इंडिया टुडे ने दावा किया है कि पेगासस प्रोजेक्ट के कोऑर्डिनेटर्स में से एक एमनेस्टी इंटरनेशनल अपनी पहली रिपोर्ट से पलट गया है, जिसमें इज़राइली स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को टार्गेट किए जाने के बारे में बात की गयी थी.
इंडिया टुडे ने एक ब्रॉडकास्ट ट्वीट करते हुए लिखा, “Amnesty backtracks on snooping list.” प्रसारण में स्क्रीन पर दिख रहे न्यूज़ टिकर में लिखा दिखता है “Snoopgate list was never real?” , “Big Amnesty U-turn” और “Amnesty pulls back of ‘list’ claims”.
#Amnesty backtracks on snooping list. @DeependerSHooda and @Partap_Sbajwa attack govt.
(@kamaljitsandhu )#News pic.twitter.com/aaciv2j9nO— IndiaToday (@IndiaToday) July 22, 2021
चैनल उस लिस्ट का ज़िक्र कर रहा था जिसमें 50 हज़ार संभावित टारगेट बताये गए थे और जिसे पेरिस स्थित फॉरबिडेन स्टोरीज़ ने पहले एक्सेस किया. इंडिया टुडे ने जो तस्वीर पेश करने की कोशिश की, वो ये थी – ‘एमनेस्टी ने पहले तो ये बताया था कि लीक हुई लिस्ट में शामिल सभी नंबरों की जासूसी की गयी थी लेकिन बाद में एमनेस्टी ने सफाई देते हुए ये कहा कि ये लिस्ट उन लोगों की थीं जो NSO ग्रुप द्वारा बनाये गए पेगासस का इस्तेमाल करने वालों के संभावित टार्गेट (persons of interest) थे.’
टाइम्स नाउ के ऐंकर राहुल शिवशंकर ने एक शो के दौरान सवाल किया, “क्या पेगासस स्पाईगेट कॉल डेटाबेस नकली है?” उन्होंने दावा किया कि पेगासस प्रोजेक्ट में एक नया ‘ट्विस्ट’ आया है और एमनेस्टी ने कभी भी डेटा को NSO से नहीं जोड़ा.
चूंकि NSO ग्रुप ये घोषित कर चुका है कि वो ये सॉफ़्टवेयर सिर्फ़ उन्हीं सरकारों को सॉफ़्टवेयर की सुविधा मुहैया कराते हैं जिसकी उन्होंने पूरी जांच की होती है (only vetted governments), इसलिए भारत में भाजपा को निशाने पर लिया जा रहा है. भाजपा ने पेगासस प्रोजेक्ट को पूरी तरह से नकारने की और उसे ख़ारिज करने की पुरज़ोर कोशिश की.पार्टी ने कहा, “एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस लिस्ट को ग़लत बताया है.”
NSO has denied that this is not a list of their customers and has no corroborative evidence of any connection between the list in circulation.
Amnesty International has denied this list and yet, the Opposition has continued to disrupt the House based on fake news. pic.twitter.com/9E8TFIV1sz
— BJP (@BJP4India) July 22, 2021
क्या एमनेस्टी अपनी शुरुआती रिपोर्ट से पीछे हट गया?
नहीं
फ़ॉरबिडेन स्टोरीज़ के साथ काम करते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब को एक लिस्ट मिली जिसमें 50 हज़ार फ़ोन नंबर थे. ये सभी नंबर NSO के ग्राहकों के संभावित टार्गेट थे. 18 जुलाई को अपनी पहली रिपोर्ट में एमनेस्टी ने साफ़ तौर पर कहा, “50 हज़ार संभावित टारगेट फ़ोन नंबरों के लीक होने की जांच के दौरान ये समझ में आता है कि NSO ग्रुप के स्पाइवेयर का इस्तेमाल करते हुए बड़े पैमाने पर दुनियाभर में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है.”
फ़ॉरबिडेन स्टोरीज़ ने ये भी कभी नहीं कहा कि पेगासस से 50 हज़ार फ़ोन इन्फ़ेक्ट हुए थे. आउटलेट ने लिखा है कि ये NSO क्लाइंट्स के नंबर्स “सर्विलांस के लिए सेलेक्ट किये गए” थे.
