25 अगस्त को भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने ट्वीट किया, “क्या कांग्रेस में रहने के लिए राहुल गांधी से कम आईक्यू होना एक शर्त है? सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में केंद्र सरकार पर सहयोग न करने का आरोप नहीं लगाया है. सिर्फ इतना कहा है कि सरकार का स्टैंड समिति के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के सामने भी यही रहा है. आदेश पढ़ें.” अमित मालवीय के इस ट्वीट को 900 से ज़्यादा लाइक्स और करीब 300 रीट्वीट मिले हैं.

अमित मालवीय ने ये ट्वीट कांग्रेस के उस ट्वीट के संदर्भ में किया था जिसमें मोदी सरकार को पेगासस मामले में आड़े हाथ लिया गया था. ये ट्वीट गुरुवार, 25 अगस्त को भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले की सुनवाई के बारे में किया गया था.

अमित मालवीय ने ट्वीट में दावा किया कि अदालत ने सिर्फ इतना कहा था कि सरकार का रुख एक जैसा बना हुआ है और अदालत ने केंद्र सरकार पर “सहयोग न करने” का आरोप नहीं लगाया. साथ में अमित मालवीय ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी तंज कसा है. ध्यान दें कि अमित मालवीय के ट्वीट में ये नहीं बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार के किस “स्टैंड” का ज़िक्र किया जा रहा था.

फ़ैक्ट-चेक

पहली बार द वायर ने पेगासस प्रोजेक्ट का हिस्सा के रूप में रिपोर्ट किया था कि 27 अक्टूबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ चुनिंदा विपक्षी नेता, कार्यकर्ता, पत्रकार और अन्य को टारगेट करते हुए उन पर निगरानी रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा इज़रायली स्पाइवेयर पेगासस के कथित दुरुपयोग के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब मेंकिए गए एक डिजिटल फ़ोरेंसिक जांच में कथित तौर पर पाया गया कि दर्जनों लोगों के फ़ोन या तो टारगेट किये गए थे या वो पेगासस स्पाइवेयर से इन्फ़ेक्टेड थे जिसे इज़राइल के NSO ग्रुप ने बेचा था.

सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायाधीश आर वी रवींद्रन की निगरानी वाली समिति ने 2 अगस्त 2022 को तीन भागों में अपनी अंतिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी. इसमें दो पार्ट तकनीकी समिति के हैं और एक पार्ट देखरेख करने वाले सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा तैयार किया गया था. 25 अगस्त को 3 जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की.

ऑल्ट न्यूज़ ने लाइव लॉ (@LiveLawIndia) और बार एंड बेंच (@barandbench), नामक दो डिजिटल न्यूज़ एजेंसियों के ट्विटर थ्रेड देखें. इन्होंने सुनवाई की लाइव रिपोर्ट ट्वीट थ्रेड के जरिए शेयर की थी. इस थ्रेड्स में लिखा गया था कि रिपोर्ट पढ़ते समय, CJI ने इसके कुछ हिस्सों को पढ़ा और कोर्ट रूम में मौखिक अवलोकन किया कि सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया है. इसके बाद उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि केंद्र सरकार ने जांच समिति के सामने वही रुख अपनाया है जो उसने पहले शीर्ष अदालत में रखा था. यानी, जांच में सहयोग न करने का. इस पर SG ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है.

अदालत द्वारा किए गए इस मौखिक अवलोकन को द टेलीग्राफ़, स्क्रॉल, द वायर और द इंडियन एक्सप्रेस जैसे मीडिया आउटलेट्स ने भी डिटेल में रिपोर्ट किया है.

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क्या है केंद्र सरकार का ‘स्टैंड’?

