“जेएनयू छात्र नजीब याद है ना? उसका पता लगाया जा चूका है। उस निर्दोष अल्पसंख्यक के अपहरण के लिए भाजपा/आरएसएस और पूरे संघ परिवार को दोषी ठहराया गया था। अब पता चला है कि वो ISIS के साथ है। बिकाऊ मीडिया, आप, कम्युनिस्ट और कांग्रेसियों के लिए विरोध करने को बहुत कुछ।” (अनुवाद) यह मेसेज सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है जबसे रिपोर्ट आई कि नजीब नाम का एक शख्स ISIS में शामिल हो गया है। अगस्त, 2017 के एक टेलीग्राम में अपनी माँ को लिखते हुए नजीब ने ISIS के प्रति अपनी निष्ठा जताई और कहा कि वह देश में नहीं रहना चाहता और इसके बजाय जिहाद की मजदूरी करना चाहता है। यह खबर पहली बार सितंबर 2017 में आई थी लेकिन अब हाल में ख़बर फिर से फैलायी जा रही है।
https://www.youtube.com/watch?v=OH9ZSMg8JM4&feature=youtu.be
दक्षिणपंथि ट्विटर यूजर्स ने इसे फिर से उठाया और दावा किया कि नजीब का ISIS में शामिल होना एबीवीपी के सदस्यों की निर्दोष होने का सबूत है। 2016 में जेएनयू से नजीब के गायब होने पर एबीवीपी पर आरोप लगाये गए थे।
Remember JNU Student Najeeb who went untraced?
BJP/ RSS and the whole Sangh parivar were blamed and condemned for abducting and killing him – an innocent minority!!
Now, he is traced – with ISIS.
So much for protests by Prestitudes, AAP, Commies and Congishttps://t.co/XYgThr8mYq— Jaswant Singh (@JasBJP) February 25, 2018
उपरोक्त ट्वीट जसवंत सिंह का है जो बीजेपी के सदस्य होने का दावा करते हैं और केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल के अधिकारिक ट्विटर हैंडल से फॉलो किये जाते हैं। उनके ट्वीट को वरिष्ठ भाजपा नेता राम माधव ने भी रीट्वीट किया था।
वरिष्ठ पत्रकार स्वपन दासगुप्ता ने भी जसवंत सिंह के ट्वीट को रीट्वीट किया जिसमें दावा किया गया था कि जेएनयू का छात्र नजीब जो लापता है उसने ISIS ज्वाइन कर लिया है।
मधु किश्वर जो अक्सर फर्जी खबर फ़ैलाने के लिए जानी जाती हैं, उन्होंने भी इस खबर का प्रचार किया।
नलिन एस कोहली जो भाजपा के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं उन्होंने भी जसवंत सिंह के ट्वीट को रीट्वीट किया है।
शेफाली वैद्य, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी जी भी फॉलो करते हैं। वो भी फेक न्यूज़ की शिकार बनी। एबीवीपी के एक सदस्य ने उनको उनकी गलती के बारे में बताया।
यह खबर फेसबुक पर भी वायरल है जहां कई यूजर्स ने नजीब के ISIS में शामिल होने की जानकारी दी है। इनमें भाजपा के आसनसोल आईटी सेल हेड तरुण सेनगुप्ता भी शामिल हैं, जिन्हें पिछले साल फर्जी खबर फ़ैलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था।
Shame on Anti-Nationalist JaiChands of Hindustan !
जेएनयू के छात्र नजीब के गायब होने पर केजरीवाल, राहुल गांधी, वामपंथी सुअरो तथा नजीब की माँ ने नजीब के गायब होने पर खूब छाती कुटी थी, सेकुलर सुअर कहते थे कि नजीब को संघ ने गायब कर दिया है
अब नजीब ने कहा कि वो सीरिया में ISIS में शामिल होकर अपने अंतिम मंजिल तक पहुच चुका हूं…Posted by Bjp Tarun Sengupta on Monday, 26 February 2018
फतेहपुर, उत्तरप्रदेश के भाजपा विधायक विक्रम सिंह ने भी अपने फेसबुक पेज से इस खबर को साझा किया।
नजीब की ISIS में शामिल होने की खबर जेएनयू छात्र नजीब अहमद जो 2016 में गायब हो गया था उसके संदर्भ में नहीं थी। खबर 23 साल के नजीब के संदर्भ में था, जो वीआईटी वेल्लोर में एमटेक का छात्र था और केरल से गायब हो गया था। ISIS में शामिल होने के लिए नजीब का ब्रेनवॉश कर उसे कट्टरपंथी बनाया गया था। ऊपर की तस्वीर भी उसी नजीब की है ना कि JNU के छात्र नजीब अहमद की। इसके अलावा, यह नजीब अगस्त 2017 के दौरान गायब हुआ था और यह रिपोर्ट अभी की नहीं है। राम माधव ने बाद में एक स्पष्टीकरण देते हुए ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने एक पुरानी खबर को ट्वीट कर दिया था जबकि उन्होंने यह नहीं स्पस्ट किया कि उन्होंने झूठी खबर का भी सन्दर्भ दिया था। स्वप्न दासगुप्ता ने भी ट्वीट हटा लिया।
Sorry! It seems I retweeted an old story. Colleagues alerted me. Untweeted it.
— Ram Madhav (@rammadhavbjp) February 26, 2018
इससे पहले भी एक खबर आयी थी जिसमे दावा किया गया था कि नजीब ISIS का समर्थक हो सकता है, जिस वजह से काफी विवाद हुआ था। मार्च 2017 की टाइम्स ऑफ इंडिया रिपोर्ट में ‘सूत्रों’ के आधार पर दावा किया गया था कि नजीब ISIS में शामिल हो गया जिसे दिल्ली पुलिस ने एक बयान में खारिज करते हुए कहा कि नजीब को ISIS के वीडियो और अन्य सामग्री तक पहुंचने का कोई सबूत नहीं मिला है।
जेएनयू कैंपस में एबीवीपी छात्रों के साथ कथित तौर पर उलझने के बाद नजीब अहमद का लापता होना विश्वविद्यालय में एक चर्चित विषय बन गया था, क्योंकि यह आरोप लगाया गया कि प्रशासन इस मामले को संभालने में कमजोर रहा और इस गंभीर मसले को दबाने की कोशिश की जा रही थी। इस घटना में नामों में समानता कुछ वर्गों के लिए झूठी जानकारी फैलाने के लिए पर्याप्त थी। अक्सर इस तरह के मामलों में पीड़ित की ही निंदा करने का एक पैटर्न देखा गया है।
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