पेगासस प्रोजेक्ट के सभी आर्टिकल में एमनेस्टी ने “संभावित टार्गेट” (“Potential Targets”) का ही इस्तेमाल किया है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन, पाकिस्तान के इमरान खान और दक्षिण अफ्रीका के सिरिल रामफोसा को भी NSO ग्रुप के कस्टमर्स ने “People of interest” के रूप में चुना था.
‘संभावित टार्गेट (Potential Target)’ का क्या मतलब है? फ़ॉरबिडेन स्टोरीज़ के संस्थापक लॉरेंट रिचर्ड ने इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया था. उन्होंने कहा, “NSO के ग्राहकों ने NSO के सिस्टम में जो नंबर दर्ज किये, उनमें से कुछ नंबर इन्फ़ेक्ट हुए हैं. हम कुछ फ़ोन के अंदर इसके सबूत ढूंढ पाने में सफ़ल रहे.”
ऐंकर राजदीप सरदेसाई ने सवाल किया, “क्या हम कह सकते हैं कि इस NSO लिस्ट में किसी नंबर का मौजूद होना, उसके हैक होने का संकेत है? क्या हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि ये वही नंबर्स हैं या हमें इन सभी नंबर्स की फ़ॉरेंसिक जांच करनी होगी?” इसके जवाब में रिचर्ड ने कहा, “हमने ऐसा कभी नहीं कहा. हम महज़ इतना कह रहे हैं कि NSO के ग्राहकों ने ये नंबर सिस्टम में दर्ज किये थे. हम यही कहते हैं. दूसरी बात जो हम कहते हैं वो ये है कि जब हम लोगों से संपर्क कर पाये, तो हमने उन्हें बताया कि आप पर शायद निगरानी की जा रही है और हमारे पास इस बात को मानने की वजहें हैं. क्या आपके फ़ोन पर कुछ फ़ॉरेंसिक करना संभव है? उसके बाद जब हमने ऐसा किया, तो हमें इन्फ़ेक्शन के कुछ सबूत मिले.”
Snoopgate scandal: Forbidden Stories founder Laurent Richard (@laurentrichard0) says the phone numbers were entered into the system by NSO customers. Listen in. #NewsToday with @sardesirajdeep pic.twitter.com/sJwcSuhOpj
— IndiaToday (@IndiaToday) July 20, 2021
द वायर ने इसी तरह की रिपोर्ट की थी, “पोटेंशियल टारगेट वो है जिसका नंबर लिस्ट में दिखता है, लेकिन उसके डिवाइस का एमनेस्टी ने फ़ॉरेंसिक विश्लेषण नहीं किया है. एक व्यक्ति को एक टारगेट तब माना जाता है, अगर उसका फ़ोन हैक हुआ है या हैक करने की कोशिश किये जाने के सबूत दिखते हैं.”
रिपोर्ट के अनुसार, “पेगासस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे न्यूज़ ऑर्गनाइज़ेशन स्वतंत्र रूप से कम से कम 10 देशों में 1,500 से ज़्यादा नंबरों के मालिकों की पहचान करने में सफल रहे. इनमें से कुछ फ़ोन की पेगासस के निशान खोजने के लिए फ़ॉरेंसिक जांच की गयी.”
एमनेस्टी की टेक्निकल लैब ने 67 फ़ोन की फ़ॉरेंसिक जांच की, “इनमें से 37 में पेगासस हैक के सफल होने के या हैक की कोशिश के सबूत पाए गए.”
द वॉशिंगटन पोस्ट ने बताया, “बाकी 30 फ़ोन की जांच बेनतीजा रहीं. कई मामलों में ऐसा इसलिये हुआ क्यूंकि फ़ोन बदल दिये गये थे. 15 फ़ोन एंड्रॉइड डिवाइस थे और इनमें से किसी पर भी सफल इन्फ़ेक्शन का कोई सबूत नहीं दिखा. हालांकि, आईफ़ोन के उलट, एंड्रॉइड फ़ोन पर वो ज़रुरी सूचनाएं दर्ज नहीं होती हैं जिससे एमनेस्टी जांच पूरी कर पाती. 3 एंड्रॉइड फ़ोन में टारगेट किये जाने के निशान, जैसे पेगासस से जुड़े SMS, दिखे.”