इंडियन कानून पोर्टल के माध्यम से, ऑल्ट न्यूज़ को सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर 2021 में पारित एक आदेश का एक्सेस मिला. इसमें CJI के नेतृत्व वाली पीठ ने केंद्र सरकार के उक्त ‘स्टैंड’ पर टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था, “हालांकि, बार-बार दिए गए आश्वासन और अवसर के बावजूद, आख़िरकार भारत के प्रतिवादी संघ ने ये रिकॉर्ड पर रखा है. जिसे उन्होंने “सीमित हलफनामा” कहा है उसमें उनके रुख पर कोई प्रकाश नहीं डाला गया है और मामले के फ़ैक्ट्स के बारे में कोई स्पष्टता भी नहीं प्रदान की गई है. अगर रेस्पोंडेंट यूनियन ऑफ़ इंडिया ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया होता तो स्थिति कुछ और होती. और हम पर कुछ अलग बोझ होता. भारत के प्रतिवादी संघ द्वारा की गई इस तरह की कार्रवाई विशेष रूप से वर्तमान मामले की कार्यवाही, जो देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के बारे में है उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है.” उन्होंने आगे कहा,“ उन्हें उस स्टैंड को उचित ठहराना चाहिए जिसे वे कोर्ट के सामने रखते हैं. राज्य द्वारा सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा का आह्वान करने से कोर्ट मूकदर्शक नहीं बन जाती है.”

25 अगस्त, 2022 की सुनवाई में अदालत द्वारा की गई टिप्पणी को और समझने के लिए हमने दो स्वतंत्र सोर्स से संपर्क किया. सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने बताया की कि CJI ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया है. उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “CJI रमण ने खुली अदालत में तकनीकी समिति की रिपोर्ट का सिर्फ एक हिस्सा पढ़ा. सुनवाई के दौरान CJI ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि रिपोर्ट में ये नोट किया गया कि भारत सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया है.”

लाइव लॉ के प्रबंध संपादक मनु सेबेस्टियन ने वर्चुअली कार्यवाही में भाग लिया था और लाइव रिपोर्ट किया था. (पत्रकारों के पास सुनवाई के लिए सिर्फ वर्चुअल एक्सेस था) उन्होंने भी बताया कि समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए CJI ने कहा कि केंद्र सरकार ने कमिटी के साथ सहयोग नहीं किया था.

मनु सेबेस्टियन ने कहा, “SC द्वारा नियुक्त कमिटी ने दायर रिपोर्ट के कुछ हिस्से पढ़े जिसके बाद, CJI ने कुछ मौखिक टिप्पणियां कीं. उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि कमिटी ने 29 फ़ोन की जांच की और पांच में मैलवेयर पाए गए. फिर उन्होंने नोट किया कि कमिटी ने रिपोर्ट में कहा है कि भारत सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया है.”

ध्यान दें कि अमित मालवीय के ट्वीट की अंतिम लाइन ‘रीड द ऑर्डर’ में ये सुझाव दिया गया है कि आदेश में सुप्रीम कोर्ट और कमिटी के सामने सरकार के रुख पर कुछ प्रकाश डाला गया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई कार्यवाही के रिकॉर्ड में उन पंक्तियों के साथ कुछ भी ज़िक्र नहीं किया गया है. आदेश में सिर्फ ये कहा गया है;

“1. दिनांक 27.10.2021 के आदेश के अनुसरण में तकनीकी समिति एवं पर्यवेक्षण न्यायाधीश ने सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. इसे रिकॉर्ड में लिया जाता है. सीलबंद लिफाफों को न्यायालय में खोला गया और हमने उक्त रिपोर्ट्स के कुछ हिस्से पढ़े. इसके बाद, रिपोर्ट्स को फिर से सील कर दिया गया और इस न्यायालय के महासचिव की सुरक्षित कस्टडी में रखा गया जो न्यायालय द्वारा ज़रूरत पड़ने पर इसे उपलब्ध कराएंगे. 2 पक्षकारों की ओर से उपस्थित विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत संघ की ओर से उपस्थित विद्वान महाधिवक्ता श्री मनोहर लाल शर्मा को भी सुना गया. 3. इन मामलों को आगे की सुनवाई के लिए चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध की गई.”

कुल मिलाकर, पेगासस सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा की गई मौखिक टिप्पणियों के बारे में अमित मालवीय का ट्वीट भ्रामक और अस्पष्ट है. CJI ने तकनीकी समिति की रिपोर्ट के एक हिस्से को पढ़ते हुए ये टिप्पणी की थी कि रिपोर्ट में ये नोट किया गया था कि भारत सरकार ने जांच में सहयोग नहीं कर रही है.

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About the Author

Indradeep, a journalist with over 10 years' experience in print and digital media, is a Senior Editor at Alt News. Earlier, he has worked with The Times of India and The Wire. Politics and literature are among his areas of interest.