सोशल मीडिया में सख्त और फटी त्वचा वाले बच्चे का एक वीडियो व्यापक रूप से उपयोगकर्ता शेयर कर रहे हैं। ऑल्ट न्यूज़ एप्प पर प्राप्त हुए वीडियो के अनुसार ,“असम में जन्मा राक्षस, 11 महीने गर्भ के बाद एक बच्चे ने जन्म लेते ही अपनी माँ को मार डाला। उसकी देखभाल करने वाली नर्स भी 3 घंटे के भीतर मर गयी।” (अनुवाद) इसमें दावा किया गया कि एक राक्षस बच्चे ने असम में जन्म लिया है और उसने अपनी माँ को पैदा होते ही मार डाला। संदेश में आगे बताया गया है कि उसे छूने की वजह से एक नर्स की भी तीन घंटो के भीतर मौत हो गयी।
[चेतावनी : वीडियो के दृश्य मन को विचलित कर सकते हैं, कृपया इसे देखने से पूर्व अपने विवेक का इस्तेमाल करें।]कुछ अन्य लोगों ने व्हाट्सअप पर इस वीडियो की पड़ताल के लिए अनुरोध किया है।
तथ्य जांच
डिजिटल वेरिफिकेशन टूल इनविड के ज़रिये वीडियो को कई की-फ्रेम में तोड़ने के बाद उसे गूगल पर रिवर्स सर्च करने पर, हमें यूट्यूब पर 21 जुलाई, 2019 को अपलोड किया गया एक वीडियो मिला।
दुर्लभ बीमारी
यह बच्चा एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है, जो किसी भी समुदाय के व्यक्ति को हो सकता है और इसे हार्लेक्विन इचथ्योसिस (Ichthyosis) कहा जाता है। बीबीसी की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह अवस्था एक त्रुटिपूर्ण जीन की वजह से होती है, जो लाख में से किसी एक को ही होती है। बीमारी के लक्षण जन्म के वक़्त या एक साल के भीतर दिखना शुरू होता है, “यह उस सेल को प्रभावित करते हैं, जो त्वचा का निर्माण करती है, जिसका मतलब है कि पुरानी सुखी त्वचा के कोष बाहर निकलने में अधिक समय लेते है जबकि नई त्वचा का निर्माण जल्दी हो जाता है। उससे ज़्यादा परतों वाली त्वचा बनती है, इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है।” (अनुवाद)
जबकि सोशल मीडिया में इस बच्चे को “राक्षस” बताया जा रहा है, लकिन वास्तव में यह बच्चा एक दुलर्भ बीमारी हार्लेक्विन इचथ्योसिस से पीड़ित है।
भारत में भी ऐसे बच्चे को देखा गया है
जून 2016 में महाराष्ट्र के विदर्भ में एक किसान दम्पति ने हार्लेक्विन इचथ्योसिस से पीड़ित बच्चे को जन्म दिया था। हिंदुस्तान टाइम्स ने भारत में इस तरह के बच्चे के जन्म लेने की घटना को पहली बार बताया था। दो दिन तक ज़िंदा रहने के बाद इस बच्चे की कथित रूप से मौत हो गयी थी।
जनवरी 2017 में बिहार के पटना में हार्लेक्विन इचथ्योसिस से पीड़ित बच्चे के जन्म लेने की एक अन्य घटना भी सामने आयी थी। पिछले साल सितम्बर में, कस्तूरबा गांधी अस्पताल में हार्लेक्विन इचथ्योसिस से पीड़ित एक बच्ची की सांस से सम्बंधित कोशिकाओं के विकास के बाद मृत्यु हो गयी थी। इंडिया टुडे ग्रुप की मेल टुडे से बातचीत में वरिष्ठ सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.मारुति सिन्हा ने बताया, “यह पहली बार है कि ऐसी त्वचा से संबंधित बीमारी से पीड़ित बच्ची के जन्म को देख पाए हैं। हार्लेक्विन इचथ्योसिस में जीन त्रुटि ‘ABCA 12’ शामिल है।” (अनुवाद)
जीवन की संभावना
हिंदुस्तान टाइम्स के एक लेख के मुताबिक, इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है मगर सारवार से इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है। हालांकि, इस बीमारी को घातक माना जाता है, लेकिन बेहद देखभाल और अग्रिम तकनीक के कारण बच्चे के जीवित रहने की संभावना हो सकती है। सितम्बर 2015 में, ब्रिटिश टैब्लॉयड डेली मेल ने हार्लेक्विन इचथ्योसिस के साथ रहने वाली 23 वर्षीय स्टेफ़नी टर्नर को सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति के रूप में बताया था, जिसमें उनकी त्वचा काफी तेज़ी से बढ़ती है और काफी सख्त और मोटी दिखाई देती है।
निष्कर्ष के तौर पर, बेहद घातक और दुर्लभ जेनेटिक बीमारी हार्लेक्विन इचथ्योसिस के साथ जन्मी बच्ची के एक वीडियो को सोशल मीडिया में अवैज्ञानिक तर्क के साथ शेयर किया गया कि यह बच्चा राक्षस है और इसने अपनी माँ की जान ले ली, इसे छूने वाली नर्स की भी मौत हो गयी। हालांकि, हम इस वीडियो के स्रोत और स्थान का पता नहीं लगा पाए हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि सोशल मीडिया पर चल रहे दावे झूठे हैं।
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