एमनेस्टी ने 37 फ़ोन में पेगासस का पता लगाने के लिए जो तरीका अपनाया, उसके बारे में बताया. द वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, “37 फ़ोन की फ़ॉरेंसिक जांच करने के बाद मालूम पड़ा कि लिस्ट में किसी नंबर के जोड़े जाने के समय और उसकी निगरानी करने की कोशिश शुरू करने के बीच सीधा संबंध दिखता है. कई मौकों पर तो इन्स्में कुछ सेकंड्स का ही फ़ासला था.” लिस्ट में कोई रैंडम नंबर्स नहीं थे. सिटीज़न लैब ने एमनेस्टी की रीसर्च की स्वतंत्र रूप से समीक्षा की थी.
NSO ने जांच के परिणामों को काफ़ी बढ़ा-चढ़ा हुआ और निराधार बताया. साथ ही, ये भी कहा कि ये अपने कस्टमर्स को लाइसेंस स्पाइवेयर ऑपरेट नहीं करता है और ग्राहकों के डेटा को न ही देख सकता है और न ही उसतक पहुंच सकता है (“no visibility or access”). कंपनी का ये बयान कि वो पेगासस का किसी विशिष्ट टार्गेट पर इस्तेमाल नहीं करते हैं, विरोधाभासी मालूम पड़ता है. मसलन, NSO ने कहा था कि उसके सरकारी ग्राहकों ने साउदी पत्रकार जमाल खशोगी पर जासूसी करने वाले सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया था. लेकिन, यदि NSO ये कहता है कि किसी विशिष्ट हरकत के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं होती है, तो वो ये कैसे कह सकते हैं कि स्पाईवेयर का इस्तेमाल हुआ था या नहीं.
व्हाट्सऐप ने 2019 में NSO के खिलाफ मुकदमा दायर किया था. सॉफ़्टवेयर के स्क्रीनशॉट और मुकदमे में दायर किये गए अनुबंध में लिखा है कि “NSO हैकिंग की एक भली-पूरी सेवा मुहैया करवाता है, जिसका मतलब है कि बहुत सारी असल तकनीक कंपनी के हाथ में है. इस तरह NSO इस सेवा का लाभ उठाने वाले सरकारी कर्मचारियों की बड़ी आसानी से सहायता कर सकता है.”
सोशल मीडिया पर लिस्ट के बारे में भ्रामक दावों के वायरल होने के बाद, एमनेस्टी ने बयान दिया – “एमनेस्टी इंटरनेशनल स्पष्ट रूप से पेगासस प्रोजेक्ट के नतीजों के साथ खड़ा है, और ये डेटा निश्चित रूप से NSO ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर के संभावित टार्गेट से ही जुड़ा हुआ है. सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही झूठी अफ़वाहों का मकसद पेगासस प्रोजेक्ट द्वारा सामने लायी गयी जानकारी को झूठा क़रार देना है जिसके अनुसार पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को गैरकानूनी रूप से टारगेट किया गया है.”
किस वजह से मीडिया और बीजेपी ने भ्रामक दावों को बढ़ावा दिया?
अमेरिकी साइबर सुरक्षा पत्रकार किम ज़ेटर ने इज़रायली वेबसाइट कैलकलिस्ट का एक आर्टिकल शेयर किया. उन्होंने दावा किया कि आर्टिकल में कहा गया है, “एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कभी भी इस लिस्ट को ‘NSO पेगासस स्पाइवेयर लिस्ट’ के रूप में नहीं बताया, हालांकि, हो सकता है कि दुनिया में मीडिया के एक हिस्से ऐसा किया हो. लिस्ट कंपनी के ग्राहकों के हितों के लिए है.”
