही सामान्य प्रक्रिया हुई।” (अनुवाद)
यह आधार परियोजना शुरू से ही विवादों के केंद्र में रही है। आधार के समर्थकों ने इसके पारदर्शिता लाने, भ्रष्टाचार कम करने और सेवा वितरण सुनिश्चित करने के उद्देश्यों की सराहना की, जबकि इसके आलोचकों ने डाटा की सुरक्षा और इसके दुरुपयोग की संभावना पर हमेशा संदेह जताया है। हाल के दिनों में नागरिकों की जानकारी सार्वजनिक हो जाने के मामले सामने आए हैं। जबकि UIDAI ने हमेशा यह जताया कि बायोमेट्रिक डाटा सुरक्षित है। यह पूछा जाना चाहिए कि क्या सिर्फ़ बायोमेट्रिक डाटा की सुरक्षा ही मायने रखती है और बाकि व्यक्तिगत जानकारी नहीं जो UIDAI डाटाबेस का हिस्सा है? इसके अलावा, एजेंसी के विरोधाभासी दावों और डाटा रिपोर्टिंग के लिए द ट्रिब्यून के खिलाफ FIR दर्ज करने की अपनी चाल में यह खुद उन लोगों के बीच विश्वास पैदा करने में पिछड़ सकता है, जो इस आधार परियोजना और इसके नतीजों को लेकर संदेह जताते रहे हैं।
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