Amnesty says it never claimed list was NSO: “Amnesty International has never presented this list as a ‘NSO Pegasus Spyware List’, although some of the world’s media may have done so..list indicative of the interests of the company’s clients” https://t.co/51U72HI9yF
h/t @ersincmt— Kim Zetter (@KimZetter) July 21, 2021
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने ज़ेटर के ट्वीट को कोट-ट्वीट किया और दावा किया कि एमनेस्टी ने संभावित टार्गेट की एक लिस्ट पर “विचार” किया. उन्हें जवाब देते हुए ज़ेटर ने कहा कि कंचन गुप्ता ने उनके ट्वीट का पूरी तरह से गलत मतलब निकाला है.
So Amnesty conjured a ‘list’ of ‘possible targets’ and fed it to #media collaborators who feverishly put out eyeball-grabbing lurid stories. In our time we used to call it “Planter’s Raj” — media planting stories that came in brownpaper envelopes. Now they come via email. 2n
— Kanchan Gupta 🇮🇳 (@KanchanGupta) July 22, 2021
कैलकलिस्ट पत्रकार उमर कबीर, जिन्होंने इब्रानी (Hebrew) भाषा में आर्टिकल लिखा था, ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “ये कन्फ़्यूज़न क्यों हो रहा है? मैंने स्पष्ट रूप से रिपोर्ट किया है कि एमनेस्टी अपनी बात पर कायम है और अपनी प्रेस रिलीज में एक बार फिर उसने यही कहा है कि लिस्ट में वो नंबर थे जो या तो स्पाइवेयर से प्रभावित थे या NSO के ग्राहकों के लिए वो नंबर उन लोगों के थे जिनमें उन्हें रूचि थी (persons ऑफ़ interest).”
उमर कबीर की रिपोर्ट का ग़लत अनुवाद पहले से ही काफ़ी फैल चुका था. फ़ॉरबिडेन स्टोरीज़ के पत्रकार फ़िनीस जेम्स ने एक ट्विटर थ्रेड में बताया कि किस तरह कुछ इज़रायली मीडिया ने तोड़ा-मरोड़ा हुआ विवरण प्रकाशित किया था और सुबह तक ये खबर हर जगह थी कि लिस्ट NSO क्लाइंट्स के संभावित सर्विलांस टार्गेट की बजाय NSO के ग्राहकों की ओर ‘इशारा’ करती है
By morning, news that the list was “indicative” of NSO clients rather than “targets of potential surveillance by NSO clients,” was everywhere:
An advisor for #Indian Min. of Information & Broadcasting tweeted the story was “laughable.”
The counter-narrative was spun.
7/10 pic.twitter.com/1q7azyj0Vk
— Phineas James (@PhineasJFR) July 22, 2021
द वायर ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इज़राइल के प्रवक्ता गिल नवे से बात की जिन्होंने कहा कि संगठन के हिब्रू बयान को इज़राइल में कुछ मीडिया ने गलत तरीके से रिपोर्ट किया था. साथ ही, इसे गलत तरीके से अंग्रेज़ी में लिखा जा रहा है. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, “ये झूठी खबर चल रही है कि एमनेस्टी का कहना है कि नंबरों की लिस्ट NSO के ग्राहकों की ओर “इशारा” करती है. गिल नवे ने संगठन को बताया कि ये एक गलत अनुवाद है. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि ये उन नंबरों की एक लिस्ट है जिसमें NSO के ग्राहकों ने रूचि दिखाई है, जिसमें पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, वकील आदि शामिल हैं. ऑल्ट न्यूज़ ने एमनेस्टी से भी संपर्क किया. जब वे जवाब देंगे तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
रिपब्लिक उन भारतीय मीडिया आउटलेट्स में से एक है जिसने दावा किया कि लिस्ट NSO के ग्राहकों की जी लोगों में रूचि थी, उस ओर इशारा कर रही थी. गुजराती न्यूज़ आउटलेट संदेश ने कहा कि ये जासूसी “अटकलों” पर आधारित थी.
नवे ने कहा, “एमनेस्टी और जांच में शामिल पत्रकारों ने शुरुआत से ही बेहद साफ़ शब्दों में ये बता दिया था कि ये ऐसे नम्बरों की लिस्ट थी जिन्हें NSO के ग्राहकों ने चिह्नित या टार्गेट करने में रुचि दिखायी थी. NSO की ग्राहक दुनिया की कई शासन कर रही सरकारें हैं.”
भाजपा समर्थक वेबसाइट स्वराज्य और ऑप इंडिया ने ये दावा करते हुए रिपोर्ट प्रकाशित की कि ये एमनेस्टी द्वारा एक ‘नयी एडमिशन’ थी. ऑप इंडिया ने लिखा, “रिपोर्टों के अनुसार, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अब स्वीकार किया है कि उसने कभी नहीं कहा कि दुनिया भर के कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनेताओं के नाम वाले डेटाबेस NSO के निशाने पर थे, बल्कि मीडिया ने ही अपने पाठकों के साथ छेड़छाड़ की.”
स्वराज्य के एक लेखक ने पेगासस प्रोजेक्ट पर द वायर की रिपोर्टिंग पर सवाल उठाया. द वायर 10 देशों के 17 मीडिया संगठनों में से एक है, जो इस जांच का हिस्सा था. लेखक ने पूछा – “द वायर ने पेगासस मामले पर अपने मुख्य लेख के शुरुआती वाक्य में “जासूसी के संभावित टार्गेट (Potential targets of surveillance)” वाक्यांश का इस्तेमाल किया. ख़ुद द वायर के मुताबिक़, अगर उस लिस्ट में मौजूद फ़ोन नंबर ये नहीं बताते हैं कि उनकी जासूसी हुई है, तो यहां किस तरह का आरोप लगाया जा रहा है?”
आउटलुक ने रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका शीर्षक था, “Amnesty Now Says Pegasus Spyware List Not NSO’s Target, Only Showed Its Clients’ Interest” जिसे बाद में बदलकर, “Pegasus U-Turn?” कर दिया गया. एमनेस्टी का कहना है कि NSO स्पाइवेयर लिस्ट में कभी भी लीक हुए फ़ोन नंबर का दावा नहीं किया गया था.
ज़ी न्यूज़ के प्रधान संपादक सुधीर चौधरी ने जांच को “केस स्टडी” के रूप में बताया. टाइम्स नाउ के एंकर राहुल शिवशंकर ने “जासूसी रिपोर्ट की वैधता” पर सवाल उठाया.
इस तरह, एक भ्रामक कहानी तैयार गयी है कि एमनेस्टी अपनी पहले की जांच से पीछे हट गयी है.
लेकिन सच ये है कि संगठन ने हमेशा यही कहा कि लिस्ट में 50 हज़ार नंबर NSO ग्रुप के ग्राहकों द्वारा संभावित सर्विलांस टारगेट हैं. फ़ॉरबिडेन स्टोरीज़ के संस्थापक ने कहा कि इन नंबरों को NSO के सिस्टम में फ़ीड किया गया था और पेगासस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले न्यूज़ संगठन 1,500 से ज़्यादा नंबरों के मालिकों की पहचान करने में सफल हुए थे. इनमें से 67 लोगों के फ़ोन फॉरेंसिक जांच से गुज़रे और 37 में पेगासस होने के सबूत मिले थे. भाजपा के कहे के अनुसार लिस्ट फर्ज़ी है लेकिन पार्टी ने अभी तक इस बात से इनकार नहीं किया कि उन्होंने नागरिकों की जासूसी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया. लिस्ट पर इतना ज़ोर दिया गया है कि इसके असल मुद्दे से ध्यान भटकता है- पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फ़ोन पेगासस से इन्फ़ेक्ट होने के सबूत हैं. अवैध रूप से किसी की निगरानी करना, लोकतंत्र को खत्म करना होता है. साथ ही नागरिकों की जासूसी करने वाली सरकारों से सवाल करने की बजाय, इस अवैध निगरानी को उजागर करने वाले संगठनों को निशाना बनाना, सच्चाई से मुंह मोड़ लेने के बराबर ही है.
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